शनिवार, 28 जुलाई 2012

सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये




साथियों, इन दिनों मेरे शिक्षा विभाग में ट्रांसफर को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है, सुगम और दुर्गम को लेकर भारी बमचक मची है |  दुर्गम में फंसे हुए अध्यापक सुगम में आने को बेकरार हैं और सुगम में जमे हुए अध्यापक दुर्गम से बचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं | इसी को ध्यान में रखते हुए एक कविता प्रस्तुत है | 

दुर्गम ..........

साफ़ - सुथरी आबो - हवा 
मीठा - मीठा ठंडा पानी 
शुद्ध है दूध दही यहाँ 
लौट के आए गई जवानी |

घर - गृहस्थी का जंजाल नहीं 
बीवी - बच्चों का मायाजाल नहीं 
सब्जी लाने को मना कर दे 
ऐसा माई का कोई लाल नहीं |

स्नेह प्रेम और मान मिलेगा 
आँखों में सम्मान मिलेगा 
आप पढ़ा रहे उनके बच्चे 
हर दिल में यह एहसान मिलेगा |

अफसर की फटकार नहीं 
छापों की भरमार नहीं 
छुट्टी को अर्ज़ी की दरकार नहीं 
एक दूजे के के करने में साइन 
हम जैसा फ़नकार नहीं |

दूर पहाड़ों पर हम 
चढ़ते और उतरते हैं 
हर बीमारी को अपनी 
मुट्ठी में रखते हैं 
और जिस घर से जा गुज़रते हैं 
डिनर के बाद ही उठते हैं |

यहाँ पढना क्या पढ़ाना क्या 
जोड़ क्या घटना क्या 
कहाँ की घंटी वादन कैसा 
धेले भर का खर्च नहीं 
खाते में पूरा पैसा |

सुगम .......................

मीडिया, पत्रकार, रिपोर्टर 
एक टीचर हज़ार नज़र 
अफसरों का सुलभ शौचालय 
पिघलता नहीं कभी उनकी 
शिकायतों का हिमालय |

हर आहट पर दिल 
काँपता ज़रूर है 
कुत्ता भी गुज़रे सड़क से 
एक बार झांकता ज़रूर है |

कोई सफ़ेद गाड़ी 
दूर से भी दे दिखाई 
डाउन हो जाए शुगर 
ब्लड  प्रेशर हाई |

अभिभावक हैं अफसर 
हर छुट्टी पर रखें नज़र 
फ्रेंच की बात तो दूर रही 
कैजुअल पर भी टेढ़ी नज़र |

पाई - पाई का हिसाब दीजिये 
एक दिन की सौ डाक दीजिये 
राजमा की जगह छोले 
बच्चा कापी किताब ना खोले 
दो - दूनी चार ना बोले 
तब भी आप ही जवाब दीजिये |

रोज़ - रोज़ नित नए प्रशिक्षण 
सुबह से शाम की कार्यशाला 
सिवाय पढ़ाने के बच्चों को 
बाकी सब है कर डाला |

हर साल ट्रांसफर की तलवार 
सिर में लटकती है 
सुगम की नौकरी साथियों  
सबकी आंख में खटकती है |

अतः ........................

सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये 
दुर्गम माने दूर हैं गम, यह  जान लीजिये |