मंगलवार, 31 मार्च 2009

माधवी, कमला या सुरैय्या ......जन्मदिन मुबारक ....

जन्मदिन है आज उसका ....उसने पचहत्तर वर्ष पूरे कर लिए...वो जिसकी हर कविता ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया था ...जिसकी हर कविता मानो संवाद स्थपित करती हो ...मानो जैसे हर भारतीय औरत की दास्तान हो ...शब्द दर शब्द दिल में उतरते चले जाते हैं..."I studied all men, I had to" …..

"what women expect out of marriage and what they get"

"why more than one husband?"

मैं बात कर रही हूँ ...मधावीकुट्टी उर्फ़ कमला दास उर्फ़ सुरैय्या की ...

जिसने स्वीकार किया बेबाकी, ईमानदारी से अपने संबंधों को ..."मुझे अपने अतीत पर कोई क्षमा नहीं चाहिए, क्यूंकि मुझे पता है कि सुन्दर इस संसार में मैंने जीवन को सुन्दरता से जिया है"

उनकी अधिकाँश कविताओं की विषय वस्तु प्यार की अपूर्णता और प्यार पाने की लालसा है ...सोलह वर्ष की अल्पायु में विवाहित और स्वयं को खोखले संबंधों, जिन्हें वह किसी भी आम भारतीय नारी की तरह तोड़ नहीं सकी, में बंधा पाकर कमला दास की कहानी जिसे उन्होंने 'माई स्टोरी' में कलमबद्ध किया, बेहद सनसनीखेज होने के बावजूद मार्मिक है .These men who call me /beautiful, not seeing/me with eyes but with hands/and,even…even…love.

पुरुष प्रधान समाज के विरुद्ध विद्रोह ने उन्हें एक वैयक्तिकता, उत्साह, साहस और इन सबसे बढकर एक कविता प्रदान की Then…I wore a shirt and my /brothers's trousers,cut my hair short and ignored/My womanliness......उन्होंने परम्पराओं, बनी बनाई मर्यादाओं और मूल्यों को तोड़ा और आधुनिक जीवन दृष्टि को स्वीकार किया ...इसके लिए उन पर अश्लीलता के भी आरोप लगे ....परन्तु उन्होंने हमेशा यही माना कि भावनात्मक जुडाव के बिना सेक्स सम्बन्ध बंजर और बाँझ है ....वे खुद कहती हैं ....

"नैतिकतावादी इसे किसी भी नाम से पुकारें, ढाई अक्षर का यह शब्द 'प्रेम' सबसे सुन्दर है"

उन्होंने अपने भावप्रवण व्यक्तिगत संबंधों को आम सच्चाई में ढाला ...उनकी स्वयं की दुर्दशा और उनके कष्ट आम औरत के कष्ट बन गए ....कवियित्री के इसी रूप में कमला दास की श्रेष्ठता है....वह जितनी व्यक्तिगत हैं उतनी ही वैश्विक भी ...You called me wife/I was taught to break saccharine into your tea, and/to offer at the right moment the vitamins/cowering/beneath your monsterous ego.i ate the magic/ loof and/ became a dwarf….

भारतीय सन्दर्भ में असामान्य बेबाकी और स्पष्टवादिता से कमला दास प्यार की ज़रुरत महसूस करती है ... Vrindavan lives on in every woman's mind/and the flute,luring her/from home and husband …उनकी कविताओं में व्याप्त संवेदना की अनुभूति अभिभूत कर देती है ...जेन ऑस्टिन की तरह ही उनहोंने अपनी 'थ्री इनचेस ऑफ़ आइवरी' पर काम के द्वारा श्रेष्ठता हासिल की ...

जब भी उनहोंने विवाहेत्तर संबंधों की बात की तो उनका आशय ना तो दुराचार था, ना दाम्पत्य संबंधों को तोड़ना, ...वह केवल उस सम्बन्ध की खोज थी जो प्यार भी दे और सुरक्षा भी ...Another voice haunts my ear,another face/my dreams, but in your arms I must today /lie……

पंजाबी की अमृता प्रीतम को छोड़ दें तो अन्य किसी भारतीय कवियित्री ने इसे इतनी स्पष्टता से अभिव्यक्त नहीं किया ....

आइये उनकी लम्बी उम्र के लिए दुआओं में हाथ उठाएं ....

कुछ पंक्तियाँ मैंने तब लिखीं थीं जब उन्हें पढ़ने का अवसर मुझे मिला...

तुम माधवी हो

या कमला दास

या

सुरैय्या

क्या फर्क पड़ता है?

