शनिवार, 15 जुलाई 2017

टॉप टेन बरसात के गाने और सन्दर्भ सहित व्याख्या ---


पिछले कई सालों से, जी हाँ भाइयों और बहनों ! नंबर एक पायदान पर विराजमान जो गाना है, वो है ----''तेरी दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए ---''

गाना समर्पित है पति और पत्नी को | प्रस्तुत पंक्तिओं में पत्नी अपने पति को सम्बोधित करती हुई कहती है कि हे प्रियतम ! तुम्हारी नौकरी नौकरी चाहे लाखों की हो लेकिन मेरे लिए वह दो टके की भी नहीं है, अगर उस नौकरी से मैं सावन के महीने के दौरान लगने वाली सेल में बम्पर शॉपिंग न कर सकूं | जिस तरफ भी नज़र दौड़ाती हूँ सेल वाला बोर्ड टंगा हुआ पाती हूँ | हर शोरूम वाला मुझे हसरत भरी निगाह से देखता हुआ मालूम होता है | मेरी सारी सहेलियां इन दिनों बड़े - बड़े थैले लेकर बाज़ार से आती हैं, मेरे घर के आगे स्कूटी खड़ी करके ''पीं पीं करती हैं, मैं विवश होकर बाहर आती हूँ | मजबूरन उनकी शॉपिंग देखनी पड़ती है, दिल ही दिल में कुढ़न होती है लेकिन मुंह से '' बहुत सुन्दर ! वाओ ! कितना सस्ता और कितना बढ़िया ! कहती हूँ | दर्द भरे दिल से पत्नी, ''हाय हाय ये मजबूरी'' कहकर गाना पूर्ण करती है | 

पुराने से लेकर नए, सभी श्रोताओं ने जिस गाने को नंबर दो पर रखा है वह है भाइयों और बहनों ! -----''एक लड़की भीगी भागी सी, सोई रातों में जागी सी ---''

प्रस्तुत पंक्तियाँ एक नौजवान को ऑन द स्पॉट समर्पित हैं | इन पंक्तियों में नौजवान बता रहा है कि किस प्रकार से उसे घनघोर बारिश में एक लड़की मिली और उस लड़की ने मुस्कुराते हुए उसे देखा तो वह अति प्रसन्न हो गया और उसके दिल में सितार, गिटार जैसे यंत्र बजने लगे और पता नहीं कौन - कौन से फूल खिलने लगे | लड़की वैसे अमूमन किसी अजनबी को नहीं देखती है | लेकिन इस मौसम में वह मजबूर है क्योंकि उसे सड़क पार करवाने वाला कोई नहीं मिल रहा | सड़क में घुटनों तक पानी भरा हुआ है | लड़की लड़के से लिफ्ट लेती है और सड़क पार करने के बाद उतारते समय लड़के के हाथ में बीस का नोट यह कहकर रख देती है '' ये तो आपको लेने ही पड़ेंगे भैया '' | तबसे वह लड़का सदमे में है और सबसे यही पूछता फिर रहा है '' तुम ही कहो ये कोई बात है ?''

नंबर तीन पर जिस गाने को आप लोगों ने जगह बख्शी है, उसके बोल हैं , ''रिमझिम गिरे सावन, सुलग - सुलग जाए मन ---''

निम्न पंक्तियाँ बिजली विभाग के कर्मचारियों को समर्पित है | जबसे सरकार ने बिजली विभाग वालों के फोन नंबर सार्वजनिक किये हैं, और जिओ के सिम की बदौलत फोन करना मुफ्त हुआ है, जनता बिजली जाने के पांच मिनट के अंदर ही पचास - पचास कॉल करने लगी हैं | जनता खुद तो घर  अंदर बैठी - बैठी चाय - पकौड़ों का आनंद लेती है और उन्हें रात - बे रात कभी तार बदलने कभी ट्रांफॉर्मर बदलने तो कहीं पोल ठीक करने जाना पड़ता है | उनके कर्मचारी तुरंत मौके पर पहुंचकर तार बदलने पर मजबूर हैं | इस नाज़ुक मौके पर भी जनता उन्हें काम नहीं करने देती | चारों ओर से घेर कर खड़े हो जाते हैं और '' कितनी देर लगेगी ? ''कब तक ठीक हो जाएगा ''? ''रात तक तो ठीक हो ही जाएगी क्यों ''? का आलाप छेड़ते रहते हैं | बिजली वालों का मन इतना सुलग जाता है कि उनका मन करता है कि एक नंगा तार यहाँ खड़ी जनता को भी छुआ दे | 

अगली पायदान यानि कि चौथे नंबर पर जो गीत है, जी हाँ ! बिलकुल सही पहचाना, उस गाने के बोल हैं ------''बरसात में हमसे मिले तुम, सजन तुमसे मिले हम बरसात में ''

गाने की पंक्तियाँ समर्पित हैं ''बीन बजाते हुए सपेरे और उसके झोले में रहने वाली नागिन को | प्रस्तुत पंक्तियाँ बरसात के दौरान घर के अंदर घुस जाने वाले साँपों और उन्हें पकड़ने के लिए बुलाए गए संपेरों के आपसी संवाद पर आधारित हैं | संपेरा पहले दिन चुपके से रात के समय अपने झोले से अपनी पालतू नागिन को निकालता है फिर उसे गली में छोड़ देता है | दिन के समय सांप घर के लोगों को दिखता है | लोग उसी संपेरे को बुलाते हैं | वह आस - पास के इलाकों में साँप पकड़ने के लिए काफी प्रसिद्द है | वह अपनी प्यारी नागिन को ढूंढता है, पकड़ता है और फीस के रूप में २००० रुपया लेता है | वह यह बताना नहीं भूलता कि ''बहुत ही खतरनाक सांप है | इसका काटा पानी नहीं मांगता'' |  लोग सहम जाते हैं | अगले दिन दूसरे मुहल्ले में उसी सांप को छोड़ता है और वहां से भी उतना ही पैसा लेता है | बरसात के मौसम में वह और उसकी पालतू नागिन यह ड्युएट गाते पाए जाते हैं | | 

और भाइयों और बहिनों ! दिल थाम कर सुनिए | पांचवी पायदान पर कोई फ़िल्मी गाना नहीं है, बल्कि वह ग़ज़ल है, जिसे गाया है पंकज नाम के उदास आदमी ने --''आइये बारिशों का मौसम है इन दिनों चाहतों का मौसम है  ---''

उपरोक्त ग़ज़ल के बोल समर्पित हैं उस पत्नी को जो अपने पति से कह रही है, ''आइये और कपड़ों को छत में डाल कर आइये'' | पत्नी इन दिनों पति को आम दिनों की अपेक्षा अतिरिक्त मात्रा में चाह रही है और उसे धूप निकलते ही छत पर कपडे ले जाकर सुखाने के लिए कह रही है | बादलों के आते ही कपड़े उठाना फिर दोबारा धूप के आते ही छत की ओर दौड़ना, पति इस कवायद में थक चुका है | जैसे ही वह छत कपडे डाल कर आता है, बादल न जाने कहाँ से आ जाते हैं | जैसे ही वह कपड़ों को नीचे कमरे केअंदर बँधी हुई रस्सी में फैलाता है, सूरज उसे खिजाने के लिए पूरी ताकत से चमकने लगता है | पत्नी के लिए बरसात का दिन वह कसौटी हैं जिस पर वह अपने पति के प्यार को कस सकती है | 

अगली पायदान यानि की छठे स्थान पर जिस गाने ने अपनी जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है वह है , ''सावन का महीना पवन करे शोर -------''

प्रस्तुत पंक्तियाँ एक चाय - पकौड़ा प्रेमी,  जिसका नाम पवन है, के पकौड़ा प्रेम को समर्पित है | सावन का महीना आते ही पवन हर घंटे में चाय - चाय चिल्लाता है और पत्नी से कभी आलू, कभी गोभी, कभी प्याज की पकौड़ियाँ बनाने को कहता है | पत्नी उसके चाय - पकौड़ों की डिमांड से त्रस्त हो गई है | उसका मन वन में जाने को करता है | वह नाचना चाहती है बारिश में मोर की तरह, लेकिन पवन, पकौड़ों के लिए इतना शोर करता है कि वह तंग आ गयी है | पत्नी अपने आप से कहती है कि कितनी भाग्यशाली हैं वे औरतें जिनके बलम बिदेश रहते हैं और एक वह है जिसका पकौड़ियों के आगे कोई जोर नहीं चल पाता है | 

दिल थाम कर सुनिए सातवीं पायदान पर जो गाना है उसे सुनकर किसी के भी होश उड़ सकते हैं | गाना है --''बादल यूँ गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है ----''

ये डरावनी पंक्तियाँ समर्पित हैं पप्पू नामक बालक को | रात को चमकने वाली बिजली और माँ की चीख '' बेटा सारे घर के स्विच बंद कर दो फटाफट'' | ''सारे प्लग निकाल दो'' | ''बाहर जाकर मेन स्विच ऑफ करना मत भूलना '' ''बरामदे से चटाई उठा लेना ''| ''साइकिल को किनारे कर देना '' | पप्पू को गहरी नींद से उठने पर गुस्सा भी आता है और बिजली का कड़कना सुनकर डर भी लगता है और अँधेरे से सबसे ज़्यादा डर लगता है | पप्पू के पापा कच्ची पीकर जो सोते हैं तो फिर सुबह पत्नी की डाँट की आवाज़ से ही उठते हैं | पप्पू की माँ दुनिया में सबसे ज़्यादा करंट से डरती है और यह काम बेचारे पप्पू को करना पड़ता है | सारी बरसात वह आधा सोया और आधा जागा हुआ रहता है | 

गाना नंबर आठ जो है, भाइयों और बहिनों, वह जुड़ा हुआ है किसी की मीठी - मीठी यादों से | जी हाँ ! सही पहचाना | गाने के बोल हैं --''ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात'' 

ये रूमानी क्तियाँ समर्पित हैं कुमारी वर्षा को | रात के आठ बजे थे और कुमारी वर्षा ने ऐसे ही एक भीषण बरसात वाले दिन एक दूकान के नीचे शरण ले रखी थी | वर्षा बार - बार दुकानदार को परेशान नज़रों से देखती, फिर अपनी घडी देखती | दुकानदार को वर्षा पर तरस आ गया और उसने वर्षा को अपनी सबसे प्रिय वस्तु, अपनी शादी की छाता दे दी | वर्षा कुमारी ने आँखों में कृतज्ञता भरते हुए बार - बार धन्यवाद दिया और यह वादा किया कि कल सुबह सबसे पहले वह उनकी छाता वापिस करने आएगी | उस दिन के बाद कितने ही सावन - भादों आए और चले गए लेकिन न छाता दिखा न वर्षा कुमारी | शादी की छाता ऐसे ही किसी लड़की को पकड़ा देने पर हर साल पहली फुहार पड़ते ही पत्नी के तानों की फुहार भी उन्हें झेलनी पड़ती है | 

और नवीं पायदान पर जो गाना है वह है, बहनों और भाइयों --''बरसो रे मेघा - मेघा बरसो रे मेघा | कोसा है, कोसा है,  बारिश का बोसा है ----''

ये खूबसूरत पंक्तियाँ समर्पित हैं सड़क बनाने वाले ठेकेदार के श्री चरणों में | इन पंक्तियों में वह बादलों से से बरसने का अनुरोध कर रहा है | वह मनुहार कर रहा है  कि भले ही मैंने तुझे देर से आने के कारण कोसा हो लेकिन तू दिल पर मत ले | तू बस सड़कों पर बोसे बरसाती रहना | तेरे बोसो से ही सड़कों पर बड़े - बड़े गड्ढे पड़ते हैं, जिनसे मेरी ज़िंदगी आसानी से चलती रहती है | ठेकेदार की इच्छा है कि मेघ साल भर बरसते रहें और वह ऐसे ही सड़कें बनाता रहे | जनता उसे कोसती रहती है और शिकायत करती है कि ''क्या ठेकेदार साहब ! कैसी सड़क बनाई कि एक बरसात भी नहीं झेल पाई ''| ठेकेदार साहब लोगों के कोसने को खाने के बाद कुछ मीठे की तलब की तरह लेते हैं | 

और अब टॉप टेन समाप्ति की ओर है | जी हाँ ! अंतिम पायदान पर जो गाना है भाइयों और बहिनों ! उसके लिए दिल को थाम लीजिए | बड़ा ही मस्त गाना है | बिलकुल सही पहचाना -- ''टिप टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई ----''

निम्न पंक्तियाँ नई बस्ती में रहने वाले बाबू राम के गले से कल रात निकलीं सो गाना उसे ही समर्पित है | बरसात में उसके कमरे में पानी भर गया है और करंट दौड़ने का खतरा हो गया है | कल ही उसके पड़ोस में रहने वाले जीवन की पानी में बहते करंट से मौत हो गयी है | जीवन के छोटे - छोटे चार बच्चे अनाथ और बीबी विधवा हो गयी है | उसकी बस्ती के लिए बरसात, न सावन है, न रिमझिम के गीत हैं और न ही छई छप्पा छई है | पानी उसके लिए और उस जैसे हज़ारों लोगों के लिए हर साल आग का रूप लेकर आती है | 

तो बहनों और भाइयों ! टॉप टेन गानों के बारे में अपनी राय देना मत भूलिएगा | 

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे वो बरसात के दिन |

बरसात का मज़ा बच्चों से ज़्यादा कौन उठा सकता है भला ? साल भर स्कूल न आने वाले बच्चे बरसात में स्कूल अवश्य आते हैं | उनके स्कूल आने से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे पढ़ने के लिए आए हैं | वे आए हैं बारिश में भीगने के लिए | वे आए हैं एक दुसरे को भिगाने के लिए, बारिश में धक्का देने, एक दूसरे पर गिर पड़ने के लिए | वे आए हैं नंगे पैर पानी में छप - छप करने | दौड़ने, भागने और फिसलने के लिए | 

''भीगो मत, बीमार पड़ जाओगे '' ऐसा कहना फ़िज़ूल होता है, क्योंकि वे चाहते हैं भीग कर बीमार पड़ना | 
''दौड़ो मत, गिर जाओगे '' ऐसा कहना भी व्यर्थ होता है,  क्योंकि वे चाहते हैं गिरें और कीचड़ में लथपथ हो जाएं | 

बच्चों के लिए ये ऐसे बरसाती जुमले होते हैं, जिन्हें वे एक कान से भी नहीं सुनते हैं | 

भीगना यहाँ भी है भीगना वहां भी है | टपकती हुई छतों के नीचे बैठकर भीगने और बाहर बारिश में भीगने,  इन दोनों में से बच्चे बाहर भीगने का चुनाव करते हैं |  

ऐसे मौसम में बच्चों की कोशिश होती है कि अध्यापक स्कूल न आने पाएं | आएं भी तो कक्षा के अंदर ना आएं | कक्षा के अंदर आएं भी तो उन्हें ना बुलाएं | उन्हें बुलाएं भी तो पढ़ने के लिए न कहें | पढ़ने के लिए कहें भी तो कोर्स का न कहें | अंताक्षरी, नाच, गाना, चुटकुला, कविता, कहानी कुछ भी चलेगा | 

इन दसेक सालों में बच्चे कमोबेश अभी भी वैसे ही हैं | बरसात भी वैसी ही है | कुछ बदला है तो वे दो नदियां जिन पर पुल बन चुके हैं | 

मेरे पास बरसात के मौसम से जुडी जो यादें हैं, उनमे सबसे ज़्यादा यादें इन दो नदियों और दो ही भयंकर नालों की है | नौकरी के शुरुआत में ही लोगों ने डरा रखा था '' बाप रे ! उधर तो दो - दो नाले आते हैं | बरसात के मौसम में तो बड़ी मुश्किल होगी | दो नदियां भी रास्ते में पड़ती हैं | चार महीने बड़ी मुसीबत रहेगी | उधर ही रुकना पडेगा ''| 

लोग दो नदियों और दो नालों को पार करके लोग अपने गंतव्य तक पहुँचते थे | नदियों के नाम भी सामान्य न होकर के ''भाखड़ा, '' दाबका '' जैसे थे | नाम सुनते ही लगता था कि ये तो बाढ़ आने के लिए ही बनी होंगी | इसके उलट ''गंगा', 'यमुना' नाम का नाम लेते ही ऐसा लगता है जैसे कि ये नदियां प्यास बुझाने के लिए ही बनी हैं , बाढ़ से इनका दूर - दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होता होगा |  

नाले तो अभी भी वैसे के वैसे हैं | तब नालों के नाम भी खासे खतरनाक मालूम होते थे 'कर्कट नाला 'और ''मेथी शाह नाला ''| 

पुराने लोग बताते थे कि इन दो नदियों को बरसात के दिनों में खतरनाक बनाने के लिए उस इलाके का एक बहुत बड़ा गिरोह है | यह गिरोह बारिश होते ही नदी से थोड़ी दूर पर जाकर मिट्टी को एक जगह पर जमा कर देते थे जिससे नदी का बहाव सीमित हो जाता था और वह कॉज़वे तक आते - आते भयानक लगने लगती थी | आस - पास के कुछ लोग जो रात के समय इस पुनीत कार्य को अंजाम देते थे, सुबह अपने - अपने ट्रैक्टर - ट्रौलिओं के साथ बाढ़ वाले स्थल पर मौजूद रहते थे | पार जाने वालों से अच्छा - ख़ासा शुल्क लेकर उनकी गाड़ियों को ट्रॉलियों के ऊपर रखकर पार कराते थे | बरसात के मौसम में रोज़गार कैसे पैदा किया जाता है, इस कला में वे माहिर थे | ये उनका स्टार्ट अप प्रोग्राम था, जो बरसात में स्टार्ट होता था और फंसे हुए यात्रिओं को अप कराता था | वर्तमान में दोनों नदियों पर पुल बन जाने के कारण इस स्टार्ट अप पर ग्रहण लग चुका है | 

इनके साथ - साथ कुछ साहसी लड़के भी याद आते हैं जो उफनती हुई नदी के दोनों तरफ खड़े रहते थे | नदी का पानी कभी कम हो जाता था तो कभी बहुत तेज | इतना तेज कि बस तक बह जाए | वे तमाशा देखते थे | ताली बजाते थे  | जब कोई दुःसाहसी इस नदी को पार करने की कोशिश करता था, वे उसका उत्साह बढ़ाते थे | सीटी बजाते थे और जब कोई नदी को पार करने में सफल हो जाता था, तो हिप - हिप हुर्रे कहते थे | जब कोई नदी पार नहीं कर पाता और रास्ते में डूबने लग जाता था,  तो वे दौड़ पड़ते थे उसे बचाने के लिए | फिर ये अपनी जान की भी परवाह नहीं करते थे | उफनते हुए रौद्र रूप धारण की हुई नदी  के बीचों - बीच अंगद की तरह पाँव जमा कर खड़े हो जाते थे और उस डूबते हुए को '' हईशा .... हईशा ' कहकर पार करा लेते थे  | 

