बुधवार, 27 मार्च 2013

खेल रंग की जंग

खेल रंग की जंग

मत देख लंका, मत देख इटली
मत देख दंगा, मत ले पंगा
मत देख भूख, मत देख रसूख
मत देख गरीबी, मत देख फरेबी । 

मत सुन कराह, मत सुन आह
मत सुन धमकी, मत सुन भभकी
मत सुन महंगाई, मत सुन काली कमाई
मत सुन भ्रष्टाचार, मत सुन व्यभिचार । 

मत कह मेरी मर्जी, मत कह एलर्जी
मत कह शुगर, मत कह ब्लडप्रेशर
मत कह केमिकल, मत कह हर्बल
मत कह बुखार, मत कह अगली बार ।     

आज बस झूम झूम कर गाले होली
आज बस झूम झूम कर सुन ले होली
आज बस झूम झूम कर देख ले होली
सखी- सहेली, पास- पड़ोसी या प्रियतम के संग
खेल रंग की जंग, बस तू खेल रंग की जंग  । 

रविवार, 24 मार्च 2013

इन पर कौन सा एक्ट लगेगा ?



 बिल तो पास हो गया लेकिन ये लोग किस दायरे में आएँगे ?

 साथियों,
             इस प्रकार के महानुभाव आपको बस और ट्रेन में थोक के भाव मिलेंगे। पूरी बस खाली हो तब भी ये आपकी ही बगल में बैठेंगे । ये बहाने - बहाने से नींद के झोंकों में डूब जाते हैं और आपके कंधे को तकिया बना लेते हैं । आप कितना भी अपने कंधे को झटका दें, उनका सर धकेल कर दूसरी तरफ लुड़का दें, कोहनी मार -मार के आपकी कोहनी दुखने लग जाएगी, इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा । ये फिर बैतलवा डाल पर की तर्ज़ पर आपके कंधे पर टिक जाते हैं । '' भाई साहब, ठीक से बैठिये '' के आपके निरंतर जाप करने का इन पर कोई असर नहीं होता । दरअसल ये पूरी तरह होशो - हवास में रहते हैं । बस महिला के कंधे पर ही इन्हें ठीक से नींद आती है । अगर कोई पुरुष इनके बगल में आकर बैठ जाए तो इनकी नींद वैसे ही काफूर हो जाती है जैसे सजा सुनकर संजय दत्त और उसके चाहने वालों की । कभी - कभी नींद के सुरूर में ये इस कदर बेहोश हो जाते हैं कि इन्हें अपने हाथ पैरों के इधर - उधर चले जाने का होश नहीं रहता, ठीक उसी तरह जिस तरह खेनी प्रसाद वर्मा को अपनी जुबां का भरोसा नहीं रहता जो माइक को देखते ही बेकाबू हो जाती है । ये ऐसा जानबूझ कर करते हैं या वाकई नींद में ऐसा हो जाता है इस विषय पर अभी व्यापक शोध की सम्भावना है । लेकिन इतना तय है कि कोई पुरुष बगल में बैठा हो तो इनके हाथ पैर बेकाबू नहीं होते । अगर आप तंग आकर जोर से डांट दें या गुस्से से बड़बड़ाते  हुए दूसरी सीट में चली जाएं तो इनकी हालत  देखने लायक होती है । ये इतने मासूम से दिखने लगते हैं कि आपको भ्रम हो जाता है कि कहीं आप ही तो इनके साथ बदतमीजी नहीं कर रही थीं । ये अपनी आँखें मलेंगे, चारों और उबासी लेते हुए नज़र दौडायेंगे, अंगड़ाई तोड़ेंगे, सर तीन - चार बार जोर से को झटकेंगे । मानो सभी यात्रियों से कहना चाह रहे हों '' यात्री गण कृपया ध्यान दें, अभी अभी क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता ''।


 साथियों,
                            ये महानुभाव  आपको हर जगह  मिल जाएंगे । इन्हें दुनयावी भाषा में दुकानदार कहा जाता है । आप इनकी दूकान से कुछ भी  खरीदें, ये पैसा लेते या देते समय आपके हाथों को अवश्य स्पर्श करते हैं । ये स्पर्श थेरेपी के स्पेशलिस्ट होते हैं । इन्हें भय होता है कि यदि ये आपके हाथ को पकड़ कर पैसे ना लें तो इन पैसों को शायद धरती निगल जाएगी । आपके हाथों को छूकर इन्हें एहसास होता है कि पैसा एकदम सही हाथों में गया है । पुरुषों के साथ इन्हें कोई ख़तरा नहीं होता है । सो ये टूटे रूपये या रेजगारी इत्यादि को काउंटर पर रखकर छोड़ देते हैं । धरती निगल भी जाए तो इन्हें कोई परवाह नहीं । ये इस सिद्धांत पर अमल करते हैं कि मेहनत का पैसा औरत का होता है, चाहे वह पति की जेब से चुरा गया ही क्यूँ ना हो । इधर कुछ समय से भारत में जो मॉल कल्चर आ गया है उससे ये दुकानदार बहुत हताश हो गए हैं । यह भी क्या बात हुई कि कार्ड से पेमेंट कर दिया जाए और हाथों को गर्मी का एहसास ही न हो । इस तरह से दुकानदार और ग्राहक के मध्य सौहार्दपूर्वक सम्बन्ध कैसे स्थापित होंगे ? रीटेल में एफ़. डी. आई के. आने का जो विरोध हो रहा है उसका सबसे बड़ा कारण यही है । लेकिन इसे आउट नहीं किया गया ।