तुम्हारे और मेरे बीच

कई दशकों का फासला है

फिर भी

वही कहानी

वही किरदार

प्यास भी ज्यों कि त्यों है

 

इनकी तो पाठशाला ....मस्ती की पाठशाला

साथियों ...जब से मैंने ये सुना है कि रांची में राजनीति की पाठशाला है ...तब से दिमाग में खलबली मची थी ....कि वहां कौन कौन पढ़ाता होगा ...आप भी जानिए ...

 

लालू वहां के प्रोफेसर, पढ़ाएं मैनेजमेंट

बिहार से उखड़ा तम्बू तो,

दिल्ली में लगा लो टेंट

ऐ से ऐ राबड़ी, बी से भेंसुआ

सी से चारा

आओ बच्चों सीखें, कैसे करें घोटाला

करो घोटाला, जाओ जेल

भैंस ना मिले तो दुह लो रेल

 

प्रोफेसर इन वेटिंग हैं आडवाणी

सुर बदलती इनकी वाणी

जाएं पाकिस्तान बोलें,

जय हो जिन्ना भाईजान की

हिन्दुस्तान में बोलें

जय सियावर राम की

 

लेक्चरार हैं वहां अम्बुमणि

पटाखों की लम्बी लड़ी

हर बात पे फटने को तैयार

हर फटे में घुसने को बेकरार

 

अर्जुन सिंह वहां के डीन

सुनते बस मंडल की बीन

काबू से बहार इनके बच्चे

इनके संस्मरण इनसे अच्छे

 

मनमोहन वहां के एच. ओ. डी.

सुनते सबकी करते मैम के मन की

अनुशासन का ऐसा उदाहरण

पपेट शो का लाइव प्रसारण

 

लाइब्रेरियन है प्रियंका गाँधी

बस गीता पढ़नी जिसको आती

रोड पे चलता मेरा भैय्या

वरुण चले तो ता ता थैय्या

 

बहुत कठिन है एडमिशन

स्विस बैंक देता परमिशन

जिसके ज्यादा हों जितने खाते

उसके ही बच्चे प्रवेश पाते

 

एक मंजिल में पाठशाला

है दूजी में पागलखाना

है गेट दोनों का एक

युनिफोर्म एक सिलेबस एक

यह रांची की पुण्यभूमि

राजनीति की कर्मभूमि

दर्शन करने ज़रूर आना  ....शेफाली

सोमवार, 30 मार्च 2009

मैंने भी लिखने चाहे थे प्रेम गीत .....

मैं प्रेम गीत लिखना चाहती हूँ

मैं हास्य व्यंग्य रचना चाहती हूँ

और कुछ देश भक्ति की चाशनी घोलना चाहती हूँ

 

जब मैं उठाती हूँ कलम

कि कुछ मधुर मीठे एहसासों को

बाँधू शब्दों में

और उड़ जाऊं उनको लिए गगन में

 

थी उसी समय कई चेहरे,

कुछ अखबार की लाइनें

शोर मचाती हैं 

मेरी आँखों के सामने तैरने लग जाती हैं

निठारी के गंदे नाले में पड़े

मासूम बच्चों की हड्डियां

नंदीग्राम के निर्दोषों की लाशें

और उठ कर नाचने लगते हैं

रेल की पटरी पर रखे गुर्जरों के कंकाल

 

ठीक जिस समय मैं सोचती हूँ शब्द प्रेम के

उसी समय मेरे आगे दौड़ पड़ते हैं

चिथड़े पहिने, एक मुट्ठी अनाज के लिए

गाय के गोबर को साफ़ करते बच्चे

और चाँद रुपयों की खातिर

उन बच्चों को बेचती माएं

 

मैंने जब लिखने चाहे सुन्दर सुन्दर गीत

मेरे आगे वे लोग नाचने लगते हैं

बरसात से जिनके पोलिथीन के घरों में

चूल्हे नहीं जलते हैं

जिनके बच्चे रोज़ फ़ूड पोइज़न या डायरिया से 

चल बसते हैं

 

जब मैंने लिखना चाहा इस हरी भरी धरती पर

इसकी ताकत, इसकी मेधा, इसकी सम्रद्धि पर

अजीज प्रेमजी, अम्बानी और मित्तल पर

मेरे सामने कुछ हड्डी के ढाँचे चुपके से आ जाते हैं  

जिन्हें किताबों में किसान कहते हैं

बच्चे जिन पर निबंध लिखते हैं

और जो आजकल नित्य ही नुवान पीते हैं

या सलफाज गटकते हैं

और मेरी कलम से बन जाती है

उन होरी जैसे लोगों की आकृति

जो तड़पते हैं जिन्दगी भर और अंत में

एक अदद गोदान की आस लिए

इस दुनिया से चले जाते हैं

 

मैंने जब लिखने चाहे धर्म गीत

मेरी कलम से निकलने लगा लाल रंग

और बहने लगा सफ़ेद कागज़ पर

जो शायद किसी बम धमाके में

मारे गए व्यक्ति का रक्त था

जिसका कुसूर सिर्फ इतना था

कि वह आम जनता था

 

इसलिए बन्धु! मैं लिख नहीं पाती प्रेम के गीतों को  

रच नहीं पाती विरह के संदेशों को

और ना ही जगा पाती हूँ उत्साह वीर रस का 

रविवार, 29 मार्च 2009

जीना मेरा हुआ हराम .....जबसे आया ये वेतनमान ...