नदी के पानी को देखकर जिनका कलेजा मुंह को आ जाता था, उनका हौसला बढ़ाते थे | उनकी गाड़ियों को स्वयं चला कर मय गाड़ी नदी पार करवा देते थे  | वे दिखाना चाहते थे कि नदी पार करना उनके बाएं हाथ का खेल है | वे बिना तमगे के हीरो थे | बिना अभिनय किये नायक थे | बरसात में इनको देखना आठवें आश्चर्य को देखना होता था | आम दिनों में जो गुंडागर्दी, हल्ला - गुल्ला मार -पिटाई हंगामा करते हुए पाए जाते थे , बरसात के दिनों में उनका रूप ही बदल जाता था |

कोई पेड़ बहकर आ जाए या मोटे लट्ठे बीच नदी में आकर अटक जाएं तो ये बाँकुरे भीड़ को चीर कर, बड़े - बड़े डग भरकर, उस लट्ठे को किनारे लगा आते थे या पेड़ को आरी से मिनटों में चीर डालते थे | जनता तब साँसे रोके हुए सारा दृश्य देखती रहती थी | 

भीड़ में से कुछ लोग चाहते थे कि वे अपनी जान जोखिम में न डालें | ज़्यादातर चाहते थे कि वे जाएं और उनके लिए रास्ता खोलें | वे किनारे से ''शाबास, शाबास'' चिल्लाते थे | 

जाने अब कहाँ होंगे कैसे होंगे क्या करते होंगे ये बिना नाम के बरसाती नायक ? पुल बनने के बाद ये शायद फिर से अपने पुराने गुंडागर्दी और आवारागर्दी के कार्यक्रम में लौट गए होंगे | 

उन दिनों नदी और नाले के इस पार खड़े - खड़े कई पुराने दोस्त मिल जाया करते थे | बिछुड़े हुए दोस्तों को मिलाने में इन दोनों का अभूतपूर्व योगदान हुआ करता था | नई नियुक्ति वालों से भेंट होती थी | वहीं पर खड़े- खड़े, पानी के कम होने का इंतज़ार करते हुए आपस में कई तरह की चर्चाएं हो जाया करती थीं , मसलन ''कौन से स्कूल में हो ''?'' कब से हो'' ? ''आजकल ट्रांसफर का क्या रेट चल रहा है'' ? ''कौन कितना देकर किस स्कूल में आया है'' ? ''कौन रिटायर होने वाला है'' ? ''किसका प्रमोशन होने वाला है'' ? इत्यादि इत्यादि | अपनी - अपनी गोटियाँ फिट करने के जुगाड़ सोचे जाते थे | 

उन दिनों मुलाक़ात के लिए फिर से अगली बरसात का इंतज़ार करना होता था |  

चाय की केतली पकडे हुए दो - तीन स्थानीय बच्चे नाले के आस - पास घूमते रहते थे | पानी तो पता नहीं कब उतरेगा , सोचकर चाय पीते - पिलाते हुए, लाया हुआ नाश्ता खाते हुए , ट्रांसफर का जुगाड़ ढूँढा जाता था | 

अपने - अपने स्कूलों और दफ्तरों के साहबों को फोन खटकाए जाते थे | उन्हें पानी की स्थिति से अवगत कराया जाता था | वे तुरंत बिना प्रतिवाद किये अवगत हो भी जाते थे | किसी तरह से दो - तीन घंटे देरी से ही सही, स्कूल पहुँच जाते थे तो साहब लोग बिना कुछ कहे साइन करवाने रजिस्टर भेज देते थे | ''हम क्या करें बाढ़ आई थी तो',' ''ये आपकी समस्या है '',''नौकरी नहीं कर सकते तो छोड़ दो '' जैसे जुमले किसी साहब ने नहीं कहे | 

बालिका स्कूलों की शिक्षिकाएं सबसे ज़्यादा कांपती थीं | उफनते नाले से भी ज़्यादा खतरनाक वे 'प्रधानाचार्या' नामक प्राणी को मानती थीं | कुछेक तो डर के मारे विकराल रूप धरे हुए नाले को पार करने के बारे में गंभीरता से विचार करने लगतीं थीं | नाले के पास खड़े कई लोगों की तरफ आशा से भरी नज़रें दौडातीं लेकिन कोई भी उस नाले में गाड़ी डालने की हिम्मत नहीं करता | वे दुखी हो जातीं | फिर एक सीनियर अध्यापिका, ''क्या कर लेगी प्रिंसिपल ज़्यादा से ज़्यादा ? कैज़ुअल लगा देगी,  फांसी पर थोड़े ही लटका देगी '' कहकर सांत्वना बंधाती थी | अपने बैग से एक सफ़ेद कागज़ निकालती और उपस्थित स्टाफ के हस्ताक्षर उस कागज़ में ले कर रख लेती कि अगले दिन प्रधानाचार्या को सौंप देंगे और बाढ़ की विकराल स्थिति से अवगत करा देगी | आगे जैसी उसकी मर्ज़ी होगी, कैज़ुअल लगाए या साइन करवाए | 

अक्सर चौदह में से छह कैज़ुअल ये नदी - नाले अपने साथ बहा ले जाते थे | 

अब समय बहुत बदल गया है 
नदियों के ऊपर पुल हैं | 
स्कूलों, कार्यालयों में बायोमेट्रिक है | 
साहबों में साहबगिरी है | 
नौजवान अभी भी हैं लेकिन जान बचाने के लिए नहीं बल्कि बहते हुए की सेल्फी लेने के लिए हैं | 
रेन है लेकिन रेनी डे नहीं है | 
नाले हैं लेकिन पार कराने वाले नहीं हैं | 

कुल मिलाकर बाढ़ भी है, बरसात भी है, बस साथ देने वाले नहीं है | 


सोमवार, 3 जुलाई 2017

व्यंग्य की जुगलबंदी#34 टेलीफोन

बहुत परेशानी है | समाधान नहीं मिलता | हर कम्पनी बात करवाने के लिए बैचैन है | कोई कह रहा है पचास पैसे में देश भर के अंदर कहीं भी बातें करिए | कोई पच्चीस पैसे का लुभावना ऑफर दे रहा है कोई दस पैसे का लालच दिखा रहा है | भले ही पचास पैसे, पच्चीस पैसे या दस पैसे किसी के पास नहीं होंगे लेकिन बन्दा फिर भी खुश है कि वाह ! दस पैसे में बात करने को मिलेगी | और तो और मुफ्त बातें करने का बेशकीमती खज़ाना तक हमारे सामने कंपनियों ने खोल कर रख दिया गया है | इतना सस्ता ज़माना है कि मुद्रा बाज़ार से गायब है लेकिन विज्ञापन में धड़ल्ले से चल रही है | 

खुश होने वाले खुश हैं | बहुत खुश हैं | उनके पास अनलिमिटेड बातें हैं | उनके पास अनलिमिटेड दोस्त हैं | वे अपने अनलिमिटेड दोस्तों से अनलिमिटेड बातें करेंगे इसीलिए कम्पनियाँ इतने सस्ते लुभावने ऑफर लुटा रही हैं | 

मेरी समस्या यह है कि बात करने की इतनी खुलेआम लूट के बावजूद मैं हूँ कि खुश नहीं हो पा रही हूँ | कैसे खुश होऊं ? खुश होने के क्या उपाय अपनाऊँ ? जब अनलिमिटेड बातें करने के दिन थे, तब मोबाइल तो क्या लैंडलाइन का भी नाम नहीं सुना था | तब मित्रों से अनलिमिटेड बात करने के लिए स्कूल -कॉलेज जाना पड़ता था | पढ़ाई जैसी फ़ालतू चीज़ भी साथ में हो जाया करती थी, जिसमे हमारी कोई गलती नहीं होती थी | ऐसे ही साल भर बात करते - करते पास भी हो जाया करते थे | अब तो यह टीचर्स की मेहरबानी लगती है कि हो न हो वे भी इसी ऑफर के तहत हमें पास करते रहे होंगे कि स्कूल आने के साथ - साथ पास होना फ्री मिलेगा | हमारे समय में कक्षाएं भी भरी रहती थीं | आजकल कक्षाएं खाली रहती हैं क्योंकि बात करने के लिए स्कूल - कॉलेज जाने के स्थान पर सबके हाथ में मोबाइल आ गया है | अब गप्पें मारने के लिए स्कूल जाने की ज़रुरत नहीं है | घर बैठे - बैठे बातें हैं |अनलिमिटेड बातें हैं | 

कहते हैं कि मोबाइल और समय का कभी मेल नहीं होता | अब समय है, मोबाइल भी है,अनलिमिटेड वाउचर भी है, लेकिन कोई बातें करने वाला नहीं है | ये कम्पनियाँ बात करने वाला भी फ्री क्यों नहीं बांटती ?

हमारा क्या था ?  एक आम लड़की का जीवन,  जिसे आजकल के बच्चे जीवन मानने को ही तैयार नहीं होते | हमारी पढ़ाई पूरी हुई | माँ - बाप ने शादी तय करी | लैंडलाइन भी अब तक घर में आ गया था, लेकिन शादी से पहले बातें करना अच्छा नहीं माना जाता था | इस अवधि में आस - पास वालों ने सब जगह हमारे लैंडलाइन का नंबर बाँट दिया था | आधा समय लोगों को बुलाने में और आवाज़ लगाने में ही निकल जाता था | कुछ समय बाद ''फलाने को बुला दो '' सुनते ही फोन काटना और रिसीवर रखकर आवाज़ लगाना भूल जाने जैसी हरकतें सीख लीं था | परिणाम यह हुआ कि साल भर के अंदर ज़्यादातर लोगों के हाथ में मोबाइल दिखने लगा | आश्चर्य की बात है कि बहुत कम लोगों ने घर में लैंडलाइन लगवाया | 

तय समय पर शादी हुई | शादी के बाद सोचा कि हाथ में मोबाइल है, समय भी है, अनलिमिटेड प्लान भी है तो क्यों न पति से उनके ऑफिस में बात कर ली जाए | शादी से पहले बातें करने का मौक़ा नहीं मिल पाया था सो उसकी कसर अब पूरी कर ली जाए,  ऐसे ही सोच कर फोन लगाया तो जवाब आया, ''क्या बात है ? जल्दी कहो | बहुत काम पड़ा हुआ है ''| नहीं कहा मैंने कि अनलिमिटेड टॉक टाइम है ज़रा बातें कर लो | उन्होंने झल्ला कर फोन काट दिया | घर आकर अनलिमिटेड लताड़ अलग लगाई ,''खबरदार ! जो कभी फ़ालतू में फोन किया | ऑफिस वाले मज़ाक उड़ाते हैं | इतना ही बोलने का शौक है तो दीवारों से बातें करो | शीशे के आगे बोल लिया करो''|

इस ग्रह में जीवन की सम्भावना की तलाश फ़िज़ूल देखकर मैंने दूसरे ग्रह में जीवन तलाशने की सोची,  सोचा बच्चे बड़े होंगे तब जी भर के बातें करने का अधूरा ख़्वाब पूरा करूंगी | बच्चों से अनलिमिटेड बातें करने में कम से कम डाँट खाने का खतरा तो नहीं होगा |  

दिल में मौजूद इस ख्वाहिश को पूरा करने का मौका आखिरकार आ ही गया | बेटी बाहर पढ़ने के लिए चली गयी | उसके जाने के एक दिन बाद ही उसे फोन मिलाया तो वह झल्ला कर बोलती है, ''क्या अम्मा ! अभी - अभी क्लास छूटी है | अब कोचिंग जा रही हूँ | तुम पुराने ज़माने की माँओ की तरह हर समय शक करती हो''| मैं ज़ाहिर सी बात है कि अपना सा मुंह लेकर रह गयी | 

अब कौन रह गया जिससे अनलिमिटेड बात की जा सकती है? मैंने मन ही मन अपनी पुरानी दोस्तों को याद किया | पुरानी दोस्तें अब गए जमाने की बातें हो चुकी हैं | पते खो गए | नंबर भी खो गए हैं | बहुत मुश्किल से एक नंबर मिला | मैंने उत्साह से भरकर फोन लगाया तो उसने पहले तो पहचाना ही नहीं | काफी याद दिलाने के बाद उसने जो बात करी तो मैंने स्वयं ही फोन काट दिया | उसने कहा, '' अच्छा ! तुम्हारी आवाज़ तो बहुत बदल गयी है | आज क्या काम है जो मेरी याद आ गयी | कॉलेज के ज़माने में तुम अपने नोट्स किसी को नहीं दिखाती थी | याद आया कुछ ? और तुमने मेरी किसी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया जो मैंने तुम्हें कॉलेज छूटने के बाद लिखीं थीं | आज ज़रूर किसी काम से फोन कर रही होगी, है ना ''?

मैं उससे अनलिमिटेड बातें करने का सपना देख रही थी और वह मुझे अनलिमिटेड आइना दिखाने की ठाने हुई थी | 

काफी चिंतन के बाद यह निष्कर्ष निकल कर आया कि एक आम औरत की ज़िंदगी ऐसी ही होती है, अनलिमिटेड के दौर में लिमिटेड सम्बन्ध और लिमिटेड बातें | इससे तो अच्छी आधुनिक हिंदी कहानी की नायिका की ज़िंदगी होती है जिसमें अवैध सम्बन्ध होते हैं, उनसे चैट होती है, बातें होती हैं | इधर कुछ समय से मैंने जब भी किसी साहित्यिक पत्रिका को उठाया, उनमे छपी कहानियों में इस बात को महसूस किया कि सिर्फ यही नायिकाएं अनलिमिटेड बातें कर सकतीं है क्योकि इनके अनलिमिटेड सम्बन्ध होते हैं | 


शनिवार, 1 जुलाई 2017

फैशन बना रखा है | #हिन्दी_ब्लॉगिंग

जनता महंगाई से त्रस्त हो गयी है वैसे जनता को आदत होती है किसी न किसी प्रकार से त्रस्त रहने की | जीने के लिए त्रस्त रहना बहुत ज़रूरी होता है वरना पता नहीं चल पाता कि ज़िंदगी कट भी रही है या नहीं | 
बहुत दिनों बाद मुद्दा मिला है वरना बिजली पानी जैसी निम्न स्तरीय समस्याओं से आखिर कब तक त्रस्त रहा जा सकता है | 

जनता राजा के पास फ़रियाद लेकर गयी है, '' सरकार ! महंगाई बहुत बढ़ गयी है | दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है | जीना मुश्किल हो गया है | क़र्ज़ पर क़र्ज़ चढ़ता जा रहा है | बैंक वाले जीना हराम किये दे रहे हैं | आत्महत्या के अलावा कुछ नहीं सूझता ''| 

''क्या कहते हो ? कभी कहते हो सब्जी महंगी हो गयी कभी कहते हो दाल महंगी हो गयी | आज कह रहे हो रोटी महंगी हो गयी है | तुम लोग एक बात पर क्यों नहीं टिके रह सकते हो ? हम लोगों की तरह आए दिन बयान बदलते रहते हो | मेरी गद्दी हथियाना चाहते हो क्या ? और ये आत्महत्या की बात क्यों कर रहे हो मेरे सामने ? फैशन बना रखा है आत्महत्या को ? अरे संघर्ष करो संघर्ष | कायर आदमी ही मरने की सोचते हैं | काम से जी चुराते हो और मरने की बात करते हो ''| 

भूखी जनता दौड़ रही है | धरना प्रदर्शन कर रही है | जो नहीं कर रहे वे सल्फास खा रहे हैं और इस नश्वर और पापी शरीर से मुक्त हो रहे हैं | 

''सरकार भूखे हैं'', कहीं से फिर धीमी सी आवाज़ आती है | 

''क्या कहते हो ? भूखे हैं ? सारा देश सातवें वेतनमान की फसल काट रहा है | नए - नए फ़ूड स्टोर खुल रहे हैं | चारों तरफ पैसा ही पैसा बरस रहा है | लोग चाट - पकौड़ी के ठेलों पर टूटे पड़े रहते हैं | हर गली हर मोहल्ले में ढाबे खुले हुए हैं | लोग खाए जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं | शाम होते ही सड़कें चटोरों से भरी दिखती हैं | बिग बाजार और हर मोहल्ले में एक न एक मॉल खुला हुआ है | खाने की सामग्री ठुंसी पडी हुई है | मोटापे से त्रस्त लोगों के लिए दवाइयाँ, जड़ी - बूटियां, और नाना प्रकार के यंत्र रोज़ लॉन्च हो रहे हैं | तुम कह रहे हो भूखे हैं | कौन विशवास करेगा इस बकवास का'' ?

''सरकार ! हम किसान हैं | मजदूर हैं | उस तरफ जाने की सारी गलियां हमारे लिए बंद हैं'' | 

''कमाल की बात करते हो ! अरे किसान हो तो अनाज उगाओ | मजदूर हो तो मेहनत करो हमारी तरह | अच्छा अब हमारे जाने का समय हो गया है | सेक्रेटरी ! अब हमें कहाँ जाना है''?

''हुज़ूर ! आज आपको दस बजे कनॉट प्लेस में थाई फ़ूड रेस्टॉरेंट का फीता काटने जाना है | ग्यारह बजे सदर में मेकडॉनल्ड का उद्घाटन करना है | दो बजे गुरुग्राम में राजस्थानी फ़ूड कोर्ट की नींव रखनी है ''| 

''जल्दी चलो ड्रायवर ! समय कम है | काम बहुत ज़्यादा है'' | 

सोमवार, 26 जून 2017

ईद मुबारक मुल्ला जी !


