मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

साल भर का लेखा - जोखा-----------------------------------

कुंभ में मची भगदड़  /  दतिया में कुचले गए निर्दोष  /  किसको देंगे दोष   /  अंध - विश्वास  /  अंध - भक्ति  /  अंध भीड़ के रेले   /  जानलेवा हैं ये ज़िंदगी के मेले । 

हैलिकॉप्टरों की खरीद पर जम कर हुई दलाली  /  जल, थल पर मचा के धूम  /  वायु पर भी छा गए भ्रष्टाचारी ।  

भांजा बेटिकट चढ़ गया  /  मामा जी का टिकट कट गया  /  बकरे की बलि बेकार गयी  /  रेल पटरी से उतर गयी । 

आडवाणी जी हटो - हटो  /  भाजपा में नमो - नमो  /  वेटिंग लिस्ट निकली फ़र्ज़ी  /  आगे जैसी राम जी की मर्ज़ी । 

जेल में पहुंच गया टुंडा   /  अफ़ज़ल को गुप - चुप फांसी पर टंटा   /  बलात्कारियों को फांसी हुई  /  मानवाधिकारियों को खांसी हुई । 

केदारनाथ हो गया तबाह  /  भगवान् की लग गयी आह  /  खोदा पहाड़   /  निकला इंसान  /  पर्यटन या तीर्थाटन  /  अब तो जागो शासन -प्रशासन । 

जग सारा छान लिया  /  उनका लोहा मान लिया  /  हाथ रह गए खाली के खाली  /  मिल न सकी कहीं भी  /  पांच और बारह रूपये की थाली । 

सुशासन की दिख गयी सूरत  /  भगवान् की थे मूरत   /  भोले - भाले  /   मन के सच्चे  /  मिड डे मील से मर गए बच्चे । 

फिक्सिंग का साया  /  बुकियों की देखो माया  /  अंदर हो गए बड़े - बड़े  /  फ़िल्मी सितारे भी धरे गए । 

प्याज ने रुलाया  /  टमाटर ने खून खौलाया  /  सब्जियों ने दूरी बनाई  /  रूपये ने छुई नई ऊंचाई   /  इस वर्ष भी टॉप पर रही महंगाई  ।  

मुजफ्फरनगर में दंगे  /  ज़रा सी बात पर खून - खराबा  /  ठण्ड से मर गए बच्चे  /  मिलती कहाँ से राहत  /  मौतों पर भी हुई सियासत  । 

भेस में साधु के छिपा रहा शैतान  /  हाय ! कलयुगी भगवान  /  भक्त भौंचक्के रह गए  / ठगे - ठगे से रह गए  /  बाप पकड़ में आ गया  /  बेटा छक कर भी छका गया ।  

कैसा समय ये आ गया मौला  /  महिलाओं से डर गए अब्दुल्ला  /  जस्टिस गांगुली और तेजपाल  /  छिपे पड़े हैं अभी नामालूम  /  कितने और गुदड़ी के लाल । 

सचिन ने सन्यास लिया  /  क्रिकेट को निर्विवाद जिया  /  नम हो गयी सबकी आँखें  /  पत्थर दिल तक पिघल गया  /  भारत - रत्न पर विवाद गहराया  /  भूला - बिसरा ध्यानचंद फिर याद आया । 

समोसे में आलू  /  जेल में लालू  /  चारा - लालू  / लालू - चारा  /  अब निभेगा भाईचारा  /  मेरे तो बस ग्वाल - बाल दूसरो न कोय  /  सारे जग में राहुल सा कोई दूजा ना होय  । 

आरुषि को इन्साफ मिला  /  माता - पिता ही निकले कातिल  /  क्या अनपढ़ क्या पढ़ा पढ़ा - लिखा  / सब तरफ ऑनर किलिंग का रूप दिखा । 

रैलियों की आंधी  /  मोदी चाय ने काट ली चांदी  /  फेंकू बनाम शहज़ादा  /  ज़ुबानी जंग ज्यादा से ज़्यादा  /  विकास की किसको पड़ी  /  सामने  है चुनाव की घड़ी । 

एक की मुट्ठी में माँ के आंसू  /  दिल में दादीजी की आस  /  दूसरे की मुट्ठी में सारे जहाँ का भूगोल और इतिहास । 

फाड़ दिया दागियों वाला अध्यादेश  /  अपनी ही पार्टी को दे दिया कड़ा सन्देश  /  कोई कहे ड्रामेबाज़ी   /  कोई कहे धोखेबाज़ी  /   मियां बीबी हों जब राज़ी  /  तब क्या कर लेगा काज़ी । 

कड़े कदम  /  कड़े शब्द  /  कड़ा विरोध  /  कड़ी निंदा  /  कड़ी कार्यवाही   /  कुछ ज्य़ादा हो गई ये कड़ - कड़ मेरे भाई  । 

अमेरिका की दादागिरी  /  देवयानी की किरकिरी  /  कहीं मालकिन सेर रही  /  कहीं नौकरानी सवा सेर रही  /  नौकर की भी शामत आई  /  राघव जी ने हवालात की हवा खाई । 