कब हो जाती है सुबह

बीत जाती है कैसे शाम

जीना मेरा हुआ हराम

आया जबसे वेतनमान

 

हर कुर्सी, हर टेबल पर

एक ही टेबल रोज़ है होती

हर पेड़ के पीछे, हर डाली के नीचे  

एक समिति रोज़ है बनती

 

टीचर जोड़ तोड़ में व्यस्त हैं

बच्चे भूले सारा हिसाब

इस गुणा भाग के चक्कर में

कबसे खुली नहीं किताब

 

शिक्षा की तो उतर गयी है

देखो यारों कैसे पटरी

हर टीचर का चेहरा जैसे

बन गया है रुपये की गठरी 

 

वो देखो आए मिस्टर पैंतीस

है इनका मुखड़ा तीस हज़ारी

और इनकी  देखो चाल मस्त  

इनके आगे हर कोई पस्त 

पति - पत्नी दोनों के सत्तर

पड़ जाते हैं सब पर भारी

 

याद भी नहीं मुझको अब तो  

कितनी बार हुआ फिक्सेशन

सपने में भी नोट घूमते

दिमाग के टूटे सारे कनेक्शन  

 

हाय रे फूटी मेरी किस्मत !

 

जोर -शोर से आया था

दबे पाँव यह निकल गया

खड़ी थी सुरसा मुंह को फाड़े  

हनुमान बनके निकल गया  

हाथ में खाली बटुआ ले  

में बैठी हूँ ढोल बजा

 

शनिवार, 28 मार्च 2009

एक प्रश्न पर हैं सब मौन ......

कश्मीर से लेके कन्याकुमारी
मोदी हो या कोई बुखारी
मेरा बस एक सवाल
जिस पर छिड़ी ना बहस कभी
मचा न कोई बबाल
इस एक प्रश्न पर सारे दल
हो जाते हैं बिलकुल मौन  
कटता है जिसका हाथ सदा 
वह आखिर है कौन?

