शनिवार, 15 जुलाई 2017

टॉप टेन बरसात के गाने और सन्दर्भ सहित व्याख्या ---


पिछले कई सालों से, जी हाँ भाइयों और बहनों ! नंबर एक पायदान पर विराजमान जो गाना है, वो है ----''तेरी दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए ---''

गाना समर्पित है पति और पत्नी को | प्रस्तुत पंक्तिओं में पत्नी अपने पति को सम्बोधित करती हुई कहती है कि हे प्रियतम ! तुम्हारी नौकरी नौकरी चाहे लाखों की हो लेकिन मेरे लिए वह दो टके की भी नहीं है, अगर उस नौकरी से मैं सावन के महीने के दौरान लगने वाली सेल में बम्पर शॉपिंग न कर सकूं | जिस तरफ भी नज़र दौड़ाती हूँ सेल वाला बोर्ड टंगा हुआ पाती हूँ | हर शोरूम वाला मुझे हसरत भरी निगाह से देखता हुआ मालूम होता है | मेरी सारी सहेलियां इन दिनों बड़े - बड़े थैले लेकर बाज़ार से आती हैं, मेरे घर के आगे स्कूटी खड़ी करके ''पीं पीं करती हैं, मैं विवश होकर बाहर आती हूँ | मजबूरन उनकी शॉपिंग देखनी पड़ती है, दिल ही दिल में कुढ़न होती है लेकिन मुंह से '' बहुत सुन्दर ! वाओ ! कितना सस्ता और कितना बढ़िया ! कहती हूँ | दर्द भरे दिल से पत्नी, ''हाय हाय ये मजबूरी'' कहकर गाना पूर्ण करती है | 

पुराने से लेकर नए, सभी श्रोताओं ने जिस गाने को नंबर दो पर रखा है वह है भाइयों और बहनों ! -----''एक लड़की भीगी भागी सी, सोई रातों में जागी सी ---''

प्रस्तुत पंक्तियाँ एक नौजवान को ऑन द स्पॉट समर्पित हैं | इन पंक्तियों में नौजवान बता रहा है कि किस प्रकार से उसे घनघोर बारिश में एक लड़की मिली और उस लड़की ने मुस्कुराते हुए उसे देखा तो वह अति प्रसन्न हो गया और उसके दिल में सितार, गिटार जैसे यंत्र बजने लगे और पता नहीं कौन - कौन से फूल खिलने लगे | लड़की वैसे अमूमन किसी अजनबी को नहीं देखती है | लेकिन इस मौसम में वह मजबूर है क्योंकि उसे सड़क पार करवाने वाला कोई नहीं मिल रहा | सड़क में घुटनों तक पानी भरा हुआ है | लड़की लड़के से लिफ्ट लेती है और सड़क पार करने के बाद उतारते समय लड़के के हाथ में बीस का नोट यह कहकर रख देती है '' ये तो आपको लेने ही पड़ेंगे भैया '' | तबसे वह लड़का सदमे में है और सबसे यही पूछता फिर रहा है '' तुम ही कहो ये कोई बात है ?''

नंबर तीन पर जिस गाने को आप लोगों ने जगह बख्शी है, उसके बोल हैं , ''रिमझिम गिरे सावन, सुलग - सुलग जाए मन ---''

निम्न पंक्तियाँ बिजली विभाग के कर्मचारियों को समर्पित है | जबसे सरकार ने बिजली विभाग वालों के फोन नंबर सार्वजनिक किये हैं, और जिओ के सिम की बदौलत फोन करना मुफ्त हुआ है, जनता बिजली जाने के पांच मिनट के अंदर ही पचास - पचास कॉल करने लगी हैं | जनता खुद तो घर  अंदर बैठी - बैठी चाय - पकौड़ों का आनंद लेती है और उन्हें रात - बे रात कभी तार बदलने कभी ट्रांफॉर्मर बदलने तो कहीं पोल ठीक करने जाना पड़ता है | उनके कर्मचारी तुरंत मौके पर पहुंचकर तार बदलने पर मजबूर हैं | इस नाज़ुक मौके पर भी जनता उन्हें काम नहीं करने देती | चारों ओर से घेर कर खड़े हो जाते हैं और '' कितनी देर लगेगी ? ''कब तक ठीक हो जाएगा ''? ''रात तक तो ठीक हो ही जाएगी क्यों ''? का आलाप छेड़ते रहते हैं | बिजली वालों का मन इतना सुलग जाता है कि उनका मन करता है कि एक नंगा तार यहाँ खड़ी जनता को भी छुआ दे | 

