शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

एक ठो पद्मश्री इधर भी

मुझे विरोध करने  की पुरानी आदत है| छात्रा-जीवन से ही हर वह पुरस्कार जो मुझे नहीं मिलता था, मैं उसका पुरजोर विरोध करती थी| मेरे द्वारा  इतना हल्ला-गुल्ला मचाया जाता था कि  पुरस्कार-समिति मजबूरन  मेरा नाम अगले साल के   लिए  पुरस्कारों की  लिस्ट में शामिल कर लेती थी| आत्मदाह से लेकर लोकल गुंडों की धमकियों तक का सहारा लेने में मैंने कतई परहेज़ नहीं किया| जब मुझे पुरस्कार मिल जाता था तो मैं उन लोगों की बातों का पुरज़ोर विरोध करती थी जो पुरस्कारों की पारदर्शिता पर संदेह करते थे|

 

लेकिन इधर कुछ ऐसे  लोगों  को  पुरस्कार  मिलने लगे हैं जो मेरी नज़र में इसके कतई लायक नहीं हैं| जिनको मेरी नज़रों पर संदेह है उन्हें बता दूँ कि मेरी नज़र कोई साधारण नज़र नहीं है| लेज़र से लेकर एक्स-रे किरणें भी जिनके आगे दम तोड़ जाती हैं, ऐसी मास्टरनी की नज़र है मेरी|

 

पहले, ओबामा को जब शान्ति के लिए नोबेल मिला तब मेरे बरसों से चले आ रहे शान्ति के अभियान को धक्का लगा| आस - पड़ोस में, जहाँ पहले से ही शान्ति थी, मैंने वहां भी शांति लाने के प्रयास किये| धक्के, गालियों और अपमान की छोटी-छोटी बाधाएं भी मेरे इस अभियान को बाधित नहीं कर नहीं पाईं| जितने ज्यादा शांति के प्रयास एक सरकारी स्कूल में करने पड़ते  हैं, उतने शायद ही दुनिया में कहीं करने पड़ते हों| ओबामा ने अपनी नाक में मक्खी को तक नहीं बैठने दिया था,  और हमने, मक्खी हो या मच्छर ,साँप हो या मेंढक कभी भी किसी को  मिड डे मील में बैठने से  नहीं रोका. सरकारी भोजन अर्थात सबका भोजन इस सनातन सत्य को कभी नकारने की कोशिश नहीं की .

 

फिर, जब सुना किसी विदेशी महिला को अर्थशास्त्र का नोबेल मिल गया, दूसरा धक्का लगा| अर्थशास्त्र क्या सिर्फ मार्शल, एडम स्मिथ या रोबिन्स को पढ़कर सीखा जा सकता है? क्या दो-चार किताबें लिख देने से कोई महान अर्थशास्त्री कहलाया जा सकता है? सच्चा अर्थशास्त्र हमारे घर के चूल्हों से निकलता है| कौन सी विदेशी महिला चावल में से मांड निकाल कर आधा बच्चों को पिलाती है और आधे से सूती वस्रों में कलफ कर सकती है? दाल बनाते समय रोज़ एक मुट्ठी निकाल कर चुपके  से एक डिब्बे में ड़ाल कर अगले महीने के लिए दाल  का इंतजाम करके सबको सरप्राइज़ भला कौन  दे सकती हैधोते-धोते कपड़ों का रंग उड़ जाए तो डाई करके, उसके परदे बनाकर; वह भी फट जाए तो तकिये का खोल; उसके दम तोड़ देने पर आलू-प्याज लाने का थैला और वह भी फट जाए तो छोटे बच्चे की लंगोट बनाने की कलाकारी कौन सी विदेशी महिला जानती होगी? धार्मिकसामाजिक कार्यों, शादी - ब्याह या अन्य समारोहों में डी. जे. में कमर तोड़ नाच करने के बाद, सपरिवार खाना खाकर, पल्लू में गाजर का हलवा छिपा कर, खाली लिफाफा पकड़ा आने का कलेजा किस मुल्क की औरत के पास होगा? ख़राब मुद्रा किस तरह से अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है, इस सिद्धांत को अमली जामा मेरी मुल्क की बहिन ने ही पहनाया| फटे नोटों को कितनी सफाई से सब्जी वाले को, राशन वाले को, रिक्शे वाले को, बस वाले को  पकडाए, यह क्या हमने किताब पढ़कर सीखा? वस्तु-विनिमय की अर्थव्यवस्था कागजों में भले ही अप्रासंगिक हो गई हो लेकिन हमारे घरों में एक कटोरी चाय की पत्ती के बदले में पड़ोसन की कितनी चीनी आ जाएगी यह हम बिना तराजू के, सिर्फ़ आँखों से तोल कर बता सकती  हैं| हफ्ते में चार दिन मालूम और नामालूम त्योहारों के बहाने से व्रत रखने की व्याख्या किस अर्थशास्त्री के बूते की बात होगी?