वह मुल्ला है | नाम पूछने की कभी ज़रुरत नहीं पडी | मुसलमान है | दाढ़ी रखता है जो अब लगभग सफ़ेद हो चुकी है | सफ़ेद टोपी पहिनता है | राम किशोर और उनके घर के सभी लोग उसे मुल्ला कहकर ही बुलाते हैं | उम्र होगी करीब पचास या पचपन लेकिन उसकी सूरत इतनी ज़्यादा पक गयी है कि वे सत्तर से भी ज़्यादा लगता है | 

आँखें लाल, रंग धूप में साइकिल चलाने के कारण झुलस गया है | दुबला - पतला शरीर | एक पुरानी साइकिल जिस पर दोनों तरफ उसने कबाड़ रखने के लिए बोरे लटकाए हुए हैं | 

राम किशोर को घरेलू कबाड़ बेचने के लिए सिर्फ मुल्ला पर ही भरोसा था | घर में चाहे कबाड़ का ढेर लग जाए, अखबार के चट्टे लग जाएं , मज़ाल है राम किशोर किसी और कबाड़ी को हाथ भी लगाने दें | दिन भर में कई कबाड़ वाले साइकिल और ठेला लेकर आते थे,गेट के ऊपर से झांककर, ललचाई निगाह से आम के पेड़ के नीचे रखे खाली डिब्बे, बोतलें, टीन, टूटे - फूटे अन्य कबाड़ की सामग्रियों को ललचाई निगाह से देखते | उनमें से कई दुस्साहसी राम किशोर से पूछ भी लेते, 

''बाबूजी ! अब तो बेच दीजिये कबाड़ | एक महीने से रखा हुआ देख रहे हैं | किसके लिए संभाल रखा है'' ?

राम किशोर चिढ़ कर जवाब देते, ''इससे तुम्हारा क्या मतलब ? तुम आगे जाओ हमें नहीं बेचना कबाड़'' | 

''ठीक लगा दूंगा साहब, हमें ही दे दो ''| 

राम किशोर गुस्से से गेट बंद कर देते | कबाड़ी भुनभुनाता हुआ चला जाता | 

राम किशोर की पत्नी घर के सामने पेड़ के नीचे रखे हुए कबाड़ को देखती और कभी - कभी बहुत नाराज़ हो जाती,

''क्या हो जाएगा अगर कोई और कबाड़ी ले जाएगा तो ? महीनो - महीनो तक मुंह नहीं दिखाता आपका मुल्ला | क्या लगता है आपका वह ? कबाड़ ही तो है कोई भी कबाड़ी ले जाए | पता नहीं क्या लाल लगे हैं उस मुल्ला में ? घर में मेहमान आते हैं, अड़ोस - पड़ोस वाले आते हैं, अच्छा लगता है क्या मुंह सामने कबाड़ ''?

राम किशोर एक कान से सुनते हैं दूसरे से निकाल देते हैं | उन्हें आदत पड़ चुकी है | घर में हर तीसरे दिन यही मुल्ला पुराण छिड़ जाता है | 

फिर एक दिन राम किशोर का इंतज़ार ख़त्म होता है | मुल्ला की आवाज़ को वे दूर से ही पहचानते हैं | मुल्ला आता है, साइकिल रोकता है गेट पर खड़े होकर पूछता है, '' बाबूजी कबाड़ है''?

राम किशोर खुश हो जाते हैं, '' हाँ ! हाँ ! बहुत सारा जमा है''| 

राम किशोर जो खुद अस्सी पार कर चुके हैं, दौड़ - दौड़ कर अंदर जाते हैं | दोनों हाथों में भर - भर कर अख़बार और पत्रिकाओं की रद्दी को बाहर लाते हैं | कई महीनों की रद्दी लाने के लिए उन्हें कई चक्कर लगाने पड़ते हैं लेकिन वे इस कवायद में ज़रा भी नहीं थकते |
 
इस दौरान मुल्ला पेड़ के नीचे जमा किये कबाड़ का मुआयना करता, डिब्बों को पिचकाता, गत्तों को मोड़ता और अपने पास रखते जाता | 

राम किशोर के सामने तराजू रखकर मुल्ला रद्दी और कबाड़ को तोलता जाता और बताता जाता कि फलानी चीज इतने की और फलानी चीज़ उतने की लगी | 

राम किशोर गाल पर हाथ धर कर ध्यान से सुनते रहते हैं और फिर मुल्ला अपने कुर्ते की जेब से नोटों का एक बण्डल निकालता और उसमे से कुछ नोट राम किशोर के हाथ में दे देता है | राम किशोर चुपचाप उन नोटों को अपनी जेब के हवाले कर देते | 

''अच्छा बाबूजी ! सलाम !'' मुल्ला कबाड़ समेटकर अपने बोरे में भरकर चल देता किसी दूसरे मोहल्ले की तरफ | 

राम किशोर का एक बेटा है | एक बेटी है | दोनों पढ़े लिखे हैं | दोनों सरकारी नौकरी में हैं | 

बेटा, बाप की मुल्ला को ही कबाड़ बेचे जाने की आदत से परेशान था | वैसे वह बाप की हर आदत से परेशान था | सोशल मीडिया के द्वारा फैलाए जा रहे संदेशों के परिणामस्वरूप पिछले कुछ समय से मुस्लिम धर्म के प्रति उसके नज़रिए में फर्क आ गया था | हर मुस्लिम को वह शक की नज़र से देखता था | 

''पापा आपको कोई हिन्दू कबाड़ी नहीं मिलता क्या ''? बेटा गुस्से से भरकर कहता | 

''अब कबाड़ में धर्म कहाँ से आ गया ?'' राम किशोर शांत रहते | 

''आपको पता ही क्या है कि दुनिया में क्या हो रहा है ''?

''अच्छा ही है कि नहीं पता''| राम किशोर शांत चित्त जवाब देते हैं | उनकी चुप्पी के आगे बहस करने की सारी संभावनाएं दम तोड़ देतीं थीं | 

एक दिन राम किशोर बीमार पड़ गए | ब्लडप्रेशर हाई हो गया | डॉक्टर ने चलने - फिरने के लिए तक सख्त मना कर दिया |  बेटा नौकरी से छुट्टी लेकर आया | उसी दिन आ पहुंचा मुल्ला | अन्य दिनों उसे राम किशोर 
आँगन में बैठे हुए ही मिल जाते थे | आज उसे घंटी बजानी पड़ी | गेट बेटे ने खोला | 

''सलाम बेटे ! बाबूजी कहाँ हैं ''?

''बीमार हैं'' बेटे ने रूखा सा उत्तर दिया | 

''खुदा खैर करे | सब खैरियत है'' ?

''हाँ दो तीन दिन में ठीक हो जाएंगे ''| 

''अल्लाह सलामत रखे | बाबूजी बहुत अच्छे आदमी हैं ''| 

''हूँ ''| 

''कबाड़ होगा क्या भैया ? बहुत दूर से आते हैं | कुछ रद्दी वगैरह होगी तो ले आइये | बाबूजी तो हमारे लिए जमा करके रखते हैं ''| 

''बेटा , मुल्ला आया है क्या ? अंदर से रद्दी दे दे उसे ''| अंदर से राम किशोर की आवाज़ आई |   

''देखता हूँ'' मन मारकर बेटा अंदर जाता है तो राम किशोर हिदायत देते हैं ,'' देख ! उससे बहस मत करना | जितना रुपया दे, चुपचाप ले लेना'' | 

 बेटा मन मारकर रद्दी का ढेर बाहर लाता है | 'बीमारी का लिहाज किया वरना कभी का भगा दिया होता इस मुल्ला को '| 

''कितने बच्चे हैं आपके''? नफरत से भरे हुए बेटे ने पहला सवाल दागा | 

सोशल मीडिया और इधर - उधर से उसने यही जाना था कि इन लोगों के यहाँ दस से कम बच्चे नहीं होते हैं | और फिर यह तो कबाड़ी है इसके तो बीस से कम नहीं होंगे | 

''जी तीन'' मुल्ला तराजू पर बाट रखते हुए बोला | 

''क्या ? क्या कहा'' ? बेटे को लगा कि उसने ढंग से नहीं सुना | 

''तीन बच्चे हैं हमारे''| 

''अच्छा ! बेटे का मुंह खुला का खुला रह गया'' | 

बहुत देर बाद उसकी चेतना लौटी | तब तक मुल्ला रद्दी तोल चुका था | 

''कौन - कौन हैं'' ?

''एक बेटी है दो बेटे हैं ''| 

''क्या करते हैं वे ''? 

बेटे का अनुमान था कि बेटी की शादी हो गयी होगी और वह कहीं ढेर सारे बच्चे पैदा कर रही होगी | बेटे कहीं आवारागर्दी करते होंगे या इसकी ही तरह कबाड़ बेचते होंगे या ऐसा ही कोई और मिलता जुलता धंधा करते होंगे | 

बेटे की यह धारणा कुछ समय से ही बनी थी जबसे वह सोशल मीडिया पर सक्रिय हुआ था | 

''लड़की बड़ी है एम.ए. कर रही है'' | 

बेटा आसमान से गिरा | एक कबाड़ी वाले की बेटी एम.ए.?

''अच्छा ! कहाँ से ? विषय से ''?

बेटे को कुछ तसल्ली मिलती अगर वह कहता , प्राइवेट है और विषय है समाजशास्त्र या हिंदी या ऐसा ही कुछ | लेकिन उसने कहा ''जी अंग्रेज़ी से कर रही है | कालेज जाती है साथ में ट्यूशन भी पढ़ाती भी है घर पर |अपनी पढ़ाई का इंतज़ाम अपने आप ही करती है'' | 

''और लड़के क्या करते हैं''? राम किशोर के बेटे को उम्मीद थी कि यहाँ पर उसकी धारणा सही होगी | 

''छोटा वाला हाईस्कूल में है | कक्षा में हमेशा अव्वल आता है'' | 

''बड़ा वाला'' ? यह ज़रूर छोटा - मोटा धंधा करता होगा साथ में चोरी - चाकरी में भी सक्रिय होगा | ऐसा ही पढ़ा है उसने इन लोगों के बारे में | 

''बड़ा वाला मिस्त्री है''|  मुल्ला रद्दी के ढेर बना कर बांधता जा रहा था | 

बेटे के कलेजे में ठंडक पड़ी | उसकी सांस में सांस आई | कुछ तो राहत मिली | ''मिस्त्री'' वह बड़बड़ाता है | 

''मिस्त्री का काम तो वह बहुत छोटी उम्र से करता आ रहा है | साथ में पढ़ाई भी करता है | ओपन यूनिवर्सिटी से एम. एस. सी. कर रहा है'' | 

अब बेटा कुछ बोलने के लायक खुद को नहीं पा रहा था | 

लीजिए बाबूजी दो सौ रूपये हो गए '' मुल्ला ने अपनी जेब से सौ - सौ के दो नोट निकाले और बेटे के हाथ में पकड़ाए | 

'' नहीं नहीं, आप रख लीजिये '' बेटे के मुंह से निकला | 

''नहीं बाबूजी, पैसे ले लीजिए''| 
 
''नहीं मैं बिलकुल नहीं लूंगा ये रूपये | आप इतने बुजुर्ग हैं | इस उम्र में इतनी मेहनत करते हैं | बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है'' | 

''जी बाबूजी ! बच्चे मना करते हैं, कहते हैं क्या ज़रूरत है इस उम्र में इतना घूमने की ? लेकिन हमें अच्छा लगता है काम करना | धूप, बरसात, जाड़ा कुछ भी हो जाए हम रुकते नहीं हैं | आपके बाबूजी जैसे कई बुजुर्ग हैं जो हमारा इंतज़ार करते हैं किसी और को कबाड़ नहीं बेचते''| 

इतने में उसका फोन बजता है | वह फोन उठाता है 
 
''जी ! जी हाँ हम बोल रहे हैं मुल्ला जी | कहाँ आना है साईं मंदिर ? ठीक है | आ जाएंगे | कल सुबह साईं मंदिर आ जाएंगे'' | 

''मंदिर क्यों जाएंगे मुल्ला जी ''? बेटे ने जिज्ञासावश पूछा | 

''हमारा काम है वहां | हम ही वहां से कबाड़ लाते हैं हमेशा | जब भी कबाड़ जमा हो जाता है, हमें बुला लेते हैं फोन करके'' | 

बेटा सोच रहा है पहले मधुशाला मंदिर और मस्जिद को  मिलाती थी आजकल कबाड़ मिला रहा है | समय बदल रहा है और क्या खूब बदल रहा है | 

''अच्छा है '' बेटा मन ही मन हंस दिया | 

''अच्छा बेटा चलते हैं | खुदा हाफ़िज़ | बाबूजी को सलाम कहियेगा'' | 

''मुल्ला जी कल फिर आ जाना मेरे पास बहुत सारा फ़ालतू सामान पड़ा है | मेरे किसी काम का नहीं है अब | आप सब ले जाना और हाँ ! अपना फोन नंबर दे दीजिए अगले हफ्ते ईद है, मैं आपको और आपके परिवार को ईद की मुबारकबाद दूंगा'' | 

''जी ज़रूर बेटा ! अल्लाह आप सबको सलामत रखे ''| 

शुक्रवार, 23 जून 2017

आमदनी और सफाई ; एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

मेरी ज़िंदगी में ऐसे कई लोग आए, जिनके व्यवहार के आधार पर मैंने कुछ सूत्रों और कहावतों का निर्माण किया है | इन सूत्रों में से एक सूत्र यह रहा - ''ज्यों - ज्यों इंसान की आमदनी बढ़ती जाती है त्यों - त्यों उसके घर में होने वाली सफाई का ग्राफ भी बढ़ता जाता है''| 

इस सूत्र को मैं एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करूंगी | 
  
बहुत साल पहले मेरी एक सहेली हुआ करती थी | तब वह मेरे जैसी निम्न वर्गीय थी | हफ्ते में दो बार झाड़ू और एक बार पोछा लगाया करती थी | उसके घर में चप्पल - जूते पहिनकर कहीं भी घूम सकते थे | मैं उस बेतरतीब, बिखरे हुए घर में जब भी जाती थी, कपड़ों के ढेर को हटाकर अपने बैठने के लिए स्वयं जगह बनाती थी | वह हंस कर कहती थी, ''जगह तो दिल में होनी चाहिए ''| दिल की बात पर भला कौन सहमत नहीं होगा | 

ऐसे ही एक बार उसके बिस्तर पर रखे हुए कपड़ों के ढेर को सरकाकर, बैठे हुए हम दोनों दुनिया जहान की बातें कर रहे थे | गलती से बिस्तर का गद्दा मुझसे सरक गया | मैंने उसे ठीक करने की कोशिश करी तो क्या देखती हूँ गद्दे के नीचे पूरा एक लोक बसा हुआ है | मुझे देश के वैज्ञानिकों पर तरस आया कि वे बिला वजह चाँद और मंगल पर रहने की जगह ढूंढ रहे हैं अगर उन्हें इस गद्दे के नीचे की दुनिया का दीदार करवा दिया जाता तो वे अपने अन्य ग्रहों पर जीवन ढूंढने के अभियान को तिलांजलि दे देते |  

उस गद्दे के नीचे किताबें, अखबार, ज़रूरी कागज़, होम्योपैथी की खाली शीशियां, दवाई के रेपर, पुरानी चिट्ठियां, महिलाओं की पत्रिकाएं, शादी के कार्ड, कपडे, मोज़े, चम्मचें, सुई धागा, बिजली - पानी के बिल, लिपस्टिक, पाउडर, बिंदी, रूमाल, पर्स, कैसेट, कंगन, कटे हुए नाखून, बालों के गुच्छे, पॉलीथिनों का ढेर जो तकिया होने का भरम दे रहा था, इसके अलावा भी कई वस्तुएं थीं जिन्हें मैं एक नज़र में नहीं देख पाई | मैंने इतने दिव्य दर्शन से घबराकर गद्दा वापिस ठीक से लगा दिया और उसके ऊपर बैठ गयी | दोस्त को कोई फर्क नहीं पड़ा | वह हँसती रही | मैंने मन ही मन अपनी दोस्त को प्रणाम किया उसके गद्दे को नमन किया जो सारे जहाँ का दर्द अपने जिगर में समेटे हुए था | 

उनके घर में मक्खी - मच्छर, मकड़ियों के बड़े - बड़े जाले, काक्रोच ,चूहे, छुछुंदर, खटमल सारे कीट - पतंगे वसुधैव कुटुम्बकम वाले भाव से रहते थे | सब के सब उनके स्नेह की डोरी से बंधे हुए रहते थे | इनमे से किसी की भी हत्या उसे पाप लगता था | '' इस दुनिया में सबको रहने का अधिकार है'', यह उसका प्रिय वाक्य था |   

उसका घर मुझे बहुत प्यारा था | उस घर का कोना - कोना अतिथियों का स्वागत करता सा लगता था | उन बेजान दीवारों से स्नेह टपकता था और छत से अपनत्व की बरसात | जब भी वहां जाना होता था वह मिन्नतें करके दो - तीन दिन रोक ही लेती थी | 

उसकी रसोई भी एक नमूना थी | रसोई के अधिकतर डिब्बे ढक्कन विहीन होते थे | डिब्बों में इतनी चिकनाई लगी होती थी कि हाथ से पकड़ते ही फिसल कर नीचे गिरने का डर रहता था | कहीं आटा बिखरा रहता था तो कहीं सब्जियों के छिक्कल पड़े रहते थे | मसाले के डिब्बे में सारे मसाले एक - दूसरे से मिलकर ''मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा'' गाते थे | एक कटोरी निकालो तो दो गिलास नीचे गिर जाते थे | कपों में दरारें पडी होती थीं, किसी - किसी का तो हैंडल ही नहीं होता था | पूरी रसोई में कहीं किसी किस्म का कोई पर्दा नहीं | कोई दुराव - छिपाव नहीं | है तो सामने है, नहीं है तब भी सामने है | 

उसके घर जाओ और खाली नमकीन, बिस्किट खाकर आ जाओ ऐसा कभी नहीं हो सकता | अपनी बिखरी, गंदी, धूल - धक्कड़ से भरी हुई रसोई में जब वह जाती थी तो आधे घंटे के अंदर दाल, चावल, रोटी, सब्ज़ी, रायता, चटनी, सलाद ,खीर के साथ ही बाहर आती थी | खाना इतना स्वादिष्ट होता था कि पेट ही नहीं भरता था | पेट भर जाने पर भी वह ठूंस - ठूंस कर पेट के फटने तक खिलाती रहती | घर के लिए मिनटों में बिना बताए डिनर भी पैक कर के हाथ में थमा देती थी | 

उस खाने की ख़ास बात यह होती थी अगर उसे बनते समय देख लिया तो एक कौर भी मुंह के अंदर नहीं जाएगा | अगर कोई गलती से खाना बनाने के दौरान उनकी रसोई में चला जाता था तो उसे लगता था कि अभी- अभी कोई सूनामी यहाँ से होकर गुज़री है | सारे बर्तन एक दूसरे से टकराए हुए इधर - उधर गिरे पड़े रहते थे | कॉकरोच यहाँ से वहाँ रेस लगाते थे | नाली में पानी जमा होकर आस - पास के इलाके तक फ़ैल जाता था | उस पानी में कई जीव - जंतु विचरण करते दिख जाते थे | गैस का चूल्हा पहचानना मुश्किल होता था | 