अगली पायदान यानि कि चौथे नंबर पर जो गीत है, जी हाँ ! बिलकुल सही पहचाना, उस गाने के बोल हैं ------''बरसात में हमसे मिले तुम, सजन तुमसे मिले हम बरसात में ''

गाने की पंक्तियाँ समर्पित हैं ''बीन बजाते हुए सपेरे और उसके झोले में रहने वाली नागिन को | प्रस्तुत पंक्तियाँ बरसात के दौरान घर के अंदर घुस जाने वाले साँपों और उन्हें पकड़ने के लिए बुलाए गए संपेरों के आपसी संवाद पर आधारित हैं | संपेरा पहले दिन चुपके से रात के समय अपने झोले से अपनी पालतू नागिन को निकालता है फिर उसे गली में छोड़ देता है | दिन के समय सांप घर के लोगों को दिखता है | लोग उसी संपेरे को बुलाते हैं | वह आस - पास के इलाकों में साँप पकड़ने के लिए काफी प्रसिद्द है | वह अपनी प्यारी नागिन को ढूंढता है, पकड़ता है और फीस के रूप में २००० रुपया लेता है | वह यह बताना नहीं भूलता कि ''बहुत ही खतरनाक सांप है | इसका काटा पानी नहीं मांगता'' |  लोग सहम जाते हैं | अगले दिन दूसरे मुहल्ले में उसी सांप को छोड़ता है और वहां से भी उतना ही पैसा लेता है | बरसात के मौसम में वह और उसकी पालतू नागिन यह ड्युएट गाते पाए जाते हैं | | 

और भाइयों और बहिनों ! दिल थाम कर सुनिए | पांचवी पायदान पर कोई फ़िल्मी गाना नहीं है, बल्कि वह ग़ज़ल है, जिसे गाया है पंकज नाम के उदास आदमी ने --''आइये बारिशों का मौसम है इन दिनों चाहतों का मौसम है  ---''

उपरोक्त ग़ज़ल के बोल समर्पित हैं उस पत्नी को जो अपने पति से कह रही है, ''आइये और कपड़ों को छत में डाल कर आइये'' | पत्नी इन दिनों पति को आम दिनों की अपेक्षा अतिरिक्त मात्रा में चाह रही है और उसे धूप निकलते ही छत पर कपडे ले जाकर सुखाने के लिए कह रही है | बादलों के आते ही कपड़े उठाना फिर दोबारा धूप के आते ही छत की ओर दौड़ना, पति इस कवायद में थक चुका है | जैसे ही वह छत कपडे डाल कर आता है, बादल न जाने कहाँ से आ जाते हैं | जैसे ही वह कपड़ों को नीचे कमरे केअंदर बँधी हुई रस्सी में फैलाता है, सूरज उसे खिजाने के लिए पूरी ताकत से चमकने लगता है | पत्नी के लिए बरसात का दिन वह कसौटी हैं जिस पर वह अपने पति के प्यार को कस सकती है | 

अगली पायदान यानि की छठे स्थान पर जिस गाने ने अपनी जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है वह है , ''सावन का महीना पवन करे शोर -------''

प्रस्तुत पंक्तियाँ एक चाय - पकौड़ा प्रेमी,  जिसका नाम पवन है, के पकौड़ा प्रेम को समर्पित है | सावन का महीना आते ही पवन हर घंटे में चाय - चाय चिल्लाता है और पत्नी से कभी आलू, कभी गोभी, कभी प्याज की पकौड़ियाँ बनाने को कहता है | पत्नी उसके चाय - पकौड़ों की डिमांड से त्रस्त हो गई है | उसका मन वन में जाने को करता है | वह नाचना चाहती है बारिश में मोर की तरह, लेकिन पवन, पकौड़ों के लिए इतना शोर करता है कि वह तंग आ गयी है | पत्नी अपने आप से कहती है कि कितनी भाग्यशाली हैं वे औरतें जिनके बलम बिदेश रहते हैं और एक वह है जिसका पकौड़ियों के आगे कोई जोर नहीं चल पाता है | 

दिल थाम कर सुनिए सातवीं पायदान पर जो गाना है उसे सुनकर किसी के भी होश उड़ सकते हैं | गाना है --''बादल यूँ गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है ----''

ये डरावनी पंक्तियाँ समर्पित हैं पप्पू नामक बालक को | रात को चमकने वाली बिजली और माँ की चीख '' बेटा सारे घर के स्विच बंद कर दो फटाफट'' | ''सारे प्लग निकाल दो'' | ''बाहर जाकर मेन स्विच ऑफ करना मत भूलना '' ''बरामदे से चटाई उठा लेना ''| ''साइकिल को किनारे कर देना '' | पप्पू को गहरी नींद से उठने पर गुस्सा भी आता है और बिजली का कड़कना सुनकर डर भी लगता है और अँधेरे से सबसे ज़्यादा डर लगता है | पप्पू के पापा कच्ची पीकर जो सोते हैं तो फिर सुबह पत्नी की डाँट की आवाज़ से ही उठते हैं | पप्पू की माँ दुनिया में सबसे ज़्यादा करंट से डरती है और यह काम बेचारे पप्पू को करना पड़ता है | सारी बरसात वह आधा सोया और आधा जागा हुआ रहता है | 

