मुझे विरोध करने की पुरानी आदत है| छात्रा-जीवन से ही हर वह पुरस्कार जो मुझे नहीं मिलता था, मैं उसका पुरजोर विरोध करती थी| मेरे द्वारा इतना हल्ला-गुल्ला मचाया जाता था कि पुरस्कार-समिति मजबूरन मेरा नाम अगले साल के लिए पुरस्कारों की लिस्ट में शामिल कर लेती थी| आत्मदाह से लेकर लोकल गुंडों की धमकियों तक का सहारा लेने में मैंने कतई परहेज़ नहीं किया| जब मुझे पुरस्कार मिल जाता था तो मैं उन लोगों की बातों का पुरज़ोर विरोध करती थी जो पुरस्कारों की पारदर्शिता पर संदेह करते थे|
लेकिन इधर कुछ ऐसे लोगों को पुरस्कार मिलने लगे हैं जो मेरी नज़र में इसके कतई लायक नहीं हैं| जिनको मेरी नज़रों पर संदेह है उन्हें बता दूँ कि मेरी नज़र कोई साधारण नज़र नहीं है| लेज़र से लेकर एक्स-रे किरणें भी जिनके आगे दम तोड़ जाती हैं, ऐसी मास्टरनी की नज़र है मेरी|
पहले, ओबामा को जब शान्ति के लिए नोबेल मिला तब मेरे बरसों से चले आ रहे शान्ति के अभियान को धक्का लगा| आस - पड़ोस में, जहाँ पहले से ही शान्ति थी, मैंने वहां भी शांति लाने के प्रयास किये| धक्के, गालियों और अपमान की छोटी-छोटी बाधाएं भी मेरे इस अभियान को बाधित नहीं कर नहीं पाईं| जितने ज्यादा शांति के प्रयास एक सरकारी स्कूल में करने पड़ते हैं, उतने शायद ही दुनिया में कहीं करने पड़ते हों| ओबामा ने अपनी नाक में मक्खी को तक नहीं बैठने दिया था, और हमने, मक्खी हो या मच्छर ,साँप हो या मेंढक कभी भी किसी को मिड डे मील में बैठने से नहीं रोका. सरकारी भोजन अर्थात सबका भोजन इस सनातन सत्य को कभी नकारने की कोशिश नहीं की .
फिर, जब सुना किसी विदेशी महिला को अर्थशास्त्र का नोबेल मिल गया, दूसरा धक्का लगा| अर्थशास्त्र क्या सिर्फ मार्शल, एडम स्मिथ या रोबिन्स को पढ़कर सीखा जा सकता है? क्या दो-चार किताबें लिख देने से कोई महान अर्थशास्त्री कहलाया जा सकता है? सच्चा अर्थशास्त्र हमारे घर के चूल्हों से निकलता है| कौन सी विदेशी महिला चावल में से मांड निकाल कर आधा बच्चों को पिलाती है और आधे से सूती वस्रों में कलफ कर सकती है? दाल बनाते समय रोज़ एक मुट्ठी निकाल कर चुपके से एक डिब्बे में ड़ाल कर अगले महीने के लिए दाल का इंतजाम करके सबको सरप्राइज़ भला कौन दे सकती है? धोते-धोते कपड़ों का रंग उड़ जाए तो डाई करके, उसके परदे बनाकर; वह भी फट जाए तो तकिये का खोल; उसके दम तोड़ देने पर आलू-प्याज लाने का थैला और वह भी फट जाए तो छोटे बच्चे की लंगोट बनाने की कलाकारी कौन सी विदेशी महिला जानती होगी? धार्मिक, सामाजिक कार्यों, शादी - ब्याह या अन्य समारोहों में डी. जे. में कमर तोड़ नाच करने के बाद, सपरिवार खाना खाकर, पल्लू में गाजर का हलवा छिपा कर, खाली लिफाफा पकड़ा आने का कलेजा किस मुल्क की औरत के पास होगा? ख़राब मुद्रा किस तरह से अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है, इस सिद्धांत को अमली जामा मेरी मुल्क की बहिन ने ही पहनाया| फटे नोटों को कितनी सफाई से सब्जी वाले को, राशन वाले को, रिक्शे वाले को, बस वाले को पकडाए, यह क्या हमने किताब पढ़कर सीखा? वस्तु-विनिमय की अर्थव्यवस्था कागजों में भले ही अप्रासंगिक हो गई हो लेकिन हमारे घरों में एक कटोरी चाय की पत्ती के बदले में पड़ोसन की कितनी चीनी आ जाएगी यह हम बिना तराजू के, सिर्फ़ आँखों से तोल कर बता सकती हैं| हफ्ते में चार दिन मालूम और नामालूम त्योहारों के बहाने से व्रत रखने की व्याख्या किस अर्थशास्त्री के बूते की बात होगी?
आज जब सैफ को पद्मश्री मिला तो पुरस्कारों के प्रति मेरा रहा - सहा विश्वास भी जाता रहा |असल में, ऐसा मैं सिर्फ विरोध करने के लिए कह रही हूँ| ह्रदय से तो मेरा यह मानना है कि महिलाओं के प्रति सैफ के अविस्मरनीय योगदान को नज़रंदाज़ करना ठीक नहीं होगा| जब अमृता सिंह फिल्मों में माँ के रोल करने लगी थी , उस उम्र में उसका हाथ थामना, उसके बाद एक विदेशी बाला रोज़ा के साथ प्रेम की पींगें बढ़ाना यही दर्शाता है कि उसका प्रेम देश के संकीर्ण दायरों में नहीं बंधने पाया, वह तो अमर प्रेम है ,विश्व-प्रेम है| फिर शाहिद की भूतपूर्व प्रेमिका को सहारा देना| इतना सहारा देने वाले पुरुष को मात्र पद्मश्री से अलंकृत करना उसके योगदान को अनदेखा करना नहीं तो और क्या है? जहाँ तक हिरन की बात है , उसका शिकार करने के लोभ से तो भगवान् राम भी नहीं बच पाए थे , सैफ तो फिर भी एक इंसान है .
वैसे तो पद्मश्री नाम से ही मेरा विरोध है| हर वह नाम जिसके आगे श्रीमती, कुमारी या सुश्री ना लग कर केवल श्री लगा हो, उससे मुझे पुरुषवादी मानसिकता की बू आती है| स्त्री होने के नाते मैं हर उस नाम का विरोध करती हूँ| इसीलिये मुझे पद्मश्री नहीं चाहिए| हाँ, अगर सरकार इनके नामों में थोडा सा परिवर्तन कर दे,यथा - पद्मा-श्री, पद्मा -भूषण ,पद्मा -विभूषण और भारत रत्ना कर दे तो मैं इस दिशा में सोच सकती हूँ|
और अंत में,सबसे महत्वपूर्ण वह शख्स , जिसने लोगों को बिना राशन-पानी के,मुस्कुराते हुए जीवन जीने की कला सिखाई| श्री श्री रविशंकर नहीं बल्कि श्री श्री शरद पवार .