साथियों, 
                       आप लोग जानते ही हैं कि महिलाओं के पास कितनी ही कपड़े क्यूँ ना हो जाएं, जब भी अलमारी खोलती हैं लगता है अरे सब पुराने हो गए । अब क्या पहनूं ? इससे बड़ा धर्मसंकट किसी भी महिला के लिए कोई हो ही नहीं सकता । घंटों तक अलमारी को निहारने के बाद फटाक से बाज़ार जाकर दो - तीन सूट खरीद लिए जाते हैं और अंततोगत्वा दर्जी नाम के इस प्राणी की शरण में जाना पड़ता है । इनके पास जाएं और बिना नाप दिए आ जाएँ ऐसा हो ही नहीं सकता । अगर आप अपना पुराना सूट नाप के लिए देना चाहें तो ये फ़ौरन मना कर देते हैं '' नहीं जी, ये फिटिंग पुरानी है, हम नई नाप लेंगे ।'' आप अगर आनाकानी करेंगे तो ये कहेंगे, '' हमारा क्या है हम इसी नाप पर बना दते हैं लेकिन अगर सूट खराब हो गया तो हमसे मत कहियेगा ।'' सिलाई के सूट से महंगी होने के कारण आप डर जाती हैं । ना चाहते हुए भी पुनः नाप हेतु इंचटेप गले में लटकाए हुए इस अदने से प्राणी  सामने आपको हाथ  खोलकर प्रस्तुत होना पड़ता है । ये महाशय आपके हर अंग की तीन - तीन, चार - चार बार नाप लेता है । आप मन मसोस कर रह जाती हैं । एक हफ्ते बाद दी गयी तारीख पर आप अपने सूट के विषय में पूछने जाती हैं तो यह कहता है '' '' दीदी, आपकी नाप मिल नहीं रही है, दूकान में सफाई की वजह से खो गयी शायद ''। आप भुनभुनाते हुए इस भाई को पुनः नाप देती हैं । आजकल ये लोग शिकायत करते हैं '' जब से सिले सिलाए वस्त्रों का ज़माना आया है, हमारी रोजी रोटी पर संकट आ गया है । दरअसल ये संकट रोजी - रोटी पर नहीं है बल्कि नाप -जोख पर है । बचपन में एक कहानी पढ़ते थे ''जुम्मन दर्जी'' वाली, उसकी सिलाई इतनी मज़बूत होती थी कि भले  ही कपड़ा तार तार हो जाए लेकिन सिलाई सही सलामत रहती थी । उसे भी सिले सिलाए वस्त्रों का फैशन चलने से अफसोस होता था । उसका अफ़सोस भी जायज़ लगता था । आजकल के  दर्जी भी अफ़सोस करते हैं । इनका अफ़सोस भी जायज़ लगता है । 

साथियों,
               ये प्रजाति आपके आस - पास ही पाई  जाती है । आप सरलता से इन्हें पहचान नहीं पाते हैं । इनके पहिचानने के लिए सूक्ष्म नज़रों की आवश्यकता होती है । ये आपके नातेदार, रिश्तेदार, बन्धु, मित्र, हितैषी, सुख - दुःख में काम आने वाले कोई भी हो सकते हैं । इन्हें बच्चों से बहुत लगाव होता है ख़ास तौर से बच्चियों से । ये आपके घर की बच्चियों पर जब तब प्रेम की वर्षा करते रहते हैं । बच्चियां देखते ही ये अपने को रोक नहीं पाते हैं और लपक कर उन्हें गोद में उठा लेते हैं, चुम्बनों की वर्षा करते हैं, एक आध टॉफी, चोकलेट आदि देकर घंटों तक अपने पास बैठा कर रखते  हैं । अक्सर इनके पास एक अचूक अस्त्र होता है, कि इनके लड़के ही लड़के होते हैं, लडकियां नहीं होतीं । इसी वजह से ये आपके घर बहाने - बहाने से आया करते हैं । प्यार करते - करते ये भावातिरेक में यह भूल जाते हैं की इनके हाथ - पैर कहाँ जा रहे हैं । इस समय इनकी हालत साधु - महात्मा सरीखी हो जाती है । वास्तव में ये आध्यात्मिक उच्चता की स्थिति में पहुँच जाते हैं । अब ऐसे इंसान पर घर वाले किस प्रकार संदेह कर सकते हैं

बुधवार, 20 मार्च 2013

मुंबई की कुञ्ज गलिन में ..........

मुंबई की कुञ्ज गलिन में ..........

साथियों, निरासाराम बापू पिचकारियाँ लेकर खड़े हैं और सरकार है कि पानी ही नहीं दे रही है । यह भी कोई बात हुई भला ? इस तर्क में कोई दम नहीं है कि महाराष्ट्र सूखे की चपेट में है या जगह जगह अकाल पड़ा हुआ है । महाराज और उनके भक्तजनों से पूछो जिनके ह्रदय में प्रेम की फुहारें बरस रही हैं । ह्रदय भीग रहे हैं । होली सिर पर सवार हो गयी है, और पानी का पता नहीं । सूखे रंगों से भी कोई होली खेलता है भला ? महज़ नलों  में बहते रहने के हम नहीं कायल, शरीर से ना टपके तो वो पानी क्या है ?

लोग नहीं जानते कि बाबा कितने चमत्कारी हैं । दिल्ली में बलात्कार होता है तो बाबाजी फरमाते हैं कि अगर लडकी उन बलात्कारियों को भैय्या कह के राखी बाँध देती तो शायद बच जाती । शायद नहीं उन्होंने पक्के दावे के साथ यह बात कही । बाबाजी ने यह भी कहा कि इस तरह के लोगों से बचने के लिए हर लडकी को सरस्वती मन्त्र का जाप करना चाहिए । बाबाजी सांसारिक मोह - माया से दूर रहते हैं । बाबाजी को उनके शिष्य कभी बसों में सफ़र करने ही नहीं देते ।
बाबाजी ने अगर कभी लोकल बसों से सफ़र किया होता तो देखते कि हिन्दुस्तानी लडकियां सबसे भैय्या कहकर ही बात करती हैं, और हर दूसरे लड़के को घर में प्यार से भैय्या ही पुकारा जाता है । असल में भैय्या कहा जाता है समझा नहीं जाता । 

भक्तजनों, बाबाजी चाहें तो क्या मन्त्र शक्ति के द्वारा आकाश से वर्षा नहीं करवा सकते ? वह क्या नहीं कर सकते ? वे चाहें तो पूरे महाराष्ट्र में बारिश करवा दें, बाढ़ ले आएं । उनके पास मन्त्रों की अद्भुत शक्ति है । जिस मन्त्र के जाप से इज्ज़त और जान तक बच सकती है तो क्या बारिश नहीं हो सकती ?  लेकिन नहीं, वे इस सरकार को पूरा मौक़ा दे रहे हैं । बाबा लोग जनता को यह एहसास करवाते हैं कि वे भी उन्हीं की तरह साधारण मानव हैं । 


