गुरुवार, 31 जनवरी 2013

व्यवस्थाएं संतुष्ट हो गईं हैं ।

ठण्ड निकलने की तैयारी  में है । बर्फ पिघलने की इंतजारी में है ।
गर्मी पहुँची तो संस्थाओं को होश आने लगा है । व्यवस्थाओं को समाज सेवा का जोश छाने लगा है ।
बुलवाओ कैमरे, मीडिया, पत्रकार । ज़िक्र हो इसका अखबार - अखबार ।
अच्छी तरह कवर हो रिपोर्ट । किस कदर गरीबों को करते हैं वे सपोर्ट ।
गला भर्रा गया । ज़र्रा - ज़र्रा शर्मा गया ।
आ जाओ सब भूखों - नंगों ।  आज वे कम्बल बांटेंगे ।
लाइन में खड़े हो जाओ । शोर मत मचाओ । जल्दी मत दिखाओ ।
अपने पवित्र हाथों से तुम्हारे मैले कुचैले शरीर को ढाँकेगे । 
व्यवस्था के आगे अपनी गर्दन झुकाई ।
हाय ! गरीबी खुल कर हंस तक ना पाई ।

संस्थाओं को भी होश आ गया है ।
नया साल भी अब आ गया है ।
नौनिहालों ने कंपकंपाता जाड़ा बिना स्वेटर बिताया ।
डांट सही , मार खाई , पतली कमीज़ पर सबने हंसी उडाई ।
पर उसने ' स्वेटर नहीं है ' यह बात नहीं बताई ।
अब नहीं है उतनी ठण्ड । पर बाकी है पुअर फंड ।
जिसका पैसा खपाना है । कागजों में स्वेटर बांटे दिखाना है ।
बच्चों ने थाम लिए नए स्वेटर ।
बस्तों में डाल दिए अच्छी तरह से मोड़ कर ।
हंस रहे है जी खोल कर ।
वाह रे सरकार । वाह रे मास्टर ।

अब कहाँ आकाश में कुहरा घना है ।
लेकिन हर तरफ बीस से लेकर अस्सी प्रतिशत तक
छूट का बोर्ड तना  है ।
भरपूर लाभ उठाइए । एक खरीदिये चार मुफ्त ले जाइये ।
सेल के साथ समाज सेवा की फसल
अवश्य कटनी चाहिए ।
हर अखबार में इस समाजसेवा की प्रति आज ही बंटनी चाहिए ।


अब संस्थाएं खुश हो गईं हैं  ।
व्यवस्थाएं संतुष्ट हो गईं हैं  ।

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