शनिवार, 25 मई 2013

कुछ तो लोग कहेंगे ....लोगों का काम है कहना ...

कुछ तो लोग कहेंगे ....लोगों का काम है कहना ....मैडम ....शुक्र कीजिये कि लोग कुछ ही कहते हैं ...क्यूंकि कहना तो बहुत कुछ चाहिए लेकिन भारतीय लोग शरीफ होते हैं जो कुछ कहकर ही संतुष्ट हो जाते हैं
  
सोते हैं, बिछाते हैं, खाते हैं, पीते हैं, ओढ़ते हैं । कभी देखा है जब बच्चे क्रिकेट खेलते हैं ? 

कपड़े की ढेर सारी बौलें बन जाती हैं । माँ गाली देकर भी सिलती जाती है । 

मुंगरी बनी बैट, पेड़ की टहनियों से बने विकेट ।  

छोटे - छोटे हाथों से आतीं हैं बड़ी बड़ी अपीलें । टीम में शामिल होने की दी जाती हैं दलीलें ।  

स्कूल से चुरा कर लाई गयी चॉक । पूरा करती है यह शौक ।  संकरी सी गली बन जती है पिच ।  सड़क के दोनों और बाउंड्री जाती है खिंच । मंदिर को पार करे तो चौका, मस्जिद को पार करे तो छक्का ।  

कभी टूटते हैं कारों के शीशे । कभी चकनाचूर होते हैं खिडकियों के कांच । फिर देखो कैसे भागे फिरते हैं ये टीम इण्डिया के जांबाज । 

पसीने से भीग जाती है पैबंद लगी कमीज़ । मिट्टी से सन जाती है खेल की हर चीज़ ।  

पोछ लेते हैं आस्तीनों से पसीना, बच्चे फिक्सिंग के वास्ते तौलिया नहीं रखते हैं । 

गला सूख जाए तो नल के नीचे मुंह लगा लेते हैं, इनके रास्ते में ठंडी बोतलों के झाग नहीं उड़ते हैं । 

लड़कियों की फजीहत नहीं करते । खुद ही नाच - गा कर झूम लेते हैं ।

मन में चीअर भरा हो जिनके, चारों दिशाओं में वे स्वयं ही घूम लेते हैं 
 
इधर टीम है, पर टाम  नहीं । बुकियों का कोई काम नहीं । 

उधर भरे दलाल हैं । इधर धरती के लाल हैं । 

दर्शक नहीं प्रायोजक नहीं, आयोजक नहीं, आलोचक नहीं ।  

खरीदार नहीं, बाज़ार नहीं । खेल - बस खेल है, व्यापार नहीं ।

अखबारों में ज़िक्र नहीं ।  इनको कोई फ़िक्र नहीं ।

यह  खेल किसी आई पी एल से कम नहीं । बस खेलना आता है इनको, कोई देखे या ना देखे , इनको कोई गम नहीं ।