 

आज जब सैफ को पद्मश्री  मिला तो पुरस्कारों के प्रति मेरा  रहा - सहा विश्वास भी जाता रहा |असल में, ऐसा मैं सिर्फ विरोध करने के लिए कह रही हूँ| ह्रदय से तो मेरा यह मानना है कि महिलाओं के प्रति सैफ के अविस्मरनीय योगदान को नज़रंदाज़ करना ठीक नहीं होगा| जब अमृता सिंह फिल्मों में माँ के रोल करने लगी थी , उस उम्र में उसका हाथ थामनाउसके बाद एक विदेशी बाला रोज़ा  के साथ प्रेम की पींगें बढ़ाना यही दर्शाता है कि उसका प्रेम देश के संकीर्ण दायरों में नहीं बंधने पाया, वह तो अमर प्रेम है ,विश्व-प्रेम है| फिर शाहिद  की भूतपूर्व प्रेमिका को सहारा देना| इतना सहारा देने वाले पुरुष को मात्र पद्मश्री से अलंकृत करना उसके योगदान को अनदेखा करना नहीं तो और क्या है? जहाँ तक हिरन  की बात है , उसका  शिकार करने के लोभ से तो भगवान् राम भी नहीं बच पाए थे ,  सैफ तो फिर भी एक इंसान है . 

 

वैसे तो पद्मश्री नाम से ही मेरा विरोध है| हर वह नाम जिसके आगे श्रीमती, कुमारी या सुश्री ना लग कर केवल श्री लगा हो, उससे मुझे पुरुषवादी मानसिकता की बू आती है| स्त्री होने के नाते मैं हर उस नाम का विरोध करती हूँ| इसीलिये मुझे पद्मश्री नहीं चाहिए| हाँ, अगर सरकार  इनके नामों में थोडा सा परिवर्तन कर दे,यथा - पद्मा-श्री, पद्मा -भूषण ,पद्मा -विभूषण और भारत रत्ना कर दे  तो मैं इस दिशा में सोच सकती हूँ|

 

  साथियों आज मैं अपने कुछ देशवासियों  के लिए ह्रदय से दुखी हूँजो समिति के पक्षपात पूर्ण रवैय्ये और धांधलियों  के चलते अपने अविस्मर्णीय  योगदान के बावजूद इस साल पुरस्कार की लिस्ट में अपनी जगह नहीं बना पाए| ऐसे कुछ नाम नीचे दिए गए हैं ,
 
Ø      भाषा के विकास के लिए राज ठाकरे को, जिनकी बदौलत समस्त भारतवासी अंग्रेज़ी के मोहपाश से निकल कर मराठी के पाश में बंध गए हैं कि कल के दिन अंग्रेज़ी लिख पढ़ कर नौकरी मिल भी गई तो क्या? मुंबई जाने के लिए तो मराठी सीखनी ही पड़ेगी| जल्दी ही यह दिन भी आने वाला है जब हर प्रांत के ऐसे सजग रखवाले अपने यहाँ घुसने से पहले अपने क्षेत्र की भाषा को सीखना अनिवार्य कर देंगे| हर भारतवासी को और कुछ आये न आये, भाषाएँ सारी आ जाएँगी| घर-घर में भाषा मर्मज्ञ पैदा हो जाएंगे|
 
Ø      साहित्य के क्षेत्र में तेरे बिना भी क्या जिन्ना' जैसी अद्वितीय पुस्तक लिखने वाले जसवंत सिंह को |
 
Ø      भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए संयुक्त रूप से राखी सावंत और राहुल महाजन को | अन्दर के सूत्रों से पता चला है कि चैनल वाले अगले महीने राखी सावंत के आँसू और राहुल महाजन की हँसी ,दोनों का डेडली कॉम्बिनेशन परोसने वाले हैं अर्थात , दोनों का संयुक्त-स्वयंवर आयोजित करवाने जा रहे हैं|
 
Ø     खेल-कूद के क्षेत्र में शाहरुख़ खान को, जिसने एक छोड़ दो -दो राष्ट्रीय [भूतपूर्व और वर्तमान] खेलों का उद्धार करने का बीड़ा अपने कन्धों में उठा रखा है   मुँह में जिसके हॉकी का ''चक-दे'' और मुट्ठी में क्रिकेटर और क्रिकेट  रहते हैं|
 
Ø      धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में आसाराम बापू को, दुनिया वालों को राम नाम के जाप द्वारा माया मोह से दूर रखने का प्रयास करने के लिए और स्वयं  राम के नाम में  से माया ढूंढ निकालने के  लिए
 
Ø      अफगानिस्तान की ज़मीन पर जाकर प्रेम और सौहार्द का सन्देश देने के लिए मेजर चंद्रशेखर पन्त को|
 
Ø      बैंकिंग और फाइनेंस  के क्षेत्र में अशोक जडेजा को|
 
Ø     राम-नाम के माध्यम से ही सत्य का साक्षात्कार किया जा सकता है,  और घोटाला  लम्बे समय तक टाला जा सकता है ,इस एकमात्र सच को दुनिया के सामने लाने वाले सत्यम के रामलिंगम राजू को|
 
Ø      मूर्ति और स्थापत्य कला के उन्नयन में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए मायावती को|
 
Ø      पशुओं के प्रति अपना अपार प्रेम प्रदर्शित करने के लिए शशि थरूर को|
 
Ø      आयात-निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए शीतल मफतलाल को|
 
Ø      देशवासियों को कई दिनों तक विशुद्ध मनोरंजन परोसने  के लिए फ़िज़ा और मुहम्मद चाँद को| 
 
            ^ चिकित्सा  के क्षेत्र में मधु कोड़ा को, जनकी बदौलत चिकित्सकों को  घोटालेबाज नेताओं को पकड़े जाने पर सांस लेने में तकलीफ क्यूँ होती है इस दिशा में शोध कार्य  करने का मौका मिला.
 

और अंत में,सबसे महत्वपूर्ण वह शख्स , जिसने लोगों को बिना राशन-पानी के,मुस्कुराते हुए जीवन जीने की कला सिखाई| श्री  श्री  रविशंकर  नहीं बल्कि श्री श्री शरद पवार .