कवि सम्मलेन और लोकतंत्र, हर बार लोगों को ठगने के बावजूद अपनी लोकप्रियता और आम जन की आस्था के कारण अस्तित्व में बने रहते हैं |
शहर में विराट कवि सम्मलेन का आयोजन होने जा रहा है इसे कई दिनों से प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा था |
संस्था के आयोजक इसे बार - बार विराट क्यूँ कह रहे थे, इसका राज़ यहीं आकर के खुला जब देखा कि विराट तोंदों के मालिक कुर्सियों पर विराजमान थे | इनके पास विराट पद हैंl, सो ये साहित्य के प्रति कभी - कभी चिंतित हो जाया करते हैं | साहित्य की सेवा ये कवि सम्मेलनों का आयोजन करके करते हैं | बाहर से कवि बुलवाने में खर्चा ज्यादा होता है अतः ये लोकल कवियों को बुलाया करते हैं | विराट कवि सम्मलेन की शुरुआत नहीं हो पा रही थी |कुछ विराट लोगों का आना अभी बाकी था | श्रोता यूँ आ रहे थे
कि लग रहा था कि इन्हें पैसे देकर के घर से बुलवाया गया है | कवि सम्मलेन अगर लोकल लेवल का हो तो श्रोता सम्मलेन की समाप्ति तक आते रहते हैं |
जिन्होंने प्रतीक चिन्हों का पैसा दिया था, उनका फोन आ गया था कि वे निर्धारित समय से दो घंटे देरी से पहुंचेंगे | उनके आने से पहले कवि सम्मलेन की शुरुआत नहीं की जा सकती थी अतः दो घंटे कवियों ने पहलू बदल - बदल कर और मेज पर रखे हुए प्रतीक चिन्हों को हसरत भारी नज़रों से देखकर काटे |
दो घंटे बाद विराट व्यक्तित्व के स्वामी श्रीमान आयोजक जी पहुंचे तब जाकर सम्मलेन की शुरुआत हो सकी | नवरात्रों के दिन थे | व्रती श्रोताओं के लिए चाय आई | तीन बार आई | कवियों की ओर किसी की नज़र नहीं गई | समस्त श्रोता जब चाय पी चुके, तब उनमे से एक को यह ध्यान आया कि अरे कवि लोग भी इतनी देर से भूखे - प्यासे बैठे हैं | तुरंत तीन बार की बनी हुई चाय में पुनः चाय पत्ती डाल कर उनके सम्मुख लाई गई | चीनी इसलिए नहीं डाली होंगी ताकि कोई कवि यहाँ से शुगर की बीमारी लेकर ना जाए |
खाने - पिलाने का कार्यक्रम पहले ही शुरू कर दिया गया था ताकि कोई भी विराट व्यक्तित्व बिना जलपान किये ना जाने पाए | पुनः श्रोताओं और गणमान्य लोगों के लिए संतरे, एवं अंगूर परोसे गए | इस बार भी कवियों को शुगर होने से बचा लिया गया | विराट लोगों की चिरौरी करने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता था | ऐसा भी हो सकता है कि डॉक्टर ने कहा हो कि लोकल कवियों की कविताएँ एंटीबायोटिक की तरह भारी हो सकती हैं, और इनके सेवन से पूर्व पेट अच्छे तरह भर लेना चाहिए, अन्यथा पाचन से सम्बंधित परेशानियां हो सकती हैं | मुफ्त में पढ़ने वाले लोकल कवि अक्सर मोटी - मोटी डायरियां लेकर आते हैं, और श्रोताओं ने अगर भूले से भी ताली बजा दी या दाद देने की कोशिश करी तो कवि के द्वारा डायरी की हर कविता को पढ़ डालने का खतरा उत्पन्न जाता है |
