रविवार, 31 मई 2009

सावधान!! मेरे इस ब्लॉग में आजकल कभी-कभी अनाधिकृत पोस्टिंग की जा रही हैं|

साथियों......पिछले कुछ दिनों से, कभी-कभी, मेरे इस ब्लॉग में कोई अनाधिकृत-रूप से पोस्टिंग कर रहा/रही है, जिससे मैं बहुत परेशान हूँ| पासवर्ड  बदलने के बावजूद यह सिलसिला जारी है ..... आपके पास इस समस्या का कोई समाधान है तो कृपया बताइए|

शनिवार, 30 मई 2009

बुद्धू बक्से ने बना दिया बुद्धू ....

साथियों ....वैसे तो हम बुद्धू बक्से से काफी दूरी  बना के रहते हैं ...लेकिन कभी कभी ख़बरों की दुनिया में चले जाते हैं ..शायद वहां कोई पोस्ट के लायक मसाला ही मिल जाए ....इसी कारणवश आज दोपहर में जब बुद्धू बक्से को ओन किया तो लगा कि अरे ये तो हम ही बुद्धू बन गए ....
बहुचर्चित एन. डी.टी. वी .को जब हमने दोपहर तकरीबन २/३० पर खोला तो देखिये हमने क्या पाया .....मुख्य खबर बीच-बीच में कैसे आ रही है इन  छोटी-छोटी ख़बरों के बीच में
मुख्य खबर .................. 
 
कैबिनेट की पहली बैठक ख़त्म
 
इसके साथ ही साथ जो कैप्शन चल रहे थे उन्हें देखिये ....
 
एक रोमांचक सफ़र की तैयारी 
उबड़ खाबड़ ट्रेक पर ड्राइविंग 
नो टेंशन ओनली टशन 
पहली बार छोटे छोटे बच्चे और परिवार वाले भी इस नई ड्राइव में शामिल 
जोश, जज्बे और रोमांच की तैयारी 
जीप पर छुट्टी का जश्न 
वीकेंड पर रफ़्तार भरी मस्ती 
जीप पर ऑफ़ राइडिंग का मज़ा 
४ गुणा ४ का हंगामा
 
दोनों कैप्शंस में इतना घालमेल हो गया था कि मेरा दिमाग तो बिलकुल ही कन्फयूस हो गया ....आप बताएँ अपने दिमाग का हाल ...
 
 

शुक्रवार, 29 मई 2009

ये क्या हो गया है इन लड़कियों को ??

प्रसन्न हो गए हम अति
आज के अखबार को देखकर
तीनों ही लडकियां थीं
पहुँची थी जो टॉप पर
 
और टीचर हैं हम सरकारी
तनखा उड़ाते हैं हराम की
आज का लेक्चर इसी पर दूंगी
ऐसी तेसी लेसन के प्लान की 
 
कक्षा में दिखाई हमने
फ्रंट पेपर की कटिंग
देखो तुम लड़कियों
बहिनें तुम्हारी
किधर जा रहीं हैं
कोई उड़ती आकाश में
कोई देश को चलाती
और कोई टॉप पर टॉप
किये जा रही है
 
बोली लडकियां एक सुर से
रहने दो, बात हो गयी यह
बहुत ही पुरानी
दूर दूर रहते हैं हम
फ्रंट पेज से
पेज थ्री पर अटकती है
जान ये हमारी
 
टॉपलेस का ज़माना
अब आ गया है
टोपर की तो देखिये
शकल है कितनी बेचारी
 
दिन रात डूब कर किताबों में
आँखें देखो कैसी सूज गईं
दो तो हैं शादीशुदा इनमे  से
पतियों की तो किस्मत  ही फूट गयी
और टॉप कर के
भला क्या ये कर लेंगी
डी.एम्. बन जाएंगी कहीं दूर और
जिस कागज़ पर कहेगा मंत्री
 चुपचाप  साइन  कर देंगीं  
करने में साइन  गर
करेंगी ज़रा भी आनाकानी  
साल में चौबीस होंगे तबादले   
याद आ जाएगी बैठे - बैठे
प्यारी सी वो नानी  
 
कमाएंगी  जितना  ये टोपर महीने में
एड़ियों को अपनी घिस- घिस कर
एक ही शो  में बटोर लेंगी हम
टॉप को अपने धरा पर गिरा कर
 
पहुँच गया गुस्सा हमारा
सातवें  आसमान पर
मत करो तुम बराबरी लड़कियों
 उनको मिलता धन, यश और सम्मान है
उनके जैसी करी होती मेहनत तुमने तो
आज ना चलाती होतीं ऐसी तुम जुबां ये 
 
तुनक  कर बोली एक चंडी , दुर्गा, महाकाली
आपका तो भेजा हो गया एकदम ही खाली
और समझती हो तुम क्या मैडम अपने आप को
टॉपलेस होने में कितनी है मेहनत
जूस में ही जिंदा रखना पड़ता है अपने आप को  
 
और यश की तो बात तुम
मत करो ज़रा सी भी
यश चोपड़ा खुद पिक्चरों के
ऑफ़र ले आते हैं
 
बिग बॉस, रियलिटी शो की
शान हमसे होती है
बिना कोई खर्चा किए
हम सेलिब्रिटी बन जाते हैं
 
समझ गए हम अब तक 
इनको समझाना  तो बिलकुल ही
टेढ़ी खीर है
टॉपलेस होने की होड़ 
मची हुई  है चारों ओर
नए ज़माने की यह कैसी  तस्वीर है?  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

रविवार, 24 मई 2009

वो जिन्हें लड़कियों का बहुत शौक है ..

