कब हो जाती है सुबह
बीत जाती है कैसे शाम
जीना मेरा हुआ हराम
आया जबसे वेतनमान
हर कुर्सी, हर टेबल पर
एक ही टेबल रोज़ है होती
हर पेड़ के पीछे, हर डाली के नीचे
एक समिति रोज़ है बनती
टीचर जोड़ तोड़ में व्यस्त हैं
बच्चे भूले सारा हिसाब
इस गुणा भाग के चक्कर में
कबसे खुली नहीं किताब
शिक्षा की तो उतर गयी है
देखो यारों कैसे पटरी
हर टीचर का चेहरा जैसे
बन गया है रुपये की गठरी
वो देखो आए मिस्टर पैंतीस
है इनका मुखड़ा तीस हज़ारी
और इनकी देखो चाल मस्त
इनके आगे हर कोई पस्त
पति - पत्नी दोनों के सत्तर
पड़ जाते हैं सब पर भारी
याद भी नहीं मुझको अब तो
कितनी बार हुआ फिक्सेशन
सपने में भी नोट घूमते
दिमाग के टूटे सारे कनेक्शन
हाय रे फूटी मेरी किस्मत !
जोर -शोर से आया था
दबे पाँव यह निकल गया
खड़ी थी सुरसा मुंह को फाड़े
हनुमान बनके निकल गया
हाथ में खाली बटुआ ले
में बैठी हूँ ढोल बजा
सून्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंbahut badiya chitar kheencha hai aaj ki shiksha padati aur shikshak ka
जवाब देंहटाएंशिक्षा की तो उतर गयी है
जवाब देंहटाएंदेखो यारों कैसे पटरी
हर टीचर का चेहरा जैसे
बन गया है रुपये की गठरी
Bahuteeey Bhal chu vyang didi.
Pelag.
बहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंशिक्षा की तो उतर गयी है
जवाब देंहटाएंदेखो यारों कैसे पटरी
हर टीचर का चेहरा जैसे
बन गया है रुपये की गठरी...
wah shephali....kya khoob kaha aapne....jindabad....wah wah
वाह अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ... अच्छी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंक्या सिर्फ शिक्षक का ही वेतन बढ़ा है परंतु कुछ लोगों को शिक्षकों की वेतन वृद्धि रास नहीं आ रही है और वे अनेक प्रकार से इसे गलत ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। अगर शिक्षक वेतन निर्धारण कर रहे हैं तो आप क्यों कुंठाग्रस्त हैं? और किसी भी बात का सामान्यीकरण मत कीजिये। सोच बदलने की जरुरत है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। मजा आ गया आपकी कविता पढ़कर। आभार।
जवाब देंहटाएंbevkoofi
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