संचालक महोदय को कवि सम्मलेन की शुरुआत करने का सौभाग्य आखिरकार हासिल हो ही गया | पहले आने वाले कवि महोदय ने शुरुआत करते हुए कहा '' यह बिलकुल नई कविता है | कल ही रात को लिखी है, आज आपके सामने पेश कर रहा हूँ " इन्हें ही क्या देश के बड़े -बड़े कवियों को मंच से इस बात का प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि रचना एकदम ताज़ी है | जबकि हकीकत यह है कि श्रोताओं और वोटरों की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है | बिना प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये भी वे मान जाते हैं |
कविताओं में तालियाँ भी बहुत बजी | कवियों द्वारा यह भय दिखाया जा रहा था कि अगर इस समय तालियाँ ना बजाई तो अगले जनम में घर - घर में जाकर तालियाँ बजानी पड़ेंगी | कलयुग में इस धमकी का बहुत महात्म्य है |
तीन लोगों ने काव्य पाठ कर लिया था | अब गणमान्य मुख्य अतिथियों का आना शुरू हुआ | दो घंटे यूँ ही बैठे रहने के बाद कवियों का स्वागत फूल मालाओं से किया गया | गणमान्य लोगों की तादाद अनुमान से ज्यादा हो जाने के कारण हर एक फूल माला को एक अनुपात पाँच के आधार पर कवियों पहनाया गया | फूल मालाओं के फूलों ने इतने हाथों से गुजरने के कारण शर्म से भरकर खुदकुशी कर ली |
सम्मलेन के दौरान प्रतीक चिन्ह बांटे गए | गणमान्यों का समय कीमती था अतः उनके पवित्र हाथों से जितना काम हो जाए उतना अच्छा | प्रतीक चिन्ह फूल मालाओं की तुलना में आधे भी नहीं थे | अतः एक प्रतीक चिन्ह संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, नगर मंत्री, नगर महामंत्री, जिला मंत्री, जिला महा मंत्री, महिला मंत्री, नगर प्रमुख, युवा मोर्चा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव , उपसचिव, और एक दर्जन भिन्न - भिन्न उपक्रमों के मंत्रियों के हाथों से होकर कवियों तक तक पहुँच पाया | छोटे - छोटे राज्य बनाए ही इसीलिये जाते हैं, ताकि यहाँ का हर आदमी गणमान्य हो सके | ये गणमान्य लोग कवियों के साथ फोटो खिंचवाकर आह्लादित हो रहे थे | फोटो खिंचवाने की आपाधापी में कभी - कभार कवि का चेहरा भी दृष्टिगोचर हो जा रहा था, अन्यथा बड़ी-बड़ी तोंदों के बीच सूखे - मरियल कवियों के मात्र हाथ या आँखें ही फोटो में आ पा रही थीं |
प्रतीक चिन्ह शायद लोकल कवियों के लिए विशेष ऑर्डर देकर तैयार करवाए गए थे |
इतने हाथों से गुजरने के बाद प्रतीक चिन्हों का हश्र भी फूल मालाओं की तरह हुआ | घर जाते समय अंत में सिर्फ़ चिन्ह ही बचे रह गए |
इतने हाथों से गुजरने के बाद प्रतीक चिन्हों का हश्र भी फूल मालाओं की तरह हुआ | घर जाते समय अंत में सिर्फ़ चिन्ह ही बचे रह गए |
गणमान्य लोग इस कवायद के बाद थक चुके थे | और आगे की सीटों पर विराजमान हो चुके थे |गणमान्य लोग उपस्थित हों और मंच पर सिर्फ़ कविता पढ़ी जाए, यह कैसे संभव हो सकता है ? प्रमुख गणमान्य को इस तरह के आयोजन में पहली बार आने के कारण बहुत प्रसन्नता हुई कि उनके शहर में इतने बुद्धिजीवी रहते है | एक कविता के ऊपर जीने वालों को बुद्धिजीवी कहा जा रहा है, यह सुनकर मंचासीनों को बहुत प्रसन्नता हुई | अब और लिखने पढ़ने की क्या ज़रुरत ?
गणमान्य जी ने अपनी पार्टी का पूरी तरह से प्रचार - प्रसार कर चुकने के बाद विपक्ष पर खुल कर हमला किया | अपने ऊपर चल रहे विभिन्न आरोपों को उनकी बढ़ती लोकप्रियता से खार खाए हुए दुश्मनों की साज़िश करार दिया |
संस्था का नगर प्रमुख सञ्चालन की बागडोर संभाले हुए था | वह इसी शर्त पर आयोजन करवाता था कि सञ्चालन का जिम्मा उसे दिया जाएगा | कवि गण प्रतीक चिन्हों के हश्र एवं मालाओं की सद्गति से खिन्न थे अतः श्रोताओं का मनोरंजन नहीं कर पाए, सो यह दायित्व उसके कन्धों पर आ गया था | दायित्व का निर्वहन करने में संचालक ने कोई कसर नहीं रख छोड़ी | उसने जो शायरियाँ लोगों को सुनाई उनमे से एक का नमूना यह है -
अंगूठी में जो लगता है उसे नगीना कहते हैं
प्यार करके जो छोड़ दे उसे कमीना कहते हैं
उसे बिना मांगे सबसे ज्यादा तालियाँ और दाद मिली |
प्रमुख विराट व्यक्तित्व को एक बार का उदघाटन करने भी जाना था | बार-बार बजता उनके व्यक्तित्व मेल खाता विराट फोन उन्हें परेशान कर रहा था| भीड़ में साइलेंट रहना ना उन्होंने सीखा था ना उनके विशालकाय फ़ोन ने | सो वे काव्य पाठ के दौरान ही उठ खड़े हुए | उनके जाते ही लगभग पूरा हॉल खाली हो गया |
जल्दी जल्दी कार्यक्रम का समापन किया गया | समापन पर संचालक ने वह चुटकुला सुनाया, जिसे बदल-बदल कर वह हर सम्मेलन में सुनाता था | जिस चुटकुले में दूध निकालने की प्रतियोगिता में भारतीय नेता को गलती से बैल मिल जाता है और वह बैल का दूध तक दुह देता है और अन्य देश के नेताओं को हरा देता है | मंच पर कोई महिला कवियित्री हो तो उससे क्षमा मांगकर यह चुटकुला वह दोगुने उत्साह के साथ सुनाता है |
इस तरह एक लोकल लेवल का कवि सम्मलेन संपन्न होता है |
विराट पोस्ट!
जवाब देंहटाएंअटेंड किये गए तमाम कवि सम्मलेन आँखों के सामने एक-एक करके नाच गए. बहुत मस्त पोस्ट. बहुते.
शेयर बाजार के सूचकांक की तरह कवियों की स्थिति में उतार चढ़ाव की रोचक प्रस्तुति शेफाली जी। मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मोटी डायरी वालों को तो डायरी लेकर मंच पर चढ़ने की मनाही होनी ही चाहिये, साथ ही बस एक क्षणिका व वह भी पूर्वस्वीकृति सहित ही allow की जानी चाहिये, याददाश्त के ज़रिये कविता सुनाने की शुरूआत करते ही माइक बंद कर कवि को लतिया देना चाहिये, मंच पर चढ़ने से पहले इनकी अच्छे से जांच भी होनी चाहिये कि कहीं कोई पुर्जा नेफ़े बगैहरा में तो छुपा कर नहीं चढ़ रहे हैं मंच पर. मंच के चारों तरफ़ SPG टाइप सुरक्षा-घेरा होना चाहिये ताकि इन कवियों को कोई कहीं से फ़र्रा न पकड़ा दे...
जवाब देंहटाएंकहते थे चाँद तो कभी कहते खुदा भी थे..
जवाब देंहटाएंहाँ इश्क ने ही हुस्न को मग़रूर कर दिया...
यूँ तो हर एक शेर का अपना अपना मजा है लेकिन उक्त कुछ खास लगी। सुन्दर प्रस्तुति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत ही बढ़िया कटाक्ष किया है आपने आजकल होने वाले कार्यक्रमों पर
जवाब देंहटाएंफूल मालाओं के फूलों ने इतने हाथों से गुजरने के कारण शर्म से भरकर खुदकुशी कर ली
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा
आप की लेखनी का जवाब नहीं
aapne local programme ka sundar varnan kiya. thik isi tarah hota hai...sundar prastuti...
जवाब देंहटाएंसच! में ऐसा सममेलन हमने कहीं नहीं देखा......
जवाब देंहटाएंइतने विराट सम्मलेन में डायरी लाने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए, कहीं स्टेज डायरी के वजन से ही न टूट जाए. दुबले पतले कवियों की सेहत को भी इन भारी डायरी से खतरा है...
जवाब देंहटाएंमजेदार पोस्ट...सुबह सुबह इतना विराट सम्मलेन देख लिया, दिन सफल हुआ.
आज कल कवि सम्मलेन का सटीक चित्रण
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई हो
वाह! आपने क्या अद्भुत, असली, विराट रेखा-चित्र खींचा है आपने विराट कवि सम्मेलन का. :)
जवाब देंहटाएंभगवान बचाए ऐसे विराट सम्मलेन से. लेकिन ऐसे सम्मलेन में शिरकत कर और इसे झेलने वालो सरौताओ (श्रोता तो वो हो नहीं सकते) की सहनशक्ति भी कम विराट नहीं.