गाना नंबर आठ जो है, भाइयों और बहिनों, वह जुड़ा हुआ है किसी की मीठी - मीठी यादों से | जी हाँ ! सही पहचाना | गाने के बोल हैं --''ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात'' 

ये रूमानी क्तियाँ समर्पित हैं कुमारी वर्षा को | रात के आठ बजे थे और कुमारी वर्षा ने ऐसे ही एक भीषण बरसात वाले दिन एक दूकान के नीचे शरण ले रखी थी | वर्षा बार - बार दुकानदार को परेशान नज़रों से देखती, फिर अपनी घडी देखती | दुकानदार को वर्षा पर तरस आ गया और उसने वर्षा को अपनी सबसे प्रिय वस्तु, अपनी शादी की छाता दे दी | वर्षा कुमारी ने आँखों में कृतज्ञता भरते हुए बार - बार धन्यवाद दिया और यह वादा किया कि कल सुबह सबसे पहले वह उनकी छाता वापिस करने आएगी | उस दिन के बाद कितने ही सावन - भादों आए और चले गए लेकिन न छाता दिखा न वर्षा कुमारी | शादी की छाता ऐसे ही किसी लड़की को पकड़ा देने पर हर साल पहली फुहार पड़ते ही पत्नी के तानों की फुहार भी उन्हें झेलनी पड़ती है | 

और नवीं पायदान पर जो गाना है वह है, बहनों और भाइयों --''बरसो रे मेघा - मेघा बरसो रे मेघा | कोसा है, कोसा है,  बारिश का बोसा है ----''

ये खूबसूरत पंक्तियाँ समर्पित हैं सड़क बनाने वाले ठेकेदार के श्री चरणों में | इन पंक्तियों में वह बादलों से से बरसने का अनुरोध कर रहा है | वह मनुहार कर रहा है  कि भले ही मैंने तुझे देर से आने के कारण कोसा हो लेकिन तू दिल पर मत ले | तू बस सड़कों पर बोसे बरसाती रहना | तेरे बोसो से ही सड़कों पर बड़े - बड़े गड्ढे पड़ते हैं, जिनसे मेरी ज़िंदगी आसानी से चलती रहती है | ठेकेदार की इच्छा है कि मेघ साल भर बरसते रहें और वह ऐसे ही सड़कें बनाता रहे | जनता उसे कोसती रहती है और शिकायत करती है कि ''क्या ठेकेदार साहब ! कैसी सड़क बनाई कि एक बरसात भी नहीं झेल पाई ''| ठेकेदार साहब लोगों के कोसने को खाने के बाद कुछ मीठे की तलब की तरह लेते हैं | 

और अब टॉप टेन समाप्ति की ओर है | जी हाँ ! अंतिम पायदान पर जो गाना है भाइयों और बहिनों ! उसके लिए दिल को थाम लीजिए | बड़ा ही मस्त गाना है | बिलकुल सही पहचाना -- ''टिप टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई ----''

निम्न पंक्तियाँ नई बस्ती में रहने वाले बाबू राम के गले से कल रात निकलीं सो गाना उसे ही समर्पित है | बरसात में उसके कमरे में पानी भर गया है और करंट दौड़ने का खतरा हो गया है | कल ही उसके पड़ोस में रहने वाले जीवन की पानी में बहते करंट से मौत हो गयी है | जीवन के छोटे - छोटे चार बच्चे अनाथ और बीबी विधवा हो गयी है | उसकी बस्ती के लिए बरसात, न सावन है, न रिमझिम के गीत हैं और न ही छई छप्पा छई है | पानी उसके लिए और उस जैसे हज़ारों लोगों के लिए हर साल आग का रूप लेकर आती है | 

तो बहनों और भाइयों ! टॉप टेन गानों के बारे में अपनी राय देना मत भूलिएगा | 

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे वो बरसात के दिन |

बरसात का मज़ा बच्चों से ज़्यादा कौन उठा सकता है भला ? साल भर स्कूल न आने वाले बच्चे बरसात में स्कूल अवश्य आते हैं | उनके स्कूल आने से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे पढ़ने के लिए आए हैं | वे आए हैं बारिश में भीगने के लिए | वे आए हैं एक दुसरे को भिगाने के लिए, बारिश में धक्का देने, एक दूसरे पर गिर पड़ने के लिए | वे आए हैं नंगे पैर पानी में छप - छप करने | दौड़ने, भागने और फिसलने के लिए | 