उस खाने में स्नेह था | गंदगी दिख कर भी महसूस नहीं होती थी | वे दिन बहुत प्यारे थे | 

कुछ समय बाद हमारा दूसरे शहर में स्थानांतरण हो गया | वह उसी शहर में रही | 

उसका समय बदला | भाग्य ने करवट ली | उनके पति का प्रमोशन होता गया | पद बढ़ते गया | घर में लक्ष्मी छप्पर फाड़ कर ही नहीं दीवारों को लांघ कर, खिड़कियों, रोशनदानों और दरवाज़ों को तोड़ कर घर - आँगन में प्रवाहित होने लगी | 

हर प्रमोशन के साथ मेरी मित्र का सफाई का शौक बढ़ता गया | घर में कई नौकर - चाकर आ गए | सुबह, दिन, शाम यहाँ तक की रात को भी डिटॉल वाला पोछा लगने लगा | काम वालियों को दिन में दो बार डस्टिंग का आदेश दे दिया गया | वह स्वयं मेज़ पर हाथ फिर कर धूल चैक करती थी | धूल का एक भी कण अंगुली में चिपका तो समझो क़यामत आ गयी | गुस्से के मारे वह बौखला जाती | पागलों जैसा बर्ताव करने लग जाती | 

झाड़ू - पोछे की क्रिया के दौरान घर वालों की हर किस्म की क्रिया पर बैन लग जाता था | पोछे के पाने में ज़रा सी गन्दगी देख कर उसका ब्लड प्रेशर हाई होने लग जाता था और चीखने की आवाज़ पूरे घर में गूँज जाती थी | काम वालियों को दोबारा नहा कर ही घर के अंदर घुसने का आर्डर था | घर का कोना - कोना बैक्टीरिया प्रूफ हो चुका था | लिपस्टिक, पावडर के डिब्बे तक रोज़ डिटॉल से धुलने लगे | 

भूले से भी कोई मय चप्पलों के अंदर नहीं आ सकता | आगंतुकों के लिए डिटॉल से धुली चप्पलें दरवाज़े के बाहर रखी रहती थी | 

खुलकर हंसना में भी उन्हें खटका लगा रहता था की कहीं बैक्टीरिया अपने दल - बल समेत आक्रमण न कर दे |  

किसी के खांसने व छींकने भर से उसे वायरल का खतरा मंडराता दिखता था | 

उसकी समृद्धि और सफाई के चर्चे इधर - उधर से कभी - कभार सुनाई दे जाते थे | मन में उससे मिलने की उत्कंठा ने एक दिन बहुत ज़ोर मारा और मैं पुरानी दोस्ती को याद करके मैं उससे होली मिलने चली गयी | मैंने हाथों में गुलाल लेकर उसके गाल में मलना चाहा तो उसे करंट मार गया, ''छिः छिः यह क्या कर रही हो ? सब जगह गन्दा हो गया', अब फिर से सारी सफाई करनी पड़ेगी'' | मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया | मैं ''सॉरी- सॉरी कहकर पीछे हट गयी | 

वह इतना गुस्सा हो गयी कि सामान्य शिष्टाचार तक भूल गयी और दनदनाती हुई घर के अंदर चली गयी | मैं अपराधिनी की तरह सिर झुकाए हुए उलटे पैरों लौट गयी | 

सुनती हूँ कि उसके बच्चे दीपावली में पटाखे नहीं जला सकते | दिए जलाना उन्होंने कब का छोड़ दिया क्योंकि इससे उनके बेशक़ीमती फर्श पर गंदगी हो जाती है | होली पर गेट के बाहर ताला लगाकर वे सपरिवार अंदर बैठ कर टी. वी. देखते हैं | 

उसके दोस्त या रिश्तेदार उसकी शान - औ - शौकत, धन - दौलत इत्यादि बात से प्रभावित होकर उसके घर आना चाहते हैं, रुकना चाहते हैं, पर वह किसी को रोकने की तो छोड़ ही दो आधे घंटे से अधिक अगर वह बैठ गया तो स्वयं अंदर चली जाती है | 

अब उसके बिस्तर गद्दे को उठाना तो दूर कोई उस पर बैठ भी नहीं सकता | 

घर जाने पर अब चाय ही मिल जाए तो अहो भाग्य समझो | बेशक अलमारी में सजी हुई बेशकीमती क्रॉकरी आप देख सकते हैं, सराह सकते हैं पर उस पर कुछ परोसा जाएगा यह सोचना मूर्खता होगी |  

वह गर्व से सबको बताती है कि मेरे घर का फर्श इतना चमकता है कोई अपना चेहरा देख सकता है, लेकिन लोग हैं कि उसके घर उसके फर्श पर अपना चेहरा देखने जाते ही नहीं | 

वह अमीर घर के लोगों से मेल - जोल बढ़ाना चाहती है लेकिन वे लोग उसे घास नहीं डालते | वे लोग उस से मिलते ही याद दिलाते हैं '' तुम्हे याद है तुम पहले कैसे रहती थी ? अब तुम्हारे दिन कितने बदल गए हैं, सच ही कहा गया है कि घूरे के भी दिन फिरते हैं ''| घूरा सुनकर उसके माथे पर बल पड़ जाते हैं | 

वह बहुत परेशान रहती है | पुराने लोगों को भूल जाना चाहती है लेकिन पुराने लोग उसे नहीं भूलते | 

वह उन गरीबी के दिनों दिनों को भूल जाना चाहती हैं लेकिन अमीर लोग उसे भूलने नहीं देते |   


मंगलवार, 20 जून 2017

गर्म फुल्का ---- लघु कथा


आज चौथा दिन है जब मधु बिना रोटी बनाए सो गयी | रोज़ - रोज़ ब्रेड खाकर पेट नहीं भरा जा सकता | मानता हूँ कि वह भी नौकरी करती है और मेरे बराबर तनख्वाह पाती है, लेकिन वह अकेले ही तो नौकरी नहीं करती | कई औरतें नौकरी करती हैं और घर का काम भी करती हैं | बच्चे भी संभालती हैं | अभी तो हमारा बच्चा भी नहीं है | बच्चा होने के बाद कैसे मैनेज करेगी मधु ? 

रात नौ बजे ही उनींदी हो जाती है मधु | कहती है, सब्जी बन गयी है जब रोटी खानी हो तो उठा देना | गर्म - गर्म फुल्के सेंक दूंगी | फिर घनघोर नींद में डूब जाती है | अब उसे नींद से कैसे उठाऊं ? इतनी मासूम लगती है सोते हुए | एकदम किसी छोटे बच्चे की तरह | उसको उठाना पाप लगता है | रोज़ - रोज़ भूखा भी नहीं सोया जाता | मधु तो ऑफिस से आकर ही खाना खा लेती है फिर रात को कुछ नहीं खाती | उसका मानना है कि दिन ढलने तक भोजन कर लेना चाहिए इससे खाना अच्छी तरह पच जाता है | मैं ऐसा नहीं कर सकता | मुझे दस बजे से पहले भूख ही नहीं लगती | 

आज बात करनी ही पड़ेगी चाहे इसके लिए मुझे उसे नींद से ही क्यों न उठाना पड़े | मैंने कब चाहा कि मुझे खाने में गर्म फुल्का ही चाहिए ? मैं तो बस पेट भरना चाहता हूँ फिर चाहे फुल्का गर्म हो या ठंडा | क्या फर्क पड़ता है ? मैं कई बार कह चुका हूँ कि रोटी बनाकर सोया करो लेकिन उसकी वही ज़िद ''गर्म फुल्का सेंक दूंगी, उठा देना''| जानती है वह कि मैं नहीं उठाऊंगा फिर भी कहती है | 
 
इससे तो पापा का ठीक रहा | मनपसंद खाना न मिलने पर थाली पटक देते थे | माँ दोबारा खाना बनाती थी | पापा की इस गंदी आदत को देखकर मैंने बचपन से ही यही निश्चय कर लिया था कि खाने के लिए कभी अपनी पत्नी को तंग नहीं करूँगा | लेकिन अपनी इस अच्छी आदत से मुझे क्या मिला ? पिछले चार दिनों से बिना रोटी के सब्जी खा रहा हूँ | ऐसा हफ्ते में तीन दिन तो होता ही होगा | ऑफिस में सब पूछते हैं कि क्या बात है बहुत सुस्त लग रहे हो ? मैं फीकी सी हंसी हंस देता हूँ | 

नहीं ! मुझे नहीं चाहिए इसकी नौकरी | इतनी तनख्वाह तो मुझे मिलती ही है कि घर का खर्च चला सकूं | नहीं रहेंगे शान - शौकत से | नहीं खरीदेंगे अपना घर, गाड़ी | इनके बिना क्या लोग दुनिया में रहते नहीं हैं ? हम भी रह लेंगे |  

''मधु ! उठो मधु ! मुझे तुमसे बहुत ही ज़रूरी बात करनी है''|   
मधु ने आँखें मिचमिचाई | 
''ओह ! तुम हो | क्या बात है ? खाना खा लिया ''?
''नहीं ! तुम फुल्के .... ''| 
''ओह ! सॉरी डार्लिंग ! मैं फुल्के नहीं बना पाई | क्या करूँ ? इतना थक जाती हूँ कि बिस्तर देखते ही नींद आ जाती है | बस में बैठे - बैठे पैरों में इतना दर्द हो जाता है कि उठा ही नहीं जाता | मन करता है कि छोड़ दूँ ऐसी नौकरी को''| 
''चलो जाने दो | रात को खाना न भी खाया तो कोई हर्ज़ नहीं | तुम अपने पैरों का इलाज कराओ | अभी से इतना दर्द होना ठीक नहीं ''| मैं क्या कहना चाहता था और क्या कह रहा था | 
''हाय मेरे तलवे'' मधु ने लेटे -लेटे ही अपने पैरों की अंगुलिया घुमाई | 
''लाओ मैं दबा देता हूँ '' मेरे हाथ अपने आप ही उसके तलवों की ओर बढ़ गए | 
'' तुम कितने डार्लिंग हो यार ''| मधु बड़बड़ाई और थोड़ी ही देर में घुर्र - घुर्र करके सो गयी | 
'' गर्म फुल्का ..... '' मैं बड़बड़ाता हूँ | 

सोमवार, 19 जून 2017

पिता तुम्हारा साथ --- [नौ साल पहले पन्नों पर उतारे गए लफ्ज़ अब की बोर्ड के हवाले ]


माता - पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के रिवाज़ का पालन तो सारी दुनिया करती है परन्तु मेरा मानना है कि अगर जीते जी हम उन्हें उनके स्नेह, वात्सल्य, संरक्षण एवं त्याग के लिए कृतज्ञता अर्पित करें तो उनका शेष जीवन शायद चैन से बीतेगा | 
आज लगभग पांच या छह वर्षों से लगातार [ अब नौ साल और जोड़ दीजिये - स्थिति वही की वही ] वैवाहिक जीवन के झंझावातों को झेलने के उपरान्त जब मैंने हाथ में कलम उठाई तो सबसे पहले अपनी नई ज़िंदगी लिए अपने पिता को धन्यवाद देने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई और मैं अपने रोम - रोम से लिखती चली गयी | 

मेरे पिता, रिटायर्ड विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग |  त्याग, समर्पण, कर्तव्य निर्वहन की जीती - जागती मिसाल हैं | उनका सम्पूर्ण जीवन सादगी व् ईमानदारी का अनूठा व अनुपम उदाहरण है | कोई अजनबी उनसे पहली बार मिलने पर आश्चर्य से ठगा रह जाता है | मुझे याद है कुछ साल पहले पापा को किसी कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने हेतु आमंत्रित करने के लिए एक सज्जन हमारे घर आए | पापा के कई बार विश्वास दिलाने पर कि वे ही प्रो हरि कुमार पंत हैं, तब जाकर उन सज्जन ने पापा को आयोजन का निमंत्रण पत्र सौंपा | पापा का ऐसा ही व्यक्तित्व है | कृष काय शरीर, सूखा, पिचका चेहरा, खिचड़ी बाल, बढ़ी हुई दाड़ी, पुराने रंग उड़े बेमेल कपडे, बिवाई पड़ी हुई एड़ियां, उस पर हाथ से जगह - जगह से सिली हुई घिसी हुई चप्पलें | किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल होता | पापा के समकालीन प्रो जहाँ सूट - बूट में लकदक, महंगी गाड़ियों में सवार एवं चमचमाते चेहरे वाले होते वहीं पापा इस मूल्यहीन, स्वार्थी और दिखावटी जमात से एकदम अलग | अक्सर हमें टोकते रहते हैं, '' क्यों कपड़ों की दौड़ में शामिल होते हो ? इसका कहीँ कोई अंत नहीं मिलेगा | कपडे किसी के व्यक्तित्व का आईना कभी नहीं बन सके ''| 

जहाँ तक पापा की विद्व्ता का प्रश्न है हम बच्चे जिससे भी कहते हैं कि हम ' हरि कुमार पंत उर्फ़ होरी' के बच्चे हैं, तुरंत यही सुनने को मिलता है '' तुम्हारे पापा बहुत विद्वान व्यक्ति हैं''| साथ ही यह भी सुनते थे कि वे अपने जवानी के दिनों में बहुत अप - टू - डेट रहते थे | उनके ऊपर उनकी कई शिष्याएँ जान छिड़का करती थीं | अब यह समझ में आता है कि शायद पापा ने अपने बच्चों के अंदर सादगी का संस्कार भरने के लिए ही अपने व्यक्तित्व को इस सांचे में ढाला होगा | 

पापा, गोदान के नायक ' होरी ' की तरह ऐसे इंसान हैं, कठोर परिश्रम ही जिसकी ज़िंदगी का एकमात्र उद्देश्य है | आज तिहत्तर [अब बयासी ] वर्ष की उम्र में जहाँ भी जाते हैं पैदल ही जाते हैं | बस कहने भर की देर होती है, ''पापा मेरा फॉर्म जमा करना है या फलाने बैंक का ड्राफ्ट बनवाना है', कड़कती धूप की उन्हें परवाह नहीं होती न घनघोर बारिश की फ़िक्र | किसी भी गाड़ी की सवारी बनना उन्हें पसंद नहीं | लोग उन्हें ' कंजूस, मक्खी चूस' जैसी अन्य कई उपाधियों से समय - समय पर अलंकृत करते रहे, लेकिन उन्हें किसी ताने का कोई फर्क नहीं पड़ा | आज लगता है कि पापा हम बच्चों से कहीं ज़्यादा स्वस्थ हैं | मेरे घुटने तैंतीस [अब बयालीस] की उम्र में दर्द [ अब तीव्र ] करते हैं, बहिन की सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती है, भाई को चक्कर आने का रोग है तो माँ डाइबिटीज़ व हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से ग्रसित है | कभी - कभार 104 डिग्री बुखार आने पर भी मात्र एक पैरासीटामोल की गोली और कई गिलास गर्म पानी पीकर स्वयं को स्वस्थ कर लेते हैं पापा | आराम करने को कहा जाए तो टका सा जवाब मिलता है '' मुझे अपाहिज मत समझो'|
 
एक क्षण को भी फ़ालतू बैठना या गप्पें मारना पापा को पसंद नहीं है | उनके हाथों को हमेशा कुछ न कुछ करते रहने की आदत है | वाशिंग मशीन के होते हुए भी अपने कपडे अपने हाथ से धोते हैं | कामवाली बाई है लेकिन मौका मिलते ही जूठे बर्तन धोने जुट जाते हैं | झाड़ू लगा देते हैं | काम वालों के लिए ज़्यादा काम न हो जाए इसका वे बहुत ख्याल रखते हैं | समाज के निचले तबके के लोगों के प्रति उनका स्नेह जग - जाहिर है | सुरेंद्र प्रेस वाला, राजन पान वाला, बबलू नाई उनके परम मित्र हैं | ये लोग दोस्ती के बहाने पापा से अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश नहीं करते शायद इसीलिए उनके आत्मीय हैं | इसके विपरीत कोई उच्च पदस्थ रिश्तेदार या परिचित उनसे मिलने घर आता है और अपने पद या शक्ति की डींग हांकता है तब पापा बिना कोई लिहाज़ किए बैठक से उठ कर चले जाते हैं और दोबारा अंदर नहीं आते | कारण पूछने पर हंसकर कहते हैं, '' मैं अगाथा क्रिस्टी की तरह आदमी के दिमाग में बैठ जाता हूँ और जान जाता हूँ कि कौन किस मकसद से आया है''|

पापा अपने कर्तव्य पालन में कभी पीछे नहीं हटे | मुझे याद है जब माँ के पैर में फ्रेक्चर हुआ था और वह दैनिक निवृत्ति विशेष प्रकार की कुर्सी में करती थी जिसमे पॉट बना होता था | एक दिन वह पॉट टॉयलेट में ले जाकर मुझे साफ़ करना पड़ा तो पूरा दिन उबकाई आती रही | उसके बाद माँ ने मुझे कभी नहीं आवाज़ दी | पापा तुरंत उस पॉट को टॉयलेट ले जाकर बिना किसी परेशानी के साफ़ कर देते | बाद में मैंने स्वयं को बहुत धिक्कारा पर पापा ने यह कहकर मुझे उस पॉट को हाथ नहीं लगाने दिया '' यह मेरा कर्तव्य है | मैं तेरी माँ का जीवन साथी हूँ | अगर मुझे कुछ होता तो यह कार्य तेरी माँ कर रही होती'' | यहाँ तक कि मेरी नन्ही बेटी नव्या [ अब तेरह साल ] भी मेरी अनुपस्थिति में पापा को ही आवाज़ लगाती है,'' नानाजी पॉटी कर ली, धुला दो''| 

बचपन से ही हम तीनों भाई - बहिनों को पापा की यह बात बहुत ही खराब लगती थी कि वे हमें जेब खर्च नहीं देते थे | हमारे कई मित्र लोग हमसे निम्न आर्थिक स्टार के होते हुए भी खूब चाट - पकौड़ी खाते और सैर - सपाटा करते | हम लोग अपना मन मसोस कर रह जाते और पापा को कोसने का कार्यक्रम सामूहिक रूप से करते | पापा का उदार चेहरा हमने तब देखा जब हमारी नानी दुर्घटनावश जल कर अस्पताल में भर्ती हुई | उस समय पापा ने पैसे खर्च करने में अपने उदार ह्रदय का परिचय दिया और तब भी जब मुझ पर विवाहोपरांत परिस्थितिजन्य आर्थिक विषमताओं ने आघात किया था | ससुराल में बीमार सास, पति द्वारा नौकरी छोड़ना, उस पर गर्भ में जुड़वां बच्चे | किसी को भी मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ देने के लिए काफी था, परन्तु जब - जब मुझे ज़रुरत पडी उन्होंने अपना रक्त - संचित धन देने में कतई संकोच नहीं किया | 
भाई, जो पापा की कंजूसी का अक्सर अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों के बीच मज़ाक उड़ाया करता था, एक दुर्घटना के चलते कई दिनों तक महंगे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती रहा, तब जाकर पापा के दृष्टिकोण को सही ढंग से समझ पाया | अब उसे भी पैसों के मामले में पापा के नक्शेकदम पर चलते देखकर बहुत प्रसन्नता होती है |  
   