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

हसीनाओं का पसीना

 
आजकल हर पार्टी चाहती है कि वह किसी न किसी हसीना को अपना उम्मीदवार बनाए, इससे पार्टी की टी.आर.पी. बढ जाती है, क्योंकि जब वह अपने दोनों हाथों को जोड़ कर वोट मांगेगी तो किस माई के लाल में हिम्मत है कि उसको मन कर दे..इतनी  बड़ी अभिनेत्री वोट जैसी तुच्छ चीज़ मांगने आई है और हम इनकार कर दें.छिः...बेचारी दिन भर धूप में झुलस के अपनी नर्म, नाज़ुक त्वचा का बेडा गर्क कर रही है ..उस त्वचा का,जिसके हम दीवाने हुआ करते थे..जिस ब्रांड के साबुन से वह नहाती, थी उसे लेने के लिए घर में महाभारत किया करते थे, उसके लिए शेरो शायरी किया करते थे, उससे मिलती जुलती शक्ल की लड़की से इश्क फरमाया करते थे, आज उसके एहसान चुकाने का सुनहरा मौका हमारे सामने आया है, और हम मुकर जाएं तो हमें नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी..ये महलों में रहने वालीं, ए.सी.गाड़ी में चलने वाली,आज गलियों की ख़ाक छानने में मजबूर है किसकी खातिर? हमारी ही न! क्या हुआ जो एक बार उसकी एक ज़रा सी झलक पाने के लिए बारह घंटे धूप में इंतज़ार किया था,लाठियाँ खाईं थी,और सिर पर बारह टांकें आए थे..पर आज वह खुद चल कर आई है उसका प्रायश्चित्त करने, वह भी हाथ जोड़ कर..आज चाहें तो उससे हाथ भी मिला सकते हैं ..
और वो देखो पार्टी कार्यकर्ताओं को..हसीना को देख-देखकर नारे लगा रहे हैं..पता लगाना मुश्किल है कि पार्टी की जिंदाबाद कर रहे हैं या हसीना की..यही कार्यकर्त्ता पिछले चुनाव में सुबह, शाम, दिन, रात मुर्गा, कबाब तोड़ते थे, रात को शराब की बोतल के बिना सो नहीं पाते थे, आज हसीना के साथ सारा सारा दिन सड़कों पर भूखे-प्यासे घूम रहे हैं ..इनका निःस्वार्थ समर्पण देखकर मन श्रद्धा से भर गया.
हसीना को पसीना ना आ जाए इसका ख़ास ख्याल रखा जा रहा है..वैसे भी इनको पसीना कम ही आता है .अगल बगल कई लोग पंखा लेकर खड़े हैं ..कईयों के हाथ में हर समय रुमाल तैयार रहता है..'काश! इसके पसीने की एक बूँद भी मुझे मिल जाए तो हमेशा के लिए अपने रुमाल में सहेज लूँगा..और अपने दोस्तों को जलाया करूँगा.. 
इनका बस चले तो ये सूरज के मुख पर पर्दा दाल दें ...ताकि हसीना का गोरा रंग धूप से काला न हो जाए..सड़कों पर कालीन बिछा दें..ताकि उसके पैरों में बिवाइयां न पड़ जाएं ...अरे कुछ याद आया ...माँ घर में पिछले दस दिनों से एड़ियों में दर्द के चलते बिस्तर से उठ नहीं पा रही है ...कोई बात नहीं ..माँ और हसीना का क्या मुकाबला? ...माँ तो किसी तरह रोती पीटती अपने आप खड़ी हो जाएगी ..लेकिन अगर हसीना की एडियाँ फट गईं तो अनर्थ हो जाएगा, पार्टी की शान में बट्टा लगेगा सो अलग ..
वो देखो नज़ारा..जिस जिस मोहल्ले से वो गुज़र रही है, वहां के वाशिंदे खुद को वी. आई.पी. समझ रहे हैं ..उसका हाथ हिलता है तो लोगों के दिल में हूक सी उठती है 'काश! एक बार ये हाथ हमारे हाथ में आ जाता'....जैसे ही वह हवा में चुम्बन उछालती है ..कई नौजवान अपने बाप दादाओं की बनाई मुंडेरों को तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं .... हसीनाओं तुम्हारी 'जय हो

गुरुवार, 26 मार्च 2009

एक लाख की कार को कर दे मेरे हवाले ........

इतराती, इठलाती, बलखाती और लहराती 
आ गयी हो तुम सड़कों पर
दिल में मेरे फंस गयी हो
आँखों में भी बस गयी हो

बात इतनी सी में समझ ना पाऊं 
अब और सड़क कहाँ से लाऊं?
चीर दूँ आकाश को या
पाताल में सड़क बनवाऊं

पैर रखने की यहाँ जगह नहीं
पैदल चलने में होती टक्कर
जाम में पैदा होते बच्चे
मौत भी होती जाम में फंसकर 

सिग्नल में ही पौ फटती है
सिग्नल में ही गुज़रे शाम
ऐसे देश में नैनो प्यारी 
बोलो तुम्हारा है क्या काम 

बुधवार, 25 मार्च 2009

ई लड़खड़िया हमका दई दे ........

 

 

आडवानी की वाणी पर मन की मोहिनी  ...

 

यह लड़खड़िया सर [कार]

निकली बिलकुल ही बेकार  

स्टेअरिंग इसकी बे [मन] के पास  

सड़क बताए मैडम का हाथ

 

बार बार पंकचर हो जाती

बीच सड़क पर रुक रुक जाती

टंकी में पेट्रोल ख़तम

जगह भी इसमें इतनी कम

एक मैडम, दो बच्चों में

तोड़ देती है अपना दम

 

हो जाओ सब मिलकर एक

कर दो इसको मटियामेट

अगले महीने होगी परलय

'टाटा' करोगे कब्ब?

 

मोहिनी ......

 

तुम एल.के. इन वेटिंग

लाइन में पीछे लगे रहो

मूंछो पर ताव दिए रहो

राम नाम को भजे रहो

 

लाख बुरी हो यह कार

मत टपकाओ अपनी लार

देंगे धक्का, लेंगे कर्जा

ड्राइव मिले तो कैसा हर्जा

चाभी तुमको नहीं मिलेगी

कार हमारी फिर चलेगी

 

कर लो चाहे लाख जतन

ये है मेरी अनमोल 'रतन'

तुम्हारे पास बस राम की धुन

मेरे पास दस [जनपथ] का दम 

मंगलवार, 24 मार्च 2009

अगले जन्म मोहे ब्लोगर का पति ना कीजो .........

