महिला दिवस पर ......कुछ दिल से
सजावटी घास बनती तो
बाहों के झूले में झूलती
धूप, बारिश से बची रहती
बराबर खाद पड़ती
सुबह - शाम
पानी से तर रहती
पर यह क्या?
नन्हीं - नन्हीं जड़ों ने
इनकार किया
अपना रास्ता आप चुनना
स्वीकार किया
झरोखों से बाहर
निकल आई
दीवार भी उन्हें
रोक ना पाई
उसने हाथ फैलाए
तो सूरज बेकरार होकर
उतर आया आगोश में
तारों ने बिछा दी
मखमली रात की चादर
चंद्रमा बन गया
सिरहाना
धरती की ख़ुशी का
न रहा कोई ठिकाना
रात भर उसको भींचे
सोयी रही
अच्छा हुआ
जो चुन लिया उसने
जंगली घास बन जाना