 साथियों,  जिस तरह पैसा, पैसे को खींचता है और पैसे वाला, पैसे वाले को, उसी प्रकार कलयुग में पानी ही पानी को खींच सकता है । हमने सुना था कि मुंबई की बारिश का कोई भरोसा नहीं,होता होता , पर अब लगता है मुंबई की सरकार का भी कोई भरोसा नहीं । सरकार दूरदर्शी होती तो बापू को पानी देने में ज़रा भी आनाकानी नहीं करती । संत लोग अगर कुछ मांगते भी हैं तो उसे दोगुना करके लौटाते हैं । हमारे गली - मुहल्लों में तक ऐसे संत अक्सर इस ताक में घूमते रहते हैं कि कोई भगवान् का सच्चा भक्त मिले तो उसका रुपया - पैसा, जेवर दोगुना करके लौटा दें । इधर भगवान् के सच्चे भक्तों में भारी कमी आने के कारण बेचारों को अक्सर निराश होना पड़ता है । शक्की इंसानों, उनकी श्वेत दाड़ी पर तो भरोसा किया होता । श्वेत दाड़ी -मूंछ वाले झूठ नहीं बोलते हैं । 

अभी कुछ दिन पहले एक भक्त ने बाबाजी के चरण छूने चाहे थे । उस भक्त को बाबाजी ने लात मार दी । एक बार लात पडी, टी वी पर सौ बार दिखाया गया । भक्त बहुत क्षुब्ध हुआ । उसे पता नहीं होगा कि बाबा लोगों की हर  निराली होती है । उनके लात - घूसों से भी आशीर्वाद की बरसात होती है । साथियों, सिर पर हाथ धरकर तो कोई आम बाबा भी आशीर्वाद दे सकता है । बाबाजी और उनमें कुछ तो अंतर होना ही चाहिए । लात से आशीर्वाद सच्चे महात्मा दिया करते हैं । जितनी गहरी लात, उतना गहरा आशीर्वाद । 

उनके कई करोड़पति भक्त भी होंगे पर बाबा उनको कभी लात से आशीर्वाद नहीं देते होंगे । ऐसी किरपा विरलों पर ही बरसती है । भक्त खामखा ही क्षुब्ध हो गया । भक्त एक क्षुद्र प्राणी होता है, उसे क्षुब्ध होने का कोई हक़ नहीं होता । क्षुब्ध तो अमूमन बाबा लोग होते हैं वह भी हम साधारण मनुष्यों के दुःख दर्दों को देखकर । ये हम जैसे पापी मनुष्यों के दुखों के निराकरण हेतु विभिन्न उपाय सोचते हुए साधनारत रहते हैं । 

हो सकता है कि वाकई बाबा जी के होली खेलने के कार्यक्रम से माया नगरी में माया बरसने लग जाती । इसीलिये मेरी सरकार से अपील है कि बाबा को पानी देने में कतई कंजूसी न करे । 
                                                                              

सोमवार, 18 मार्च 2013

रेल और जेल ...........

रेल और जेल ...........

भारतीय रेल और भारतीय जेल दोनों को पहली बार देखने पर कलेजा मुंह को आता है । दिल भारी हो जाता है और माथे पर पसीना चुहचुहाने लगता है । 
यात्रा करने वाली यात्री सोचते है इस रेल में चढ़ेंगे कैसे ? सज़ा पाने वाले कैदी सोचते है इस जेल में रहेंगे कैसे ?

पेशेवर यात्री रेल में,  अपराधी जेल में, बिना परेशान हुए,  अच्छी तरह से समय गुज़ार लेते हैं ।


यात्री, रेल से, कैदी जेल से, जल्दी से जल्दी बाहर आना चाहते हैं । रेल से जल्दी बाहर निकलना यात्रियों के स्टेशन पर और जेल से जल्दी बाहर निकलना जेलर के अटेंशन पर निर्भर करता है । 

रेल में अधिकतर यात्री बिना टिकट के सफ़र करते हैं 
और जेल में अधिकतर अपराधी बिना अपराध के सजा काटते हैं ।

दोनों के अन्दर बनने वाले भोजन को खाकर इंसान के अन्दर दुनिया से विरक्ति हो जाती है । जिह्वा को स्वाद का मोह नहीं रहता । वह किसी भी तरह के भोजन को निर्विकार भाव से खा सकता है । 


रेल जब सुरंग से होकर के गुज़रती है तो यात्रियों को कुछ दिखाई नहीं देता और दूसरी तरफ जेल के अन्दर प्रशासन को कुछ दिखाई नहीं देने के कारण कई जेलों से सुरंग निकल जाती है । 


दोनों में अनचाहे रिश्तेदारों को भूल जाने की सुविधा होती है । जेल में जमानत की रकम ना जुटा पाने के कारण और रेल में लोग अनचाहे बच्चों, खासतौर से मासूम लड़कियों को बैठा कर उतर जाते हैं और कभी लेने नहीं आते । ये अपनी सारी उम्र स्वयं को लेने आने वालों की राह ताकने में गुज़ार देते हैं । 

दोनों के अन्दर ज़रा - ज़रा सी बात पर बहस, मार - पीट और  खून - खराबा होने की प्रबल सम्भावना बनी रहती है । आजकल दोनों के अन्दर खूनी संघर्ष व दुर्घटनाएं हो रही हैं । यह बड़ी चिंता की बात है । 


आत्महत्या करने के इच्छुक मनुष्यों के लिए दोनों के अन्दर मुफ्त सुविधा उपलब्ध रहती हैं । रेल में गेट से कूदकर, पटरी के नीचे कटकर और जेल में पंखे, कुंडे इत्यादि से लटककर ।

सुरक्षा की व्यवस्था दोनों के अन्दर संदिग्ध रहती है । इस पर भरोसा करना कतई बेवकूफी होगी । 


जिसके पास धन, बल है या जो वी. आई. पी. है, उसके लिए दोनों में अलग से आरक्षण की सुविधा होती है जहाँ  उसकी सुख - सुविधा का पूरा - पूरा ध्यान रखा जाता है । जेल में भी रेल की तरह अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ टिकट के स्थान पर एम्बुलेंस की अग्रिम बुकिंग होती है । यहाँ अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को डायरेक्ट अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस चौबीसों घंटे खड़ी रहती है जबकि रेल से अस्पताल दुर्घटना होने पर ही जाया जा सकता है । 

दोनों से बाहर आने पर आदमी किसी अपने को भीड़ में तलाश करने लगता है । अगर उसका कोई अपना रिसीव करने के लिए आए तो ह्रदय को अपनेपन का एहसास होता है ।


दोनों के अन्दर उपजी दोस्ती - दुश्मनी की बाहर आकर लम्बे समय तक बने रहने की सम्भावना रहती है । अपने जैसे लोग मिल जाएं तो दोनों जगह समय आराम से कट जाता है । 


बे टिकट यात्रियों को -रेल में टी. टी. से और जेल में अपराधियों को पुलिस की सीटी से हरदम भय बना रहता है । 

पैसा अधिक हो जाने के कारण  जनता अपराध और यात्रा बहुत ज्यादा करने लगी है,  जिस कारण दोनों के अन्दर दिन - प्रतिदिन भीड़ बढ़ती जा रही है,  परिणामस्वरुप जेल और रेल दोनों की संख्याओं में बढ़ोत्तरी करना सरकार की मजबूरी में शामिल हो गया है । कुछ साल पहले तक जेलों में और रेलों में भीड़ कम होती थी ।


दोनों के अन्दर प्रवेश करते ही आदमी दार्शनिक हो जाता है । उसे अपनी गलतियों का एहसास होना शुरू हो जाता है । वह सोचता है हे भगवान् ! अगर मैंने अच्छे कर्म किये होते तो मुझे यहाँ नहीं आना पड़ता । 


त्योहारी सीज़न में जेलों के अन्दर अपराधियों की और रेलों के अन्दर यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है । अतिरिक्त कोच और अतिरिक्त बैरकों की व्यवस्था करना सरकार के लिए चुनौती स्वरुप हो जाता है । 


रेल की यात्रा से सही - सलामत, साबुत लौट कर आने वाला किस्मतवाला और जेल से सही - सलामत, साबुत लौट कर आने वाला हिम्मतवाला कहलाता है । 


साफ़ - सफाई को नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो जेल के अन्दर बसर, रेल के अन्दर सफ़र, किया जा सकता है । 

रेल में एक के टिकट पर दूसरा सफ़र कर ले जाता है और जेल में एक के किये अपराध की सजा दूसरा काट ले जाता है । 


वर्तमान में दोनों का भगवान् मालिक है । 


गुरुवार, 14 मार्च 2013

एक बार जो बना जमाई.....

सांच को आंच क्या ?
पैरों के तले कांच क्या 
एक बार जो बना जमाई
उस राजा की फिर जांच क्या ?

टीम केजरी का नाच क्या
घोटालों के आकाश में
नित नए पर्दाफाश में 
एक और खुलासे पर तीन - पांच क्या ?

उनका देश, उनकी सरकार
उनका राजा, उनके सिपासालार
सब उनके अपने हैं, 
अपनों में बन्दर -बाँट क्या ?

उनका तराजू, उनका बाट 
उनके कांटे, उनका ठाठ
गोल -मोल है नाप -तोल, 
तोल में इस झोल की काट क्या ?

उनका घर, उनकी ताक
उनका चेहरा, उनकी नाक
रख दी ताक पर कटी नाक
अब घर की अटरिया पर तांक - झाँक क्या ?









मंगलवार, 12 मार्च 2013

राम सिंह ! आराम से तो हो ?

राम सिंह ! आराम से तो हो ?

था
तेरे पास
कानून, अदालत
तर्क - वितर्क
न्याय, माफ़ी
सहानुभूति
पश्चाताप
तुझे सजा मिलती भी तो पता नहीं कब और कितनी ?

था
हमारे पास
दुःख का दरिया 
बद्दुआओं का सागर 
आंसुओं की नदी 
दर्द का सैलाब
तू बचता भी तो पता नहीं कब और कितना ?

सोमवार, 11 मार्च 2013

उफ़ क्या ज़माना आ गया है ?

लोग सदमे में हैं । देश निराश के भयानक दौर से गुज़र रहा है । सारी आशाएं समाप्त होती दिख रही हैं । देश का बेड़ा गर्क हुआ ही समझो । 

लोग उम्मीद की दृष्टि से उसे देख रहे थे कि वह पति के मरने के बाद पछाड़ खा - खा कर रो रही होगी । आंसुओं की नदियाँ बह गयी होंगी । उसकी चीखें लोगों के ह्रदय को चीर कर रख देंगी । सदमे से सुध - बुध खो चुकी होगी । दिमाग काम नहीं कर रहा होगा । विक्षिप्तावस्था में पहुँचने ही वाली होगी । चेतना विलुप्त हो चुकी होगी । सारा समय वह शून्य में निहार कर काट देती होगी । अनाप - शनाप बडबडा रही होगी । अपनों को पहिचानने में उसे कष्ट हो रहा होगा । अन्न जल तो पति की मृत्यु के पश्चात ही त्याग दिया होगा । कमरे में बंद हो गयी होगी । किसी के सामने आने से भी कतरा रही होगी । 

पर नहीं,  उसे ऐसा होश आया और ऐसा आया कि सबके होश उड़ गए । प्रदेश से लेकर देश तक दुःख के सागर में डूब गया । गणितज्ञों का गणित गड़बड़ा गया । सिर शर्म से झुक गए । ऐसा भी कभी होता है भला ? 

यह तो पुरुष का काम होता है हर समय दिमाग खुले रखने का । उसको तो भूखी प्यासी रहना था । शव पर सिर पटक पटक कर जान दे देनी थी । और उसे देखो कैसे बेशर्मों की तरह सौदेबाजी कर रही है । एक वह भी ज़माना था जब स्त्रियाँ पति की चिता पर जान देती थीं । पति के जाते ही उनकी दुनिया ख़त्म हो जाया करती थी ।  

लोग आश्चर्यचकित हैं ।  इतनी बेहतरीन सौदेबाजी आज तक कोई नहीं कर पाया । उसने साबित कर दिया कि सौदेबाजी की कला में महिला को कोई पछाड़ नहीं सकता । बशर्ते महिला की गणित अच्छी  होनी चाहिए । जब वह मोल भाव करने पर आती  है तो अच्छे - अच्छों के होश फाख्ता हो जाते हैं । ऐसा नहीं है कि सभी महिलाएं गणित में पारंगत होती हों । भारत वर्ष में अधिकाँश महिलाओं की गणित अच्छी नहीं होती । ऐसी महिलाओं हिसाब - किताब से घबराकर जो हाथ में आ जाए उसे ही संदूक के अन्दर ताला लगा कर रख देती हैं । इधर कुछ वर्षों में महिलाओं के अन्दर गणितीय क्षमता का काफी विकास हुआ है । जिसका साक्षात नमूना आजकल देखने को मिल रहा है । 