''भीगो मत, बीमार पड़ जाओगे '' ऐसा कहना फ़िज़ूल होता है, क्योंकि वे चाहते हैं भीग कर बीमार पड़ना | 
''दौड़ो मत, गिर जाओगे '' ऐसा कहना भी व्यर्थ होता है,  क्योंकि वे चाहते हैं गिरें और कीचड़ में लथपथ हो जाएं | 

बच्चों के लिए ये ऐसे बरसाती जुमले होते हैं, जिन्हें वे एक कान से भी नहीं सुनते हैं | 

भीगना यहाँ भी है भीगना वहां भी है | टपकती हुई छतों के नीचे बैठकर भीगने और बाहर बारिश में भीगने,  इन दोनों में से बच्चे बाहर भीगने का चुनाव करते हैं |  

ऐसे मौसम में बच्चों की कोशिश होती है कि अध्यापक स्कूल न आने पाएं | आएं भी तो कक्षा के अंदर ना आएं | कक्षा के अंदर आएं भी तो उन्हें ना बुलाएं | उन्हें बुलाएं भी तो पढ़ने के लिए न कहें | पढ़ने के लिए कहें भी तो कोर्स का न कहें | अंताक्षरी, नाच, गाना, चुटकुला, कविता, कहानी कुछ भी चलेगा | 

इन दसेक सालों में बच्चे कमोबेश अभी भी वैसे ही हैं | बरसात भी वैसी ही है | कुछ बदला है तो वे दो नदियां जिन पर पुल बन चुके हैं | 

मेरे पास बरसात के मौसम से जुडी जो यादें हैं, उनमे सबसे ज़्यादा यादें इन दो नदियों और दो ही भयंकर नालों की है | नौकरी के शुरुआत में ही लोगों ने डरा रखा था '' बाप रे ! उधर तो दो - दो नाले आते हैं | बरसात के मौसम में तो बड़ी मुश्किल होगी | दो नदियां भी रास्ते में पड़ती हैं | चार महीने बड़ी मुसीबत रहेगी | उधर ही रुकना पडेगा ''| 

लोग दो नदियों और दो नालों को पार करके लोग अपने गंतव्य तक पहुँचते थे | नदियों के नाम भी सामान्य न होकर के ''भाखड़ा, '' दाबका '' जैसे थे | नाम सुनते ही लगता था कि ये तो बाढ़ आने के लिए ही बनी होंगी | इसके उलट ''गंगा', 'यमुना' नाम का नाम लेते ही ऐसा लगता है जैसे कि ये नदियां प्यास बुझाने के लिए ही बनी हैं , बाढ़ से इनका दूर - दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होता होगा |  

नाले तो अभी भी वैसे के वैसे हैं | तब नालों के नाम भी खासे खतरनाक मालूम होते थे 'कर्कट नाला 'और ''मेथी शाह नाला ''| 

पुराने लोग बताते थे कि इन दो नदियों को बरसात के दिनों में खतरनाक बनाने के लिए उस इलाके का एक बहुत बड़ा गिरोह है | यह गिरोह बारिश होते ही नदी से थोड़ी दूर पर जाकर मिट्टी को एक जगह पर जमा कर देते थे जिससे नदी का बहाव सीमित हो जाता था और वह कॉज़वे तक आते - आते भयानक लगने लगती थी | आस - पास के कुछ लोग जो रात के समय इस पुनीत कार्य को अंजाम देते थे, सुबह अपने - अपने ट्रैक्टर - ट्रौलिओं के साथ बाढ़ वाले स्थल पर मौजूद रहते थे | पार जाने वालों से अच्छा - ख़ासा शुल्क लेकर उनकी गाड़ियों को ट्रॉलियों के ऊपर रखकर पार कराते थे | बरसात के मौसम में रोज़गार कैसे पैदा किया जाता है, इस कला में वे माहिर थे | ये उनका स्टार्ट अप प्रोग्राम था, जो बरसात में स्टार्ट होता था और फंसे हुए यात्रिओं को अप कराता था | वर्तमान में दोनों नदियों पर पुल बन जाने के कारण इस स्टार्ट अप पर ग्रहण लग चुका है | 