जवाब देंहटाएंjaisi ki umeed thi ki aap ki rachna me taang-khichayi padhne ko milegi....so mili aur bharpoor anand aaya.
जवाब देंहटाएंhamesha ki tarah behtarin.
जवाब देंहटाएंविराट कटाक्ष,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
ये विराट को गज़ब परिभाषित किया है तुमने .:) बढ़िया व्यंग हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंताजी लिखी कविता के बारे में मुझे कुछ याद आ रहा है . हुआ य़ू की ७-८ साल पहले हमारे घर (कानपुर) के बगल में एक विराट कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ था, उसमे स्वनामधन्य कवि , गोपाल दास नीरज, अशोक चक्रधर और हुल्लड़ मुरादाबादी , जैसे कवियों ने हिस्सा लिया. हुल्लड़ मुरादाबादी जी ने एक हास्य कविता पढ़ी. और उन्होंने ने ये भी बोला की कल ही लिखी है ये हास्य कविता. इस सम्मलेन के एक सप्ताह बाद मुझे एक conference में जाना हुआ जो की आगरा के एक पञ्च सितारा होटल में आयोजित था. वहा शाम को कवि सम्मलेन का आयोजन था और हुल्लड़ जी भी आमंत्रित थे. हुल्लड़ जी जब बारी आई तो उन्होंने फिर वही कविता पढ़ी और ये भी बोले की कल ही लिखी है ये कविता, मुझे आश्चर्य हुआ ये सुनकर. संयोग या दुर्योग जो भी कहिये कविता पाठ के बाद उनको होटल में हीठहरना था और उनका रूम मेरे रूम के बगल में था. corridoor में वो मुझसे मिल गए और मैंने ये पूछ ही लिया ये की ये कविता तो आपने एक सप्ताह पहले कानपुर में भी सुनाई थी और आप बोल रहे है की कल ही लिखी है. उनका चेहरा फक्क , फिर खीस निपोरते बोले यार समझा करो . धन्य है कवि और विराट कवि सम्मलेन.
जवाब देंहटाएंऐसा लगा कि रिपोर्ट है विराट कवि सम्मेलन की...वाकई ऐसा ही देख कर आये हैं हमेशा. :)
जवाब देंहटाएंघर जाते समय अंत में सिर्फ़ चिन्ह ही बचे रह गए |
हा हा!!
शेफाली जी !
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार रिपोर्ताज ।
आपने आयोजकों की अच्छी तरह से मिट्टी छाँट दी ।
आप इतने दिनो बाद सम्पर्क मे आयीं , आप का लेखन आनन्दपूर्ण है ।
प्रायः कविसम्मेलनों से जुड़े इस 'विराट' शब्द को लेकर काफी जिज्ञासाए थी मन में.
जवाब देंहटाएंआज शांत हुई. :D
वाकई बेहतरीन नज़ारा दिखाया आपने विराट(?) कविसम्मेलन का.
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंतालियाँ
(क्योंकि अगर इस समय तालियाँ ना बजाई तो अगले जनम में घर - घर में जाकर तालियाँ बजानी पड़ेंगी)
हा हा
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़कर देख लिया है!
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़कर धेक लिया है यह सम्मेलन भी!
अरे आपने तो कवियों का ठीक ढंग से जुलूस निकाल दिया। जो कुछ लिखा गया है वह पूरी तरह से सच है क्योंकि इस तरह के कवियों से मेरा पाला बहुत पड़ा है। अब भी इन आत्ममुग्ध कवियों से मुलाकात होती रहती है। एक बार का प्रसंग तो बड़ा ही जोरदार है। कभी वक्त मिला तो जरूर लिखूंगा।
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार. कवि सम्मेलनों के वर्तमान स्थिति यही है.