कहते हैं कि एक लडकी के ऊपर अपने मायके और ससुराल दोनों की लाज रखने की ज़िम्मेदारी होती है । साथियों उसने ससुराल और मायके दोनों की लाज रखी । किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया ।  दोनों के घरवालों के लिए नौकरियां मांग लीं । जिसे छोड़ देती वही नाराज़ हो जाता । स्वयं से ज्यादा उसने दोनों परिवारों के लिए सोचा । अपने लिए भी पति वाला ही पद मांग डाला । चाहती तो चार पद अपने लिए मांग लेती । लेकिन नहीं सिर्फ एक से ही संतोष कर लिया । यह भी कोई बात हुई ? अपने लिए भी भारतीय स्त्री ने कुछ माँगा है भला आज तक ? जो सरकार दे देती वही एहसान मानते हुए रख लेती । 

उफ़ क्या ज़माना आ गया है ? 

होश खोना था 
होश उड़ा दिया । 
जीभर के रोना था 
जग भर को रुला दिया ।  
पानी ढूंढ रहे थे जो आँख में
उन सबको पानी पिला दिया । 












                                                                          

रविवार, 10 मार्च 2013

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी ।

शिवरात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएँ .....व्रत रखने वाले सभी साथियों को सादर समर्पित ...

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

सुबह - सवेरे कुट्टू के चीले
एक गिलास दूध साथ में
फुल प्लेट आलू के गुटके
मुट्ठी भर काजू चबा जाउंगी । 

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

दिन में मिक्स फ्रूट,
सिंघाड़े का हलवा
एक कटोरी दही के साथ
एप्पल का जूस पी जाउंगी । 

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

कमजोरी के चलते शाम को 
बादाम, किशमिश, मखाने
छुआरे, अखरोट, रामदाने
पाव भर रबड़ी ही बस खा पाउंगी ।  

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

बहुत हो रही है कमजोरी
काम न कुछ कर पाउंगी
चूल्हा - चौका, झाड़ू, कर देना
बच्चों को भी देख लेना, साजन मोरे   
आज के दिन मैं व्रत ही बस कर पाउंगी ।

 
सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी ।
 


महिला दिवस बीत गया क्या ?



मेरी सभी बहिनों को इस पुनीत पावन पर्व की शुभकामनाएँ ....

भारत वर्ष की सभी सासों को .............

अपनी बहू का जीना हराम कर दें । घर पर रात - दिन चख - चख करके  ज़हरीला वातावरण बनाए रखें । बहू की जासूसी करने में जेम्स बांड को भी मात देने की कोशिश करें । उसके पहिनने, ओढने, हंसने, बोलने पर टीका - टिप्पणी करने में कतई  कंजूसी न करें । हर छोटी - बड़ी बात की तुलना अपने ज़माने से करना भूल कर भी न भूलें । उसकी अलमारी, बक्से को उसके पीठ पीछे टटोलने का क्रम जारी रखें । उसके बनाए हुए  खाने में मीन - मेख अवश्य निकालें । अगर वह सादा खाना बनाए तो कहें कि ''मुझे बीमार समझ रखा है क्या'' ? और अगर वह मसालेदार खाना बनाए तो कहें कि  ''मुझे बीमार करने का इरादा है क्या'' ? उसके हर मायके वाले पर  निःस्वार्थ भाव से कमेन्ट ज़रूर दें । फलानी बहू के मायके से हर तीज - त्यौहार पर क्या - क्या आता है , पड़ोस वाली या दूर - पास के  किसी भी रिश्तेदार की बहू के मायके से कितने साल तक हर छोट`- बड़े त्यौहार पर क्या - क्या आयटम कौन - कौन से जेवर आते हैं, इसकी लिस्ट का पारायण करती रहें । आपके होने की सार्थकता इसी में है कई बहू के मायके से कुत्ता भी आए तो खाली हाथ न आने पाए ।  बहू गर्भवती हो तो लिंग परीक्षण करवाने स्वयं लेकर जाएं । आखिर आपके वंश का सवाल जो हुआ । पुत्र को बीच - बीच में याद दिलाती रहें की उसे कितनी मुश्किलों से पाल - पोसकर बड़ा किया गया है । और आज वह जो कुछ भी कमा रहा है, सब आपकी बदौलत । उसकी शादी करने जाएं तो सौदा ठोक - बजाकर तय  करें । नौ महीने पेट में रखने का पूरा किराया निर्ममता से वसूलें । बहू को यह बात यूँ ही हंसी मज़ाक में बताती रहें कि अमुक ने ज़रा सी बात पर बहू को जला कर मार डाला था, या अमुक  ने उस बात पर अपनी बहू को घर से निकाल दिया था ।' उसे यह अवश्य बताएं  की आप कितनी दयालु  हैं वर्ना इस बात पर तो उन्होंने अपनी सास से कितनी ही बार मार खाई थी । ये आपकी बहू की खुशकिस्मती है क्योंकि अपनी सास के मुकाबले तो आप देवी हैं । बहू को खाली बैठें देखें तो तुरंत कामचोर, फूहड़ आलसी की संज्ञा दे डालें ।  ''तुम्हारी माँ ने तुम्हें  कुछ नहीं सिखाया'' इस सनातन वाक्य को दोहराना अपना कर्तव्य समझें । 
पुत्र के घर आते ही रोनी सूरत बना लें। कराह की ध्वनि के साथ ही बात करें । आवाज़ में इतना दर्द भर लें बेटे का ह्रदय दर्द से भर जाए । उसके सामने बहू की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने में संकोच न करें । वेदों के अनुसार बेटे को अपने पाले में करने का यह अचूक अस्त्र है । पोते - पोतियों को रोज़ चोकलेट, टॉफी, चिप्स आदि देकर अपने नियंत्रण में करना न भूलें । घर में ऐसे वातावरण का निर्माण करें, जिसमे बहू पढ़ाई के लिए या अन्य  किसी भी गलती  के लिए बच्चों को मारना तो दूर रहा , डांटने - फटकारने तक न पाए ।  बच्चों के सामने उनकी माँ की बेईज्ज़ती  किया करें । कोशिश करें कि बच्चे दिन के चौबीस में से अठारह घंटे बस अपनी माँ से लड़ते - झगड़ते रहें । टेलीविज़न पर रात आठ से ग्यारह तक अपना कब्ज़ा बरकरार रखें । दिन में बारह बजे से शाम छह बजे तक रामलीला मैदान में आयोजित वर्ष पर्यन्त चलने वाले भांति - भांति के महाराजों के भांति - भांति के प्रवचन सुनने ज़रूर जाएँ ।याद रखें कि घर का काम करने की आपकी उम्र अब रही नहीं । घर में रहें भी तो ऐसे कि आँख भगवान् पर हो और कान से लेकर ध्यान तक सब बहू पर ।


बहुओं को ........