माँ से ऊंची आवाज़ में बात करना या उसका अपमान करना पापा ने कभी गवारा नहीं किया | माँ के प्रति उनके मन में जो प्रेम है उसकी कोई सीमा नहीं | हम बच्चों के सामने ही पापा अक्सर माँ को '' डार्लिंग'' कहकर सम्बोधित करते हैं | '' यह मेरे जीवन की धुरी है | ये न होती तो मेरा पता नहीं क्या होता ''| पापा से यह सुनकर मेरे भाई 'रोहित' की पत्नी 'पंकजा' उससे अक्सर कहती है '' तुम अपने पापा से क्यों नहीं सीखते पत्नी को प्यार करना ''| 

माँ का बताया छोटे से छोटा काम करने को पापा हमेशा तत्पर रहते हैं | मैं कभी - कभी झल्ला कर माँ से झगड़ उठती, ''तुम पापा को इतना क्यों दौड़ाती हो ''? पापा के चेहरे पर शिकन का नामोनिशान तक नहीं मिलता | एक छोटा सा वाक्य हमारी बहस की इतिश्री कर देता,''ये गृहस्थी के प्रति मेरे कर्तव्य हैं बेटा ''|  
 
पापा के अंदर भरे हुए धैर्य को देखकर कभी - कभी हमें कोफ़्त होने लगती है | कभी कोई अर्जेन्ट काम के आ जाने पर भी पापा अपना काम पूरा करके ही उठते हैं | परन्तु इसी धैर्य के चलते वे किसी भी रस्सी या ऊन पर पडी बड़ी से बड़ी गांठों को बिना किसी परेशानी के घंटों तक बैठकर सुलझा लिया करते हैं | ग्रामर का कोई सूत्र समझ में न आने पर तब तक समझते रहते हैं जब तक कि वह दिमाग में अच्छी तरह से घुस नहीं जाए | पापा का यह धैर्य चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ क्यों न हों, हमेशा उनके साथ रहता है | कभी रात को जब हम भाई - बहिनों को घर लौटने में देर हो जाती थी तो माँ चिंता में व्याकुल हो उठती थी, पर पापा का चित्त एकदम स्थिर होता, ''अभी आ जाएंगे लौट के, चिंता मत करो'' | 

पापा के इस धैर्य का एक और उदाहरण हमने तब देखा, जब उन्हें पेंशन व फंड मिलने में ढाई साल लग गए, उस पर उनको कई हज़ार रुपयों का नुकसान भी उठाना पड़ा परन्तु उन्होंने सरकारी बाबुओं को रिश्वत देना उचित नहीं समझा | उन्होंने हमसे यही कहा, ''अपने खून- पसीने की कमाई को लेने के लिए मैं रिश्वत का सहारा नहीं लूंगा''| उन ढाई वर्षों की आर्थिक तंगी ने हम तीनों भाई - बहिनों को आत्मनिर्भर होने की तरफ अग्रसर किया | वह तंगी हमने न झेली होती तो शायद हम जीवन - संग्राम में संघर्ष करना सीख न पाते |  
  
पापा ने हमें ऐशो - आराम से भरपूर ज़िंदगी भले ही न दी हो परअपने स्नेह व वात्सल्य से हमेशा सराबोर रखा | नकचढ़ी, गुस्सैल व् ज़िद्दी होने के कारण बचपन में कई बार मैं बिना खाना खाए सो जाती तो पापा मुझे घंटों तक मनाते रहते और हाथ में खाने की थाली पकडे खड़े रहते थे | जब तक मैं खाना न खा लूँ, सामने से हटते नहीं थे, कहते, ''अगर मुझसे गुस्सा हो तो मुझे चाहे जितने घूंसे मार लो, पर खाना मत छोडो''| जाड़ों में बच्चों को  ज़ुकाम या बुखार न हो जाए इसके लिए वे हमें अपने हाथों से शहद और बादाम खिलाते थे |

''तुम तीनों मेरे कलेजे के टुकड़े हो '' | ऐसे मौकों पर यह उनका प्रिय वाक्य होता | हम तीनों को रोज़ रात को कहानियां सुनाना, अंगुली पकड़कर सैर पर ले जाना, हमारे साथ हमारे खेलों में शामिल होना उन्हें बहुत अच्छा लगता था | पहली - पहली बार जब मैं एम.एड.करने के लिए घर से निकल कर हॉस्टल रहने के लिए गयी तब माँ बताती है कि पापा ने उस रात खाना नहीं खाया और उनकी आँख में आंसू भी थे | वे बार - बार कह रहे थे,'' इतनी ठंड में अल्मोड़ा कैसे रहेगी बेचारी ''?    

न केवल अपने पत्नी, बच्चों वरन छोटे - छोटे जानवरों पर भी समय - समय पर उन्होंने अपना स्नेह - सागर उड़ेला | एक बार हमारे घर में एक बिल्ली अपने दो बच्चों को छोड़ कर चलेगी | हमने उन्हें भागने की बहुत कोशिश करी पर असफल रहे | उन्हें पालना हमारी मज़बूरी बन गयी | जब उन्हें पाला तो वे भी हमारे घर का एक हिस्सा बन गए | बिल्ली को ''छम्मो '' और बिल्ले को ''फुल्लो '' नाम दिया गया | पापा दोनों को अपनी थाली के पास बैठाकर खिलाते | उन बच्चों के दांतों को चबाने में कष्ट न हो इसके लिए रोटी के टुकड़ों को अच्छी तरह मसलकर उनके आगे रखते | बाद में बड़े - बड़े बिल्ले उन बच्चों को मारने के लिए घर के चक्क्र काटने लगे तो पापा उनकी रखवाली किया करते थे | घर में उनकी सुरक्षा के लिए ग्रिल व्  दरवाज़े भी पापा ने लगवाए | 

पापा ने अपनी जीभ की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करी | माँ, खाने - खिलाने की शौक़ीन होने के कारन अक्सर उनसे पूछती,'' कैसा बना है खाना ''? पापा का सपाट उत्तर होता,''खाने के बारे में इतनी बातें करना ठीक नहीं है |  जीने के लिए खाना चाहिए न कि खाने के लिए जीना चाहिए''| हम लोगों द्वारा खाने में पड़े नमक, मिर्च सम्बन्धी शिकायत करना भी पापा को सख्त नापसंद था | पापा खाने - पीने के लिए कभी किसी की दावत या शादी - ब्याह में शामिल नहीं हुए | घर पर रहकर दो रोटी नमक के साथ खाना उन्हें अच्छा लगत है | इकलौते पुत्र के विवाह के अवसर पर जहाँ लोग लड़की वालों को खसोटना अपना परम धर्म समझते हैं,पापा ने खाना तक नहीं खाया | दान - दहेज़ लेना तो दूर की बात है |  

मेरा विवाह जब तय हुआ था तो मेरे पति उच्च पद पर बहुराष्ट्रीय बैंक में कार्यरत थे | बिना किसी दान - दहेज़ के मेरा विवाह संपन्न हुआ था | विवाह पूर्व मेरी दोनों ननदें, जो मेरे पति से बड़ी थीं, विभिन्न विषयों पर मेरी राय जानने व अपने घर - परिवार से अवगत कराने हेतु मुझसे मिलने आई थीं | पापा से जब उन्होंने पूछा कि उन्हें कैसे दामाद की अपेक्षा है ? पापा ने बस इतना ही कहा, ''लड़की को दो रोटी खिलाने वाला होना चाहिए बस''|  ननदें, जो उच्च पदों पर आसीन थीं, आश्चर्य करने लगी,'' क्या सिर्फ दो रोटी खाने तक ही इंसान की ज़िंदगी सीमित होती है ?इसके आगे क्या कुछ नहीं चाहिए ? यह तो पशुवत जीवन के सामान होगा ''|  

मेरे ससुराल में काफी समय तक पापा की दो रोटी वाली वाली बात हंसी - मज़ाक का केंद्र - बिंदु बनी रही | परन्तु विधाता के खेल को कौन जान सका है ? परिस्थितियों की मार से एक दिन ऐसा भी आया कि हमें दो रोटी के तक लाले पड़ गए | मुझे मायके वापिस आकर एक बार फिर से नौकरी ढूंढनी पड़ी | कुछ समय प्राइवेट नौकरी करने के बाद माध्यमिक शिक्षा में मेरी नियुक्ति हो गयी | प्राथमिक की सरकारी नौकरी मैं शादी से पहले छोड़ चुकी थी | अब दो रोटी का इंतज़ाम मैंने किया | कठिन से कठिन क्षणों में पापा के सदा संघर्षरत चेहरे को ध्यान में रखकर मैंने अपने अंदर नई ऊर्जा अनुभव की है | 

कभी - कभी मैं अपने पति से कहती हूँ, '' इंसान को हमेशा पापा की तरह ज़मीन पर खड़े होकर बात करनी चाहिए, हवा में नहीं ''| 

आज पापा ने मुझे, मेरे पति और बच्ची को अपने घर में आश्रय दिया हुआ है [ दस साल बाद पिछले वर्ष अपने स्वयं के घर में प्रस्थान ]| 
      
यह उनकी ही दी हुई हिम्मत है जो हम दोनों अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू कर रहे हैं  आर्थिक विपन्नता ने मुझे इतना तोड़ दिया था कि मौत और ज़िंदगी के बीच कुछ ही क़दमों का फासला रह गया था | [ लखनऊ में किराए के तिमंजिले मकान की छत से अपनी बेटी को लटका कर पता नहीं किस घड़ी में हाथ वापिस खींच लिया ] 
  
किसी ऐसे ही उदास दिन बहिन ने परसाई की किताब पकड़ाई | मैं उसे पढ़कर चमत्कृत हुई | दुःख का ताज उतार फेंका | अपने अवसाद के खजाने को छोड़कर बाहर निकली और तब से मैंने ज़िंदगी के ऊपर व्यंग्य करना शुरू कर दिया |
  
एक अंग्रेज़ी के प्रोफेसर को आपने कम ही 'कप' को 'प्याला' कहते सुना होगा | पर पापा ऐसे ही व्यक्ति हैं | कॉलेज, घर हो या बाहर उन्होंने कभी अपने अंग्रेज़ी ज्ञान या पांडित्य का प्रदर्शन नहीं किया | ' अंग्रेज़ी सिर्फ मेरी रोज़ी - रोटी है मेरी आत्मा नहीं '', कहकर वे अपने काम में जुट जाते हैं | 
अनावश्यक धन का अर्जन उन्होंने कभी उचित नहीं समझा | यही कारण है कि रिटायरमेंट के पश्चात कई लोग ट्यूशन के लिए पूछने आए तो पापा ने उन्हें विनीत स्वर में मना कर दिया | अपने पूर्व साथी के बेहद आग्रह करने पर संविदा में पढ़ाने के लिए खटीमा गए लेकिन छह महीने के बाद वापिस आ गए | पेंशन नहीं, फंड नहीं, तीनों बच्चे बेरोजगार |  हम चिढ़ जाते और कहते,'' पापा ट्यूशन ही कर लेते तो हम सब आराम से रहते''| पापा निरपेक्ष स्वर में कहते,''मैंने तुम लोगों को पढ़ा - लिखा कर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया अब अपने लिए स्वयं अर्जित करना सीखो'' |    

पापा ने कभी भी लड़का व लड़की में भेद नहीं किया अपितु भाई अक्सर यह शिकायत करता कि पापा हम बहिनों को ज़्यादा प्यार करते हैं |
 
पापा ने अपनी मर्ज़ी अपने बच्चों या अपनी पत्नी पर थोपना कभी उचित नहीं समझा | हम भाई - बहिनों ने जो चाहा, वह किया | जिसने जो विषय चुनने चाहे, चुनने दिए | परीक्षा के दिनों में भी कभी न सुबह पढ़ने के लिए उठाया न रात को पढ़ने के लिए बाध्य किया | मनचाहे कपडे पहिनने, सजने - संवरने, लड़कों से दोस्ती, उनके साथ घूमने - फिरने पर भी उन्होंने कभी एतराज़ नहीं किया | मेरे विवाहोपरांत सरकारी नौकरी छोड़ने जैसा कदम जो बाद में आत्मघाती सिद्ध हुआ या भाई द्वारा बी.एस.एफ़.की कठिन नौकरी चुनने पर भी उन्होंने आपत्ति नहीं दर्ज की | 

स्वयं शुद्ध शाकाहारी होते हुए, माँ व भाई द्वारा निरामिष भोजन पकाकर खाने पर पापा ने कभी नाक - भौं नहीं सिकोड़ी | 

पापा ने कभी भी माँ के साथ एक आम पति की तरह व्यवहार नहीं किया | पापा रिटायर्ड थे और माँ प्राइवेट स्कुल में पढ़ाती थी | माँ के सुबह - सुबह स्कूल चले जाने के बाद बिखरा हुआ घर समेटते थे | आज माँ भी रिटायर्ड है तब भी घर के हर छोटे - बड़े काम में बड़े मनोयोग से माँ का हाथ बंटाते हैं | सुबह उठकर बिस्तर लगाना, पूजा के लिए फूल लाना, छोटे - छोटे बर्तनों को धोना, दूध उबालना, कपडे सुखाना उनका नित्य का कर्म है | 

माँ बताती है कि जब हम छोटे थे तो पापा हमारे मल -मूत्र वाले कपडे धो देते थे | रिश्तेदार और पड़ोसी उन्हें देखते और 'जोरू का गुलाम '' कहकर हंसी उड़ाते | पापा ऐसे लोगों की परवाह करना जाया करना समझते थे | पापा सच्चे अर्थों में आधुनिक प्रगतिशील पुरुष कहे जा सकते हैं | 
कहने को पापा का जन्म उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ है लेकिन वे मूर्ति पूजा, मंत्रोचारण, धार्मिक कर्मकांडों में कभी नहीं उलझे | माँ के बहुत आग्रह करने पर कभी - कभी पूजा घर के सामने खड़े होकर हाथ जोड़ भर लेते हैं | एक दिन मैंने पापा से कहा,'' पापा ! मम्मी के साथ बद्री - केदार हो आइये''| पापा ने जो जवाब दिया वह यह है,'' मेरा कर्तव्य ही मेरी पूजा है यह घर ही मेरा तीर्थ स्थान है''| 

सुबह की पहली किरण का स्वागत पापा ने हमेशा हाथ जोड़कर व सिर झुकाकर किया है | खाने की थाली से पहला कौर मुँह के अंदर रखते ही भगवान को धन्यवाद देना वे कभी नहीं भूलते | अपने हर कर्तव्य को भगवान् का कार्य समझने वाले पापा सच्चे अर्थों में धार्मिक हैं |
 
संन्यास लेने लोग घर से बाहर वनों व तीर्थ स्थलों को चले जाते हैं, पर पापा ने घर - गृहस्थी में रहते हुए भी अपने शरीर को सन्यासियों कीतरह साध रखा है | कितनी ही भीषण गर्मी क्यों न हो, उन्हें पंखा या कूलर की आवश्यकता नहीं होती है | कंपकंपाते हुए जाड़े में भी वे अपने एकमात्र घिसे हुए बीसियों साल पुराने स्वेटर को ही पहनते हैं कि '' यह मेरी बहिन 'बानू' ने मेरे लिए अपने हाथ से बुना था''| इसके अलावा कोई मोज़े, मफलर इनर या दस्ताने इत्यादि पहिनने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |   

पापा को किसी वस्तु को बर्बाद करना पसंद नहीं है | छोटी से छोटी वस्तु भी अगर काम की हो तो पापा उसे तुरंत संभाल देते हैं | कई बार हमें लगता है कि वे घर को कबाड़खाना बना दे रहे हैं परन्तु जब हमें किसी मामूली सी वस्तु की ऐन मौके पर ज़रूरत पड़ती है तो पापा जिन्न की तरह एक ही पल में उसे हाज़िर कर देते हैं | तब हमें उनकी इस आदत के महत्व का पता चलता है | 

पापा ने कभी कोई गलत काम करने पर हमें मारा - पीटा या डांटा नहीं | उनका एक ही अस्त्र हमें घायल कर जाता था | हमारी आत्मा को झकझोर देता था | बुरा सा मुंह बना कर बस वे इतना ही कहते थे,''छिः छिः तुम्हें लज्जा नहीं आती ऐसा काम करते हुए ''? पापा की वह धिक्कारती मुखमुद्रा कई दिनों तक हमारा पीछा करती रहती और हम दोबारा गलती करने की हिम्मत नहीं करते थे | 

छोटी बहिन क्षिप्रा अक्सर मुझसे कहती है,''दीदी ! भगवान् पापा जैसे इंसान को किस मिट्टी से बनाता होगा, जो कभी भी अपने विषय में नहीं सोचते, जो अपने बीवी - बच्चों में ही अपनी ज़िंदगी जीते हैं, जिन्हें सबकी छोटी से छोटी ज़रुरत का ध्यान रहता है ''| 

कभी भी आप उनसे मिलेंगे तो उन्हें अपने छोटे - छोटे कामों में तल्लीन पाएंगे | वे या तो किसी किताब में सिर गड़ाए [अब नहीं,९ साल में नज़रें कमज़ोर हो गयी हैं ] मिलेंगे या खेत के किसी कोने में घास - पट्टी को साफ़ करते हुए मिलेंगे | 

संसार का कोई ऐसा इंचटेप नहीं होगा जो उनके हिमालय से ऊंचे व सागर से गहरे व्यक्तित्व को नाप सके | हम तीनों भाई बहिन उनकी सादगी, कर्तव्यनिष्ठा, धैर्य, समर्पण, स्नेह एवं वात्सल्य के समक्ष नतमस्तक हैं | हम भगवान् से प्रार्थना करते हैं की वे स्वस्थ रहें, सानंद रहें और अपने आशीर्वाद से हम बच्चों अभिसंचित करते रहें |            
              

शनिवार, 10 जून 2017

छुट भैये और बड़ भैये ------


हमारे देश में नेता और नारी पर जितना लिखा जाए कम है | नारी पर लिखने के लिए मेहनत चाहिए नेता पर लिखने के लिए हिम्मत | 