जवाब देंहटाएंएक मनोरंजक लेख जो व्यंग की चाशनी मे डुबोया गया है
जवाब देंहटाएंपढ़ने वाले के लिए चाशनी ही है जिसके ऊपर लिखा गया है उसके लिए नीम के पत्तियों का अर्क भी हो सकता है :)
एक एक चित्र मेरी आँखों के सामने से हो कर गुजर गया
हमने भी कई देखें है लेकिन ऐसा तो कहीं नही देखा। आपके शहर आएंगे तो ऐसा भी देख ही लेंगे।
जवाब देंहटाएंविराट कवि सम्मेलन सुनने के विरात अनुभव के चलते मै पुष्टि करता हू कि लगभ हर अपरम्परागत कवि सम्मेलन की यही कहानी है. कुछ अलग अनुभव भी है मैने ऐसे गणमान्य भी देखे है जो औपचारिकता के लिये मन्च पर बैठने के तुरन्त बाद नीचे फ़र्श पर बैठ जाते थे अय्र अन्त तक कविता सुनते थे. लेकिन ये अपवाद स्वरूप ही होते है और अप्वाद भी नियम की पुष्टि ही करते है.
जवाब देंहटाएंकवि सम्मेलन की चीर फाड करती रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया कटाक्ष!
जवाब देंहटाएंआप की इस रचना को शुक्रवार, 18/6/2010 के चर्चा मंच पर सजाया गया है.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
badi pyari rachna.........jo vyangyatamak to hai, lekin sachchai ko ujagar karti hai.....:)
जवाब देंहटाएंye to kavi sammelan nahi Kaviyon ki cheer faar karne wali rachna hai, upar se ye sher.........subhan allah!!:P
अंगूठी में जो लगता है उसे नगीना कहते हैं
प्यार करके जो छोड़ दे उसे कमीना कहते हैं
[:P]
ab barabar aata rahunga, aapke post follow karne layak hain.....!
kabhi hamare blog pe aayen:)
heheh..are di kya dhaansu kavisammelan tha....hehe..aur wo wala chutkula maine bhi ek sanchalak mahoday se sikandrabad ke mushayre me suna tha...alag bat hai usme dr kunwar bechain jaise log bhi the.. :) ..aur han kai bar local kavi sammelan me ye sab hote hue dekha hai maine..ek dum solid.....
जवाब देंहटाएंG A Z A B
जवाब देंहटाएंbahut hi umda aur sateek post !
maza aaya...........
aapne is vishaya par bahut acha likha or aap iske sath RAAJNETI par bhi likhe taki aam janta k parti netao ka vavyhar acha ho AAP BAHUT ACHA LIKHATE HO
जवाब देंहटाएंBahut badhiya, Roj hee aise aayojan dikhte hain, aapne notice kar badhiya prastutikaran kiya..Sadhuwaad!!!!
जवाब देंहटाएंVery lively sketch of small-town culture. Itz same all over u.p., haryana , uk and even m.p.!
जवाब देंहटाएंकुछ शहरों के लोकल कवियों ने आपके इस लेख के बाद भी अभी कवि- सम्मेलन आयोजित करना नहीं छोड़ा है I या तो उन्होंने आपका लेख नहीं देखा , या वे इस ग़लतफ़हमी में हैं , कि शैफाली मेम उन्ही वृक्षों पर पत्थर फेकती हैं, जिनमें मीठे - मीठे फल लटके होते हैं I
जवाब देंहटाएंशेफाली जी, बड़े पते की बात कही है। आपकी कलम काफी तीखी है। इसका तीखापन बरकरार रखें।
जवाब देंहटाएंविराट लोकल कवि सम्मेलन!
जवाब देंहटाएंइसमें ये और जोड़ सकतीं हैं कि कुछ कवियों ने चोरी की हुई रचनाएँ भी पढ़ीं ,क्योंकि आज कविता चोरी करने वाले भी कवि बने घूमते हैं ,और किसी लोकपाली आन्दोलन का झंडा उठाकर मंच संचालन करके देशभक्त होने का ढोंग भी कर लेते हैं.टी वी चैनल वालों से सांठगाठ करके दर्शकों के सामने आकर,देशभक्ति और नैतिकता का नाटक भी करते रहते हैं .
जवाब देंहटाएंइसमें आप ये भी जोड़ सकतीं हैं कि कुछ कवियों ने चोरी की हुई रचनाएँ भी पढ़ीं क्योंकि आजकल कवि सम्मेलनों में चोरी की रचनाएँ पढने वाले भी कवि बने घूमते हैं और किसी लोकपाली आन्दोलन का झंडा उठाकर देशभक्त बने रहने का ढोंग भी करते रहते हैं ,वे टीवी चैनल वालों से साठगांठ करके टीवी पर भी आते रहते हैं, देशभक्ति और नैतिकता का नाटक भी करते रहते हैं,जैसे साहित्यिक चोर
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