समस्त भारत वर्ष की बहुएँ सास के विरुद्ध पति के कान भरने का क्रम बदस्तूर जारी  रखें । पति के ऑफिस जाने इंतज़ार करें और उसके जाते ही सिर और कमर पकड़कर अपने  कमरे में बंद हो जाएं । ससुराल का कोई सगा संबंधी, रिश्तेदार आए या ननद महीनों तक अड्डा जमाने के विचार से अपने मायके आए तो कलह मचाने की प्राचीन काल की परम्परा का निर्वहन करें । उसे किसी भी हाल में दो दिन से ज्यादा न टिकने दें । घर में किसी से भी बात करें तो लगना चाहिए कि भयानक झगडा हो रहा है । दिन में पाँच बार पति की कम कमाई और घर के बेहिसाब खर्चों का रोना रोएँ । सास ज़रा सा भी ऊंचा बोले तो कोपभवन में जाने में तनिक भी देरी न करें, निकलने में भले ही चार - पांच दिन लग जाएं । मायके से माँ का फोन आए तो बात माँ से करें और अप्रत्यक्ष प्रहार सास पर ।  सास को इतना सुना दें कि उसका कलेजा कट के रह जाए । डरें नहीं,  ऐसे नाज़ुक मसले पर भी वह आपसे कुछ कह नहीं पाएगी क्योंकि इससे उसके ऊपर जासूस का लेवल लग जाने का खतरा उत्पन्न हो 
सकता है । रात के समय पति के कान भरें । वेदों में यही समय कान भरने का उत्तम समय कहा गया है । उसके सामने एकदम गौ माता का रूप धर लें । आंसू लाने में तनिक भी डेरी न करें । तंग आकर पति एक न एक दिन अलग घर बसा ही लेगा । अगर नौकरी वाली हैं तो आपकी कमाई की धौंस एक अमोघ अस्त्र है । ध्यान रहे आपके पति के पास जो कार है उसकी क़िस्त आपकी ही तनखाह से कटती है । सास बूढ़ी हो गयी हो तो उससे जी भर के बदला लें । वेदों में यह भी कहा गया है कि सास से बदला लेने का यही समय सबसे उत्तम होता है । वह पानी मांगे तो अपना सीरियल पूरा देख कर ही उठें । उसके जुल्मो - सितम की याद और दवाइयों पर हर महीने होने वाला अंधाधुंध खर्च हर दवाई की घूँट के साथ उसे पिलाती रहें । जब वह तंग आकर दवाई खाना छोड़ देगी तब आप ये कहिये कि ''इन्हें तो अपनी कोई फ़िक्र ही नहीं है, हम सब इनके लिए इतना परेशान रहते हैं और ये हैं कि दवाई ही नहीं खा रही हैं ''। जब मिलने - जुलने वाले घर पर आएं, उनके सामने उसकी सेवा करने में ज़मीन - आसमान एक कर दें ।

सभी ननदों को ........


अपनी भाभी को अपना मानने के साथ - साथ उसकी हर वस्तु को भी अपना मान लें । उसकी महंगी - महंगी कॉस्मेटिक्स को पहले ही दिन से पानी की तरह बहाना शुरू कर दें । उसकी जो भी वस्तु पसंद आए मसलन कपडे, जूते - चप्पल से लेकर जेवर, मोबाइल तक कुछ भी बेधड़क होकर मांगने में संकोच न करें । भाभी के दहेज़ में से जो भी सामान आपके मन को भा जाए,  उसकी पैकिंग बिना खुलवाए अपनी शादी के लिए रख लें । उसकी चुप्पी को उसकी हामी मानें । याद रखें आप पराया धन हैं, अपने भाई की इकलौती बहिन हैं और आपका भाई आपकी आँखों में आंसू नहीं देख सकता है । अगर शादीशुदा हैं तो याद रखें आपकी खुशियाँ आपके मायके के रास्ते से ही होकर आती हैं । बड़ी, पापड़, चिप्स, नाना प्रकार के अचार, चटनी, कचरियों का साल भर का कोटा सब आपके मायके से समय पर आ जाना चाहिए।  आपके ससुराल वाले इसका बेसब्री से इंतज़ार जो करते हैं । हर बार जब आप जाएं पहले से मोटा लिफाफा लेकर जाएं ।

सभी देवरानियों और जेठानियों को .......


आपस में छतीस का आंकड़ा बरकरार रखें । एक दूसरे को बार - बार याद दिलाती रहें, कि आपको जायदाद के बंटवारे में सबसे कम मिला । खुला पक्षपात हुआ है । जेवर, मकान, ज़मीन, सब के बंटवारे में हिस्सा मारा गया । इस अन्याय का दुखड़ा रोने के समय रिश्तेदार सामने हो तो सोने पे सुहागा । एक दूसरे के प्रति प्रतियोगिता की विशुद्ध भावना को बरकरार रखें । एक ने जैसी साड़ी और जेवर पहिने हैं,  हूबहू वैसे ही आपके पास भी होने चाहिए। भाई को भाई का दुश्मन बना दें । इतना ज़हर उगलें  कि वे एक दूसरे का चेहरा तक देखना गवारा न करें और खून के प्यासे हो जाएँ । सास - ससुर हैं तो उनको एक दूसरे की ओर फ़ुटबाल की तरह उछालती रहें । एक - दूसरे के रिश्तेदारों पर टीका - टिप्पणी करने का कोई मौका जाने न दें । अगर आप जेठानी हैं तो कहें कि ''बड़ों को तो हर जगह त्याग करना पड़ता है'' अगर देवरानी हैं तो कहें कि  ''छोटों को तो हमेशा दब कर रहना पड़ता है '' । अपनी खरीदी हुई हर वस्तु  को मायके से आया हुआ बताने में गुरेज़ न करें । इससे एक तो सबके सामने आपके मायके की नाक ऊंची होती है और दूसरे आपकी तनखाह पर किसी की नज़र भी नहीं लगती । मायके वालो को नज़र लगे तो लगे, इससे आपको क्या ? आखिर अब आपकी शादी हो चुकी है ।

पड़ोसिनों को .............


