कितना सुन्दर नीलामी का दृश्य है. न्यूयॉर्क में कितनी हलचल है. सभी नीलामगाह जाने के लिए तैयार हो रहे हैं. किसी के अकाउंट में पैसा कम है, कोई उधार लेने जा रहा है तो कोई शेयर बेच रहा है. लौटते-लौटते शायद रात हो जाए, रोज़ बापू का नाम रटते थे, आज उनकी निशानियाँ नीलाम होने जा रही हैं. पर कुछ लोगों को इससे क्या मतलब? उनके लिए बापू दीवार पर लटकी फोटो के अलावा और कुछ नहीं हैं. वे बापू के नाम पे वोट लेते हैं. दो अक्टूबर के दिन हर साल उनकी फोटो को नीचे उतार कर धूल पोछते हैं, चार फूलों की माला पहना कर फिर से टांग देते हैं. 'लटके रहो ऊपर, तुम वहीँ ठीक हो बापू.' कभी-कभी कोई मुन्नाभाई उन्हें नीचे उतार लाने को उतावला हो जाता है तो उसे जेल भिजवा दिया जाता है की इसके तो ब्रेन में केमिकल लोचा है.
महमूद गिनता है एक, दो, दस, बारह लाख.......उसके पास बारह लाख हैं. मोहन के पास...........पंद्रह लाख. इन्हीं रुपयों को लेकर वे बापू के चीज़ें वापिस भारत ले जाने न्यूयॉर्क आए हैं. थाली, कटोरी, ऐनक, चप्पल. घडी.
सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद उर्फ़ हैरी. वह अब न दुबला है, न ही ग़रीब. उसे विदेशी मूल के, भारत में बसे एक करोड़पति दंपत्ति ने गोद ले लिया है जिसमें पिता एक गोरा व माँ अश्वेत है. उसकी बूढी दादी अमीना चिमटा होने के बावजूद रोटियाँ जला देती थी. एक दिन गुस्से में उसी पांच किलो के चिमटे से उसने हामिद का सर फोड़ दिया था. परिणाम-स्वरुप हामिद ने उन्हें चिमटे सहित वृद्धाश्रम भिजवा दिया. अब वह रात-दिन चिमटा बजा-बजा कर अल्लाह को याद करती है और उस दिन को कोसती है जब हामिद यह पांच किलो का चिमटा मेले से लाया था.
हाँ तो हामिद उर्फ़ हैरी के पास पांच-पांच क्रेडिट कार्ड हैं. लोगों में होड़ मची है बापू की निशानियाँ खरीदने की. और हैरी के पैरों में तो मानो रॉकेट की गति आ गयी हो. उसकी वर्तमान अश्वेत माँ गांधी जी की बहुत बड़ी फैन है.
न्यूयॉर्क सिटी आ गई. स्टैचू-ऑफ़-लिबर्टी, ट्विन टावर की नेस्तनाबूद इमारतें, और बभी जाने क्या-क्या. सहसा नीलामगाह नज़र आया. यहाँ सब एक समान हैं. कोई गोरा नहीं कोई काला नहीं. ओबामा की तस्वीर के आगे लाखों सिर सिजदे में झुक जाते हैं.
नीलामी शुरू हो गई. सबसे पहले बापू की घड़ी की बारी आई. बोली लगी पांच लाख. यह घड़ी कोई ऐसी-वैसी घड़ी नहीं है. इस घड़ी की सुइयों पर कभी अंग्रेजी राज थम जाया करता था. महमूद, मोहन, नूरे और सिम्मी इसको छू-छू कर देखता हैं, 'क्या वक्त होगा वह जब बापू की इस घड़ी की टिक-टिक देश की धड़कन हुआ करती थी.'
हैरी उनको दूर से देखता है. फिर सब बापू की थाली व कटोरी की और बढ़ते हैं. इसी पर बापू सिर्फ एक समय दाल-रोटी खाया करते थे. कैसा संतोष बसता होगा इस थाली मैं. इस थाली से शायद ही कभी अन्न का दाना बर्बाद हुआ हो. महमूद थाली पर बोली लगाता है, मोहन कटोरी पर. हैरी को यह नहीं चाहिए. वह तो सुबह शाम नॉन-वेज, पास्ता, पीत्ज़ा खाता है.