इनके साथ - साथ कुछ साहसी लड़के भी याद आते हैं जो उफनती हुई नदी के दोनों तरफ खड़े रहते थे | नदी का पानी कभी कम हो जाता था तो कभी बहुत तेज | इतना तेज कि बस तक बह जाए | वे तमाशा देखते थे | ताली बजाते थे  | जब कोई दुःसाहसी इस नदी को पार करने की कोशिश करता था, वे उसका उत्साह बढ़ाते थे | सीटी बजाते थे और जब कोई नदी को पार करने में सफल हो जाता था, तो हिप - हिप हुर्रे कहते थे | जब कोई नदी पार नहीं कर पाता और रास्ते में डूबने लग जाता था,  तो वे दौड़ पड़ते थे उसे बचाने के लिए | फिर ये अपनी जान की भी परवाह नहीं करते थे | उफनते हुए रौद्र रूप धारण की हुई नदी  के बीचों - बीच अंगद की तरह पाँव जमा कर खड़े हो जाते थे और उस डूबते हुए को '' हईशा .... हईशा ' कहकर पार करा लेते थे  | 

नदी के पानी को देखकर जिनका कलेजा मुंह को आ जाता था, उनका हौसला बढ़ाते थे | उनकी गाड़ियों को स्वयं चला कर मय गाड़ी नदी पार करवा देते थे  | वे दिखाना चाहते थे कि नदी पार करना उनके बाएं हाथ का खेल है | वे बिना तमगे के हीरो थे | बिना अभिनय किये नायक थे | बरसात में इनको देखना आठवें आश्चर्य को देखना होता था | आम दिनों में जो गुंडागर्दी, हल्ला - गुल्ला मार -पिटाई हंगामा करते हुए पाए जाते थे , बरसात के दिनों में उनका रूप ही बदल जाता था |

कोई पेड़ बहकर आ जाए या मोटे लट्ठे बीच नदी में आकर अटक जाएं तो ये बाँकुरे भीड़ को चीर कर, बड़े - बड़े डग भरकर, उस लट्ठे को किनारे लगा आते थे या पेड़ को आरी से मिनटों में चीर डालते थे | जनता तब साँसे रोके हुए सारा दृश्य देखती रहती थी | 

भीड़ में से कुछ लोग चाहते थे कि वे अपनी जान जोखिम में न डालें | ज़्यादातर चाहते थे कि वे जाएं और उनके लिए रास्ता खोलें | वे किनारे से ''शाबास, शाबास'' चिल्लाते थे | 

जाने अब कहाँ होंगे कैसे होंगे क्या करते होंगे ये बिना नाम के बरसाती नायक ? पुल बनने के बाद ये शायद फिर से अपने पुराने गुंडागर्दी और आवारागर्दी के कार्यक्रम में लौट गए होंगे | 

उन दिनों नदी और नाले के इस पार खड़े - खड़े कई पुराने दोस्त मिल जाया करते थे | बिछुड़े हुए दोस्तों को मिलाने में इन दोनों का अभूतपूर्व योगदान हुआ करता था | नई नियुक्ति वालों से भेंट होती थी | वहीं पर खड़े- खड़े, पानी के कम होने का इंतज़ार करते हुए आपस में कई तरह की चर्चाएं हो जाया करती थीं , मसलन ''कौन से स्कूल में हो ''?'' कब से हो'' ? ''आजकल ट्रांसफर का क्या रेट चल रहा है'' ? ''कौन कितना देकर किस स्कूल में आया है'' ? ''कौन रिटायर होने वाला है'' ? ''किसका प्रमोशन होने वाला है'' ? इत्यादि इत्यादि | अपनी - अपनी गोटियाँ फिट करने के जुगाड़ सोचे जाते थे | 

उन दिनों मुलाक़ात के लिए फिर से अगली बरसात का इंतज़ार करना होता था |  

चाय की केतली पकडे हुए दो - तीन स्थानीय बच्चे नाले के आस - पास घूमते रहते थे | पानी तो पता नहीं कब उतरेगा , सोचकर चाय पीते - पिलाते हुए, लाया हुआ नाश्ता खाते हुए , ट्रांसफर का जुगाड़ ढूँढा जाता था | 

अपने - अपने स्कूलों और दफ्तरों के साहबों को फोन खटकाए जाते थे | उन्हें पानी की स्थिति से अवगत कराया जाता था | वे तुरंत बिना प्रतिवाद किये अवगत हो भी जाते थे | किसी तरह से दो - तीन घंटे देरी से ही सही, स्कूल पहुँच जाते थे तो साहब लोग बिना कुछ कहे साइन करवाने रजिस्टर भेज देते थे | ''हम क्या करें बाढ़ आई थी तो',' ''ये आपकी समस्या है '',''नौकरी नहीं कर सकते तो छोड़ दो '' जैसे जुमले किसी साहब ने नहीं कहे | 