जीना दूभर करने का कार्यक्रम निर्विरोध चलाती रहें । जिस जवान लडकी का ब्याह तय नहीं हो पा रहा हो, शादीशुदा का बच्चा नहीं हो रहा हो, शादीशुदा होते हुए भी जो सोलह श्रृंगार नहीं करती वरन कुंवारी लड़कियों की तरह रहती हो, पड़ोस की लडकी घंटों तक किससे बातें करती है ? , किस - किसने  अपने मन से शादी कर ली इत्यादि - इत्यादि । एक दूसरे की कामवालियों को भड़काती रहें । झाड़ू,पोछा, बर्तन के साथ - साथ  उनसे जासूसी करवाने का काम भी लेती रहें । 

अन्य सभी महिलाओं को .......

आपकी  किट्टी पार्टियों में दिन - दूनी, रात - चौगुनी बढ़ोत्तरी होती रहे । बातों बातों  में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कला खूब फूले - फले । मुँह सामने एक दूसरे के कपड़ों या स्टाइल की भूरि - भूरि  प्रशंसा करें और पीठ पीछे  काली - काली तस्वीर बनाएं । गला चाहे कट जाए, सोने की चेन पहिनने का मोह न छोड़ें । घरेलू औरतें, कामकाजी महिलाओं के चरित्र को संदिग्ध दृष्टि से देखें और कामकाजी, घरेलू महिलाओं के प्रति विद्वेष रखें । 


लड़कियों से ........


एक दूसरे का बॉयफ्रेंड  हड़प लें । चार - चार लड़कों से एक साथ चैटिंग करें । हर बॉयफ्रेंड को प्रेम - प्यार वाला  एस. एम्. एस. भेजें । हर हफ्ते महंगे - महंगे रेस्टोरेंट में खाना खिलाने की फरमाइश करें । .सबकी बाइक में बारी - बारी से घूमें - फिरें । हर किसी को गलतफहमी में रखें । छोटे - छोटे कपडे पहिनना बदस्तूर जारी रखें ।



शुक्रवार, 8 मार्च 2013

और अब काइकू .....


हाइकू ......फाइकू .....और अब काइकू .....

वह

कुर्सी और मेज़
जीवन
फूलों की सेज

वह

बैठक का सोफा
ज़िंदगी
हसीं तोहफ़ा

वह

गरम, नरम कालीन
कितनी
सुन्दर और शालीन 

वह

बोर हो गयी
सहसा
भोर हो गयी

वह

चलने लगी
दुनिया
हिलने लगी 

वह

बोलने लगी
पर
तौलने लगी

वह

उड़ गयी
खूंटा तोड़ गयी
बहुत कुछ छोड़ गयी

वह

तेज़ करने लगा
छुरी की धार
ज़ोरदार प्रहार

वह

घायल, हताहत
तन मन आहत 
फिर - फिर उड़ने की चाहत 



 

तरनतारन के तारनहार ......

तरनतारन के तारनहार ......

अभी हाल ही में टी वी के समाचार चैनलों पर एक वीडिओ क्लिप का बड़ा तहलका मचा हुआ था । छेड़खानी की शिकार महिला पुलिस के आगे शिकायत लेकर गयी तो पुलिस ने उसे दौड़ा दौड़ाकर डंडों से पीट  दिया । लोग पुलिस की ऐसी हरकत देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे । इसमें आश्चर्य करने वाली कौन सी बात थी ? हाँ अगर पुलिस ऐसा नहीं करती और महिला की रिपोर्ट दर्ज करके उस पर तुरंत कार्यवाही करने लगती तब आश्चर्य वाली बात होती ।

साथियों, इस विषय में कई लोगों का यह मानना है की जिस तरह भ्रूण हत्या, हत्या न भवति, उसी तरह स्त्री हिंसा, हिंसा न भवति ।  स्त्री को पीटना भी भला  कोई पीटना हुआ ? घर पर तो वे अक्सर ही पिटती रहतीं हैं । दरअसल वह काम ही ऐसे करती है की पति को गुस्सा आ ही जाता है । और ना चाहते हुए भी उसे हाथ उठाना पड़  जाता है ।

हो सकता  है की आपको ये बातें बहुत छोटी - छोटी लगें और आपके मुंह से शायद ये निकल भी जाए '' भला ये भी कोई वजह हुई हाथ उठाने की '', या ''बस इत्ती सी बात पर हाथ उठा दिया ? '' कई लोगों को तो शायद विश्वास भी नहीं होगा । 

मसलन - खान को ही ले लें । अधिकांश घरों में झगड़ा करवाने का मुख्य कारण यही होता है
खाना ठंडा हो गया हो, पत्नी खाना लगाने से पहले थकान के चलते सो गयी हो, नमक मिर्च का उनके द्वारा निर्धारित अनुपात गड़बड़ा गया हो, समय पर नहीं तैयार हो पाया हो, बच्चे बिना पूरा खाना खाए सो गए हों, सास को समय पर खाना न परोसा गया हो, रोटियाँ कड़कड़ी और मोटी बनी हों, खाने में चटनी नहीं दिखी हो इत्यादि इत्यादि । 

दूसरा प्रमुख कारण  बच्चे होते हैं, वही बच्चे जिन्हें पति पत्नी के बीच की मज़बूत कड़ी माना जाता है और ये माना जाता है कि बच्चो से घर में रौनक आती है, उन्हीं बच्चों के स्कूल से अगर शिकायत आई हो, परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आए हों या फेल हो गए हों, कापियों में नोट लगे हों, पत्नी द्वारा बच्चों की गलतियां छिपाने की कोशिश की गयी हो, उनकी जिद के आगे हथियार डाल दिए हों और उन्हें टी वी देखने दे दिया या जंक फ़ूड खाने को दे दिया हो, चोरी छिपे पैसे दिए हों इत्यादि इत्यादि । 

इसके अलावा कुछ अन्य छोटे - छोटे से  कारण भी हैं - सास से कहा सुनी हो गयी हो, मायके वालों से फोन पर बात करने के चक्कर में दूध उबल कर गिर गया हो, मायके से आए हुए किसी पुराने पहचान वाले को घर में बिठा कर चाय पिला दी हो, ज़रा हंस हंस कर बात कर ली हो,दो या दो से ज्यादा बेटियां पैदा कर दी हों, उसके गुस्से का ख्याल न किया हो,और अपना मुंह बंद ना किया हो । आखिर आदमी चाहता ही क्या है ? सिर्फ इतना की जब भी उसे गुस्सा आए तो पत्नी चुप हो जाया करे । अब पत्नी की हर बात पर उसे गुस्सा आ जाता है तो वह बेचारा क्या करे ?