बड़ा नेता यानि कि वह इमारत जिसकी बुनियाद छुट भैयों से बनती है | वह इबारत जो छुट भैये की छाती पर लिखी जाती है और पढ़ी बड़ भैया की शान में जाती है | 

बड़ भैया साँप हैं तो छुट भैया वह पत्ता, जिन पर सांप सरसराता चलता है | बड़ भैया नाव है तो छुट भैया पोखर का पानी जिस पर बड़ भैया ठाठ से पतवार चलाता है | बड़ भैया चील है तो छुट भैया वह पत्थर जिस पर चील शिकार खाता है | बड़ भैया गिरगिट है तो छुट भैया वह पेड़ की डाल जिस पर गिरगिट छिपा रहता है | बड़ भैया मकड़ा है तो छुट भैया वह दीवार जिस पर मकड़ा जाल बुनता है | 

छुट भैया वह चीज़ होता है जो अपने बड़ भैया के लिए जान न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहता है | चुनाव के दौरान बड़ भैया के लिए वोटों का जुगाड़ करता है | कॉलेज के लड़कों से लेकर खोखे, फड़ वालों, मजदूरों तक को भीड़ में, जुलूस में, नारे लगाने में शामिल करता है | सबका हमदम सबका दोस्त छुट भैया | 

एक दूसरे पर आश्रित बड़ भैया और छुट भैया | 

बड़ भैया, छुट भैया पर चुनाव जीतने के बाद वरदहस्त रख देते हैं तो वह किसी न किसी परिषद् का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, उपमंत्री, सहमंत्री, मंत्री कुछ भी बन जाता है | 
 
बड़ भैया पहले से ही शादीशुदा होते हैं जबकि छुट भैये की शादी बहुत मुश्किल से होती है क्योंकि कोई भी लड़की वाले इतने बड़े दिल के नहीं होते कि अपनी लड़की एक सेवक को सौंप दें | भला हो बड़ भैया की इमेज का कि कोई न कोई लड़की वाला आखिरकार फंस ही जाता है | ऐसे छुट भैये की जब शादी होती है तब बड़ा ही रोचक दृश्य उपस्थित हो जाता है | 

बारात के दिन जहाँ अन्य साधारण दूल्हे अपने को राजा से कमतर नहीं समझते, घमंड से गर्दन ऊंची तनी रहती है, किसी का भी अभिवादन करना उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगता है, वहीं छुट भैया अपनी खुद की शादी में भी सबको झुक - झुककर नमस्ते करता है, कि कहीं कोई नाराज़ न हो जाए | सबके पास व्यक्तिगत रूप से जाकर खीसें निपोरता है | 'खाना खाया कि नहीं', ड्रिंक आई या नहीं, भाभीजी और बच्चों को क्यों नहीं लाए, अम्मा की तबीयत कैसी है, भाई की नौकरी लगी या नहीं ? आदि आदि | अपनी शादी के दिन भी वह सबकी फ़िक्र में घुला रहता है |  
बड़ भैया जहाँ सिर्फ वोट मिलने तक ही हाथ जोड़ते हैं वहीं छुट भैये की जनता के आगे हाथ जोड़े रखने की मजबूरी होती है | क्योंकि यह जनता उसी का गला पकड़ती है | बड़ भैय्या तो हाथ आने से रहे | 

छुट भैये की शादी में बड़ भैये को अनिवार्य रूप से शामिल होना होता है | यह छुट भैये की इज़्ज़त का सवाल होता है | छुट भैया अपनी शादी की तिथि ग्रह, मुहूर्त, नक्षत्र, मौसम, रिश्तेदारों की सुविधा, परीक्षा की तिथि और बैंकट हॉल की उपलब्धता के आधार पर न करके बड़ भैये की उपरोक्त दिन की उपलब्धता के आधार पर पक्की करवाता है | बड़ भैया उसकी शादी की बारात में शामिल होकर बारात की रौनक बढ़ाने के काम आता है |

बारात में भी लोग अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते | जबरन उन्हें नाचने पर विवश कर देते हैं | बाराती उनका हाथ पकड़कर जबरन बैयां मरोड़ने की कोशिश करते हैं | वे प्रयास करते हैं कि किसी तरह से इनकी कमर [ रा ] हिल जाए या एक हाथ ज़रा सा मुड़ जाए ताकि वीडिओ में ऐसा लग सके कि बड़ भैया बारात में नाचते भी हैं | थोड़ी देर यूँ ही जबरदस्ती हाथ - पैर हिला कर बड़ भैया पैदल चलने लगते हैं | 

बड़ भैया का चेहरा दिखाकर छुट भैया का विवाह पक्का करवाने वाले बिचौलियों की दृष्टि में लड़की वालों पर रोआब गांठने के लिए बारात में बड़ भैया की उपस्थिति अत्यंत आवश्यक है | हांलाकि बड़ भैया के शादी में शामिल होने से एक पैसे की भी बचत नहीं होती उलटे तीस चालीस पिछलग्गुओं के भोजन और टीके का खर्चा अलग से बढ़ता है | इसका बस एक ही फायदा है कि जनता के मध्य यह सन्देश पहुंच जाता है कि बड़ भैया चुनाव जीतने के बाद भी आम लोगों की तरह रहते हैं | जान - सामान्य की शादी - विवाह में सम्मिलित होते हैं | सबके साथ खड़े होकर दावत भी खा लेते हैं | 

उधर दुल्हन के घरवाले दूल्हे का स्वागत करना भूल जाते हैं | सालियाँ तक जूता चुराना भूल जाती हैं | सारे आगंतुक दूल्हे को छोड़कर बड़ भैया के साथ फोटो खिचवाने में व्यस्त हो जाते हैं | दूल्हे को देखने में किसी की दिलचस्पी नहीं रहती | शादी की सारी रौनक बड़ भैया चुरा ले जाते हैं | छुट भैया को आज अपना होना सार्थक लगने लगता है | वह बार - बार अपनी भीग आई आँखों को पोछता है |   

अपनी शादी के समय छुट भैया कभी - कभी भाव - विभोर होकर इतना विनीत हो जाता है कि अपनी दूल्हे वाली शाही कुर्सी को बड़ भैया के आते ही छोड़ देता है, और दुल्हन के बगल में बड़ भैया को बैठने के लिए कह देता है, मानो कहना चाह रहा हो '' बड़ भैया ! किसी भी तरह की कुर्सी पर चाहे वह शादी की ही क्यों न हो, बैठने का पहला हक आपका ही है' | बड़ भैया गद - गद हो जाते हैं | जब तक बड़ भैया स्टेज से उतर नहीं जाते, वह खड़ा ही रहता है | 

छुट भैया कई बार भूल जाता है कि यह उसकी शादी का मंडप है और दूल्हा वह है | 

दुल्हन जब उसके गले में जयमाला डालने के लिए खड़ी होती है तो वह शर्मिन्दा हो जाता है '' काश ! इस समय बड़ भैया होते ! माला तो उन्हीं के गले में शोभा पाती है'' | वह इधर - उधर नज़र दौड़ाता है, बड़ भैया दूर - दूर तक नज़र नहीं आते तो मजबूरन माला पहिनने के लिए सिर झुका देता है | 

शादी के बाद दुल्हन जब अपनी एल्बम देखती है तो पाती है कि एक चौथाई फोटुओं पर बड़ भैया का कब्ज़ा है | उसका हज़ारों का मेकअप, लहंगा, उसकी बहनों के हेयर स्टाइल, दोस्तों के डिज़ाइनर कपडे, रिश्तेदारों के जड़ाऊ जेवरात, सब नेपथ्य में चले गए हैं | दुल्हन सिर पकड़कर रह जाती है | 


गुरुवार, 8 जून 2017

वह बहुत आगे जाएगा |

वह बहुत आगे जाएगा | आगे जाने की सारी कलाओं वह निपुण हो चुका है | वह आगे नहीं जाएगा तो और कौन जाएगा ?

वह जहाँ रहता है उस कस्बे में एक इंजीनियरिंग कॉलेज है | इंजीनियरिंग कॉलेज के पास पूरी फैकल्टी नहीं है | अपनी बिल्डिंग नहीं है | संसाधन नहीं है | पूंजी नहीं है | लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? अगर कोई यह सोचता है कि बिना इन मूलभूत सुविधाओं कोई संस्थान कैसे खोला जा सकता है तो यह उसकी समस्या है सरकार की नहीं | सरकार ने संस्थान खोलने की घोषणा करी थी और उसे पूरा कर दिया यही क्या कम बात है ? बाकी संस्थान नामक थान से निकलने वाले इंजीनियर जाने और उन्हें नौकरी पर रखने वाले जानें |

गौर इस बात पर करिये कि संस्थान के खुलने की घोषणा होते ही कई छोटे - बड़े रेस्त्रां, चंद स्टेशनरी की दुकानें, ढेरों चाय के फड़, दो तीन बड़े - बड़े जनरल स्टोर खुल गए और दिन दूनी रात चौगुनी गति से दौड़ने लगे | संस्थान अलबत्ता घिसट - घिसट कर चलने लायक हो गया था | 

ऐसे वातावरण में उसने वह खोला जिसे न तो पूरी तरह रेस्त्रां कहा जा सकता था और न होटल | इन दोनों के बीच की एक कड़ी कहना उपयुक्त होगा | इसके बिना इंजीनियरिंग या किसी तरह के संस्थान की कल्पना करना बेमानी होगा | देश में कहीं भी कॉलेज खुलने की घोषणा बाद में होती है, आस - पास की ज़मीनें पहले बिक जाती हैं |  

उसकी उम्र यही कोई पच्चीस से अट्ठाईस साल होगी | अपने इस होटल नुमा रेस्त्रां में उसका मेन्यू भी कुछ इस तरह का है, जिसमे चाइनीज़, साउथ इंडियन, नार्थ इंडियन, कॉन्टिनेंटल सब स्वाद स्थानीय तड़के के साथ चौबीस घंटे हाज़िर रहते हैं | इस कॉलेज के हॉस्टल के छात्र, फेकल्टी, बिल्डिंग, संसाधनों के न होने से ज़रा भी परेशान नहीं होते हैं | छात्र हॉस्टल के खाने से असंतुष्ट रहने की सनातन परंपरा का निर्वहन करते हुए दिन भर इस रेस्त्रां में अड्डा जमाए रहते हैं | घर से विभिन्न प्रकार की स्टडी व किताबों के लिए पैसा मंगवाते हैं और यहाँ बैठकर प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं पर और प्रेमिकाएं अपने प्रेमियों पर घंटों तक स्टडी करते हैं | अपने इस रेस्त्रां नुमा होटल में उसने इस तरह की अनिवार्य स्टडी के लिए अलग से केबिन बना रखे हैं, जहाँ को - स्टडी को अमली जामा पहनाया जाता है | यहाँ घंटों के हिसाब से किराया लिया जाता है | इन केबिनों से हुई आमदनी से वह अब रेस्त्रां में दूसरी मंज़िल उठाने जा रहा है | 

इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए जितना सामान्य ज्ञान चाहिए होता है वह उसमे अपडेट रहता है | छात्र - छात्राओं को एक - दूसरे के बारे में निःशुल्क जानकारियाँ उपलब्ध करवाता है मसलन कौन - कौन लड़का किस किस - लड़की के साथ यहाँ कब - कब आता है, कितनी देर बैठता है, क्या आर्डर करता है, कितना बिल आता है, इत्यादि इत्यादि | जिसको जानकारी चाहिए वह आए, खाए, पैक कराए,बिल चुकाए और जानकारी मुफ्त ले जाए |  

इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ कैसे सोशल इंजीनियरिंग की जाती है वह सारे फॉर्मूले जानता है | उसकी दिशा बिलकुल सही है | बाजार पर उसकी पकड़ का कोई जवाब नहीं | छात्राओं से निःसंकोच हाथ मिलाता है | काफी देर तक मिलाता है | छात्रों से गले मिलता है | देर तक नहीं मिलता | सबका दोस्त है | सबका ख़ास है | 

उसका चेहरा चिकना चुपड़ा है जिसे वह हर हफ्ते पार्लर जाकर दुरुस्त करवाता है, ताकि उसका सलोनापन बरक़रार रहे | अभी वह शादी भी नहीं करेगा क्योंकि इससे लड़कियों के मध्य उसका क्रेज़ ख़त्म हो जाएगा | लड़कियों के हॉस्टल में उनके बर्थडे केक की डिलीवरी भी नौकरों को न भेजकर खुद करता है | मालिक के खुद कष्ट करके केक लाने के और ''हैप्पी बर्थ डे टू यू'' गाने के अंदाज़ पर लड़कियां निहाल हो जाती हैं | इससे केक के ऑर्डर भी दोगुने हो जाते हैं | 

वह ज़माने की नब्ज़ अच्छी तरह पहचानता है | छोटे बच्चे किस तरह अपने माँ बाप की नब्ज़ कैसे पकड़ते हैं, वह समझता है | इसीलिए छोटे बच्चों को देखते ही उसकी बांछें खिल जाती हैं | वह बच्चों को उनकी माँ - बाप की गोदी से छीन लेता है | उनके ऊपर स्नेह वर्षा कर देता है | माँ - बाप इस बात से अनजान रहते हैं कि इस वर्षा के बाद जो बाढ़ आएगी वह उनकी जेब में मौजूद नकदी को बहा ले जाएगी | पचास पैसे का गुब्बारा खुद फुला कर देता है | पांच रूपये का मास्क, दस रूपये की चॉकलेट थमा देता है | बच्चे उसको सांता क्लॉज़ समझते हैं और खुश हो जाते हैं | बच्चों को खुश देखकर उनके माँ - बाप खुश | खुशी जल्दी ही दुःख में  बदल जाती है | माँ - बाप को शर्मिंदा होकर हज़ार - पांच सौ की शॉपिंग करनी पड़ती है | बाजार बच्चों से चलता है | यह फॉर्मूला उसने रट रखा है | बच्चे उसके प्रेम से अभिभूत होकर उसे बताने लगते हैं -
''अंकल अंकल मेरा बर्थडे आने वाला है''|  
''बर्थडे आने वाला है, अरे वाह ! यह लो पूरा डिब्बा चॉकलेट का'' | वह ताली बजाकर बच्चों जैसा अभिनय करता है | 
''यह तो बहुत महंगा है | आठ सौ का ! बाप रे !', नहीं बेटा ! यह नहीं ले सकते ''| पिता दयनीय स्वर में कहता है |   
''नहीं पापा ! मुझे यह चाहिए | मम्मा प्लीज़ ! ले लो ना !''
''ले लीजिये ! अब तो यह मानने से रहा''| माँ तो हथियार पहले से ही डाले  रहती है | 
वह बच्चे को तरह - तरह के आइटम दिखाता रहता है | बच्चा हर आइटम पर जान देने लगता है | इधर माँ - बाप की आधी जान निकल जाती है | जेब से नोट निकालना मजबूरी हो जाता है | 

इससे भी बढ़कर उसकी खासियत है सेवा के लिए तत्पर रहना | उसके जैसा सेवक कोई दूसरा नहीं हो सकता | मेज़ गंदी है तो कपडा लेकर खुद ही पोछ देता है | कस्टमर अगर गाड़ी से उतरने में तनिक विलम्ब कर दे तो दौड़ जाता है और उनके स्वागत के लिए अदब से खड़ा हो जाता है | उनसे चाभी मांगकर कार की लाइट बंद कर देता है | कार को खुद ही पार्क कर देगा | कार में कोई बुजुर्ग हो भाव - विभोर होकर उसका हाथ पकड़कर ससम्मान अपने रेस्त्रां नुमा होटल तक ले आता है | बुजुर्ग उसपर दुआओं की बरसात कर देते हैं और एक डिब्बा चॉकलेट खरीद कर ही जाते हैं | 

उसका बिछाया हुआ जाल इतना आकर्षक होता है कि अगर किसी ने महज़ रास्ता पूछने लिए गाड़ी रोकी हो तब भी वह वह बिना कुछ खरीदे या खाए नहीं जा पाता है | '' कैसा लगा ? कोई कमी हो तो ज़रूर बताइये | अपना अमूल्य सुझाव दीजिये'' | ग्राहक के सामने नतमस्तक खड़ा होकर पूछता है | ग्राहक अगर कोई सुझाव दे तो कहता है, अगली बार यह डिश आपके नाम से बनेगी'' | ग्राहक फूल कर कुप्पा | ''मेरे नाम की डिश ! वाह ! मैं कितना वी.आई.पी.| 

तभी तो मैं फिर कहती हूँ कि वह आगे नहीं जाएगा तो और कौन जाएगा ? 

शुक्रवार, 2 जून 2017

फेल, पास, फर्स्ट क्लास, टॉपर्स और हमारा ज़माना......