साथियों , आज की इस पोस्ट का शीर्षक कुछ अटपटा सा है ...लेकिन यह शीर्षक हमें अपनी एक मित्र के द्वारा सुझाया गया ...वैसे हम अपनी एकमात्र कन्या रत्न से ही प्रसन्न हैं ...लेकिन कभी -कभी हमारी कोई सहेली जब अपने पुत्र रत्न को लेकर हमसे भेंट करने आती है ....और हमारे ऊपर तरस खाने वाली नज़रें डालती है ..तब हमें अच्छा नहीं लगता है ...कभी कभी कोई कह ही डालती है ..."कोई बात नहीं ....दूसरा लड़का हो जाएगा "....हमारे लाख समझाने पर भी कि हमें लड़के की कोई ज़रुरत महसूस नहीं होती ....उन्हें विश्वास ही नहीं होता है ..
.कभी कोई ऐसा भी फरमाती है "हाय !क्या करुँ? मुझे तो लड़कियों का बहुत ही शौक है लेकिन देखो मेरा दुर्भाग्य ....दोनों लड़के हो गए "
हाय ये मजबूरी ....और जब कोई यह कहती है ...
"लड़कियों के कित्ते प्यारे प्यारे कपडे मिलते हैं ...काश ! मेरी भी एक लडकी होती तो मैं सारे मॉलों को खाली कर डालती ...पर हाय !ये मुई किस्मत ...लड़का हो गया ..और लड़कों के तो ढंग के कपडे ही नहीं मिलते "
हम मन ही मन शुक्र मनाते हैं कि चलो इन फैशन  डिसाइनरों की  बदौलत ही सही ...दिलों में अभी लडकी की इच्छा बाकी तो है ..

गुरुवार, 21 मई 2009

हम हार के कारणों का मंथन करेंगे .....

साथियों ....अभी चुनाव ख़त्म हुए हैं लेकिन घिसे पिटे बयानों का दौर बंद नहीं हुआ है .....कुछ और घिसे पिटे बयान लेकर मैं फिर हाज़िर हूँ
 
हम हार के कारणों का मंथन करेंगे .....
 
हम
हार के कारणों का
मंथन कर रहे हैं
विष ही विष निकल रहा है
चरों ओर से
पी जाए जो फिर
आँख मूँद के
उस
शिव शंकर को
ढूंढ रहे हैं .........
 
दिल्ली में तो पप्पू भी प्रधानमंत्री बन जाते हैं ........मायावती [चुनाव से पहले]
चुनाव के बाद .....
 
बन गए पी .एम् .
फिर से
मेरे प्यारे पप्पू भैय्या
दौड़ी दौड़ी मैं भी आई
पत्र समर्थन का लाई 
मारे खुशी के 
नाचूं  अब तो
ता ता थैय्या ....... 
 
मुझे राम ने जिताया .....वरुण
 
राम ही जाने
राम की माया
जिसने साठ साल
राम नाम को गाया
खाया और भुनाया
उस पर कतई
तरस न खाया
जिसने
बस पांच साल
रोम रोम को गया
उसको
फिर गद्दी पर बैठाया ....
 

बुधवार, 20 मई 2009

...स्व. सुमित्रानंदन पन्त {जयन्ती २० मई }पर विशेष "जैसा मैंने उन्हें देखा"

साथियों जब उन्होंने इस संसार से विदा ली थी तो मैं गोदी की थी ...इसीलिए उनसे जुड़ी कोई याद मेरे पास नहीं है ...हाँ पापा के पास उनसे सम्बंधित कई संस्मरण हैं ...वे उन्हें "नान का" कहते हैं ..."नान" मतलब कुमाउनी में छोटा और "का" मतलब काका ,अर्थात चाचा ....पापा के पास उनके लिखे कई पत्र सुरक्षित रखे हैं ..उनके कई फोटोग्राफ आने जाने वालों ने एल्बम  में से निकाल लिए ....
हम लोग बचपन से ही उनकी फोटो अपनी  पाठ्य पुस्तकों में देख देख कर खुश होते थे ..और लोगों को बताया करते  थे कि ये हमारे दादाजी हैं ...पापा को ये बिलकुल भी पसंद नहीं था कि हम किसी को भी ये बात बताएं....उन्हें  आज भी इस तरह का प्रदर्शन कतई पसंद नहीं आता है.
बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि पन्त जी एक बहुत अच्छे ज्योतिष भी थे ...उनका दिया हुआ पुखराज पापा ने कई वर्षों तक धारण किया ...बाद में वह गिर कर खो गया ...
आज यहाँ मैं अपनी माँ 'दीपा पन्त' के अनुभवों को आपके साथ बांटना चाहती हूँ ...जब वह पहली बार उनसे मिली तो कैसा लगा उसे ....माँ के ही शब्दों में .........
 