उसी तरह निरासाराम बापू ने भी  कहा था । बलात्कार और छेड़खानी की शिकार महिलाएं स्वयं ही इसके लिए उत्तरदाई होती हैं ।' बापू' उपनाम ही  सत्य बोलने की गारंटी है ।  आजकल कुछ समय से, कहना चाहिए कि सोलह  दिसंबर की घटना बाद से लोग बलात्कार के लिए पुरुषों को दोष देने लगे हैं । यह ठीक नहीं है । हकीकत में पुरुष बहुत ही शरीफ एवं निरीह प्राणी होता है । वह नवरात्रि में कन्या के पैर पखारता है, आरती उतारता है, मीलों पैदल चलता है,ऊँची - ऊँची चढ़ाईयाँ चढ़ता है, देवी मंदिरों के दरबार में मत्था टिकाता है, किसी भी कन्या को अपने चरण स्पर्श नहीं करने देता । अपनी माँ को तो वह अपनी जान से भी बढ़के चाहता है ।

यहाँ यह बात भी ध्यान देने वाली है कि घोर से घोर मांसाहारी नवरात्रों में प्याज तक खाना छोड़ देता हैं । एक बार नवरात्र ख़त्म हुए तो फिर से मांस - मदिरा चालू होने में देर नहीं लगती । इस वाक्य का ऊपर लिखी बात से कोई कनेक्शन नहीं है । 

क्या कारण है कि ऐसा शरीफ प्राणी बलात्कार के लिए मजबूर हो जाता है ? असल में महिलाएं ही ऐसे काम करती हैं कि उसे बलात्कार करना पड़ता है ।
मसलन - रात को घर से बहार जाना, बॉय फ्रेंड बनाना, उनके साथ घूमना, छोटे, आधुनिक, चुस्त कपडे पहिनना, मर्दों से बराबरी करना, मर्द के बगैर आसानी से रह लेना, ज़रा सी छेड़छाड़ की भी शिकायत कर देना । अगर महिलाएं ये सब करना बंद कर दें तो वह एकदम शरीफ आदमी बन जाए । औरत की और देखे भी नहीं । 

क्या कहते हैं आप लोग ?
 
     









 

सोमवार, 4 मार्च 2013

बजट भाग २ .......

 बजट भाग २ .......

यह एक शब्द युद्ध है, यह एक छद्म युद्ध है । ये जो बजट है कुछ नए, कुछ पुराने शब्दों की महज़ उठापटक है । 

बहुत माथापच्ची के बाद यह बात निकल कर आती है, जब विपक्ष में हों तो बजट की बखिया अच्छे से उधाडी जाती है । दोनों में बस वा और हा का फर्क है । दोनों पीछे से लगाओ तो हंसी भी आप ही चली आती है।

कुछ शब्द संभाल कर रखे हैं । बहुत जतन  से याद कर रखे हैं । जब मैं सत्ता का सुख लूटुगी , कैसा भी हो बजट, शान में उसकी कसीदे खूब पढूंगी  .........
सबका ख्याल रखने वाला, राहत देने वाला, मंगलकारी, कल्याणकारी , संतुलित, सराहनीय, सार्थक, लोक - लुभावन, अति मनभावन, शानदार, जानदार , काबिल - ए - तारीफ, बेहतरीन, कसौटी पर खरा उतरा , स्वागत योग्य, जन सामान्य का, आम आदमी का, पूरे नंबर, पीठ ठोंकी, शाबासी, इसमें सबके लिए कुछ ना कुछ है । 

वाह ! क्या बजट है ।

जब मेरी विपक्ष में बैठने की बारी होगी, इन शब्दों को फेंटना मेरी मजबूरी होगी ..........

बकवास, आंकड़ों की बाजीगरी, शब्दों की जादूगरी, आम आदमी को लौलीपोप, करदाता को झुनझुना, हताशा, निराशा, मायूसी, दिशाहीन, फीका, फुस्स, मज़ाक, उपेक्षा, अव्यवहारिक, नकारात्मक, चुनावी, जनविरोधी, राजनैतिक, ऊँची दुकान, फीका पकवान, हर कसौटी पर फेल, हर मोर्चे पर विफल, हवाई घोषणाएं, खोखले दावे, महज़ एक दिखावा, ख़ास लोगों का ख़याल, पूंजीपतियों का, ज़ीरो नंबर, कूड़ा, करकट है ।         
 
आह ! क्या बजट है ।

और एक आम आदमी है कि इतने सुरीले और रसीले शब्दों की जंग के मध्य हर बार वही कर्कश तान छेड़ता है । ना उसमे कुछ घटाता है ना जोड़ता है ।

टैक्स लिमिट बढ़ी कि नहीं  ? महंगाई घटी कि नहीं ? रसोई गैस का क्या हुआ ? बजट में इस साल क्या - क्या सस्ता हुआ ? आम आदमी ज़रा तो शर्म कर । नए नए शब्द सीख, अब कुछ कर्म कर । 





   

रविवार, 3 मार्च 2013

वह बजट कभी तो आएगा

                                  वह बजट कभी तो आएगा

वह बजट कभी तो आएगा

जब रक्षा पर कम
और
शिक्षा पर ज्यादा खर्च किया जाएगा ।

पूंजीपतियों को मिलेगा झुनझुना
और 
किसान खुल के मुस्कुराएगा ।

करदाताओं को मिला करेगी राहत
और
करचोर आयकर भरने जाएगा ।

अलग से बैंक बनाने की नहीं पड़ेगी ज़रुरत,
बल्कि
हर बैंक में औरत से तहजीब से पेश आया जाएगा । 

सिगरेट, गुटखा, शराब पर होगी पाबंदी
और
गरीब को मुफ्त राशन बंटवाया जाएगा ।

जब पक्ष कमी निकलेगा बजट की
और
विपक्ष मेज़ थपथपाएगा । 
 
वह बजट कभी तो आएगा