गुरुवार, 24 सितंबर 2009

यह मेरा स्वीट होम है ....

यह मेरी बेटी है
जीती जागती
सांस लेती
नोटों की पेटी है
इसने पिछले ही साल
चलना  सीखा है
सुबह तीन  बजे
उठ जाती है
चार बजे हैवी
पांच बजे लाइट म्युज़िक
सीखने जाती है
बचे समय में
कत्थक , भरतनाट्यम
और डिस्को  में पसीना बहाती  है
पिछले हफ्ते बुगी - बुगी में
फर्स्ट आई थी
अगले हफ्ते इसे लिटिल चैम्प्स में
जाकर जगमगाना है
पैसा और नाम दोनों
 साथ - साथ कमाना है
 
यह मेरा बेटा है
अभी बहुत छोटा है
 ठीक से बोल नहीं पाता है
लेकिन आढ़े- तिरछे मुँह बनाकर
फूहड़ चुटकुले  खूब सुनाता है
यह नींद में भी बल्ला घुमाता है
इसीलिए मुझे बहुत भाता है
नाम है इसका शहर में अब
बहुत ही जाना माना
क्रिकेट में चल गया तो ठीक
वर्ना लाफ्टर का है ज़माना
 
यह मेरी पत्नी है
एंटरटेनमेंट के लिए
कुछ भी कर सकती है
इसका ठुमका देख के
सारे चैनेल घबरा जाते हैं
बिना परफोरमेंस देखे
नोट थमा जाते हैं
आजकल सच बोलने की
प्रेक्टिस कर रही है
भूतकाल के प्रेमी
वर्तमान के संगी और
अश्लील प्रश्नों से भी
नहीं डर रही है
भरी सभा में भले ही
वस्त्र हीन हो जाए
कान्हा को नहीं बुलाएगी
यह आधुनिक द्रौपदी है
खुद की बिछाई चौपड़ में
साड़ी उतार के भी मुस्कुराएगी 
 
यह जो फोटो के अन्दर
हँस रहे हैं
ये मेरे माँ - बाप हैं
नहीं - नहीं ..ये अभी जिंदा हैं
कलेजे में लोट  रहे साँप हैं
हम रात दिन व्यस्त रहते हैं
इसीलिए ये वृद्धाश्रम में रहते हैं
इनको भी जल्दी ही
काम मिलने वाला है
क्यूंकि अगले महीने मरने का
एक लाइव शो आने वाला है
 
 मैं इस घर का बिग बॉस हूँ 
दिन - रात गंदी गालियों का
करता अभ्यास  हूँ
घने जंगल के बीचों - बीच
साँप , ,बिच्छू कीडों  के साथ
मीठी तान लेता हूँ   
शोहरत के लिए   जीता हूँ
 रुपयों के लिए जान देता हूँ  
 
 
यह मेरा स्वीट होम है
 इसके हर कमरे में
कई कैमरे  फिट हैं
यहाँ की हवा में नफरत और
कड़वाहट घुली रहती है
ज़िंदा हैं हम सब लेकिन
साँसें घुटीं घुटीं रहती हैं 
इस घर में कोई आता, जाता
 हँसता , मुस्कुराता नहीं है
ये ऐसी रियलिटी है जिसमे
सब कुछ है लेकिन अपनापा नहीं है ....  

43 टिप्‍पणियां:

  1. एक गहरी साँस के अलावा कुछ नहीं :-(

    बी एस पाबला

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  2. आज
    हर
    घर
    "ए स्वीट होम इन मेकिंग"
    लगे रहो मुन्ना भाई, क्या अभी भी अक्ल नहीं आई?

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  3. शेफाली जी आपने तो सारे फट्टे चक दित्‍ते।
    खूब मुबारकां त्‍आनूं। जल्‍दी ही आपको नुक्‍कड़ की ओर से सहर्ष और सर्वसम्‍मतिपूर्वक व्‍यंग्‍य शिरोमणि की उपाधि से सम्‍मानित किया जा सकता है। तैयार रहें। व्‍यंग्‍य में आपके अनूठे तेवरों के लिए आप नि:संदेह बधाई की हकदार हैं। दिल से बधाई।

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  4. इस व्‍यंग्‍य कविता के तेवर देखकर मैं ब्‍लॉगवाणी के सभी साधकों से अनुरोध करता हूं कि वे टिप्‍पणी करें अथवा नहीं, परन्‍तु पसंद का चटका अवश्‍य लगायें।

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  5. वह किताब जो तुमने दी
    उसके पन्नों की महक
    जैसे पर्वतों से आती हो हवा
    हंसी ठहरी है वहां
    यादों की खनक के साथ
    उससे गुजरते हुए
    सिम्फनी बजती रही शिराओं में,
    हर पन्ने पर मिले
    तुम्हारे हाथों के गुलाब
    बसंत का पूरा वजूद समेटे ,
    gajab............

