कई सालों के बाद कानपुर जाना हुआ तो स्टेशन पर उतरते ही सुखद अनुभूति हुई| सबसे पहले नज़र पड़ी जगह -जगह रखे हुए बड़े-बड़े कूड़ेदानों पर जिन पर 'परिवर्तन' लिखा हुआ था| जानने की उत्सुकता बढ़ी कि यह कौन सी संस्था है जो सरकारी प्रयासों से इतर शहर व स्टेशन को साफ़-सुथरा रखने में अपना सहयोग प्रदान कर रही है? जैसे-जैसे शहर की ओर बढ़ते गए कई और परिवर्तन दिखाई दिए, मसलन साफ़-सुथरी सड़कें, सड़कों के किनारे रखे हुए कूड़ेदान, डिवाइडरों पर जगह-जगह करीने से लगे हुए पेड़-पौधे और हरियाली, पैदल चलने वालों के लिए चौड़ा सा फुटपाथ और आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत स्ट्रीट-लाइटें, जो कई साल पहले स्वप्न सदृश्य हुआ करतीं थीं|
जो शहर कुछ साल पहले देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक था; जिसमें जगह - जगह गन्दगी का साम्राज्य हुआ करता था; जहाँ-तहाँ डोलते हुए सुअर न केवल गन्दगी फैलाते थे अपितु जन-सामान्य का जीना भी दुश्वार किये रहते थे; जहाँ सड़कों में गड्ढे हैं कि गड्ढों में सड़कें, पता लगाना मुश्किल होता था; शाम होते ही जो शहर अँधेरे में डूब जाया करता था, आज उसकी बदली हुई सूरत देखकर हैरानी के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई|
सुबह-सुबह ज़ोर की सीटी की आवाज़ से नींद खुली| बाहर आने पर देखा तो परिवर्तन का कर्मचारी कूड़ा-गाड़ी लिए हुए खड़ा है और कूड़ा मांग रहा है| पूछने पर पता चला कि संस्था लोगों के घरों से कूड़ा इकठ्ठा करवा कर, उसका उपयुक्त जगह पर निस्तारण करने की व्यवस्था करती है| बदले में आपसे वे मात्र तीस या पचास रूपए लेती है, जो आप और आपके घर के आस-पास को साफ़-सुथरा रखने की एवज में बहुत मामूली सी रकम है| संस्था के सदस्य अगर आपको सड़क पर कूड़ा या कागज़ का छोटा सा टुकड़ा भी फेंकते हुए देख लेंगे तो निश्चित रूप से आप कितनी ही बड़ी गाड़ी में बैठे हों या कितने ही बड़े पद पर आसीन हों, उनकी फटकार खाने से नहीं बच पाएंगे.
एलन फॉरेस्ट के विस्तृत क्षेत्र में बनाये हुए चिड़ियाघर में घूमने गए तो वहां भी संस्था के प्रयासों को देखने का अवसर प्राप्त हुआ| अब वहां कोई पॉलिथीन के थैले लेकर नहीं जा सकता| ये रंग-बिरंगे थैले कुछ वर्ष पूर्व बंदरों को अपनी ओर आकर्षित करने का माध्यम हुआ करते थे| परिणामस्वरूप, कई लोग बंदरों के हमलों से चोटिल हो जाया करते थे| लेकिन अब परिवर्तन के कर्मचारी कपड़े का एक बड़ा सा बैग देते हैं, जिसमें आपको अपने समस्त पैकेट-बंद खाद्य पदार्थों को खाली करना होता है| इतना सब करने पर ही आप अन्दर जा सकते हैं|
संस्था के विषय में और जानने की उत्सुकता बढ़ती गई| आपसी बातचीत में पता चला कि इस संस्था का निर्माण इसी उद्देश्य से किया गया है कि कानपुर वाले कनपुरिये कहलाने पर गर्व महसूस कर सकें| इस अभियान में आई. आई. टी. के इंजीनियर, बड़े-बड़े व्यवसाई, लब्ध प्रतिष्ठित डॉक्टर्स और कतिपय नेतागण, यहाँ तक कि जन-सामान्य भी अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है| संस्था, समय - समय पर सरकारी कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों से जवाब-तलब करती है, और सरकारी पैसों का बराबर हिसाब मांगती है|
संस्था के कुछ समर्पित सदस्य विभिन्न अवसरों पर शहर के विभिन्न विद्यालयों में जाते हैं और बच्चों के अन्दर, जो आने वाले कल को देश और शहर की बागडोर संभालेंगे, ज़िम्मेदारी का भाव भरने का प्रयास करते हैं| वे प्रयास करते हैं कि भावी पीढ़ी देश व दुनिया के महापुरुषों एवं उनके अविस्मरणीय योगदानों के विषय में जाने और उनसे प्रेरणा लेकर देश व समाज को नई दिशा देने की सोच अपने दिलो-दिमाग में विकसित करें| कोई भी शहर उसमें निवास करने वालों से बनता है| ऐसी कोई भी समस्या नहीं होती जिसे आपसी सहयोग से हल न किया जा सके| बस ज़रुरत अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को पहचानने की होती है| इस जज़्बे को अपनी कानपुर यात्रा के दौरान मैंने परिवर्तन और उसके सजग कार्यकर्ताओं के अन्दर देखा|
मैं भविष्य के प्रति आशा से भर जाती हूँ, और कल्पना करती हूँ उस दिन की जब देश का हर नागरिक अपनी समस्याओं के लिए किसी को भी कोसने के बजाय अपने शहर और देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझेगा और आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ और स्वच्छ सन्देश देगा|