इसके बाद बापू का ऐनक नीलामी में आया. इस ऐनक से सभी प्राणी एवं सभी धर्म एक समान दिखते हैं. कोई ऊँचा-नीचा, अमीर-ग़रीब या हिन्दू-मुसलमान नहीं दिखता है. हैरी को यह नहीं चाहिए. वह तो मौका-परस्त है. गरीबों के नाम पर उसके कई एन◦ जी◦ ओ◦ चलते हैं और अमीरों के साथ वह हर रात उठता-बैठता है. हिन्दुओं के साथ दिवाली और मुसलामानों के साथ ईद मनाता है. दोनों के वोट-बैंक में उसकी अच्छी-ख़ासी घुसपैठ है. और इसाई तो वह है ही.
फिर बापू की चप्पल नीलामी में आई. ऐसी चप्पलें जिन्हें पहन कर बापू रेल को भी पछाड़ दिया करते थे, पूरे भारत का क्षेत्रफ़ल नाप दिया करते थे. हैरी को एकबारगी चप्पलों के लिए लालच हो गया, 'ऐसी मैजिक चप्पलें खरीद लूं तो मुझे कोई पकड़ नहीं पायेगा. पिछली बार उसका एक एन◦ जी◦ ओ◦ घोटाला पकडा गया था तो उसे गिरफ्तार भोना पड़ा था. अगर उस समय उसके पास यह चप्पलें होतीं तो शायद वह बच जाता.
हैरी जेब से क्रेडिट कार्ड निकालने ही वाला था की उसकी नज़र सामने ब्रिटनी स्पीयर्स के बड़े से पोस्टर पर पड़ी. उसका थूका हुआ चिउइंग-गम नीलामी के लिए शीशे के केस में रखा हुआ था. 'ब' से बापू या 'ब' से ब्रिटनी, हैरी के मन में संघर्ष शुरू हो गया. उसके सपनों की रानी, सुर-सम्राज्ञी का चिउइंग-गम नीलम हो रहा है. 'अहा, कितनी बार उसने इसे अपने दांतों से चबाया होगा, जीभ पर रखा होगा, होठों से फुला कर फट्ट की आवाज़ करी होगी.' हैरी को लगा जैसे ब्रिटनी साक्षात् उसके सामने खड़ी है और चिउइंग-गम फुला कर उसके होंठों पर लगा रही है. रूमानी कल्पनाओं से वह सराबोर हो गया.
क्या करेंगे उसके साथी बापू की थाली, कटोरी, चश्मा, चप्पल, घड़ी ले कर? चिउइंग-गम की बोली लगी पांच लाख. कई लोगों के हाथ उठ खड़े हुए. हैरी का दिल बैठ गया. कलेजा मजबूत करके वह चिल्लाया पांच करोड़ और चिउइंग-गम उसका हो गया. शान से उसने को अपने मुंह में रखा और अकड़ता हुआ अपने साथियों के पास आया, जो उसकी मज़ाक उड़ा रहे थे. महमूद ने उससे कहा, "तू क्या यह लेने यहाँ आया था पगले. इससे क्या करेगा?" हैरी ने चिउइंग-गम फुला कर कहा, "यह मुंह मैं आ जाए तो भूख-प्यास कुछ नहीं लगती. ब्रिटनी ही खाओ, ब्रिटनी ही पियो."
मोहन घड़ी आगे करके बोला, "बापू की घड़ी से इसका क्या मुकाबला?"
"चिउइंग-गम मुंह में आ जाए तो समय कौन कमबख्त देखना चाहेगा? दिन, रात, सुबह, शाम; जपो बस ब्रिटनी का नाम." नूरे ने ऐनक दिखाया तो हैरी बोला, " चिउइंग-गम मुंह में आ जाए तो हर लड़की ब्रिटनी की तरह दिखती है. किसी से भी इश्क फ़रमाया जा सकता है."
चिउइंग-गम ने सभी को मोहित कर दिया. पर अब क्या हो? चिउइंग-गम तो एक ही था. 'हैरी है बड़ा चालाक. यह हमें न्यूयॉर्क यह कह कर लाया था कि बापू की चीज़ें नीलाम हो रही हैं, चलो उन्हें घर वापिस लाते हैं. राष्ट्र की नाक का सवाल है, अस्मिता का प्रश्न है, वगैरह-वगैरह. और अपना सबसे हसीन चीज़ खरीद ली.'