गौर वर्ण ,ऊँचा ललाट ,बड़ी- बड़ी स्वप्नाविष्ट आँखें ,तीखे नाक-नक्श और कन्धों तक रेशमी घुंघराले बाल ,लम्बा कद ,कुरता पायजामा और बास्केट पहने हुए ,यह था उनका पहला और अंतिम दिव्य दर्शन  ,मानो कविता ने ही साकार रूप धारण कर लिया हो .वह क्षण  मेरे लिए शब्दातीत है जिसे याद कर मैं आज भी रोमांचित हो उठती हूँ.
१३ मई १९७३ की वह अविस्मरणीय दोपहर जब स्व. सुमित्रानंदन पन्त जी ने अल्मोड़ा में अपने पूज्य मामा के निवास स्थान पर हम लोगों को विवाह  का शगुन देने के लिए बुलाया था. हमारे विवाह में वे किसी कारणवश सम्मिलित नहीं हो सके थे, इसीलिए एक वर्ष उपरांत जब वे अल्मोड़ा आए, उस समय मेरा नवजात पुत्र 'रोहित',जिसका नाम उन्होंने ही रखा था, लगभग एक माह का होगा,उसे लेकर हम लोग उनका आर्शीवाद पाने वहां पहुंचे.
छोटे से शिशु को देखकर पन्त जी द्रवित हो उठे और बोले "अरे !ये तो इतना छोटा सा है, इसे लेकर तुम इतनी दूर क्यूँ आईं? पर उनको देखने की उत्कंठा के आगे यह बात कितनी मामूली थी. अगर उस दिन वहां ना जाती तो उनका दुर्लभ आर्शीवाद कैसे पाती ?
छात्रावस्था से ही पन्त जी मेरे प्रिय कवि थे, उनकी कविताओं के मनोरम संसार में मेरा मन रमता था. मेरा सौभाग्य  कि उन्हीं के परिवार में वधू रूप [बड़े भाई हर दत्त पन्त की पुत्र वधू ] में उनसे मिलने का सुयोग प्राप्त हुआ .
इस छोटी सी मुलाकात में उनसे काफी देर बातें हुई, मेरी शिक्षा दीक्षा ,अभिरुचियाँ व घर परिवार के विषय में उन्होंने रुचिपूर्वक बातें कीं ..यह जानकर कि मैं एम् .ए.हिन्दी से हूँ व गोल्ड मेडिलिस्ट हूँ और कवितायेँ भी करती हूँ ,उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं सुनीं और आगे लिखने के लिए प्रेरित किया . उनके साथ बातचीत में बिलकुल भी ऐसा नहीं लगा के मैं इतने बड़े व्यक्ति से बारें कर रही हूँ जो हमारे परिवार के बुजुर्ग ही नहीं ,पूरे एक युग के प्रवर्तक भी हैं ,उसके आगे भी वह मानवीय संवेदनाओं से ओत- प्रोत एक महामानव भी हैं .
एक सरल ह्रदय और एक सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी एक भावुक कवि ही नहीं ...पारिवारिक संबंधों के सफल निर्वाहक भी थे .घर के छोटे से छोटे और बड़े बूढों तक के स्वास्थ्य और सुविधाओं का वे ध्यान रखते थे और स्वयं अविवाहित होने पर भी गृहस्थ जीवन की परेशानियों और कठिनाइयों को समझते थे .
मेरी पूजनीया सास जी प्रायः स्नेहपूर्ण स्वर में पन्त जी की रूचि, अरुचि और व्यवहार कुशलता की सराहना करती न थकती थीं .सब भाइयों में छोटे अपने इस देवर के प्रति उनका असीम स्नेह था .यद्यपि अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने कभी पन्त जी के सम्मुख अपनी स्नेह भावना का प्रदर्शन नहीं किया .स्वाभाव की यही विशिष्टता उनके सभी निकट सम्बन्धियों में मैंने समान रूप से पाई.
पन्त जी के विषय में जितना भी पढ़ा वह कम है ,यह अपने घर में मुझे अनुभव हुआ .उन्होंने संत का स्वभाव पाया  था .किसी के प्रति ईर्ष्या और क्रोध करना तो उनके चरित्र में ही नहीं था .अपनी प्रशंसा और आलोचना दोनों को वे सामान भाव से ग्रहण करते थे .
पन्त जी छायावाद युग के प्रमुख स्तम्भ थे, जिनकी काव्य की रश्मियाँ युग -युगांतर तक संसार को आलोकित करती रहेंगी .
अंत में मेरी औटोग्राफ पुस्तिका में उनकी लिखी कविता की चार  पंक्तियाँ सदैव  उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार और भावी जीवन के लिए शुभकामनाओं की याद दिलाती रहेंगी ...
"हंसमुख प्रसून सिखलाते,
पल भर है जो हँस पाओ .
अपने उर के सौरभ से ,
जग का आँचल भर जाओ. "   ......दीपा पन्त ...sw विशेष "

मंगलवार, 19 मई 2009

पेश हैं श्रीमान ......आज के ताज़े बयान ...

मंत्री बनने का अभी इरादा नहीं है .....राहुल
 
जब मन बना लूँगा तो
आप ही पता चल जाएगा
पहले बनूँगा मंत्री ,या
डायरेक्ट ही प्रधानमंत्री
सबर करो भाई मेरे,
जल्दी ही पता चल जाएगा
 
बाकी हैं बहुत सारे
काम अभी बंधु मेरे
गद्दी पर जो बैठ गया तो
उन्हें कौन निपटायेगा ?
 
सबसे पहले मेरी
शादी होगी अब तो
ख़ाक गलियों की अब
छान नहीं पाउँगा
मम्मा और दीदी की
मान लूँगा हर बात
बार बार ना हो परेशानी
किसी को भी, इसीलिए
भविष्य के पी. एम्. को
जल्दी से ले आऊंगा .....
 
 
सपा ...बसपा बाहर से समर्थन देंगे ...
.
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
टूटा भानुमती का कुनबा
मुश्किल से था जो जोड़ा
इस वोटर ने कमबख्त
कहीं का हमको अब ना छोड़ा
जिसको कहा था कल गधा
आज वो अपना बाप है
खाने के तो मिल ना सके, हाय !
दिखने के हम पूरे पूरे दांत हैं
कुर्सी से है प्यार इतना
मरते क्या न करते,
पड़ गया हमको ऐसा कहना
मजबूरी में ही सही
सरकार के हम भी साथ हैं
 
हार की नैतिक जिम्मेदारी ....खंडूरी
 
कड़कती धूप में
ऐसे होती है बर्फबारी
रह जाती है धरी की धरी
बड़े बड़ों की होशियारी
खड़े थे कबसे कुर्सी को ताके
उनकी आखिरकार देखो
आ ही गयी अबकी बारी
कभी कभी हार भी
बन जाती  है सुखकारी
कह रहे है हँस हँस कर
सी. एम्. इन वेटिंग 
भगत सिंह कोश्यारी .....
 
हार के जिम्मेदारों को बख्शा नहीं जाएगा .....खंडूरी 
 
जिसने मूंछों को मेरी 
नब्बे डिग्री झुका दिया 
एक ही झटके में खिलते हुए 
कमल को मुरझा दिया 
 
पता है मुझको भली प्रकार 
मैं जो ऐसे गया हूँ हार 
वह कौन सा शख्स है 
जो है इसका जिम्मेदार 
 
वेतनमान इनको छठा 
सबसे पहले मैंने दिया 
और इन्होने देखो मुझको 
छठी का दूध याद दिला दिया 
 
उसको तो अब मैं बिलकुल भी 
बख्श नहीं पाउँगा 
बिजली और पानी को करके गुल 
छापों की बरसात करूँगा 
तबादलों का लम्बा सा 
दौर भी एक  चलाऊंगा 
 
जिसने मेरी गद्दी छीनी
उस हरामखोर वोटर की
नींद तो रही  एक तरफ
चैन भी हर जाऊंगा ...
 
