आज फिर बदली गयी हूँ मैं
आज फिर छली गयी हूँ मैं
आज फिर टूट गया
ममता का बंधन
रूठ गयी माँ की उमड़ती छाती
छूट गया प्यारा सा बचपन
पिता ने नज़रें फेर लीं आज फिर
लड़के के बदले रखा गया मुझको
आज फिर बोझ समझा गया मुझको
आज फिर डी. एन. ए. टेस्ट होगा
आज फिर एक महाभारत होगा
किसकी किस्मत में लिखी जाउंगी
किसको राहत पंहुचाउंगी, फैसला होगा
तब तक यूँ ही पड़ी रहूंगी
माँ के आँचल को तरसती रहूंगी
हँस देती हूँ मैं पालने में पड़ी पड़ी अकेली
कब सुलझेगी मेरे जीवन की ये अनबूझ पहेली
तब तक यूँ ही पड़ी रहूंगी
जवाब देंहटाएंमाँ के आँचल को तरसती रहूंगी
हँस देती हूँ मैं पालने में पड़ी पड़ी अकेली
कब सुलझेगी मेरे जीवन की ये अनबूझ पहेली.....
एक अच्छी रचना .
नारी की व्यथा को व्यक्त करती इस सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंकविता दिल को छूती है. पर लगता है कि किसी घटना ने आपको यह कविता लिखने पर मजबूर किया है. जरा उसके बारे में भी बताएं
जवाब देंहटाएंबहिन शेफाली पाण्डेय!
जवाब देंहटाएंडी.एन.ए. जैसे प्रतीक के माध्यम से नारी की वेदना को आपने सशक्तरूप से प्रस्तुत किया है। आशीर्वाद के दो शब्द स्वीकार करें। आप अच्छा लिख रही हैं। बधाई।
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें....
जवाब देंहटाएंसतीश जी ने ठीक कहा .....अभी हाल ही की घटना है ..अस्पताल वालों ने कहा गलती से लडकी के बदले रिकॉर्ड में लड़का चढ़ गया ....पर मा- बाप मानने को तैयार ही नहीं हुए ...टेस्ट को लेकर अड़ गए ....तब मैंने ये कविता सोची
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंBahut bhavpurn rachna..badhai...
जवाब देंहटाएंI quite like reading through an article that will make people think.
जवाब देंहटाएंAlso, many thanks for permitting me to comment!
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