बालिका स्कूलों की शिक्षिकाएं सबसे ज़्यादा कांपती थीं | उफनते नाले से भी ज़्यादा खतरनाक वे 'प्रधानाचार्या' नामक प्राणी को मानती थीं | कुछेक तो डर के मारे विकराल रूप धरे हुए नाले को पार करने के बारे में गंभीरता से विचार करने लगतीं थीं | नाले के पास खड़े कई लोगों की तरफ आशा से भरी नज़रें दौडातीं लेकिन कोई भी उस नाले में गाड़ी डालने की हिम्मत नहीं करता | वे दुखी हो जातीं | फिर एक सीनियर अध्यापिका, ''क्या कर लेगी प्रिंसिपल ज़्यादा से ज़्यादा ? कैज़ुअल लगा देगी,  फांसी पर थोड़े ही लटका देगी '' कहकर सांत्वना बंधाती थी | अपने बैग से एक सफ़ेद कागज़ निकालती और उपस्थित स्टाफ के हस्ताक्षर उस कागज़ में ले कर रख लेती कि अगले दिन प्रधानाचार्या को सौंप देंगे और बाढ़ की विकराल स्थिति से अवगत करा देगी | आगे जैसी उसकी मर्ज़ी होगी, कैज़ुअल लगाए या साइन करवाए | 

अक्सर चौदह में से छह कैज़ुअल ये नदी - नाले अपने साथ बहा ले जाते थे | 

अब समय बहुत बदल गया है 
नदियों के ऊपर पुल हैं | 
स्कूलों, कार्यालयों में बायोमेट्रिक है | 
साहबों में साहबगिरी है | 
नौजवान अभी भी हैं लेकिन जान बचाने के लिए नहीं बल्कि बहते हुए की सेल्फी लेने के लिए हैं | 
रेन है लेकिन रेनी डे नहीं है | 
नाले हैं लेकिन पार कराने वाले नहीं हैं | 

कुल मिलाकर बाढ़ भी है, बरसात भी है, बस साथ देने वाले नहीं है | 


सोमवार, 3 जुलाई 2017

व्यंग्य की जुगलबंदी#34 टेलीफोन

बहुत परेशानी है | समाधान नहीं मिलता | हर कम्पनी बात करवाने के लिए बैचैन है | कोई कह रहा है पचास पैसे में देश भर के अंदर कहीं भी बातें करिए | कोई पच्चीस पैसे का लुभावना ऑफर दे रहा है कोई दस पैसे का लालच दिखा रहा है | भले ही पचास पैसे, पच्चीस पैसे या दस पैसे किसी के पास नहीं होंगे लेकिन बन्दा फिर भी खुश है कि वाह ! दस पैसे में बात करने को मिलेगी | और तो और मुफ्त बातें करने का बेशकीमती खज़ाना तक हमारे सामने कंपनियों ने खोल कर रख दिया गया है | इतना सस्ता ज़माना है कि मुद्रा बाज़ार से गायब है लेकिन विज्ञापन में धड़ल्ले से चल रही है | 

खुश होने वाले खुश हैं | बहुत खुश हैं | उनके पास अनलिमिटेड बातें हैं | उनके पास अनलिमिटेड दोस्त हैं | वे अपने अनलिमिटेड दोस्तों से अनलिमिटेड बातें करेंगे इसीलिए कम्पनियाँ इतने सस्ते लुभावने ऑफर लुटा रही हैं | 

मेरी समस्या यह है कि बात करने की इतनी खुलेआम लूट के बावजूद मैं हूँ कि खुश नहीं हो पा रही हूँ | कैसे खुश होऊं ? खुश होने के क्या उपाय अपनाऊँ ? जब अनलिमिटेड बातें करने के दिन थे, तब मोबाइल तो क्या लैंडलाइन का भी नाम नहीं सुना था | तब मित्रों से अनलिमिटेड बात करने के लिए स्कूल -कॉलेज जाना पड़ता था | पढ़ाई जैसी फ़ालतू चीज़ भी साथ में हो जाया करती थी, जिसमे हमारी कोई गलती नहीं होती थी | ऐसे ही साल भर बात करते - करते पास भी हो जाया करते थे | अब तो यह टीचर्स की मेहरबानी लगती है कि हो न हो वे भी इसी ऑफर के तहत हमें पास करते रहे होंगे कि स्कूल आने के साथ - साथ पास होना फ्री मिलेगा | हमारे समय में कक्षाएं भी भरी रहती थीं | आजकल कक्षाएं खाली रहती हैं क्योंकि बात करने के लिए स्कूल - कॉलेज जाने के स्थान पर सबके हाथ में मोबाइल आ गया है | अब गप्पें मारने के लिए स्कूल जाने की ज़रुरत नहीं है | घर बैठे - बैठे बातें हैं |अनलिमिटेड बातें हैं | 

कहते हैं कि मोबाइल और समय का कभी मेल नहीं होता | अब समय है, मोबाइल भी है,अनलिमिटेड वाउचर भी है, लेकिन कोई बातें करने वाला नहीं है | ये कम्पनियाँ बात करने वाला भी फ्री क्यों नहीं बांटती ?