मैं कपड़े धोता

छप छप छप

तुम की बोर्ड पे करती   

खट खट खट

 

मैं अपनी किस्मत फोडूं  

सूखी रोटी रोज़ तोडूं

तुम लो बातों के चटखारे  

मैं देखूं दिन में तारे

 

दाल में मेरी नमक नहीं

चावल भी खाऊं मैं कच्चा  

कपड़े बिखरे जहाँ तहाँ

बच्चे फिरते यहाँ वहाँ

सारी दुनिया झूठी प्रिये!

एक तेरा ब्लॉग है सच्चा

 

टिप्पणियाँ तुम देती हो दिन भर  

मैं जो कर दूँ एक भी तुम पर

आँखों से बह जाए गंगा जमुना

उठ जाता है घर सिर पर

 

मेहमान भी जो घर पे आते

अपनी चाय आप बनाते

कहते हैं वो हंस हंस कर

भगवान् बचाए उसको

जिसकी बीबी हो ब्लोगर

 

याद है मुझको वह काला दिन

जब तुमको मैंने नेट सिखाया

पटके ज़मीन में बच्चे तुमने

गोदी में लैपटॉप बिठाया

 

फूल सूख गए गमलों में सारे

ताजा गुलाब तेरा चेहरा

पीले पड़ गए मैं और बच्चे

तेरे होंठों का रंग हुआ गहरा

 

दीवाली में छाया अँधेरा

होली में नहीं उड़ा गुलाल

त्यौहार सारे फीके हुए

तेरा ब्लॉग हुआ गुलज़ार

 

एक्सेप्ट और रिजेक्ट के

तेरे इस खेल में

मोडरेट हो गया मैं बेचारा

अपनी डाली आप ही काटी

कालिदास हूँ किस्मत का मारा

 

हे प्रभु! करुणानिधान

करना बस तुम इतना काम

अगला जन्म जब मुझको देना

ये दौलत भी लेना

ये शौहरत भी लेना

छीन लेना मुझसे मेरी जवानी

मगर मुझको लौटा देना

वो प्यारी सी पत्नी

वो मीठी कहानी   

सोमवार, 23 मार्च 2009

काले जादू पर कुछ काले अक्षर ...

 

 

बहिनों, इससे ज्यादा शर्मनाक तो कुछ हो ही नहीं सकता कि आज हम पर यह इल्जाम लगे कि हम काला जादू करतीं हैं, हांलाकि प्राचीन काल से ही समय - समय पर हम पर यह आरोप लगता रहा है. हर युग की सास ने अपनी बहू पर यह इल्जाम लगाया है कि 'कलमुंही ने काला जादू करके मेरे बेटे को अपने वश में कर लिया है, यह बात दीगर है कि पहिले से काली  महिलाओं का जादू मर्दों पर कम चला करता था,परन्तु शुक्र है इस कॉस्मेटिक युग का कि काली बहिनों ने तरह तरह की लवली- लवली क्रीमें लगाकर खुद को गोरा कर लिया है और जादू के इस मैदान में वे गोरियों को बराबर की टक्कर दे रही हैं  और आज लानत है हम पर कि हमको यह कला सीखनी पड़ रही है क्यूंकि आज ना तो हमारे पास काला जादू करने वाले वो लम्बे काले बाल रहे,ना वो जादुई आँखें, जिनको नचा नचा कर हम किसी भी मर्द को अपने वश में कर लिया करती थीं, वो गिड़गिडाता भी रहता था 'जादू भरी आँखों वाली सुनो तुम ऐसे मुझे देखा ना करो',लेकिन हमने उस पर कभी भी तरस नहीं खाया.और वो जुल्फें जिनको नागिन के समान दर्जा मिला था,उनको छोटा करने में हमने पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रखी है, और उन पर अनेकों रंग,मसलन भूरा, काला,लाल ,पीला,सुनहरा और जिसमें सर्वप्रथम स्थान ले गया है मेहंदी का रंग,चढ़ा चढ़ा कर हमने ये कहावत को भी झूठा सिद्ध कर दिया है कि काले पर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता है ,मेहंदी की बेवफाई का आलम इन दो पंक्तियों में सुनिए -

ये हिना भी देखिये कितने रंग बदलती रहती है

कभी हाथों में रचा करती थी, अब सिर पे लगी रहती है

 और आँखों का तो पूछिए मत,तरह - तरह के कांटेक्ट लेंस लगाकर हमने बुरा हाल कर डाला है, तभी तो आजकल मर्दों पे हमारा जादू चलना कम हो गया है, रही सही कसर मेरी बहिनें बड़े - बड़े सन ग्लास लगाकर पूरी कर देतीं हैं,जिनको मेरी बहिनें ना जाने किस मजबूरीवश सन के अस्त होने पर कड़कडाती सर्दी हो या बरसात,सुबह से लेकर रात तक आँखों में चढाए रहतीं हैं.

