राम सिंह ! आराम से तो हो ?
था
तेरे पास
कानून, अदालत
तर्क - वितर्क
न्याय, माफ़ी
सहानुभूति
पश्चाताप
तुझे सजा मिलती भी तो पता नहीं कब और कितनी ?
था
हमारे पास
दुःख का दरिया
बद्दुआओं का सागर
आंसुओं की नदी
दर्द का सैलाब
तू बचता भी तो पता नहीं कब और कितना ?