मनमोहन ने माया को बहिन कहा ....
 
जिसने उसको बहिन बनाया
कलाई पर धागा बंधवाया
करम सदा ही फूटे उसके
उसके अपने रूठे उससे
पहली पंक्ति से डायरेक्ट
लाइन में सबसे पीछे आया
बहुत ही अच्छी है यह बात
जो तुमको नहीं है याद
याद करो उस मुरली मनोहर को
थे जो नेता पहली कतार के
खड़े है कितने पीछे आज ??
 
 
 
 
 

सोमवार, 18 मई 2009

तो यहाँ छुपा हुआ था जीत का राज़

चुनाव परिणामों से यह साफ़ स्पष्ट हो चुका है कि जिसने जूतों को शिरोशार्य किया ...जूतों ने उसका बेडा पार किया ..
 
बलिहारी इस जूते की
हुई है दुनिया सारी
जिनकी  इसने नज़र उतारी
उन सबने ही बाज़ी मारी
 
जो इसके प्यार से बच गए
मन को रहे मसोस हैं
हम पर भी काश !
लहराया होता जूता आज
पहुंचे होते संसद में
रह गया दिल में अफ़सोस है
 
क्या पता था उनको
इस अनोखे चुनाव में
चलेगी ऐसी रीत
जूतों से लिपटी आएगी
जनता की सारी प्रीत
 
जंतर- मंतर, जादू- टोना 
रह जाएँगे कोसों पीछे 
हवा बहेगी जूतों वाली 
बनेगी चप्पल मन की मीत 
 
थी जूतों में चिपकी हुई 
माँ के दिल से निकली दुआ 
फीतों का रूप लिए 
प्यार बहिन का बंधा हुआ 
पिता और भाई की आस जुड़ी थी   
दादी का भी सपना सच हुआ
 
जो हार गए हैं अबकी बार
हिम्मत भी ना जाएँ हार
अगले चुनाव के लिए
हो जाएं अभी से तैयार
 
चुनाव आयोग से मांग लें
जूता चुनाव निशान
जुट जाएं आज "औ" अभी से  
मान लें वोटर का एहसान
सफल करें सब मिलकर के  
जूता फेंक अभियान
 
याद रखें बस इतना सा
वोटर जब जब रूठ गया  
बाहुबली भी टूट गया  
नोट बाँटने वाला भी
नोट लुटाता रह गया
हुई न्योछावर उस पर कुर्सी  
जो हंसकर जूता सह गया ...

शनिवार, 16 मई 2009

हमने अपनी हार स्वीकार कर ली है

साथियों आज चुनाव का परिणाम आ गया है ....और हमेशा की तरह हारने वाले वही घिसे पिटे संवाद कहेंगे ....कुछ लाइनें जो सदियों से चली आ रही हैं ...उन लाइनों का  छिपा हुआ मतलब क्या होता है, इसका मैंने पता लगाया है ....
 
हमने अपनी हार स्वीकार कर ली है
 
इसके अलावा आपके पास
बाकी कोई चारा नहीं था
क्यूंकि
आपके सिर पे करारी हार
उनके गले फूलों का
हार सजा था ..........
 
 
हम विपक्ष में बैठेंगे
 
ऐसा कहना बहुत ज़रूरी है
ये आपकी मजबूरी है
क्यूंकि
जब हार जाते हैं तो बस
विपक्ष में ही बैठ पाते हैं
 
 
हम जनता की सेवा करेंगे
 
सच है यह सोलह आने
क्यूंकि
जब बैठे हों गद्दी में तो
सेवा करने के क्या माने?
 
हम जनादेश का सम्मान करेंगे
 
जनादेश का हम बहुत सम्मान करेंगे
पूरे पांच साल तक कैसे
भला इंतज़ार करेंगे ?
 भिडाएंगे ऐसी जुगत,करेंगे कुछ ऐसा,
अगले ही साल चुनाव के हालात करेंगे.
 

शुक्रवार, 15 मई 2009

क्यूँ जगाया वोटर को ???

साथियों ...कल के दिन का इंतज़ार हम सब पर भारी है ...ऐसे में मेरे मन ने भी नेता की तरह पाला बदल लिया  है ...चुनावी कविता लिखने के लिए कलम बेकरार हो उठी ...
 
 
क्यूँ जगाया वोटर को ???
 
हर कोई हमें
झिंझोड़ कर
उठा रहा था
जागो वोटर जागो
कहकर
चाय पे चाय
पिलाए जा
रहा था जबकि
खुदी हुई थी
खाई इधर
उधर गहरा
कुँआ था
या तो सांप को
या
नाग को चुनना था
पप्पू तो
आखिरकार
हमें ही बनना था
क्यूंकि
वो हम थे
जिसके पास
कोई विकल्प
नहीं बचा था
जबकि
इनके पास
खजाना खुला
हुआ था
 
कल क्या होगा ???
 
वो बताएँगे
कल
अपनी हार का कारण
कड़कती धूप
कम मतदान
वोटर का रुझान
और
उदासीनों का
वे क्या करते
श्रीमान
और आप हैं कि
अब भी पूछ रहे हैं  
कहाँ रहता है
भगवान् ???
 
 
 
 
 

गुरुवार, 14 मई 2009

इस तरह एक मजिस्ट्रेट की मौत हो गयी ...