याद करें वो पुराना दौर, जब हम अपने ओरिजनल रंग रूप में जादू चलाया करतीं थीं,मजाल थी कि कोई पति इधर उधर ताक झाँक कर ले,और आज नौबत ये आ गयी है कि शादी के दिन से ही अपनी नवविवाहिता को छोड़कर अगल बगल खड़ी तितली जैसी इठलाती कन्याओं को ताड़ने लगता है

ऑफिसों में भी अब हमारा जादू चलने में दिक्कत होने लगी है, पहिले की तरह देर से आना और जल्दी चला जाना मुश्किल हो गया है , महिला अधिकारियों पर तो हमारा जादू कभी भी नहीं चला, उल्टे लौट कर हमीं पे आ जाता था,

अपनी इस बदहाली की बहिनों हम खुद ही जिम्मेदार हैं

कब आएगा वोह दिन जब इमरान हाशमी की तरह सारे मर्द ख़ुशी ख़ुशी यह गाएंगे ';काला जादू करें,लम्बे बाल तेरे'

 

रविवार, 22 मार्च 2009

राजनीति में नगमा

गोरे-गोरे मुखड़े पे

काला-काला चश्मा

जंगे-सियासत में आई है

करने कोई करिश्मा

 

ये छेड़ेगी कोई तराना

या नगमा कोई गुनगुनायेगी

दादा को करके क्लीन-बोल्ड

अब किसके विकेट गिराएगी??

 

विरोधियों, अपनी पिच संभालो

कंधे से कन्धा मिलालो

भरदो इसकी झोली वोटों से

वरना जमानत अपनी जब्त करा लो

शनिवार, 21 मार्च 2009

अप्प्लम चप्प्लम चप्पल[आई रे].......

अप्प्लम चप्प्लम चप्पल[आई रे].......

संभल कर कदम रखना इधर ऐ कानून वालों ....तुम्हारे पास तराजू,इनके पास चप्पल है

पहले अक्सर यह कहावत सुनने में आती थी कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं आज पता चला कि यह बिलकुल झूठी कहावत है.कानून के हाथ लम्बे होते तो क्या वह सिर पर आती हुई चप्पल को रोक न लेता.हाँ इस घटना से इस कहावत की पुष्टि हुई कि कानून अँधा होता है.अब इस दुर [घटना] से सबक लेते हुए माननीयों को यह कानून अवश्य बना लेना चाहिए कि जूते और चप्पल  को अस्त्र-शस्त्र की श्रेणी के समकक्ष माना जाए और कोर्ट परिसर के अन्दर इनको लाना अपराध घोषित हो.माननीय न्यायमूर्ति को शुक्र मनाना चाहिए कि उन स्त्रियों ने चप्पलें ही पहिनी थीं,वर्ना आजकल तो कुछ स्त्रियाँ इतनी नुकीली हील की चप्पलें पहिनतीं है कि आपको बस खट-खट की आवाज़ ही सुनाई देगी,आवाज़ का उद्गम स्थल नहीं दिखाई देगा.पाहिले ये पेंसिल हील कहलातीं थी आजकल इनको आलपिन हील कहा जाता है.ये अगर निशाना साधकर फेंकीं जाएं तो सीधे माथे के आर-पार छेद कर देंगीं,गनीमत है कि अभी महिलाओं की निशाने बाजी सीखने में रूचि कम है. आज ये बात तो मुझे स्पष्ट रूप से समझ में आ गयी कि क्यों अंग्रेजों को दूरदर्शी कहा जाता है  पुरानी फिल्मों को देखती हूँ तो पाती हूँ कि माननीय अपने सिरों के ऊपर एक सफ़ेद रंग का बड़ा सा छल्लेदार विग धारण करते थे,वो इसी तरह की आपातकालीन स्थिति से निपटने का इंतजाम होगा.वैसे इस घटना से माननीयों को कटाई शर्म नहीं आनी चाहिए, बल्कि महामहिम बुश की तरह दिलेरी से यह कहना चाहिए कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा,मन ही मन घर पर पत्नी के हाथ से खाए बेलन से उसकी तुलना करनी चाहिए और शुक्र मानना चाहिए,आइन्दा से सिर पर हेलमेट लगाकर ही अदालत में बैठना चाहिए.

जो भी हो इससे यह सिद्ध होता है कि अब विरोध प्रदर्शन की नई तकनीक इजाद हो चुकी है बैनर, झंडे अब कोने में धूल फांकने को विवश हैं,क्यूंकि इनसे एक तो शारीरिक नुकसान की संभावना कम हो जाती है और विरोध प्रकट करने का मकसद भी पूर्ण हो जाता है.विरोध प्रदर्शन का यह ग्लोबल तरीका अब इरान और चाइना होते हुए भारत पहुँच चुका है.

