मंगलवार, 12 मार्च 2013

राम सिंह ! आराम से तो हो ?

राम सिंह ! आराम से तो हो ?

था
तेरे पास
कानून, अदालत
तर्क - वितर्क
न्याय, माफ़ी
सहानुभूति
पश्चाताप
तुझे सजा मिलती भी तो पता नहीं कब और कितनी ?

था
हमारे पास
दुःख का दरिया 
बद्दुआओं का सागर 
आंसुओं की नदी 
दर्द का सैलाब
तू बचता भी तो पता नहीं कब और कितना ?