बंधुओं, सदियों से आम लोगों को नेतागणों से यह शिकायत रही है कि हमेशा उन्हें ही नेताओं के द्वारे जा-जाकर आत्महत्या करनी पड़ती है, किसी नेता को कभी किसी ने आत्महत्या करते न देखा न सुना | ऐसे, सदा-शिकायती लोगों की ज़ुबान को नेताजी ने अपने अमूल्य जीवन का बलिदान देकर सदा के लिए चुप करा दिया है | आम जन को इस शहीद नेता की नीयत पर ज़रा भी शक नहीं करना चाहिए | हमारे देशवासियों की यह बहुत ही ग़लत आदत है कि नेता के अच्छे काम को भी वे शक की नज़र से ही देखते हैं | हो न हो यह स्वर्गीय नेता अपनी पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करता होगा और आजकल की पत्नियां किस पल क्या मांग बैठें, कुछ नहीं कहा जा सकता । नेता जी ने अपनी पत्नी से पूछा होगा, ''कहो प्रिये! तुम्हें क्या लाकर दूँ? कहो तो आसमान में जाकर चाँद-तारे तोड़ लाऊं''? पत्नी ने कहा होगा, ''चाँद का क्या अचार डालूंगी ? और तारों से मेरा क्या भला होगा? मुझे तो तुम फ़लानी पार्टी का टिकट लाकर दो, तभी मानूंगी कि तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो |'' पति चाँद-तारों को तोड़ने की तैयारी कर रहा होगा कि अचानक चुनाव का टिकट बीच में आ गया | कहना न होगा कि पति ने तरह-तरह के प्रलोभन दिए होंगे - होनोलूलू से लेकर टिम्बकटू तक का टिकट सेवा में प्रस्तुत किया होगा | मल्टीप्लेक्स का महंगा से महंगा टिकट भी पत्नी की इस अनोखी मांग को रिप्लेस नहीं कर पाया होगा । ''सारी खुदाई एक तरफ, पार्टी की टिकट कटाई एक तरफ'' सच है कि राजनीति का दुनिया की कोई भी भौतिक वस्तु मुकाबला नहीं कर सकती । जन सेवा की भावना ऐसी ही होती है, जब उछाल मारती है तो उसे दुनिया का कोई प्रलोभन नहीं रोक सकता ।
लेकिन टिकट काटने वालों ने यानी हाईकमान ने पत्नी के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा को नहीं देखा होगा | टिकट उसी का कटा जिसने काटा होगा । चेक जितना बड़ा कटता है, पार्टी के प्रति निष्ठा उतनी बड़ी समझी जाती है | चेक की बड़ी राशि की निष्ठा ने पत्नी के प्रति छोटी निष्ठा को धराशाही कर दिया होगा |
सरकार को इस प्रेमपुजारी, शहीद नेता की याद में डाक टिकट जारी करना चाहिए, उसकी पत्नी के लिए हर पार्टी अपने द्वार खुले रखे, वो चाहे तो किसी पार्टी का दामन थाम सकती है या चाहे तो निर्दलीय चुनाव लड़ सकती है, क्यूंकि भारतीय लोकतंत्र में उसकी जीत हर हाल में तय है ।