पुरुष इस मामले में भी महिलाओं से पिछड़ते जा रहे हैं,उनके पास फेंकने के लिए बस काले या भूरे रंग के जूते होते हैं और महिलाएं रंग बिरंगी हाई हील, ब्लोक हील, नूडल स्ट्रेप और पुरुषों के एकाधिकार वाले जूतों पर भी कब्जा जमा चुकीं हैं.

पाहिले के जमाने के पुरुष यह कहा करते थे कि 'तुम्हारे पैर बहुत सुन्दर हैं,इन्हें ज़मीन पर मत रखना,वरना मैले हो जाएंगे'.....आजकल वाही पुरुष यह कहा करता है कि 'तुम्हारे पैर बहुत सुन्दर हैं ,इन्हें हील के अन्दर मत रखना, वर्ना कई लोग घायल हो जाएंगे'. पुराने ज़माने में पुरुष अपने घर की दीवारों पर अपने पराक्रम की निशानियाँ -तलवार,बरछी,भाले और ढाल लटकाया करते थे और हर आने जाने वाले को अपनी बहादुरी के झूठे सच्चे किस्से सुनाया करते थे ,अब चूँकि महिलाएं भी घर खरीदने में बराबर का पैसा देतीं हैं तो ज़ाहिर है कि वो भी समय समय पर शस्त्र के रूप में प्रयोग किए गए अपने जूते चप्पलों को बैठक की दीवारों पर लटकाया करेंगी कि देखो 'इस चप्पल से मैंने अपने पाँचवे नंबर के आशिक का काम तमाम किया था.

मैं भविष्य के सपनों में खो जाती हूँ जब माएं अपनी लड़कियों को विदाई के समय लाल मखमल की पोटली में सबकी नज़रें बचा कर नुकीली हील की चप्पल देगी कि 'बेटी आज से ये अमानत तेरी हुई'.

दुकानदार कुछ इस तरह से कहेंगे 'यह वाली हील लीजिए मैडम, इससे आदमी के सिर पर दो इंच तक छेद किया जा सकता है,और यह मोटी ब्लोंक हील से सिर पर कम से कम आठ टाँके लगते हैं.  

ऊँची हील की टक टक की आवाज़ सुनकर ही पुरुष अपना रास्ता बदल दिया करेंगे.

सरकार छेड़-छाड़ से बचने के लिए महिलाओं के लिए हाई हील की चप्पल पहिनना अनिवार्य कर देगी,पाठ्यक्रम में उन बहादुर महिलाओं के बहादुरी भरे कारनामे जोड़े जाएंगे जिन्होंने चप्पल - जूतों की बदौलत घरेलू और बाहरी दोनों मोर्चों पर जंग फतह की.

अंत में बस यही ख़याल आता है कि सुभद्रा कुमारी चौहान होतीं तो ऐसा कहतीं,

'खूब लड़ी मर्दानी वो तो चप्पल जूतों वाली रानी थी'

 

गुरुवार, 19 मार्च 2009

[अ] मंगलसूत्र ......

[अ] मंगलसूत्र ......

 

यह

जो मेरे गले में

काला नाग बना 

डसता रहा

जिससे

ना मैं बंधी 

ना तू जुड़ा

तेरा भी मंगल नहीं

ना मेरा हुआ भला

यह घोर अमंगल

का प्रतीक, यह सूत्र

फांस बना चुभता रहा

तोड़ना इसको फिर भी

काम सबसे कठिन रहा 

मंगलवार, 17 मार्च 2009

मैंने उगली आग ....सदा मर्दों के खिलाफ

मुझे

मर्दों के खिलाफ़

आग उगलनी थी   

स्त्री विमर्श पर

थीसिस लिखनी थी   

पिता ने मुझको

किताबें लाकर दीं

भाई ने इन्टरनेट

खंगाल दिया

बूढ़े ससुर ने

गृहस्थी संभाल ली

पति ने देर रात तक   

जाग कर

पन्ने टाइप किए

बहुत थक गयी तो

बेटे ने पैर दबा दिए

मैं गहरी नींद सो गयी   

मर्दों के खिलाफ़ 

सोचते सोचते 

सोमवार, 16 मार्च 2009

अनपढ़ और जाहिल है मेरी माँ

अनपढ़ और जाहिल है मेरी माँ

 

ज़माने भर की नज़रों को पढ़ा उसने

सबसे बचा के मुझको, हीरे सा गढ़ा उसने

जब मुझको गाड़ी, बँगला और ओहदा मिला

जिन्दगी में एक हसीं सा तोहफा मिला

पूछा उस हसीं ने कितना पढ़ी है माँ?

