गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
नव्या (मेरे जीवन की डोर) के पाँचवे जन्मदिन (२५ नवम्बर, २००८) के उपलक्ष्य पर
ये हंस दें तो झरने बहने लगते हैं
मुस्कुरा दें तो सूरज चमकने लगते हैं
जिनकी बातों में उतरते हैं सात सुर
इनके आगे इन्द्रधनुष फीके लगते हैं
क्यूँ न इनके जीवन से यह नागफनियाँ हटा दें
'गुड', 'बैड', 'नीट', 'क्लीन' को मिटा दें
हथेलियों पे उतार दें चाँद-तारे
फूल-पत्ती व पंखों से बस्ते सजा दें
फ़िर देखना क़ायनात शरमा जायेगी
रात को गहरी नींद आ जायेगी
होंठो पे उतरेगी भोर की लाली
हर तरफ़ ------ की खुमारी छा जाएगी
चन्द्रमोहन और अनुराधा
सोहनी की मटकी फूटी, निकली बाहर अनुराधा,
देखे मजनूँ 'चंदू' को, मेरा भूत कहाँ से आया?
कहती वो, हमारा मिलन है जन्मों का वादा,
उसके नाम से 'मोहन' जुड़ा, मेरे नाम से 'राधा',
हम से पूछो हम बताएँ
'रा' निकालो अनुराधा से, 'ह' निकालो मोहन से,
'ऊ' की मात्रा जोड़ जो आए, वही हो तुम कसम से.
राधा के प्यार से टक्कर लोगी, नए ज़माने की तुम नार.
इतनी बड़ी वकील हो, तर्क भी सब के सब हैं बेकार.
पर इतना तो दुनिया जानती है
राधा ने ना धर्म बदला, ना तोड़ा कोई घर बार.........शेफाली
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