आज नंबरों की इस आपा - धापी के बीच अगर मुझे अपना ज़माना याद आ रहा है तो बच्चे मेरी हंसी उड़ाने लग जा रहे हैं | उस ज़माने में फर्स्ट आना ही मुश्किल होता था और नब्बे प्रतिशत अंक तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे | पर मेरा ज़माना इन अर्थों में अलग था कि कोई बच्चा कम नंबर आने या फेल होने की वजह से समाज में नीचा या ऊंचा नहीं सिद्ध होता था | 

मेरे ज़माने में फर्स्ट आने वाले को दूसरे ग्रह का प्राणी मान लिया जाता था | फर्स्ट के घर कोई एक आध ही बधाई देने जाता था | अधिकतर लोग रास्ते चलते ही 'बधाई' उछाल देते थे | 

सेकण्ड या थर्ड वाले गठबंधन वाली सरकार की तरह मिल - जुल कर रहते थे | थर्ड वाला भी कम सम्माननीय नहीं होता था, शान से कहता था '' दो - दो बॉडीगार्ड मिले हैं अगल - बगल | फर्स्ट का क्या है कोई इधर से पिचकाएगा तो कोई उधर से'' |  

बच्चों को आजकल की तरह नंबरों से कोई नहीं तोलता था कि, 'वह देखो उसके 89 % हैं या उसके 92 %आए हैं | बस ' पास हो गए' कह देने भर से ही काम बन जाता था | पूछने वाला समझ जाता था कि फर्स्ट डिवीज़न विथ टू बॉडीगार्ड मिले होंगे | सेकेण्ड आने वाला ज़रूर इत्तिला देता था, 'मैं सेकण्ड आया हूँ''| पचपन प्रतिशत वाला गर्व से सर उठाए कहता था '' गुड़ सेकेण्ड आई है, एक नंबर से फर्स्ट क्लास रुक गई''|   

पूरा मोहल्ला फेल होने वाले को सांत्वना देने आता था | तब लगता था कि फेल होना कितना कठिन काम है | फर्स्ट आने वालों को तो आता ही होगा | वो बिना पढ़े ही फर्स्ट आ जाते होंगे | लेकिन फेल होने वाला, फेल होने के लिए बहुत मेहनत करता होगा | फेल होने वाला भी शान से बताता था, ''बस एक ही नंबर से रह गया'' | अधिकतर फेल होने एक ही नंबर से फेल होते थे |

एक नंबर हमारे समय का महत्वपूर्ण नंबर हुआ करता था | 

हमारे समय में फेल होने वाले के लिए बहुत सुविधा थी | घरवाले ढाल बन जाते थे | रिश्तेदार मरहम होते थे | पड़ोसी कवच का कार्य करते थे |  

फेल होने वाले बच्चों की माएँ मिल - जुलकर दुःख साझा करती थीं | 

पहली माँ - ''आजकल तो रट के आ जाती है फर्स्ट क्लास | हमारा मुन्ना रट नहीं सकता इसीलिए रह गया | रटना भी किस काम का हुआ जब समझ में ही नहीं आ रहा है | रटने वाला तो तोता होता है | हमारा मुन्ना पाठ को अच्छी तरह समझने में यकीन रखता है | वैसे इंटेलीजेंट तो बहुत है हमारा मुन्ना | बस मेहनत ही नहीं करता | ज़रा मेहनत कर लेता तो सीधे टॉप करता | कौन सी बड़ी बात है टॉप करना''| 

''हाँ हाँ बहिन! तुम बिलकुल सही कह रही हो | जिसको देखो उसके ही ढेर सारे नंबर आ जा रहे हैं | भला यह भी क्या बात हुई ? नंबर न हुए मुफ्त का माल हो गया | हमारे ज़माने में तो दस - दस साल तक फर्स्ट क्लास नहीं आती थी किसी की | सेकेण्ड आने वाले को ही फर्स्ट की जैसी इज़्ज़त मिलती थी''| 

दूसरी माँ - ''नक़ल हो रही थी खुलेआम |  हमारे मुन्ना ने बताया | मुन्ना सीधा - साधा हुआ | नक़ल नहीं करूँगा कहा उसने चाहे फेल हो जाऊं | 
प्रेक्टिकल में भी कम नंबर दिए टीचर ने | थियोरी में तो फुल थे | मुन्ने से चिढ़ता था टीचर | ट्यूशन नहीं पढ़ा इसीलिए कम नंबर दिए''| 

''सही कहती हो बहिन ! नक़ल का सहारा कब तक लेंगे | इस साल नहीं तो अगले साल लुढ़क जाएंगे | ऊपर वाला कहीं न कहीं हिसाब बराबर कर ही देता है'' | 

सारी माएं ऊपर की ओर देखने लगती थीं | ऊपर वाला निश्चित रूप से इतनी जोड़ी आँखों को अपनी ओर ताकता देखकर डर जाता होगा कि अभी तो हिसाब - किताब का पिछला बैकलॉग ही नहीं निपटा और नया काम आ गया |  

तीसरी माँ - ''अपना मुन्ना तो ऐन एग्जाम के समय बीमार पड़ गया था | उसकी बचपन से ही किस्मत खराब हुई | मैंने तो मना भी किया कि मत देने जा पेपर | माना ही नहीं | अरे ! तबीयत ज़्यादा ज़रूरी है कि एग्जाम | लड़खड़ाते हुए एग्जाम देने गया | दो जनों ने इसे पकड़ा और कुर्सी पर बैठाया | अब ऐसे में क्या पास होता ? हमने भी कहा '' कम से कम एग्जाम तो देने की हिम्मत तो की तूने | हमारे लिए तो यही बहुत बड़ी बात है | हमारा मुन्ना तो चलो बीमार हो गया था लेकिन मार्किन इतनी हार्ड हुई कि मुन्ना के आगे पीछे की सारी लाइन गायब है | सब लुढ़क गए | मुन्ना बता रहा था कि क्लास का सबसे होशियार लड़का, सब जवाब देने वाला भी फेल हो गया ''|  

'' शर्म की बात है बहिन ! मार्किंग करने वालों के अपने बच्चे नहीं होते होंगे क्या जो दूसरों के बच्चों को ऐसे फेल कर दिया''| 

चौथी माँ - ''हमारे जेठ की साली का लड़का है बहुत्ती होशियार | बचपन से टॉपर | नौकरी लगी विदेश चला गया | ऐसा हाई - फाई हो गया की माँ - बाप को ही नहीं पूछता | शक्ल भी नहीं दिखाता | फोन भी बहुत मुश्किल से करता है | कहता है काम बहुत है | कम्पनी ने बांड भरवा रखा है कि इतने साल तक यहीं रहना है | मैं तो कहती हूँ कि बच्चों को ज़्यादा अक्लमंद नहीं होने चाहिए | बेवकूफ बच्चा सदा माँ - बाप के साथ रहता है | बुढ़ापे में सेवा करता है | अपना राजू दो बार और फेल हो जाए तो परचून की दुकान खुलवा देंगे उसके लिए | जब मन चाहे बैठे | किसी की धौंस नहीं है कि मन हो न हो काम करना ज़रूरी है | 

''बिलकुल सही कह रही हो बहिन | क्या चाहिए हो रहा फिर ऐसा होशियार लड़का | इससे तो अपना बेवकूफ ही भला '' |  

पांचवी माँ -- ये जो मेरा चचेरा देवर है ना ! पता है... यह हाईस्कूल में तीन बार फेल हुआ था | आज कितना बड़ा अफसर बन चुका है, और मेरी जेठानी का छोटा भाई है न वह तो लगातार हर साल हर क्लास में दो - दो साल फेल होता था | रिकॉर्ड हुआ उसका | आज कितना सफल बिज़नसमैन है | इससे भी बड़ा एक और उदाहरण है | मेरे हसबैंड के साथ स्कूल में एक बहुत ही होशियार लड़का होता था | फर्स्ट से नीचे कुछ आता ही नहीं था | आज वह उसी बैंक में कैशियर है जहाँ मेरे हसबैंड रोज़ हज़ारों रुपया जमा करने जाते हैं | बेचारा उन्हें देख कर खिसिया जाता है''| 

छठी माँ --बहुत होशियार बच्चों को बाद में डिप्रेशन हो जाता है | बच्चों को ज़्यादा बुद्धिमान नहीं होना चाहिए | याद है न हमारे पड़ोस वाले गिरजा कक्का का सुरेश ! हमेशा हर क्लास में टॉप करता था | बाद में किसी कम्पटीशन में नहीं निकला तो डिप्रेशन में आ गया | मानसिक अस्पताल में भर्ती करना पड़ा | बाद में कुछ ठीक हुआ तो घर ले आए लेकिन वह घर से भी भाग गया | बीस साल हो गए अभी तक न अता न पता | अब क्या करना हुआ ऐसे टॉपर का ? बताओ तो | 

'आग लगे ऐसी फर्स्ट क्लास'' | 

सातवीं माँ एक फेल लड़की की --''फर्स्ट आए चाहे थर्ड, पकानी सबको रोटियां ही हैं | वैसे भी ज़्यादा होशियार या फर्स्ट आने वाली लड़की ससुराल में हमेशा दुखी रहती है | फेल होने वाली बुद्धू लड़कियां ठाठ करती हैं पति उनकी मुट्ठी में रहता है | सास चूं नहीं करती | ममता को ही देख लो तिवारी जी की, तीन बार में पास हुई हाईस्कूल में | आज देखो ! क्या मज़े से कट रही है | हर महीने नया ज़ेवर खरीदती है और नई साड़ी खरीदती है | अरे ! लड़कियों को तो घर के काम में एक्सपर्ट होना चाहिए'' | 

''ससुराल में जो पूछ रहा फर्स्ट क्लास को ''| 

''ही ही ही ही''  
''हा हा हा हा'' 
''हो हो हो हो'' 
''खी खी खी खी''

सारी माओं की समवेत हंसी चारों ओर घुल जाया करती थी  | 

मोहल्ले के फेल हुए सारे बच्चों की माएँ मिलकर निम्न बिंदुओं पर सहमति की मोहर लगाती थीं -----

'कोई बात नहीं | इस साल रह गया तो अगले साल पास हो जाएगा' | 
'जो होता है अच्छे के लिए होता है | इस साल इसीलिए फेल हुआ होगा ताकि अगले साल फर्स्ट आ पाए' | 
'पास - फेल तो लगा ही रहता है'|  
'ज़िंदगी के इम्तहान में फेल नहीं होना चाहिए' | 
'फर्स्ट डिवीज़न को चाटना हो रहा क्या ? पास हो जाना चाहिए' | 
'सभी पास हो जाएंगे तो फेल कौन होगा' ?
'फर्स्ट आने से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है अच्छा इंसान बनना' | 
'फर्स्ट आने वाले या टॉप करने वाले कम्पटीशन में नहीं निकल पाते हैं' | 
'जो बचपन में बहुत होशियार होता है बाद में गधा हो जाता है' 
'जो शुरू में गधे होते हैं बाद में सफलता के झंडे गाड़ देते हैं'|   
'फर्स्ट आने वाले का मन जल्दी ही पढ़ाई से ऊब जाता है' | 
'कौन पूछता है बाद में फर्स्ट आया था कि थर्ड' | 
'फर्स्ट आने वाले कौन सा कद्दू में तीर मार देते हैं' ?

माओं की ऐसी बातें सुनकर, आत्महत्या किस चिड़िया का नाम होता है तब के समय में कोई बच्चा नहीं जानता था | 

मंगलवार, 30 मई 2017

एंटी रोमियो स्क्वाड से बचने के तरीके ----


इधर यू पी में योगी ने सत्ता संभाली उधर रोमियो टाइप के लोगो की शामत आ गयी | हांलाकि रोमियो की आत्मा चीखती रही कि मेरा नाम इस स्क्वाड वगैरह में मत घसीटो | मैंने बस जूलियट से ही प्यार किया था | मैंने किसी भी लड़की को नहीं छेड़ा, लेकिन सरकारें जब किसी जिन्दा आदमी की नहीं सुनती तो फिर रोमियो की आत्मा की क्या विसात ?

हो यह रहा है कि इस स्क्वाड के बावजूद यू पी में मनचलों की छेड़छाड़ जारी है | उसी तरह से जिस तरह से तमाम तरह के क़ानून होने के बावजूद बलात्कार, भ्रष्टाचार और अन्य अपराध जारी हैं | कहना चाहिए कि कानून बनने के बाद अपराध ज़्यादा होने लगते हैं और खुलेआम होने लगते हैं | 

स्क्वाड से कहा गया कि प्रेमी जोड़ों को परेशान नहीं करना है | छेड़छाड़ करता हुआ जो पाया जाए उसे ही निपटाया जाय | लेकिन हुआ यह कि सरकारी स्क्वाड से प्रेरित होकर कुछ स्वयंसेवक भी इस पुनीत कर्तव्य का पालन करने के लिए मैदान में उतर आए | अब ये स्वयंभू स्क्वाड प्रेमी जोड़ों को सरेआम पीट रहे हैं | छेड़खानी करने वाले छेड़ कर भाग जा रहे हैं और प्रेमी जोड़े इनके हत्थे चढ़ जा रहे हैं | 

प्रेमी अगर वास्तव में प्रेम करना चाहते हैं तो उन्हें प्रेम करने के सदियों से चले आ रहे तरीकों को तिलांजलि देनी होगी और नए हथकंडे अपनाने होंगे | प्रेमी जोड़ों को मिलने की जगह के बारे में अपनी परंपरागत सोच को बदलना होगा | बाग़ - बगीचे, रेस्त्रां, होटल, कॉफी शॉप, पिक्चर हॉल, नदी या समुन्दर किनारे मिलने के बजाय ऐसी जगहों के बारे में सोचना होगा जहाँ ये स्क्वाड वाले पर भी न मार सकें | 

इसके लिए सब्ज़ी बाज़ार, राशन की दुकान , बिजली, पानी के बिल भरने की लाइन, पोस्ट ऑफिस में नौकरी के फॉर्म जमा करने के लिए लगने वाली तीन - चार किलोमीटर लम्बी लाइन में सबसे पीछे लगा जा सकता है | यह प्रेमियों को दो - तीन घंटे साथ में बिताने का भरपूर मौका देता है | साप्ताहिक हाट बाजार, तहसील, कोर्ट भी मिलने के लिए मुफीद स्थान हैं | सत्संग, धार्मिक कथाएं, भजन, जगराते भी काफी हद तक सुरक्षित कहे जा सकते हैं बशर्ते प्रेमियों के अंदर सदियों से चली आ रही धार्मिक बातें सुनने और कर्णफोड़ू संगीत को सुनने का माद्दा हो | न भी हो तो प्रेक्टिस करके सीखा जा सकता है | प्रेम सब कुछ सिखा देता है | 

प्रेमी जोड़ों को सवारी के विषय में भी सावधानी बरतनी होगी | वे भूल कर भी बाइक पर न बैठें | प्रेमी बाइक से उसी प्रकार दूरी बना लें जिस प्रकार शादी के बाद पति - पत्नी प्यार नामक शब्द से दूरी बना लेते हैं | अगर घर में कोई पुराना स्कूटर या साइकिल न हो और बाइक में बैठना ही एकमात्र विकल्प हो तो ऐसे बैठें जैसे कि जैसे दोनों के बीच से एक हाईटेंशन तार गुज़र रहा हो और गलती से भी एक दूसरे को छू लिया तो 440 वोल्ट का करेंट लग जाएगा | कम से कम इतनी दूरी बनाए रखें कि दोनों के बीच में एक गैस का सिलेंडर आराम से आ जाए | प्रेमी जोड़े लोकल बस में धक्के खाते हुए सफर करें | टेम्पो, इक्का, रिक्शॉ जैसी सवरियों का प्रयोग भी ठीक रहेगा | 

प्रेमी जोड़े शब्दों के चयन में विशेष सावधानी बरतें | प्रेम प्यार, दिलबर, जानू, स्वीटी, हनी, मुन्ना, बेबी, डार्लिंग जैसे शब्दों से उसी प्रकार दूरी बना लें जैसे शुगर की बीमारी वाले मीठे से और ब्लड प्रेशर की बीमारी वाले नमक से दूरी बना लेते हैं | 

आपस में बातचीत करते समय हाई एलर्ट रहें | प्राचीन काल में दीवारों के भी कान होते थे | आजकल दीवारों के पास कान के साथ - साथ हाथ - पैर, डंडे, तमंचे भी होने लगे हैं | ऐसे में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता हो जाती है | प्रेमी जन बार - बार शब्द बदल - बदल कर एक ही तरह की बात करें | सारी बातों का निचोड़ यही होना चाहिए कि '' इसके साथ होने से आपकी ज़िंदगी बर्बाद हो गयी है ''| प्रेमिका इस तरह के डायलॉग कंठस्थ कर लें -क्या किस्मत पाई है मैंने ! मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ? पिछले जन्म में क्या पाप किये होंगे मैंने ?मैंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा फिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ? इत्यादि इत्यादि | 

प्रेमी भी ऐसे संवाद रट ले तो स्क्वाड वाले तनिक भी शक नहीं करेंगे --''इन लड़कियों को तो ऊपर वाला भी नहीं समझ पाया फिर मेरी क्या हस्ती ? तिरया चरित्र साला | अभी ये लक्षण हैं तो शादी के बाद पता नहीं क्या होगा ? पता नहीं क्या देखा इसमें ? ' दिल आया गधी पर तो ----| कुछ भी कर लो कभी खुश नहीं होगी''| प्रेमिका जब प्रेम की बातें करना चाहे तो प्रेमी ठीक उसी समय राष्ट्रीय और अंतररष्ट्रीय चिंतन में व्यस्त हो जाए | आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी, परमाणु हमला, ओजोन परत, ग्लोबल वार्मिंग के मुददे पर गंभीरता पूर्वक मनन करने लग जाए |

प्रेमी जोड़ों को भाव भंगिमा के क्षेत्र में थोड़ी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी | शर्माना, सकुचाना, इधर उधर देखना, हथेलियों में मुंह छिपा लेना, पल्लू या दुपट्टे का कोना मरोड़ना, हलके से मुस्कुराना, आँखें झपकाना जैसी फूहड़ और घटिया हरकतें बंद करनी होंगी | इनके स्थान पर परेशानी, खिन्नता, ऊब को चेहरे का स्थाई भाव बना लें | ज़िंदगी बर्बाद, पश्चाताप, फूटी किस्मत, दुर्भाग्य जैसे शब्दों का सुबह - शाम जाप करते रहें | इन मन्त्रों का लगातार जाप करने से चेहरे पर वैसे ही भाव आ जाते हैं | दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डालने की गलती बिलकुल न करें | प्रेमी जब आकाश तो देखे तो प्रेमिका को पाताल की ओर देखना चाहिए | एक उत्तर की ओर देखे तो दूसरा पश्चिम को देखे |   

आशा करती हूँ कि इन उपायों को अपनाने के बाद प्रेमी जोड़े स्क्वाड के हत्थे पड़ने से बच जाएंगे और माता - पिता बिना दहेज़ दान के अपनी कन्याओं का कन्यादान कर पाएंगे | 

शनिवार, 27 मई 2017

बिना शीर्षक ----व्यंग्य की जुगलबंदी ३५


एक दिन ऐसा भी हुआ कि सारे अखबारों में से मोटे - मोटे अक्षरों में छपने वाले शीर्षक गायब हो गए | सारा दिन न्यूज़ चैनलों से ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश नहीं हुई | व्हाट्सप्प से एक भी हिंसक वीडियो वायरल नहीं हुआ | 

पृथ्वी के फलाने - फलाने दिन खत्म होने की भविष्यवाणी नहीं हुई | मौसम बस मौसम की तरह आया किसी डरावने राक्षस की तरह नहीं आया कि जिसके आने से पहले चेतावनी देनी पड़े | 