हमारा क्या था ?  एक आम लड़की का जीवन,  जिसे आजकल के बच्चे जीवन मानने को ही तैयार नहीं होते | हमारी पढ़ाई पूरी हुई | माँ - बाप ने शादी तय करी | लैंडलाइन भी अब तक घर में आ गया था, लेकिन शादी से पहले बातें करना अच्छा नहीं माना जाता था | इस अवधि में आस - पास वालों ने सब जगह हमारे लैंडलाइन का नंबर बाँट दिया था | आधा समय लोगों को बुलाने में और आवाज़ लगाने में ही निकल जाता था | कुछ समय बाद ''फलाने को बुला दो '' सुनते ही फोन काटना और रिसीवर रखकर आवाज़ लगाना भूल जाने जैसी हरकतें सीख लीं था | परिणाम यह हुआ कि साल भर के अंदर ज़्यादातर लोगों के हाथ में मोबाइल दिखने लगा | आश्चर्य की बात है कि बहुत कम लोगों ने घर में लैंडलाइन लगवाया | 

तय समय पर शादी हुई | शादी के बाद सोचा कि हाथ में मोबाइल है, समय भी है, अनलिमिटेड प्लान भी है तो क्यों न पति से उनके ऑफिस में बात कर ली जाए | शादी से पहले बातें करने का मौक़ा नहीं मिल पाया था सो उसकी कसर अब पूरी कर ली जाए,  ऐसे ही सोच कर फोन लगाया तो जवाब आया, ''क्या बात है ? जल्दी कहो | बहुत काम पड़ा हुआ है ''| नहीं कहा मैंने कि अनलिमिटेड टॉक टाइम है ज़रा बातें कर लो | उन्होंने झल्ला कर फोन काट दिया | घर आकर अनलिमिटेड लताड़ अलग लगाई ,''खबरदार ! जो कभी फ़ालतू में फोन किया | ऑफिस वाले मज़ाक उड़ाते हैं | इतना ही बोलने का शौक है तो दीवारों से बातें करो | शीशे के आगे बोल लिया करो''|

इस ग्रह में जीवन की सम्भावना की तलाश फ़िज़ूल देखकर मैंने दूसरे ग्रह में जीवन तलाशने की सोची,  सोचा बच्चे बड़े होंगे तब जी भर के बातें करने का अधूरा ख़्वाब पूरा करूंगी | बच्चों से अनलिमिटेड बातें करने में कम से कम डाँट खाने का खतरा तो नहीं होगा |  

दिल में मौजूद इस ख्वाहिश को पूरा करने का मौका आखिरकार आ ही गया | बेटी बाहर पढ़ने के लिए चली गयी | उसके जाने के एक दिन बाद ही उसे फोन मिलाया तो वह झल्ला कर बोलती है, ''क्या अम्मा ! अभी - अभी क्लास छूटी है | अब कोचिंग जा रही हूँ | तुम पुराने ज़माने की माँओ की तरह हर समय शक करती हो''| मैं ज़ाहिर सी बात है कि अपना सा मुंह लेकर रह गयी | 

अब कौन रह गया जिससे अनलिमिटेड बात की जा सकती है? मैंने मन ही मन अपनी पुरानी दोस्तों को याद किया | पुरानी दोस्तें अब गए जमाने की बातें हो चुकी हैं | पते खो गए | नंबर भी खो गए हैं | बहुत मुश्किल से एक नंबर मिला | मैंने उत्साह से भरकर फोन लगाया तो उसने पहले तो पहचाना ही नहीं | काफी याद दिलाने के बाद उसने जो बात करी तो मैंने स्वयं ही फोन काट दिया | उसने कहा, '' अच्छा ! तुम्हारी आवाज़ तो बहुत बदल गयी है | आज क्या काम है जो मेरी याद आ गयी | कॉलेज के ज़माने में तुम अपने नोट्स किसी को नहीं दिखाती थी | याद आया कुछ ? और तुमने मेरी किसी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया जो मैंने तुम्हें कॉलेज छूटने के बाद लिखीं थीं | आज ज़रूर किसी काम से फोन कर रही होगी, है ना ''?

