बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

तुम कहती हो तो मान लेते हैं सखी ! कि इसको बसंत कहते हैं ।

आयो नवल बसंत ......

सखी,
हर तरफ फूल, पौधों, पेड़ों और पत्तियों में नई सरसराहट है । एक नए ताजातरीन घोटाले की आगमन की बहुत तेज़ सुगबुगाहट है ।देखना है त्यागियों के त्याग अब क्या रंग लाएंगे । हैलीकॉप्टर के अन्दर फंस गए हैं जो, उनके पंख अब देखें किस दिशा में फड़फड़।एंगे । जल, थल के बहुत देख लिए तमाशे,
अब वायु सेना के कारनामे सबका मन बहलाएँगे ।

सुन सखी ! कहते हैं कुम्भ की नगरी बहुत ही पावन है । छटा यहाँ की बहुत मनभावन है । इसमें एक डुबकी लगाओ तो जितने भी हों कष्ट और पाप, सब पानी में घुल जाते हैं । और अगर एक साथ पहुँचो तो डाइरेक्ट मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं । ' मन चंगा तो कठौती में गंगा ' क्या खूब कहा गया है । रोज़ पाप के सागर में गोते लगाने वाला भी इसमें आकर नहा गया है । हर तरफ आम आदमी की जान पर आफत है । पुण्य बटोरने की ये कैसी व्याकुलता और हडबडाहट है ?

सखी ! गौर से देख और बता ! यह संगम का पानी इतना क्यूँ थरथरा रहा है ? कोई -छोटा  मोटा कंकड़ तो नहीं हो सकता, लगता है किसी ने बहुत बड़ा सा पत्थर,पूरी ताकत के साथ मारा है । उफ़ ! शायद कोई बड़े - बड़े नोटों के बण्डल वाला, हाथ में कमंडल और तन पे भगवा पहिनने वाला, फिर से महा बण्डलेश्वर  बनने जा रहा है । हे ईश्वर ! तुझ पर मेरी आस्था, मेरा विश्वास कभी कम ना होने पाए । पर तेरे इन प्रतिनिधियों को देख कर मेरा जिया बहुत घबराए ।

सखी ! देख चारों ओर कितना सुहावना मौसम है । सरसों से धरती, खलिहान और बचे - खुचे खेतों के, फंदों के डर से बलात्कारी, अपराधी और डकैतों के, चेहरे पीले हो रहे हैं । धडाधड फांसियों पर फैसले, चुनाव की आहट नज़दीक सुनाई देती है । आतंकियों और उनके आकाओं में, कुछ मानवाधिक्कार कार्यकर्ताओं में अजब सी छटपटाहट
दिखाई देती है ।

सखी ! इस  फरवरी के मौसम ने अपना मिजाज़ बदल लिया लगता है । वी वी. आईपीयों की सुरक्षा में कटौती की खबर से इसका दिल दहल गया लगता है । उनके पीछे चलते काफिले अब कम हो जाएँगे । उनकी सेवा में तैनात जवान अब खुल के साँस ले पाएंगे । माननीयों के मन में बौखलाहट सी भर गयी है । अब सुरक्षा आम आदमी को मिल सकेगी, उसके मन में उम्मीद की झिलमिलाहट सी दिख रही है ।

सखी ! मेरा हाल पूछती हो तो सुन लो । इस मधुमास पर, मौसम - ए - ख़ास पर, इनकम टैक्स भारी पड़ गया । निवेश, बांड, पी पी एफ़, जेब खाली कर गया । चार पैसे बचाने में, चैन की नींद हराम हो गयी । सुरमई, मखमली शामें, कलह - क्लेश के नाम हो गयी । बच्चों की फीस दो - दो महीने की जब देनी पड़ गयी थी । उड़नछू हो गया था प्रेम प्यार, दिल में टीस गड़ गयी थी ।

यह मधुमास साल भर कहाँ चादर ताने सोता है ? हमारे जैसों के लिए यह मास पॉलिसी बेचने वालों के नाम होता है । सखी !  नाना प्रकार के एजेंटों के आक्रमणों से बच पाना आसान नहीं है । कामदेव से कह दो, उसके बाणों का यहाँ कोई काम नहीं है ।  

यह मास गले की फांस है । हाथ दोनों तंग रहते हैं । तुम कहती हो तो मान लेते हैं सखी ! कि इसको बसंत कहते हैं ।










9 टिप्‍पणियां:

  1. आज 21/02/2013 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  2. अभी तो कुम्भ चल रहा है, पाप धुल ही जायेंगे।

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  3. बासंती मौसम का बेहद सटीक व्यंग, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. ...शानदार अभिव्यक्ति ....आपको धन्यवाद ............
    आप भी पधारो आपका स्वागत है ....pankajkrsah.blogspot.com

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  5. वसंत के रंगों के पीछे की बदरंगी....

    अच्छी रचना.
    अनु

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  6. जय हो! जय हो! क्या अंदाज-ए-बयां हैं।

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  7. इतना सब कुछ होने पर भी वसंत है। और आपको वसंत पंचमी की शुभकामनाएं....

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