शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें...

मैं ब्लॉग जगत के उन सभी साथियों का आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने मुझे मेरे जन्मदिन पर शुभकामनाएं  प्रेषित की, और मुझे मेरी बढ़ती उम्र का एहसास दिलाया | मैं उन साथियों की इससे ज्यादा आभारी हूँ जिन्होंने मुझे शुभकामनाएँ प्रेषित नहीं की, जिससे मुझे उम्र संबंधी तनाव का सामना नहीं करना पड़ा |
 
इससे पहले कि महापुरुषों की तरह  मेरी जन्मतिथि पर विवाद खड़ा हो जाए, भविष्य में मुझ पर रिसर्च करने वालों को किसी असुविधा का  सामना  करना पड़  जाए,  बिना किसी प्रयास के प्रसिद्द हो जाऊं, मैं अपनी सही जन्मतिथि के विषय में  कुछ खुलासा करना चाहती हूँ, ताकि अगले वर्ष बधाई देने वालों को कन्फ्युज़ियाने  का मौका ना मिल पाए |
 
साथियों मेरे जन्म के विषय में इतना पक्का है कि मेरा जन्म धरती पर उस दिन हुआ था जब रावण मरने के पश्चात पैदा होने के लिए अगला शरीर ढूंढ रहा था, अर्थात दशहरे के अगले दिन | सत्ताईस अक्टूबर की रात एक बजकर पचपन मिनट पर [ ज्योतिष भाई इसके आधार पर भविष्यवाणी करने की कोशिश ना करें, क्यूंकि सरकारी अस्पताल में एच. एम्. टी. की घड़ी में समय देखने वाली डॉक्टर या नर्स की जानकारी की विश्वसनीयता के विषय में मुझे सदा संदेह रहा है, क्यूंकि  मेरे  विषय की गई कोई भी  कभी भी  भविष्यवाणी सही सिद्ध नहीं  हो पाई  ] हुआ था |
 
मेरे जन्म के विषय की कथा भी बहुत रोचक है | मैं फ़िल्मी माहौल में आँखें खोलते खोलते रह गई | आजकल जब किसी अभिनेता या अभिनेत्री को यह कहते हुए सुनती हूँ कि उसने फ़िल्मी वातावरण में आँखें खोलीं हैं तो बहुत कोफ़्त होती है | पाँच सितारा अस्पतालों में जन्म लेने वाली ये पीढ़ी क्या जाने कि वास्तव में फ़िल्मी माहौल में आँख खोलना क्या होता है | मेरी माँ की पूरी कोशिश थी कि मैं फ़िल्मी माहौल में ही पहली बार आँखें खोलूं |
 
  स्पष्ट  कर दूं  कि  माँ  की  दूर - दूर तक फ़िल्मी दुनिया में  कोई रिश्तेदारी नहीं थी | माँ हिन्दी फिल्मों की घनघोर शौक़ीन थी | पिताजी उस समय '' बागेश्वर'' जैसी छोटी सी जगह पर पोस्टेड थे |उस समय वह वाकई बहुत छोटा हुआ करता था, जहाँ ढंग का एक सिनेमाहाल तक नहीं था | इसीलिये माँ को कोई भी नई फिल्म देखने १० - १२ घंटे का पहाड़ का सफ़र तय करके अपने मायके ''हल्द्वानी'' आना पड़ता था | नाना जी कुमायूं मोटर ओनर्स यूनियन में काम करते थे | '' नवीन बाबू की लडकी हूँ '' कह देने मात्र से ही कंडक्टर आगे की सीट दिलवा देता था | पास मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता था | नाना जी के रिटायर होने के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि उनके तमाम रिश्तेदार और यहाँ तक कि दूर के परिचित भी नवीन बाबू की बेटियां या बेटे बन कर मुफ्त यात्रा किया करते थे | 
 
मेरे पैदा होने से करीब हफ्ता भर  पहले माँ को खबर लगी कि हल्द्वानी में राजेश खन्ना की कोरा कागज़ पिक्चर लगने वाली है | मुझे पेट में  और भाई को गोद में लेकर माँ हल्द्वानी आ गई | अपने मायके के कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर [ जिनका टिकट वही देती थी, जो  उसे  नई  नई  पिक्चरों  के लगने  की  सूचनाएं  उन्हीं  कंडक्टरों  के हाथ  भिजवाया  करते  थे,  ] वह राजेश खन्ना के दीदार करने आ गई | उसी रात प्रसव पीड़ा के चलते अस्पताल में भर्ती हुई और मेरा जन्म हुआ | मेरे पैदा होने के दो दिन  बाद हाल में '' सगीना'' लग गई थी, जिसे देखने जाने से माँ को बहुत मुश्किल से रोका गया |
 
पैदा हुई तो बड़ा भी होना ही था | बड़ा होना था तो कभी न कभी विवाह भी होना ही था | विवाह होने के लिए हमारे समाज में सबसे अनिवार्य  शर्त  आज  भी जन्मपत्रियो   का मिलान  ही है | जब मेरी जन्मपत्री  मेरी संभावित  ससुराल  भेजी  गई, तब  पता  चला  कि मैं अभी  तक जिसे अपना  जन्मदिन यानी  कि 27 अक्टूबर मान रही  थी, वह 27 ना होकर  28 अक्टूबर है, क्यूंकि अंग्रेज़ी  कलदार  में रात्रि बारह  बजे  के बाद अगला दिन लग जाता  है | धत्त  तेरे  की !  बकौल पति के अनगिनत  दावतें  इस गलत  तिथि  पर कुर्बान  हो गई थी |
 
खैर ! बहुत बहस हुई [ विवाहोपरांत, अन्यथा  विवाह  नहीं होता  ] | इन बहसों का निष्कर्ष यही निकला कि दोनों ही जन्मतिथियाँ  मेरी मानी जाएं, और जिस भी दिन रविवार पड़ेगा, उसी दिन जन्मदिन मनाया जाएगा | यह भी अदभुद  संयोग ही था कि जिस दिन मेरी शादी हुई उसके अगले दिन यानी २७ अक्टूबर को पड़ने वाला मेरा जन्मदिन मेरा बर्थडे  भी था, यानि कि हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों कैलेंडरों  में पहली बार एकता | शायद  यह संयोग इसीलिये  हुआ कि मुझे  निहार  रंजन  पांडे  जैसा सुलझा हुआ  [ पोस्ट की सूचना उनके  ई  मेल  पर जाएगी ]  जीवन  साथी  मिला |
 
दुनिया ने कंप्यूटर  युग में चाहे सालों पहले कदम रख दिया हो, लेकिन मैंने सन् २००८ में रखा | सर्वप्रथम ऑरकुट पर नज़र गई | वाह ! कई ऐसे लोगों से भी दोस्ती हुई जिनसे  रोज़ सड़क में मिलते थे, पर कभी नमस्कार तक नहीं होती थी | ऑरकुट से बाहर अभी भी नहीं होती |   प्रोफाइल  पति ने बनाई, सो २८ अक्टूबर दर्ज कर दी | समय बीतने के साथ मैंने कंप्यूटर को स्वयं फेस  करना सीख लिया, और फेसबुक  पर २७ अक्टूबर दर्ज करने से वे मुझे  रोक न  सके |
 
सन् २००८ से शुरू हुआ यह  हिन्दी और अंग्रेज़ी के कलेंडरों  के मध्य  छिड़ा हुआ विवाद विवाद आज तक जारी है , जिसे सुलझाने में कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें |