श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
आ रही सट्टालय से पुकार
है बुकी गरजता बार - बार
कर फिक्सिंग तू बटोर नोट अपार
सब कुछ मिले है तुरंत - फुरंत ।
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
फिक्सिंग स्पोटों में भर गया रंग
धन लेकर आ पहुंचा भदन्त
मुदित, प्रमुदित, पुलकित अंग - अंग
भरे चोर देश में किन्तु अनंत ।
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
भर रही कॉलगर्ल इधर तान
दलाल की सूख रही इधर जान
है रन और धन का विधान
होटल में आई है छिपते छिपंत ।
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
कर दे अब तू अश्रुपात
आंसुओं से लगा दे आग
ऐ रन क्षेत्र में लगे दाग, जाग
बतला अपने अनुभव अनंत ।
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
भज्जी पाजी के शिकार संत
ऐ मुर्ग, सुरा चढ़ा के आकंठ
कर नाच इस कदर प्रचंड,
पर सबसे पहले कर खिड़कियाँ बंद
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
अब कोक अथवा पेप्सी के स्टंट नहीं
कर लो कुछ भी, पर स्टिंग नहीं
है बॉल बंधी अब स्वच्छंद नहीं
फिर आई पी एल में जाए कौन हन्त ?
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?