कर लो आकाश को मुट्ठी में
धरती पर तुम छा जाओ
शर्त ये है मगर आने की
पहली बार में आ सको तो आ जाओ .....
कुछ बातें जो मुझे बहुत परेशान करती हैं .....
कि जब हम पढ़े - लिखों की पहली संतान लडकी होती है, तभी हम दूसरी के विषय में सोचते हैं. पहला लड़का होता है तो हम कहते हैं कि 'दूसरा? ना बाबा ना. ..इतनी महंगाई है ....पढाई कितनी महँगी है? जनसंख्या के हाल देखे हैं ....एक ही को भगवान् स्वस्थ रखे ....यही नहीं संभलता....कितना शैतान है ...
और अगर पहली लडकी होती है तो हम कहते हैं कि दूसरा बच्चा ज़रूर होना चाहिए चाहे लडकी ही क्यूँ ना हो [मन में ऐसा नहीं सोचते] ....माँ - बाप कब तक साथ रहेंगे ....एक सहारा होना ही चाहिए ..घर भरा भरा लगता है दो बच्चों से ...भगवान् ना करे एक को कुछ हो गया तो कम से कम दूसरा तो रहेगा ही.
और आश्चर्यजनक रूप से हममें से अधिकांश सम्पन्न एवं उच्च शिक्षितों के घर में दूसरा लड़का ही होता है, शायद भगवान् से इनकी कुछ विशेष सेटिंग रहती होगी ..
इसीलिए लड़कियों अगर दुनिया में आना है तो पहली बार में आना होगा, दूसरी बार तुम्हारे लिए कोई रिस्क नहीं लेगा .....