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  6. बड़ा शानदार और एकदम आधुनिक मीठा घर है जी!

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  7. गजब का घर है शेफाली जी! परन्तु शायद अब ऐसे बहुत से घर हैं और जो नहीं हैं वे भी देर सबेर हो ही जाएँगे।
    घुघूती बासूती

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  8. बहुत ही बढिया व्यंग्य...

    लेकिन मेरे ख्याल से जिस किसी को भी किसी रिऐलिटी शो का हिस्सा बनने का मौका मिलेगा...वो इनकार नहीं कर पाएगा...


    नाम...शोहरत और पैसा हर किसी को चाहिए

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  9. bahut zabardast baat kahi hai shefali ji..
    aur hamne bhi Avinash ji ki baat maan li hai laga diya ji chatka...

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  10. बेहतरीन व्यंग्य रचना.....
    पैसे और शोहरत की भूख इन्सान से जो न करा दे,कम है!!!

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  11. यह आपका ही नहीं हम सबका घर है.शानदार अभिव्यक्ति

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  12. मै इस इलाके का महान अहंकारी आपको साष्टांग दण्डवत करता हूं। नमन करता हूं आपकी लेखनी को और आपको भी।

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  13. घर है कि टीवी का चैनल?


    बेहतरीन कटाक्ष!!

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  14. अच्छा व्यंग्य किया आपने, जो की सटीक रहा।

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  15. गहराई तक चोट करने वाला व्यंग्य ।शेफाली जी को बधाई!
    रामेश्वर काम्बोज ;हिमांशु'

    जवाब देंहटाएं
  16. गहराई तक चोट करने वाला व्यंग्य ।शेफाली जी को बधाई!
    रामेश्वर काम्बोज ;हिमांशु'

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  17. अच्छा व्यंग्य,बधाई!शानदार अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत खूब शेफाली जी..
    बढ़िया परिवार दर्शाया है....मज़ा आ गया पढ़ कर.....अभी तक हँस रहा हूँ..बधाई...

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  19. हमको तो अपना घर ही याद आने लगा. आप एकदम आसपास से इतना सटीक व्यंग ऊठा कर लिखती हैं कि एक सांस मे पढते हैं और फ़िर महसूस यही होता है कि अरे..ये तो हमारी ही कहानी है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  20. शेफाली जी , बहुत बढ़िया व्यंग कसा है.बुद्धू बक्सा जिस तरह से मध्यम-वर्ग की आकांक्षाओं से जुड़ गया है उसका सटीक वर्णन किया है.

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  21. Wow... achook nishaana !
    chatka to laga diya hai ji !

    namaskaar yogya chamatkaar : "sweet home without sweetness !"

    :)
    And you are just "lajawaab!"

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  22. बहुत सही व्यंग लिखा है आपने इस रचना में सही में वक़्त अब ऐसा ही हो चला है हर घर में

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  23. एक गहरी साँस के अलावा कुछ नहीं

    एक गहरी साँस के अलावा कुछ नहीं

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  24. अति उत्तम.

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in

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  25. ये रियालटी शो अच्छा है शुभकामनायें

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  26. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति हैं ! अब बच्चे बच्चे नहीं रहे बहु बहु नहीं है!! सब चम्पिं बनाना छह रहे हैं |

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  27. आज के हालात पर तल्ख़ टिप्पणी करती आपकी ये रचना बेजोड़ है...वाह...
    नीरज

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग है शेफाली जी.
    आधुनिक जीवन शैली में बुद्धू बक्सा यह ही सब प्रभाव दिखा रहा है जान साधारण पर.
    घर घर की कहानी का सही दर्पण है आपका लेखन.
    साधुवाद.

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  30. sabhi rishto se paise kaise kamaye jaa rahe hain is baat ka ahsaas kara diya aapne bahut achha laga...... kabhi fursat mile to idhar bhi ghumiyega

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  31. kavita samyik aur rochak hai. achchhi kavita ke liye bahut-bahut badhai. Avinash Vachaspati ji ko bhi dhanyavad jinhone yah kavita bhijvaayee.
    sureshchandra shukla 'sharad alok'
    Oslo, Norway

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  32. शेफाली पांडे जी की यह कविता यथार्थ का चित्रण हालत ने बना दिया है.कितना सुखद होता अगर यह व्यंग होता.दुर्भाग्य से ऐसा नहीं रहा है.इस मार्मिक और सार्थक चोट के लिए बधाई.अविनाश जी को भी बहुत धन्यवाद.

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  33. It captures the images as we warch them every day .true portriate of life today .Good satire on our environments .

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  34. शानदार व्यंग और शुरू से अंत तक बेहतरीन प्रवाह |
    रियलिटी की रियलिटी !!

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  35. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
    SANJAY KUMAR
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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