आज मतदान ख़त्म हो गया, इसी के साथ मास्साब की पीठासीन की कुर्सी भी छिन गयी, एक दिन जो मिली थी वो मजिस्ट्रेटी पॉवर क्या चली गयी, मानो उनके शरीर का सारा रक्त निचोड़ ले गयी, चेहरा सफ़ेद पड़ गया, इतने दिनों से तनी हुई गर्दन और कमर फिर से झुक गयी.
कई रातों तक जाग जाग कर पीठासीन की डायरी का अध्ययन किया करते थे, उसके मुख्य बिन्दुओं को बाय हार्ट याद कर लिया था, विद्यालय में भी कई बार  साथियों से मतदान से सम्बंधित बिन्दुओं पर  जब तक वे बहस नहीं कर लेते थे, उन्हें मिड डे मील का मुफ्त का  खाना हजम नहीं होता था.
रात भर डायरी को सिरहाने रखकर सोते थे, नींद में भी कई बार टटोल कर देखते थे, कभी कभी उसे सीने पर रखकर सो भी जाते थे. जिन्दगी में कभी भी अपने बच्चों के लिए वे रात में नहीं जागे, लेकिन आज इस डायरी पर इतना प्यार बरसा रहे हैं मानो इसने उनकी कोख से जन्म लिया हो.
पत्नी को भी इतने दिनों तक बिलकुल अपने जूतों की नोक पर रखा. "देखती नहीं, मैं पीठासीन अधिकारी हूँ "
पत्नी अधिकारी शब्द सुनकर ही थर थर काँपने लगती, मन ही मन सोचती 'कल तक तो ये मास्टर थे, आज सरकार ने इन्हें अधिकारी बना दिया है तो ज़रूर इनके अन्दर कोई ऐसी बात होगी जो सरकार ने देख ली और मैंने इतने सालों  में नहीं देखी, लानत है मुझ पर'
इतने दिनों तक ना सिर्फ उनहोंने पत्नी से अपनी पसंद का खाना बनवाया वरन रात को पैर भी दबवाए.
बच्चों की नज़रों में भी वे सहसा ऊँचे उठ गए थे, कल तक जो बच्चे उनके आदेश की अवज्ञा करना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे, जुबान चलाते थे, आज अचानक श्रवण कुमार सरीखे बन गए. मोहल्ले  में उनहोंने तेजी से ये खबर फैला दी कि हमारे पापा को सरकार ने पीठासीन अधिकारी बनाया है, और वो पूरे एक दिन तक डी.एम्. बने रहेंगे, वे चाहे तो किसी पर भी गोली चलवा सकते हैं. मोहल्ले में उनके परिवार का रुतबा अचानक बढ़ गया. कल तक जो उन्हें टीचर, फटीचर कहकर पानी को भी नहीं पूछते थे , आज बुला बुला  कर चाय पिला रहे हैं.
हाँ तो अब समय आ गया था ड्यूटी की जगह मिलने का, जब मतदान स्थल का पात्र उनको थमाया गया, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मतदान केंद्र सड़क से पंद्रह किमी. की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आता था. अधिकारी बनने की आधी हवा तो नियुक्ति पत्र मिलते ही खिसक गयी, रही सही कसर रास्ते भर जोंकों ने पैरों में चिपक चिपक कर पूरी कर दी.बारी बारी से सभी मतदान कर्मियों को अपनी पीठ पर ई. वी. एम्. मशीन को  आसीन करके ले जाना  पडा . इस तरह सभी पीठासीन बन गए.
बेचारे मास्साब की किस्मत वाकई खराब है. पिछले साल विधान सभा के चुनावों में उन्होंने बड़ी मुश्किल से जुगाड़ लगाकर अपना उस अति दुर्गम मतदान स्थल के लिए लिस्ट में चढवा दिया था, जहाँ तक पहुँचने के लिए हेलिकोप्टर ही एकमात्र साधन होता है. वे फूले नहीं समां रहे थे कि जिन्दगी में पहली और आख़िरी बार हवाई यात्रा का मुफ्त में आनंद ले सकेंगे. लेकिन हाय रे किस्मत! जैसे ही रवाना होने की घड़ी आई, आंधी पानी और बर्फपात की वजह से हवाई यात्रा केंसिल हो गयी. और फिर शुरू हुई अति दुर्गम पैदल यात्रा, जान हथेली में रखकर  गिरते पड़ते किसी तरह मतदान स्थल पहुंचे, और गिनती के पांच लोगों को मतदान करवाया, आज भी वो दिन याद करके मास्साब के तन बदन में झुरझुरी दौड़ जाती है.
इधर १५ किमी की चढाई करने के बाद उनके थके हुए बाकी साथियों ने अपने साथ लाई हुई बोतलें निकली और  टुन्न होकर लुड़क गए. मास्साब ने  कुढ़ते हुए अकेले रात भर जाग कर लिफाफे तैयार किये.और मतदान की बाकी तयारियाँ पूरी  करीं. 
तो मास्साब की बची हुई अकड़ सुबह  मतदाताओं ने निकाल दी. एक मतदाता को जब उन्होंने बूथ के अन्दर मोबाइल पर बात करने के लिए पूरे रूआब के साथ मन किया तो उसने तमंचा निकाल कर कनपटी पर लगा दिया.
"ज्यादा अफसरी मत झाड़, पिछले बूथ में तेरे जैसे एक मजिस्ट्रेट को ढेर करके आ रहा हूँ ज्यादा बोलेगा तो तेरेको भी यहीं पर धराशाही कर दूंगा"
उन्होंने कातर भाव से डंडा पकडे हुए पुलिसवालों को देखा तो उन दोनों ने उससे भी ज्यादा कातर भाव से पहले अपने डंडे को फिर  उस तमंचे वाले को देखा.
किसी तरह डरते डरते मतदान संपन्न करवाया.
कितने ही लोग एक ही राशनकार्ड लेकर वोट डालने आ गए. एक लडकी तो मात्र १० या बारह साल की होगी, माथे पर बिंदी लगाकर वाह सूट पहिनकर वोट डालने आ गयी, उस लडकी की खुर्राट माँ उसके पीछे ही खड़ी थी, जब उन्होंने लडकी की उम्र पूछी तो वह दहाड़ उठी "लडकी की उम्र पूछता है कार्ड में दिखता नहीं २१ साल है"
"लग नहीं रही है इसीलिए पूछा" उन्होंने डरते डरते कहा.
"लो कर लो बात, अब इसे लडकी की उम्र दिखनी भी चाहिए, अरे लडकी की उम्र का अनुमान तो फ़रिश्ते भी नहीं लगा सकते.पता नहीं कैसे कैसों को सरकार भेज देती है ज़रूर मास्टर होगा, स्कूल में तो ठीक से पढाई करवाते नहीं है यहाँ क्या ठीक से काम करेंग" वह जोर जोर से बोलती रही और लाइन में लगे हुए लोग उन्हें देख कर हंसते  रहे.  वे उसका मुँह देखते रहे और वो लडकी के साथ बूथ में  ही घुस गयी.वे मन ही मन उस घड़ी को कोसने लगे जब उन्हें नियुक्ति पत्र मिला था
तो इस प्रकार उनके पीठासीन अधिकारी बनने की इच्छा अब हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म हो गयी थी.
 