गर्मी का मौसम आया तो बिना डराए हुए निकल गया | 'जल्दी ही खत्म हो जाएगा पानी' | 'प्यासे मरेंगे धरती वासी'|'और झुलसाएगी गर्मी'|'आने वाले दिनों में तापमान बढ़ता ही जाएगा' | लू के थपेड़े झेलने के लिए तैयार रहें '| 'अभी और तपेगी धरती' जैसे भयानक समाचार नहीं सुनाई पड़े | 
गर्मी बचपन के दिनों की तरह आई | जितनी बार चाहा नहा लिया | नहाने में डर नहीं लगा न ग्लानि हुई कि मैंने नहा कर धरती का सारा पानी खत्म कर दिया | बिना कैलोरी की टेंशन किये दिन में चार बार अलग - अलग किस्म के शरबत पिए | 'लू लग जाएगी' कहकर किसी पड़ोसन ने डराया नहीं और नंगे पैर मोहल्ले भर की ख़ाक छानती रही | भरी दोपहरी में दोस्तों के साथ आई स्पाय या सेवन टाइम्स का खेल खेला | गूलों में बिना गन्दगी या बैक्टीरिया की टेंशन के दल - बल के साथ दिन भर घुसे रहे | जब तक मम्मी डंडा लेकर मारने के लिए नहीं आ गयी तब तक निकले ही नहीं | रात को छत पर कई बाल्टियां पानी डालकर, दरी बिछाकर, ओडोमॉस लपेटकर, गप्पें मारकर सो गए | बिजली के आने न आने की परवाह नहीं करी | ए. सी. लगाने के बाद मीटर के दौड़ने का तनाव नहीं हुआ और चैन से नींद आई | दिन में हज़ार बार फ्रिज खोला और दिन भर बर्फ निकाल कर चूसते रहे | इंफेक्शन, खांसी, जुखाम का भय नही | सस्ती आइसक्रीम के ठेले पर टूट पड़े | गन्दा पानी, इंफेक्शन, कीटाणु जैसे शब्द हमारी डिक्शनरी से बाहर हो गए | 


जाड़े का मौसम जब आया तब आनंद ही आनंद लेकर आया  | 
किसी ने आकाशवाणी नहीं करी | जम जाएगी धरती | हिम युग आने वाला है | ब्रेन स्ट्रोक, ब्लडप्रेशर वाले रहें सावधान | जम जाएगा नलों का पानी | खाने - पीने की वस्तुओं के दाम आसमान पर | कौन बचाएगा धरती को | पूरी सर्दी किसी मौसम वैज्ञानिक ने जनता को सावधान नहीं किया | सब असावधानी से रहे और चैन से रहे | 

जाड़ा बचपन की तरह आया | एक पतला सा स्वेटर पहने हुए, न इनर , न जूते, न मोज़े, न टोपी, न मफलर, न कफ सीरप,न डॉक्टर के चक्कर लगे | नाक बहती रही, खांसी खुद ब खुद बोर होकर बिना दवाई के ठीक हो गयी | बिना हीटर और ब्लोवर के एक ही रजाई में सारे भाई - बहिन सो गए | सन टेनिंग, त्वचा का शुष्क होना, होंठ और गाल फटना इत्यादि छोटी मोटी समस्याओं की टेंशन से दूर सारा दिन धूप में खेलते - कूदते हुए गुज़ार दिया | जाड़े के मौसम में यह न खाएं, वह न पीएं ऐसा किसी डाइट एक्सपर्ट ने नहीं बताया | 

बरसात जब आई तो पानी लेकर आई | बाढ़ आएगी तो कहाँ- कहाँ विनाश होगा | बाँध टूटेंगे तो कहाँ तक के शहर डूब जाएंगे | भूस्खलन से सावधान | बह जाएगी एक दिन दुनिया |  आकाश से बरसी आफत जैसे खतरनाक बमवर्षक शब्दों की बमबारी नहीं हुई | 

बचपन की तरह बरसी बरसात | छत के पाइप के रास्ते से आने वाले गंदे पानी की बौछारों के नीचे सिर लगाकर खड़े हो गए | जिधर ज़रा सा पानी जमा हुआ देखा उधर कागज़ की नाव बनाकर तैरा दी | ज़ोर - ज़ोर से उस पर खड़े होकर छप - छप करी और एक दूसरे को उस पानी से भिगाने का सुख महसूस किया | पानी में मेंढक बनकर उछले | सांप बनकर रेंगे | चिड़िया बनकर मुँह खोलकर बारिश में खड़े हो गए |  मूसलाधार बारिश के दिन छाता और बरसाती दोनों एक साथ लेकर पड़ोस में रहने वाली मौसियों और चाचियों के घर जाकर उन्हें अचंभित किया | ओले बटोरे और उन्हें मटके में भरा | कभी हथेली में उठा कर उसके पिघलने तक इंतज़ार किया | हाथ सुन्न पड़ जाने पर हाथों को बगल में दबाकर गर्म करने की कोशिश करी |  सड़क किनारे खड़े ठेले से गोलगप्पे खाने में पेट में कभी इंफेक्शन नहीं हुआ | मच्छर, डेंगू, मलेरिया नामक बीमारियों की दुनिया से परे शरीर से खून चूसते मच्छरों को पट - पट करके मारा | 'किसने कितने मच्छर मारे' के आधार पर उस दिन का विजेता घोषित किया | 

दिन जब एक साधारण दिन की तरह आया  | 
किसी ने नहीं डराया कि तृतीय विश्वयुद्ध किस बात पर होगा ? कौन बन रहा है महाशक्ति ? परमाणु हथियार किसने कर रखे हैं तैयार ?अगर परमाणु हमला हुआ तो कहाँ तक असर होगा ? कितने लोग मारे जाएंगे ? आने वाली पीढ़ियां इस हमले की वजह से कितनी बीमारियां झेलेगी ? कितने राष्ट्र नेस्तनाबूद हो जाएंगे | किसका मिट जाएगा नामोनिशान ? कितने सालों तक तबाहियाँ होती रहेंगी ? कौन - कौन देश एक साथ लड़ेंगे ? किस - किस हथियार से युद्ध लड़ा जाएगा ? 

दिन आया तो बचपन की तरह | खेला - कूदा | खाया - पिया | दौड़े - भागे | सोए - उठे | उठे - सोए | मार - पीट | लड़ाई - झगड़ा | कट्टी - सल्ला | सुलह - सफाई | छुप्पन - छुपाई | सुबह रंगोली | शाम चित्रहार | गुड़िया की शादी | अपनी रसोई | छोटी - छोटी पूरियां | गाना - बजाना | नाच | मम्मी की साड़ी और लिपस्टिक | पापा का चश्मा | नानाजी की लाठी | नानी की कहानियां | रामलीला का खेला खेलते दिन बीत गया |  

रात को मैंने बच्चों से पूछा, '' आज दिन भर में कुछ भी डरावना नहीं हुआ बच्चों | किसी अखबार मे रेप, दुष्कर्म, अपहरण, आतंकवाद, हत्या की खबर नहीं है | सारे चैनल सुनसान पड़े हैं | आज तुम परियों की कहानी सुनना चाहोगे ?
 

रविवार, 21 मई 2017

व्यंग्य की जुगलबंदी ३२ - हवाई चप्पल

हवाई चप्पल ----

एक राम किशोर हैं | अस्सी साल से ऊपर के रिटायर्ड मास्टर | झुकी हुई कमर | कमज़ोर नज़रें | दुबले इतने कि ज़ीरो फिगर वाली लड़कियां शर्मा जाएं | वे इंसान के खाली बैठने को दुनिया का सबसे बड़ा पाप मानते है | 

राम किशोर की आवश्यकताएं बेहद सीमित हैं | रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सबसे आवश्यक जिसको मानते हैं वह है हवाई चप्पल | अगर घर के अंदर कोई नंगे पैर चलता दिख जाए तो उसकी शामत आ गयी समझो | पहले उससे नंगे पैर चलने का कारण पूछा जाएगा | अगर उसके मुंह से ' चप्पल नहीं मिल रही ' जैसा कुछ निकल गया तो टॉर्च लेकर चप्पा - चप्पा छान मारेंगे | किसी की चप्पलें खो जाएं तो उनका चेहरा खिल जाता है | खोई हुई चप्पलों को ढूंढने के लिए खाना - पीना छोड़ तक छोड़ देते हैं | चप्पल खोज के सघन अभियान के दौरान बीच - बीच में आकर लेटेस्ट अपडेट भी देते रहते हैं  -

''सारा घर छान मारा'' | 
''हर कोने में देख लिया''
''बिस्तर के नीचे डंडा डालकर भी देखा'' | 
''सोफे के नीचे तक ढूंढ लिया'' | 
''कहीं नहीं मिली''|  
''आकाश - पाताल एक कर दिया''|  

कई घंटों की मशक्कत के बाद अंततः उन्हें चप्पल ढूंढो अभियान में सफलता मिल ही जाती है | चप्पलें शू रैक में करीने से लगी हुई बरामद होती हैं | ऐसा कभी कभार ही होता है कि चप्पलें अपनी निर्धारित जगह पर रखी हुई हों | 

कभी उनकी चप्पल इधर - उधर हो गयी तो भौंहों में बल डालकर गुस्से में कहते हैं ''लगता है कोई उठा ले गया | घर में कौन - कौन आया था'' ?

बच्चे-----
''ही ही ही,  पापा आपकी चप्पल कौन उठाएगा''?
''आपकी चप्पलों की हालत देखकर तो उसका मन करेगा कि आत्महत्या कर ले'' | 
''अगर आत्महत्या नहीं कर पाया तो अपनी चप्पल छोड़ कर खुद नंगे पैर चला जाएगा'' |
''ग्लानि से भर कर चोरी ही छोड़ देगा'' |  
पत्नी -----
''सब चोर ही आते हैं इस घर में '' 

तरह - तरह के मज़ाक भी उन्हें उनके उद्देश्य से विचलित नहीं कर पाते | 

राम किशोर की चप्पल भी इतनी जबरदस्त होती है कि देखने वाला देखते रह जाए | घिसते - घिसते असली रंग दिखने लगता है | फीते टूट जाते हैं तो पहले खुद फीतों को सिलने की कोशिश करते हैं | मोटी सुई और धागा माँगा जाता है | घंटों तक जद्दोजहद करने के बाद जब किसी भी तरह से सिल नहीं पाते तो मोची का पता पूछते हैं |  

बच्चे ----
'' पापा मोची ने मना कर रखा है कि इस चप्पल को लेकर मत आना ''| 
''अगर आप इस चप्पल को लेकर गए तो वह अपने आपको आपको गोली मार देगा | 
'' वह अपना धंधा छोड़ देगा ''| 
पत्नी -----
'' क्या हो गया है आपको ? कितने दिन चलेंगी ये ?नई चप्पलें क्यों नहीं खरीद लेते''?

राम किशोर हार नहीं मानते,'' तुम लोग बहाने बनाते हो | सब के सब निकम्मे हो | मैं खुद ही ले जाऊँगा अपनी चप्पल ''| 

वे झुकी हुई पीठ और टूटी हुई चप्पलों को लेकर नुक्कड़ के मोची के पास जाते हैं | लौटते समय उनकी चाल में गज़ब की अकड़ आ जाती है | झुकी हुई पीठ सीधी हो जाती है | बहती हुई बीमार आँखों में चमक देखते ही बनती है |
   
''तुम लोग झूठ बोलते थे | मोची ने फटाफट दूसरे फीते डाल दिए | उसने कहा कि टाँके नहीं लग पाएंगे तब मैंने कहा कि अगर ऐसा है तो फिर फीते ही बदल दो | वह तो बहुत ही भला इंसान निकला | उसने बस दस ही रूपये लिए | कहने लगा ''आजकल हवाई चप्पलों में फीते डलवाता ही कौन है ? महीने में एक - आध बार ही ऐसे ग्राहक आते हैं ''| 

बच्चे ---
''आपको सम्मानित नहीं किया उसने''?
'' ऐसा कहकर वह आपकी मज़ाक बना रहा था''| 
'' आपका फोटो खींचकर सोशल मीडिया में अपलोड करेगा ''| 
पत्नी --
'' पता नहीं क्या सुख मिलता है इन्हें लोगों को ऐसा दिखाकर'' | 

असंख्य टाँके लगने और दो - तीन बार फीते बदलने के बाद जब तला इतना घिस जाता है कि चप्पल आधी रह जाती है तब वे दानवीर कर्ण बनकर उन्हें बाहर रख देते हैं ''कोई गरीब ले जाएगा ''| 

बच्चे ----

''बिना तले की चप्पलें पहिनने वाला गरीब इस दुनिया में एक ही है'' |
''उसे चप्पल मत कहिये पापा'' |
''लोग मज़ाक उड़ाते हैं पापा'' | 
पत्नी -----
''तेरे पापा शौक है अपने को गरीब दिखाने का'' |

''मैं क्या किसी की मज़ाक से डरता हूँ ? और चप्पल बिलकुल ठीक है अभी | आराम से छह महीने और चल सकती है | तुम्हारे जैसे लोगों की फ़िज़ूलख़र्ची ने देश को बर्बाद कर दिया है'' |  

ऐसा नहीं है कि राम किशोर अपनी उन हद दर्ज़े तक घिसी चप्पलों से फिसलते नहीं हैं | फिसलते हैं और तुरंत सम्भल जाते हैं | इकहरे शरीर और पैंतालीस किलो वजन वाले अपने शरीर पर उनको काफी घमंड है | उनको फिसलता देखकर घरवालों की लॉटरी लग जाती है | 

बच्चे ----
'और पहनो घिसी चप्पल ''| 
''अशर्फियों पर लूट और कोयलों पर मुहर ''| 
''किसके लिए बचा रहे हैं पैसा ''?
''अभी कुछ हो जाता तो हज़ारों की चपत लग जाती'' | 
पत्नी ------
''इनसे तो कुछ कहना ही बेकार है ''

वे तुरंत बचाव की मुद्रा अख्तियार कर लेते हैं ''कमज़ोरी के कारण चक्कर आ गया था | चप्पल में कोई खराबी नहीं है''| 

उनकी पत्नी हर छह महीने में शोरूम से नई चप्पल खरीदती है | चल कर भी देखती है | अजीब सी बात है कि कोई भी नई चप्पल एक या दो बार ही पहिन पाती है | 

''अच्छी नहीं है, बेकार है, जबरदस्ती भिड़ा दी दुकानदार ने | शोरूम की तड़क - भड़क के चक्कर में आ गए | आगे से चुभ भी रही है, दुकान में तो ठीक ही लग रही थी, घर आकर पता नहीं क्या हो गया '', कहकर काम वाली को दे देती है | उनके पैरों में नई चप्पलें देखकर काम वाली समझ जाती है कि एक - दो हफ्ते के अंदर उसे फिर से नई चप्पलें मिलने वाली हैं | 

पत्नी नई से नई चप्पलों में भी फिसल जाती है | दो बार एड़ी में बाल आ चुका है | ऐसे में वे खुद पर गर्व करते हैं, ''देखा तुमने ! मैं हमेशा कहता हूँ कि सारा खेल दिमाग का है | दिमाग संतुलित रहे तो चप्पलें भी संतुलित रहती हैं, चप्पलों के घिस जाने का फिसलने से कोई ताल्लुक नहीं है ''| 
 
लाख दलीलों के बावजूद पत्नी की आँखों में खटकती हैं उनकी हवाई चप्पलें | गुस्से की मात्रा जब बहुत बढ़ जाती है तो वे पति के लिए नई ब्रांडेड चप्पलें खरीद कर ले आती है | राम किशोर गंदा सा चेहरा बनाकर उन्हें अलमारी के ऊपर रख देते हैं | 

''मैंने क्या करना है नई चप्पलें पहिनकर | बेटा पहिनेगा | जब आता है चप्पलें ढूंढता रहता है'' | अपने लिए आई हुई सारी नई चीज़ें और उपहार वे अलमारी के ऊपर रख देते हैं | बनियान, रूमाल, मोज़े, शर्ट, कुर्ते, स्वेटर सब | 

ब्रांडेड पहिनने वाला बेटा उस ओर नज़र भी नहीं डालता | सालों साल वे वस्तुएं उसी अवस्था में पडी रहती हैं | 

चप्पलों के मामले में बेटा उनका भी उस्ताद है | जो चप्पल उसके लिए रखी जाती है उसे छोड़कर सब में पैर डाल लेता है | दो अंगुलिया फँसाई, निकल पड़ा, बाकी पैर बाहर रहे या अंदर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता | 

हर दीवाली में उनकी चप्पलों पर ही सबकी नज़र रहती है कि कैसे सफाई के नाम पर उनको बाहर किया जाए | दीपावली के सफाई वाले दिनों के दौरान वे अत्यंत चौकन्ने हो जाती हैं | वे अपनी चप्पलों के आस - पास ही मंडराते रहते हैं | जैसे ही उनकी चप्पलों को कबाड़ के सामान के साथ फेंका जाता है, वे बिजली की गति से दौड़ कर आते हैं और हवाई चप्पलों को उठा ले जाते हैं | 

''मेरी मेहनत की कमाई की है''|  
''खून - पसीना लगता है एक -एक पैसा कमाने में'' |  
 
खून - पसीना उनका मनपसंद जुमला है | वे बदल - बदल कर दोनों जुमलों का उपयोग करते हैं | ज़्यादा गुस्सा आने पर खून - पसीना का उपयोग करते हैं | 

राम किशोर को शादी - विवाह या अन्य किसी सामजिक कार्यक्रम में जाना पसंद नहीं आता, क्योंकि तब उन्हें घरवालों के भीषण दबाव का सामना करना पड़ता है जिसके अंतर्गत उन्हें अपनी प्रिय हवाई चप्पल उतार कर सेंडिल या जूते पहनने पड़ते हैं, जिससे बहुत तकलीफ होती है | इससे बचने के लिए उन्होंने सालों से कहीं भी जाना बंद कर रखा है | 

बच्चे चाहते हैं कि उनके पिता कहीं घूमने - फिरने के लिए जाएं | बची हुई ज़िंदगी में कम से कम एक बार हवाई यात्रा का आनंद उठा लें | 
 
बच्चे ----
'' पापा एक बार हवाई जहाज में बैठ जाओ न हमारे कहने से ''| 
''ऊपर से नीचे की दुनिया को देखना पापा | बड़ा मज़ा आता है'' | 
''पापा प्लीज़ जाइये ना, कभी तो हमारा कहना मान लिया करिये ''| 
पत्नी ----
''चलिए हम दोनों साथ घूमने चलते हैं | जवानी में तो तुमने घुमाया नहीं, अब बच्चे टिकट भी करा के दे रहे हैं, अब तो चले चलो  ''| 
राम किशोर ----
''अब मैं बस ऊपर वाले के हवाई जहाज में ही बैठूंगा '' कहकर ऊपर की ओर उंगली उठा देते हैं | 

ऐसी स्थिति में जब पी.एम. अपने 'मन की बात' में कहते हैं कि उनका सपना है कि 'हवाई चप्पल पहिनने वाले भी एक दिन हवाई जहाज में बैठ सकेंगे' तब विश्वास नहीं होता कि राम किशोर अपनी हवाई चप्पलों के साथ हवाई जहाज में बैठने के लिए राज़ी हो पाएंगे |