तो मुंह से निकल गया

बिलकुल अनपढ़ है मेरी माँ

 

भरी जवानी जिसने आईना नहीं देखा

मैं बड़ा हुआ, मुझमें ही अपना अक्स देखा

नहा कर आऊं तो माथे पे टीका लगाती थी

मुझसे बचा के नज़रें मुझे निहारा करती थी

पूछा जब हसीं ने उसकी उम्र का हिसाब

मुंह से निकला बस एक ही जवाब

बुढ़िया हो गयी है अब मेरी माँ

 

दुनिया से लड़ के जब आता था

उसके आँचल में छुप जाता था

जब मेरी शादी हुई, मैंने चिटकन लगा ली

चिटकन से भी जी ना भरा तो सांकल चढ़ा ली

कही झटके से ना घुस जाए कहा मैंने

बिलकुल जाहिल है मेरी माँ

 

तमाम रात जो दरवाज़ा तका करती थी

नशे में जब लौटता घर, सहारा दिया करती थी

एक रात मुझे जागना पड़ा उसकी खातिर

खिला दी नींद की गोली, बुखार की कहकर

इस पर भी चैन ना हुआ, तो बोला हाथ जोड़ कर   

अब तो सो जा मेरी माँ

 

रिश्तों को तहाया उसने कपड़ों से ज्यादा   

परायों को दिया प्यार, अपनों से ज्यादा   

उन रिश्तों ने जब माँ को बिसरा दिया   

दुनिया का चलन हमको सिखला दिया  

चुप रही माँ, हम एक सुर से बोल पड़े

अनपढ़ ही नहीं फिजूलखर्च भी है माँ 

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

सीरिअल ...... या .........सीरियल किलर ....

कौन सी है यह दुनिया

कि जिसमें इतना आराम है

ना कोई गृहस्थी की चिंता

ना ही कोई काम है

 

यहाँ घर की कोई कलह नहीं

ना काम को लेकर हैं झगड़े

ना महीने के राशन की फिक्र  

ना ही बिल यहाँ आते हैं तगड़े

 

 

यहाँ बीमारी की जगह नहीं

ना ही कभी कोई मरता है

कत्ल हुआ कभी कोई तो

पुनर्जन्म ले लेता है

 

यहाँ ना चेहरे पर झुर्री

ना बूढ़ी लटकती खाल है

मेकअप की परतें चेहरे पर

क्या बच्ची क्या बूढ़ी

सबका एक ही हाल है

सास कौन है बहू कौन सी

पहचान जाएं तो कमाल है       

 

ये बाज़ार कभी नहीं जातीं

साल भर त्यौहार मनातीं

नए - नए साड़ी ब्लाउजों में

इतरातीं और इठलातीं

 

ये काली दुर्गा की अवतार

पर पुरुष हैं जिनका प्यार

ये बुनतीं ताने -बाने षड्यंत्रों के  

बदले की आग में जलतीं बारम्बार  

 

ये चुपके -चुपके बातें सुनतीं

ज़हर उगलतीं, कानों को भरतीं

शक के बीजों को बोतीं

इन्हें ना कोई लिहाज़ ना कोई शर्म है  

झगड़े करवाना पहला और आख़िरी धर्म है  

 

 

      

 ये इतने गहने  धारण करतीं

जितने दुकानों में नहीं होते हैं

इनका  रंग बदलना देख

गिरगिट भी शर्मा जाते हैं

इनकी शादियों का हिसाब रखने में 

कैलकुलेटर घबरा जाते हैं

 

यहाँ रिश्तों को समझना मुश्किल होता

कौन दादा है,कौन दादी कौन है उनका पोता   

यहाँ संबंधों की ऐसी बहती बयार है

समझ नहीं आता, कौन किसका, किस जन्म का  

कौन से नंबर का प्यार है

 

लम्बे -लम्बे मंगलसूत्र पहनने वालीं

पार्टियों में सांस लेने वालीं

हर बात पे आंसूं टपकाने वालीं

तुम्हारा राष्ट्रीय त्यौहार है करवाचौथ

तुम्हारा पीछा ना कभी छोड़े सौत

 

हे मायावी दुनिया में विचरती मायावी नारियों

घर -घर की महिलाओं की प्यारियों

जड़ाऊ जेवर और जगमगाती साड़ियों

पतियों की बेवफाई की मारियों

तुम्हें देखकर आम औरत आहें भरती है  

तुम्हारी दुनिया में आने को तड़पती है

अपने पतियों से दिन रात झगड़ती है

स्वर्ग सामान घर को नर्क करती है