बुधवार, 13 मई 2009

और जब मतदान रुक गया था ...

इस साल तो हम चुनाव ड्यूटी से बच गए , लेकिन पिछले साल की ड्यूटी नहीं भूलती ,जब नगरपालिका के चुनाव के दौरान मतदान एक घंटा रुका रहा .मुस्लिम बहुल इलाके में ड्यूटी थी , पर्दानशीनों की पहचान हम बखूबी कर रहे थे ..तभी एक पर्दानशीं का आगमन हुआ , हमने हाथ में उसका फोटो पहचान  पत्र लिया और नियमानुसार कहा "पर्दा उठाइए "हम चूँकि मतदान कर्मी थे तो अपने को किसी मजिस्ट्रेट  से कम नहीं समझ रहे थे ,इससे पहिले एक प्रत्याशी को वापिस भेज चुके थे ,उसके एजेंटों के ये कहने पर भी की ये तो खुद प्रत्याशी हैं ,इनको पहचान पत्र की क्या ज़रूरत , जब हम कह रहे हैं तो इनको वोट डालने दीजिए ...,लेकिन हमने साफ़ शब्दों में  कह दिया की  जब ये पहचान का सुबूत दिखाएँगे तभी वोट दे पाएंगे ,हमारे अफसरी  तेवर देखकर वो वापिस चला गया और फिर पहचान पत्र लेकर  शाम को ही अपना वोट देने आया. हां ... तो उस पर्दानशीं की और से जवाब आया "ज़रूरी है क्या "..हम पूरी  अकड़ के साथ बोले "जी हाँ ज़रूरी है ,हमें इसीलिए सरकार ने यहाँ बिठाया है"
उसने पर्दा उठाया तो हमारी नज़रें उसके चेहरे पर चिपक गईं ,उसकी खूबसूरती देखकर बेहोश होते होते बचे ,ऐश्वर्या ,केटरीना इसके आगे क्या बेचेंगे ?हमने सोचा ,हाय ! हसीना तुम अपने चेहरे पर क्या लगाती हो ?. फिल्मों में क्यों नहीं ट्राई करतीं ?..पूछना चाहा लेकिन शब्द गले में ही अटक गए ..
"देख लिया ?"उसने पूछा तो मैंने बहाना बनाया "अभी रुक जाओ ",हमने जबरदस्ती उसे रोकने की कोशिश में फिजूल के सवाल पूछने शुरू किये ,
"ये कब की फोटो है ?अंदाज़ नहीं आ रहा है कि तुम्हारी ही है या किसी और की "?हांलाकि उसमे वो बिलकुल साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी .
"पिछले साल की है "
" आपके कितने भाई बहिन हैं ?" उसके चेहरे पर से नज़रें नहीं हट पा रहीं थीं."
"क्यूँ "?
"फर्जी मतदान रोकने के लिए सरकार ने कहा है पूछने के लिए "
"चार"
"नाम बताइए"? हम यूँ ही सवाल पे सवाल दागे जा रहे थे .. 
 वो नाम बताते गयी ,हम खामोश होकर उसे देखते रहे .
"अब उम्र बताइए सबकी "
वो परेशान हो रही थी ,फिर भी हमें सरकारी कारिन्दा  समझ कर हमें  हर प्रश्न का जवाब देती गयी.
फिर हमने सोचा की हमारे साथ बैठे पुरुष मतदान कर्मियों ने  हमारा क्या बिगाड़ा ,जो उन्हें इस अप्रतिम सौंदर्य के दर्शनों से महरूम रखें  ...बेचारों ने रात भर बैठकर मतपत्र मिलाए हैं ,और हमने हमेशा की तरह महिला होने का फायदा उठाया .... हमारी रोनी सी सूरत देखकर उन्हें कहना पड़ा ..
"आप जाइये मैडम ...हम लोग कर लेंगे ,आपके घर में बच्च्चों को परेशानी हो रही होगी "
हम धन्यवाद कहकर आराम से घर में सोने चले गए थे ..और सुबह उठकर  सबके लिए पूरी सब्जी बना लाए ...वे बेचारे रात भर के जगे , भूखे- प्यासे गर्मागर्म पूरियां देखकर हमारे अहसानों के बोझ तले दब गए थे .बेचारे ! 
"ज़रा देखिये तो सर! ...ये इन्हीं की फोटो है क्या ?मुझे शक हो रहा है .." हमने  साथ बैठे मतदान कर्मी से कहा...
"देखूं" कहकर उन्होंने सिर उठाया तो वे भी जड़ रह  गए ,जब उन्हें होश आया तो उन्होंने पीठासीन से पूछा .पीठासीन भी अपनी पीठ पर मानो चिपक से गए .अब तक काफी देर हो गयी थी और वोटर पीछे से हल्ला मचाने लगे ...और हम सभी के मन में कमोबेश यही विचार उठ रहा था कि ये ही सारे वोट डाल दे ..शाम तक इसी बूथ पर खड़ी रहे ,  मन कर रहा था की बाकी लोगों से कह दें ..की आप लोग कहीं और जाकर वोट डाल आइये ...ये बूथ तो इनके नाम बुक हो गया ...अफ़सोस ऐसा कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी ..लिहाजा उसे वोट दिलवाना  पड़ा.लेकिन फिर उसके जाने के बाद किसी का मन काम में नहीं लगा ..अधूरे मन से मतदान की प्रक्रिया पूरी करवाई ..'काश एक बार पता  ही पूछ लेती...कुछ ब्यूटी टिप्स ले लेती ' मन ही मन खुद को कोसा ...
मतदान ख़त्म होने के बाद अपनी अपनी मत पेटियां जमा करने की बारी आई ,इसमें भी देरी लगने का अंदेशा था ..क्यूंकि अभी हमारे मतपत्रों का मिलान नहीं हुआ था ..उस हसीं चेहरे की बदौलत हिसाब किताब रखने में बहुत गडबडी हो गयी थी ..कम से कम सुबह के चार तो  बज ही जाते ...हमने फिर एक बार रोनी सूरत का  बर्ह्मास्त्र फेंका और आराम करने  घर चले गए ...जबकि हमारे साथी लोग बैठे रहे. जोड़ तोड़ करके हिसाब मिलाने में लगे रहे .आज भी जब मतदान में ड्यूटी लगती है तो हम उसी चेहरे को ढूंढ़ते हैं ..काश एक बार वह और दिख जाए ...
 

