इक्यासी वर्ष के तारा राम 'कवि' उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के एक सुदूरवर्ती ब्लाक 'ओखलकांडा' में रहते हैं . वे राष्ट्रीय कुष्ठ निवारण कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं .उनका काम विद्यालयों में जाकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न सामजिक बुराइयों एवं बीमारियों के विषय में जागरूकता पैदा करना है. इस के लिए उनकी एक आठ सदस्यीय टीम है ,जिसमे दो लडकियां भी शामिल हैं.
ये सभी पारंपरिक कुमांउनी वेशभूषा में मनोरंजन के माध्यम से अपनी बात को प्रस्तुत करते हैं . वे हास्य नाटक प्रस्तुत करते हैं तो उसमे भी कुछ ना कुछ सन्देश छिपा रहता है , उनके पास वाद्य यंत्रों की अनावश्यक भीड़ नहीं है ,बल्कि एक ढोलक , एक हारमोनियम एवं एक हुड़का है ,जिसे बजा कर वे वातावरण को संगीतमय बनाने की भरपूर कोशिश करते हैं.
तारा राम जी समस्त कार्यक्रम की कमान स्वयं संभालते हैं , वे बीच - बीच में स्वरचित तुकबन्दियाँ व हँसी - मज़ाक वाली शेरो - शायरी करके बच्चों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरते हैं , इससे मनोरंजन और ज्ञान में संतुलन बना रहता है , बच्चों का मन भी कार्यक्रम में लगा रहता है .
वे पोलियो ,ऐड्स, और टी. बी .के कारण और दुष्प्रभाव बताते हैं ,कुष्ठ रोगों के विषय में फ़ैली भ्रांतियों को दूर करते हैं, उनके इलाज के लिए लोगों को जागरूक करने का प्रयास करते हैं , शराबखोरी से होने वाले नुकसानों के विषय में बताते हैं .वे बातों बातों में बच्चों को यह ज़रूर बताते हैं कि अध्यापक का सम्मान करके ही विद्या को हासिल किया जा सकता है .
उनकी टीम तिरंगे की शान में गाती है , देश - भक्ति के गीत गुनगुनाती है , जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास तो आता ही है ,साथ में खुदीराम बोस , टैगोर , आजाद ,गालिब ,मंगल पांडे ,काकोरी संग्राम , जलियावाला बाग़ ,जनरल डायर, उधम सिंह, स्वतंत्रता प्राप्ति , संविधान का निर्माण ,राजेंद्र प्रसाद , जवाहरलाल नेहरु ,राजगोपालाचारी का भी नाम आता है .इन समस्त गीतों को तारा राम जी स्वयं लिखते एवं संगीतबद्ध करते हैं .
कार्यक्रम के बीच में जितनी श्रद्धा से भगवान् के भजन होते हैं ,उतनी ही अकीदत से खुदा को समर्पित कव्वाली भी होती है.
सहजता ,सादगी और वाणी में इस उम्र में भी ओज तारा राम जी की विशेषता है ,उनकी कड़कती हुई प्रभावशाली आवाज़ बच्चों में एक नई ऊर्जा एवं उत्साह का संचार करती है. उनके एक हाथ में बंधा प्लास्टर उनके इस अभियान में कोई रुकावट नहीं डाल सका है .चेहरा झुर्रियों से भरा ज़रूर है लेकिन उत्साह में कहीं से कोई कमी नहीं है .
पिछले पैंतालीस साल से वे इस जन जागरूकता अभियान से जुड़े हैं ,एक दिन में कई विद्यालयों में प्रस्तुति देने के बावजूद भी उनके चेहरे पर थकान का नामो - निशान ढूढे से भी नहीं मिलता है . उत्तराखंड की इस विभूति को मेरा नमन है .