काला धन और स्विस बैंक का जुमला  /  रामदेव पर मुकदमों से हमला  /  कपाल भांति और प्राणायाम का कारोबार  /  चुभ रहा आँखों में बाबा जी का व्यापार ।  

विदेश से एलिस मुनरो को नोबेल  /  देश से राजेन्द्र यादव गुज़र गए  /  पानी पी -  पी कर कोसने वाले वाले   /  पल भर को सहसा ठिठक गए । 

गाली - गलौच  /  मार - पीट  /  जेल - बेल  /  हाथा - पाई के देखे जौहर  /  बिग बॉस में जीती गौहर  /  महिलाओं का दबदबा कायम रहा  /  हर जगह बॉस हैं वे  /  इसमें न कोई संदेह रहा । 

अनशन में फिर बैठे अन्ना  /  तुरंत पास हुआ लोकपाल  /  भागते भूत का लंगोट मिला  /  चुप रहने से जोक भला   /  अन्ना जी संतुष्ट हुए  /  केजरीवाल रुष्ट दिखे । 

लाल बत्ती रही नहीं  /  ये लाल किसके  /  रूखे - सूखे से दिख रहे  /  ये कंगाल किसके  /  अब कौन भला पूछेगा इनको  /  मंत्री हो या अफसर  /  सूने - सूने से हैं भाल सबके । 

एग्जिट पोल पर लगी रोक  /  नोटा बटन का प्रयोग हुआ  /  कहीं सुयोग कहीं दुर्योग रहा   /  अदभुद यह संयोग रहा । 

लिव इन नहीं फूलों की सेज  /  समलैंगिकों पर फंस गया पेच  /  छेड़ - छाड़ पर कानून बना   /  फाख्ता हुए दबंगों के होश  /   बेनकाब हो गए कई सफेदपोश  । 

यू.पी.  /  उन्नाव  /  डौंडियाखेड़ा  /  सपने सुहाने   /  सबने सच माने  /  महीने भर की खुदाई  /  दावे सारे हवा - हवाई  /  सरकार की जग - हंसाई  । 

लौह पुरुष पर छिड़ गयी जंग  /  सबसे बड़ी प्रतिमा का अब दिखेगा रंग  /  हर घर से लोहा जाएगा  /  पैदल भी दौड़ाया जाएगा  /  पार्टियां पेश कर रहीं अपने दावे  /  गांधी, नेहरू और न सुहावे  /  बस वल्लभभाई मन को भावे । 

ईमानदारी की बात जंच गयी  /  ''आप'' की धूम देश भर में मच गई  /  आम आदमी की बंदगी  /  झाड़ू ने बुहारी गंदगी  /  बत्तीस वाली हुई किनारे  /  अट्ठाइस का तमाशा देखें दिल्ली वाले । 

सारी समस्याएं सुलझ जाएं  /  चमत्कार एक ही दिन में हो जाए  /  कुछ ऐसा करें केजरी  /  उधर खड़े होकर चुटकी बजाएं  /  इधर सतयुग के साथ रामराज्य फ्री में आ जाए । 
 
हार के बाद हुआ मंथन   /  मंथन से निकला हलालहल  /  हलाहल पीकर सब बोले  /  इस शर्मनाक हार के हम हैं वास्तविक अपराधी  /  सब मिलकर बोलो 'देश की माँ  है सोनिया गांधी'' । 

क्लीन चिटों की हरी - भरी बगिया  /   भांति - भांति के फूल बंटे   /  इसको दे, उसको दे  /  जिसको नहीं मिली उसके दिल में शूल उठे । 

सार्थक फिल्मों को मिले नहीं दर्शक  /  निरर्थक फिल्मों ने की खूब कमाई  /  सौ, दो सौ, पांच सौ करोड़  /  मायानगरी में छिड़ गयी होड़  /  जिसका कोई सिर पैर नहीं  /  वह सबके सिरमौर रही । 

कोयला घोटाले की फाइलें हो गईं अंतर्ध्यान   /  मंगल पर जीवन की खोज कर रहा विज्ञान  /  मोबाइल ज़रूरी या शौचालय  /  राई - रत्ती सा मुद्दा बार - बार बना हिमालय  । 

संजय दत्त हवालात में पहुँच गए  /   प्राण, फारुख , मन्ना दा गुज़र गए  /  ऑस्कर तक जाते - जाते  /  फिर से कदम ठहर गए । 

स्टिंग ऑपरेशन ने बटोरे दर्शक  /  मौन रहा बाथेपुर का नरसंहार  /  सूर्यनेल्लि का बलात्कार  /  टी.आर.पी. का श्रेष्ठ उदहारण  /  बहसवीरों  का हर चैनल पर निर्बाध रहा प्रसारण  ।  

फेसबुक का रिज़ल्ट रहा सेंट परसेंट  /  लेखन से ज्यादा महिलाओं की फ़ोटो पर कमेंट  /  टैगिंग ने सिर को दर्द दिया  /  चैटिंग ने दिल को दर्द दिया  ।  

करोड़ों पेजों के नित आमंत्रणों  ने सिर धुनने पर मजबूर किया  /  फ़र्ज़ी आईडीयों ने ब्लॉकिंग को मजबूर किया  ।