सोमवार, 11 मई 2009

क्या उस माँ के आँसू, आँसू नहीं होते ?

कल का दिन
बहुत ख़ास था
सभी पोस्टों का
एक ही सुर
एक ही साज़ था
हर ब्लॉग में
बह रही मीठी
बयार थी
थके, बुझे चेहरों
में भी
छाई हुई बाहर थी
ना कोई विरोध
का स्वर गूंजा
ना कहीं पर
कीचड़ उछला
हर पंक्ति जैसे
जीवंत हो जाना
चाहती थी
हर आँख मानो
भीग जाना चाहती थी  
शब्द सारे के सारे  
एक और मुड़ गए
सबके दिलों के तार
एक तार से जुड़ गए
उससे गले
हम भले ही
ना लग पाए हों
कोई तोहफा, कोई फूल
खरीद ना पाए हों
हर पोस्ट, हर टिप्पणी में
वो सांस बनके छा गयी
चारों दिशाओं से
निकल कर माएँ  
एक ही जगह पे आ गईं 
ऐसे में साथियों 
मुझको एक और माँ की 
सहसा याद आ गयी 
जिसको हम माँ 
भले ही कह जाते हैं 
उसके साथ खुद को 
लेकिन 
कभी जोड़ नहीं पाते हैं 
उसके आंसुओं को कभी 
पोछ नहीं पाते हैं 
उस भारत माँ के नाम पर 
हम कभी क्यूँ
एक नहीं हो पाते हैं ???? 
 

रविवार, 10 मई 2009

माँ की पाती बेटी के नाम .....

 

माँ...... तुम्हारी भीगी-भीगी याद

महका कहीं एक ताजा गुलाब

आज दूर हो तुम नज़रों से

पर हृदय के है बेहद पास

तुम्हारा मधुर कोमल एहसास......

 

तीन वर्ष पूर्व तुमने मदर्स दे के दिन ये पंक्तियाँ मुझे लिख कर दीं थी, जिन्हें मैंने बैठक में फ़्रेम करवा कर लगा रखा है| आज तुम मेरे पास नहीं हो बेटी, लेकिन कोई भी ऐसा पल नहीं बीतता है जब तुम याद न आती हो| .तुम्हारे पिता का जब सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था तो तुम मात्र चार महीने की थीं| मेरे लिए सारी दुनिया जैसे ठहर सी गयी थी| अन्तर्जातीय विवाह करने के कारण पहले ही मायके और ससुराल से रिश्ते ख़त्म हो चुके थे, उस पर मेरे अहंकारी व्यक्तित्व ने मुझे किसी का शरणार्थी बनना मंज़ूर नहीं किया| तुम्हें अपने सीने से चिपकाए मैं नैनीताल आ गयी| कभी सुना था कि यहाँ बहुत से बोर्डिंग स्कूल हैं, कहीं न कहीं तो मुझे नौकरी मिल ही जाएगी| शादी से पहले भी मैंने दो वर्ष अध्यापन का कार्य किया था, इसी क्षीण आत्मविश्वास के सहारे मैंने स्कूलों में आवेदन करना शुरू कर दिया| जल्दी ही एक बोर्डिंग स्कूल में, बतौर वरदान, मुझे नियुक्ति मिल गयी|

 

धीरे-धीरे समय गुजरता गया| मैंने अपने ही स्कूल में तुम्हारा भी दाखिला करवा दिया था क्यूंकि यहाँ तुम निःशुल्क पढ़ सकतीं थीं| तुम बड़ी होतीं गयीं| मेरे कठोर अनुशासन ने तुम्हें ज़िद्दी और बिगडैल नहीं होने दिया और हर कक्षा में तुम सम्मान सहित उत्तीर्ण होतीं गईं| तुमने किशोरावस्था में कदम रखा तो मैं हद से ज्यादा शक्की स्वभाव  की हो गयी| मैंने तुम पर तरह तरह की पाबंदियां लगानी शुरू कर दी थीं| मसलन तुम्हारे ज़्यादा दोस्त नहीं हो सकते थे, तुम अपनी दोस्तों को घर नहीं ला सकती थीं, किसी भी लड़के से बातचीत करना तुम्हें सख्त मना था| नए फैशन के कपड़े तुम्हारे लिए कभी नहीं लिए और मेकअप तो मैं खुद नहीं करती थी सो तुम्हें कैसे करने देती? तुम्हारी हर गतिविधि पर मेरी एक्स -रे जैसी नज़र रहती थी| मैं क्या करती बेटी? तुम ही तो मेरा संसार थीं| मैं तुममें तुम्हारे पापा के सपनों को सच होता देखना चाहती थी|

 

