साथियों ... इन दिनों दाँत के दर्द से परेशान हूँ ... उम्र है कि निकली जा रही है और हमारी अक्ल दाड़ है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रही है ... तो इसी विषय पर हमने कुछ लिख डाला ... आप लोग कंफ्युजियाईएगा मत. इस अ[कविता] में अपने वो परिचित हम खुद ही हैं ... हर आम औरत की तरह हम, जब तक स्थिति बेकाबू नहीं हो जाती, डॉक्टर और दवाईयों से परहेज करते है ...
हमारे एक परिचित हैं
जो दाँत के दर्द से पीड़ित हैं
दर्द ना हो तो उनका
जीना ही बेकार है
दर्द के आस पास ही
उनका सारा संसार है
गर दाँत दर्द से मुक्ति मिले तो
कमर दर्द को रोते हैं
सुनने वालों को अपना कष्ट बताकर
उनका सुख चैन छीनकर
नींदों को उड़ाकर
खुद लम्बी तान कर कर सोते हैं
ऐ दर्द में जीने वालों
इसका मज़ा उठाने वालों
दर्द में डूबे दिनों
कष्टों में भीगी रातों
हर मौसम की दर्द भरी सौगातों
तुम्हारे सामने
अच्छी अच्छे घबरा जाते हैं
तुम्हारा किस्सा ऐ दर्द सुनकर
स्वस्थ खुद को
अपराधी पाते हैं
आप इतने दर्द में भी जी लेते हैं
बड़े गज़ब की बात है
नोबेल के ना सही मान्यवर
भारत रत्न के तो
अवश्य ही पात्र हैं...