मैं उससे अनलिमिटेड बातें करने का सपना देख रही थी और वह मुझे अनलिमिटेड आइना दिखाने की ठाने हुई थी | 

काफी चिंतन के बाद यह निष्कर्ष निकल कर आया कि एक आम औरत की ज़िंदगी ऐसी ही होती है, अनलिमिटेड के दौर में लिमिटेड सम्बन्ध और लिमिटेड बातें | इससे तो अच्छी आधुनिक हिंदी कहानी की नायिका की ज़िंदगी होती है जिसमें अवैध सम्बन्ध होते हैं, उनसे चैट होती है, बातें होती हैं | इधर कुछ समय से मैंने जब भी किसी साहित्यिक पत्रिका को उठाया, उनमे छपी कहानियों में इस बात को महसूस किया कि सिर्फ यही नायिकाएं अनलिमिटेड बातें कर सकतीं है क्योकि इनके अनलिमिटेड सम्बन्ध होते हैं | 


शनिवार, 1 जुलाई 2017

फैशन बना रखा है | #हिन्दी_ब्लॉगिंग

जनता महंगाई से त्रस्त हो गयी है वैसे जनता को आदत होती है किसी न किसी प्रकार से त्रस्त रहने की | जीने के लिए त्रस्त रहना बहुत ज़रूरी होता है वरना पता नहीं चल पाता कि ज़िंदगी कट भी रही है या नहीं | 
बहुत दिनों बाद मुद्दा मिला है वरना बिजली पानी जैसी निम्न स्तरीय समस्याओं से आखिर कब तक त्रस्त रहा जा सकता है | 

जनता राजा के पास फ़रियाद लेकर गयी है, '' सरकार ! महंगाई बहुत बढ़ गयी है | दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है | जीना मुश्किल हो गया है | क़र्ज़ पर क़र्ज़ चढ़ता जा रहा है | बैंक वाले जीना हराम किये दे रहे हैं | आत्महत्या के अलावा कुछ नहीं सूझता ''| 

''क्या कहते हो ? कभी कहते हो सब्जी महंगी हो गयी कभी कहते हो दाल महंगी हो गयी | आज कह रहे हो रोटी महंगी हो गयी है | तुम लोग एक बात पर क्यों नहीं टिके रह सकते हो ? हम लोगों की तरह आए दिन बयान बदलते रहते हो | मेरी गद्दी हथियाना चाहते हो क्या ? और ये आत्महत्या की बात क्यों कर रहे हो मेरे सामने ? फैशन बना रखा है आत्महत्या को ? अरे संघर्ष करो संघर्ष | कायर आदमी ही मरने की सोचते हैं | काम से जी चुराते हो और मरने की बात करते हो ''| 

भूखी जनता दौड़ रही है | धरना प्रदर्शन कर रही है | जो नहीं कर रहे वे सल्फास खा रहे हैं और इस नश्वर और पापी शरीर से मुक्त हो रहे हैं | 

''सरकार भूखे हैं'', कहीं से फिर धीमी सी आवाज़ आती है | 

''क्या कहते हो ? भूखे हैं ? सारा देश सातवें वेतनमान की फसल काट रहा है | नए - नए फ़ूड स्टोर खुल रहे हैं | चारों तरफ पैसा ही पैसा बरस रहा है | लोग चाट - पकौड़ी के ठेलों पर टूटे पड़े रहते हैं | हर गली हर मोहल्ले में ढाबे खुले हुए हैं | लोग खाए जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं | शाम होते ही सड़कें चटोरों से भरी दिखती हैं | बिग बाजार और हर मोहल्ले में एक न एक मॉल खुला हुआ है | खाने की सामग्री ठुंसी पडी हुई है | मोटापे से त्रस्त लोगों के लिए दवाइयाँ, जड़ी - बूटियां, और नाना प्रकार के यंत्र रोज़ लॉन्च हो रहे हैं | तुम कह रहे हो भूखे हैं | कौन विशवास करेगा इस बकवास का'' ?

''सरकार ! हम किसान हैं | मजदूर हैं | उस तरफ जाने की सारी गलियां हमारे लिए बंद हैं'' | 

''कमाल की बात करते हो ! अरे किसान हो तो अनाज उगाओ | मजदूर हो तो मेहनत करो हमारी तरह | अच्छा अब हमारे जाने का समय हो गया है | सेक्रेटरी ! अब हमें कहाँ जाना है''?

''हुज़ूर ! आज आपको दस बजे कनॉट प्लेस में थाई फ़ूड रेस्टॉरेंट का फीता काटने जाना है | ग्यारह बजे सदर में मेकडॉनल्ड का उद्घाटन करना है | दो बजे गुरुग्राम में राजस्थानी फ़ूड कोर्ट की नींव रखनी है ''| 

''जल्दी चलो ड्रायवर ! समय कम है | काम बहुत ज़्यादा है'' |