तुम्हारे साथ की लड़कियों को देखकर मैं घृणा से भर उठती थी| वे नए ज़माने की फैशनपरस्त लडकियां थीं, अमीर घरानों की बिगड़ी हुई संतानें| उनकी छोटी-छोटी स्कर्ट और अत्याधुनिक परिधानों को देखकर तुम भी वैसे ही कपड़ों व मेकअप के मंहगे सामान के लिए जिद करने लग जातीं| मेरी सीमित तनख्वाह व चंद ट्यूशनों की आय से यह कैसे संभव हो सकता था? उस पर मुझे तुम्हारे भविष्य की पढ़ाई व शादी के लिए भी तो धन जमा करके रखना था| बेटी तुम्हें वह दिन तो याद ही होगा जब मेरे एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने तुम्हारी जिन्दगी को एक नया मोड़ दिया था| उस दिन तुम अपनी एकमात्र सहेली की दीदी की शादी में गयी हुईं थीं| वैसे तो मैं तुम्हें किसी पार्टी या शादी में नहीं जाने देती थी परन्तु उसकी माँ के बहुत आग्रह करने पर में मना नहीं कर पाई थी| उस दिन तुम मुझसे छिपाकर मेरी शादी की बनारसी साड़ी ले गईं थीं| उस साड़ी के साथ तुमने अपनी सहेली का लो कट का स्लीवलेस ब्लाउज पहन रखा था और तुमने जी भर कर श्रृंगार किया था| जब काफी देर तक तुम नहीं लौटीं तो मैं चिंतित हो गयी और तुम्हें लेने पहुँच गई| तुम अपनी कुछ दोस्तों के साथ और कुछ सड़कछाप किस्म के लड़कों के साथ हंसी मज़ाक करने में व्यस्त थीं| जैसे ही तुम्हारी नज़र मुझ पर पड़ी तुम सकपका गईं| और मैं! मुझे तो तुम्हारा यह रूप देखकर मानो काठ मार गया था| तुम्हारी दोस्तों के बीच से तुम्हें हाथ पकड़कर  लगभग घसीटते हुए मैं तुम्हें घर लाईदरवाज़ा बंद करके मैंने तुम पर जिन्दगी में  पहली  बार हाथ उठाया| तुम्हें मारने के बाद मैं फूट-फूट कर रोई |

 

मैंने तुमसे कहा, "आज के बाद मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगी| अब तुम अपनी मर्जी की मालकिन हो, जो चाहो सो करो| हर महीने जेब-खर्च तुम्हें मिल जाया करेगा| तुम्हारी ज़िन्दगी बनाने के लिए मैंने इतने साल ढंग से शीशा नहीं देखा, चार जोड़ी साडियों में ज़िन्दगी काट दी| चौबीस साल की उम्र में विधवा हो गयी थी, क्या कुछ नहीं सहा होगा मैंने? कितने ही लोगों ने शादी करने का प्रस्ताव दिया परन्तु अपनी दुधमुंही बच्ची की खातिर इस विषय में सोचा तक नहीं| सोचा था की तुम्हारी ज़िन्दगी संवार कर तुम्हारे पिता को श्रद्धांजलि दे सकूंगी लेकिन तुम शायद नहीं चाहती की तुम्हारे पिता की आत्मा को शांति मिले और तुम्हारी माँ सिर उठा के जी सके", कहकर मैंने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था| तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और तुमने रो-रो कर मुझसे दरवाज़ा खुलवाया और मेरे पैर छू कर माफ़ी मांगी, "मम्मी मैं आपके सख्त अनुशासन और पाबंदियों से तंग आकर आपको अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगी थी पर अब मुझे एहसास हो गया है कि यह सब तो आप मेरे ही भविष्य के लिए कर रही थीं| आज से आप कभी नहीं रोओगी| जैसा आप चाहेंगी में वैसा ही करूंगी|  

 

मैंने तुम्हें गले लगा लिया था| इस घटना के बाद से तुम पढ़ाई में जी जान से जुट गईंबाहरी दुनिया से तुमने नाता लगभग तोड़ लिया था| फिर वह दिन भी आया जब तुमने एम. कोंम. की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और साल भर के अन्दर ही तुम आई. आई. एम. के लिए चुन ली गईं थींअखबारों में तुम्हारे इंटरव्यू और फोटो छपे| बधाइयों का तांता लग गया| वे लोग जो मेरे सख्त अनुशासन के लिए पीठ पीछे मेरी बुराइयां करते थे, आज बधाई देने में सबसे आगे थे

 

पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद तुम एक बहु-राष्ट्रीय कम्पनी में चुन ली गयीं| तुम मुझे रोज़ फ़ोन करके इस्तीफा देकर अपने पास आने का आग्रह करती रहीं, लेकिन मैं तो हमेशा से एक स्वाभिमानी स्त्री थी जिसने ज़िन्दगी में किसी पर भी बोझ बनना स्वीकार नहीं किया| तुम्हें शुरू-शुरू में  बहुत बुरा लगा पर तुम मेरे स्वभाव के बारे में .अच्छी तरह से जानती थीं| इसीलिए जल्दी ही अकेले रहने की अभ्यस्त हो गयीं| तुमसे शादी करने के लिए मेरे पास एक से बढ़ कर एक रिश्ते आने लगे पर जब तुमने अपने साथ काम करने वाले समीर को अपना जीवन-साथी बनाना चाहा तो मैंने कोई ऐतराज़ नहीं किया| तुमने मुझे बताया की तुम दोनों की परिस्थिति लगभग एक ही जैसी है| उसे भी उसकी तलाकशुदा माँ ने अपने दम पर पाल पोस कर बड़ा किया था|.एक सादे समारोह में  तुम दोनों परिणय सूत्र में बंध गए ,तुम अपने पिया के घर चली गईं ...मैं एक बार फिर अकेली रह गयी ...मुझे आदत है अपनों के बिना रहने की ...एक बार फिर सही
आज फिर से मदर्स डे आया है ..मैं तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार कर रही हूँ ...