सब नीलामी से वापिस आ गए. महमूद ने बापू की थाली में पीत्ज़ा, बर्गर खाना चाहा तो वह दाल-रोटी में बदल गया. उसने सिर पीट लिया. नूरे ने ऐनक लगा कर लड़कियों को ताड़ना चाहा तो उसे सभी लड़कियाँ नौ गज की धोती पहनी हुई नज़र आयीं. मोहन ने घड़ी पहनी तो घड़ी की सुइयां आगे ही नहीं बढीं. घडीसाज़ ने कहा की इसमें साठ सालों से सत्य और अहिंसा का फेविकोल चिपका हुआ है इसलिए यह अब नहीं चलेगी.
हैरी घर पहुंचा तो उसकी माँ ने उसे भैंस की तरह जुगाली करते हुए देख कर पूछा, "आज इतने सालों बाद तुझे चिउइंग-गम चबाने की याद कैसे आई."
"मॉम यह साधारण चिउइंग-गम नहीं, ब्रिटनी स्पिअर्स का चूसा हुआ है."
"व्हॉट ब्रिटनी का....आय एम प्राउड ऑफ़ यू माय सन. सुन, तू तो गाँधी बापू की निशानियाँ छुडाने गया था."
"मॉम यह बहुत काम का चिउइंग-गम है. दिन भर मैं चूसुंगा और रात को डैडी, जिनके तकिये के नीचे और पर्स के अन्दर सदा ब्रिटनी का फोटो रहता है. अभी जो डैड आपको आपके बॉय फ्रेंडों से मिलने नहीं देते, पार्टियों में जाने पर झगडा करते हैं, अब चिउइंग-गम चबाने में व्यस्त रहेंगे और आप बाहर मज़े उड़ाती रहना."
'हाय मेरा बेटा; क्या हुआ जो गोद लिया हुआ है, इसे चिउइंग-गम लेने में भी मेरी याद आई.' उसका मन गदगद हो गया.वह रोने लगी. दामन फैला कर हैरी को दुआएं देती जाती थी और आंसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी. हैरी इसका रहस्य अच्छी तरह समझता था.
बेहतरीन रचना !!
जवाब देंहटाएंमैं तो आपकी लेखन शैली का कायल हो गया.
आगे भी आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी
इस पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई । शुरू में पढ़ना किया तो आखिर कब हुआ पता न चल सका । धन्यवाद आपको ।
जवाब देंहटाएंjaroori hai chutkullon me gandhi ko jinda rakhana
जवाब देंहटाएंidgaah aur nilaamghar ko jod kar bahut sundar vyang rachna taiyaar ki hai..
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhai
बेहतर व्यंग्य। तरावट से भरपूर।
जवाब देंहटाएंगांधी जी का एक और विख्यात
प्रयोग 500 के नोट पर मौजूदगी
यही नाम बना है रिश्वत का
भ्रष्टाचार की सलवट का
यही गड्डी होती है तो
सुपारी के काम आती है।
नीलामी में भी यही बंडल
काम में लाए जाते हैं।
आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा। सच कहूँ तो 'कुमाँऊनी चेली' से आकर्षित होकर ही आई। परन्तु आपका लेखन बहुत पसन्द आया। बहुत बढ़िया व्यंग्य लिखा है। बधाई। आशा है भविष्य में भी बेहतरीन पढ़ने को मिलेगा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
वाह, कमाल की धार है आपके व्यंग्य की।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
तीखा व्यंग, कसा हुआ लेखन, बेहतरीन प्रस्तुतीकरण। बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंमैं तो आपका फैन हो गया ...बहुत ही प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
WAAH...... SHEFALI JI...AAPNE TO.....HAME FAN BANA LIYA APNA.... BAHUT HI TIKHA AUR SATIK VYANG HAI......ISHWAR AAAPKI KALAM KO HAMESHA AISE HI MAZBOOT KARE ..
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.GOOD LUCK
ब्रिटनी की च्युंगम! अद्भुत! क्या कल्पना है। जय हो।
जवाब देंहटाएंबड़ा ही भयावह मंजर है ये तो.. हामिद का ऐसा बेजा इस्तेमाल हम भी किये है पर हमने हामिद के हाथो से उसकी दादी का सर फुडवा दिया था.. खैर ब्रिटनी बनाम बापू में जीत ब्रिटनी की ही होनी थी.. आज के टाईम की तो यही डीमांड है..
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