बत्तीस और छब्बीस रुपयों में घर चलाना सीखें .....कुछ रेसेपीस ...
साथियों हाय तौबा मचने से कुछ नहीं होगा | सरकार हमारा मान रखती है तो हमें भी हमें सरकारी आंकड़ों का मान रखना होगा | हमें अब ऐसी रेसीपियाँ सीखनी होंगी, जिनकी सहायता से हम सरकार द्वारा निर्धारित रुपयों में पेट भरने में सफल हो जाएं | सदियों से फिजूलखर्ची की जो आदत हमारी नस - नस में समाई हुई है, उसे अब दूर करने का समय आ गया है |
सबसे पहले ईंधन का जुगाड़ करें | जब - जब आपका दिल योजना आयोग के आंकड़ों को देखकर, संसद की कैंटीन में खाने के दाम पढ़कर, या आए दिन उजागर होते घोटालों को सुनकर सुलगे, उस सुलगे हुए दिल को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करें | ज्यादा सुलगे तो इनके कोयले बनाकर भविष्य के लिए रख लें | भविष्य में इन कोयलों की बहुत ज़रुरत पड़ने वाली है |
बाज़ार जाने पर नित्य बढ़ते हुए खाद्य पदार्थों के दाम सुनकर जब चेहरा पीला पड़ जाता है, उस पीले रंग को हल्दी के रूप में उपयोग में लाएं | ऊंट के मुँह से जीरा लें | अब तक मूंग की दाल भी दल गई होगी | दाल को चूल्हे में डाल कर दिल की तरह धीरे - धीरे सुलगने दें |दाल का इंतजाम ना हो पाए तो कढ़ी से भी काम चला सकते हैं, बशर्ते बासी कढ़ी खाने से परहेज़ ना हो तो |इंतज़ार करें, भाजपा के कार्यालय में वर्षों से पड़ी हुई बासी कढ़ी में जल्दी ही उबाल आने वाला है |
खाना कैसा भी हो नमक के बिना कोई स्वाद नहीं मालूम पड़ता है | नमक बनाने के लिए गांधीजी की विधि प्रयोग में ला सकते हैं | गांधीजी की रेसिपी इन्टनेट से सर्च करके से डाऊनलोड कर लें | ध्यान रहे इन्टरनेट से सर्च करने पर कभी - कभी एक फर्जी साईट भी खुल जाती है जिसमे गांधीजी समस्त देशवासियों से एक समय खाना खाने का अनुरोध करते हैं | इसके अलावा पुरुष अपने पसीने से और महिलाएं अपने आंसुओं से नमक बना सकती हैं | कई लोग इश्क से भी नमक का निर्माण कर लेते हैं, जो कि शादीशुदा और घर - गृहस्थी वालों के लिए बहुत मुश्किल काम है |
खाने में रायता भी हो तो स्वाद दोगुना हो जाता है | योजना आयोग के आंकड़ों के साथ माथापच्ची करके दिमाग का दही बन जाए तो उसमें राई के पर्वत से राई ले कर मिक्स कर लें | इसमें आप सौ बीमारों से एक अनार जो आजकल सुप्रीम कोर्ट के पास लगे हुए ठेले में मिलता है, को छील कर मिला लें |
चटनी से खाने का स्वाद बढ़ जाता है, और भूख भी खूब लगती है | इधर वर्तमान सरकार से सभी का जी खट्टा हो ही गया है, तो उस खटाई से चटनी बना लें | अपने - अपने घावों से नमक मिर्च निकाल कर स्वादानुसार इस चटनी में मिला सकते हैं |
छठे वेतनमान के आने से जिन लोगों को लगा था कि अब पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कढाई में है, वे लोग अपनी उँगलियाँ कढाई से निकाल लें और दाल छोंकने के लिए उँगलियों में चिपके घी को आग में डाल लें | जिन्होंने वेतनमान का नाम तक नहीं सुना और जिस कोल्हू में वे दिन रात जुते हुए हैं, ऐसे लोग तेल की धार को देखने में ही व्यस्त ना रहें बल्कि थोडा सा तेल ले कर दाल में छोंक लगा लें |
कंगाली में गीले हो चुके आटे को थोथे चनों के साथ पीस कर मिला दें | आटा काम आ जाएगा | ये थोथे चने हाल ही में संसद के विशेष सत्र के दौरान जोर - जोर से बजते सुनाई दिए थे | वैसे चनों की कोई अब कोई कमी नहीं रही है | अभी तक जी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में भाग लेकर आपको मीडिया ने चने की झाड़ पर चढ़ाया था, अब उससे उतरने का समय आ गया है, उतरते समय उसी झाड़ से थोड़े चने तोड़ लाइयेगा |
वैसे गीला आटा भी उपलब्ध ना हो तो बता दूँ कि रोटी घास की भी बनती थी | इतिहास बताता है कि हमारे देश के कई वीरों ने घास की रोटियाँ खाकर बड़े - बड़े युद्ध लड़े थे | हमारा दुर्भाग्य है कि उसकी रेसिपी इन्टरनेट पर उपलब्ध नहीं है |
अहलुवालिया जी बड़े किसान हैं, उनके धान के खेतों में बाईस पसेरी धान की किस्म लगी है, वहाँ से धान लेकर, उनसे चावल निकाल कर खयाली पुलाव या बीरबल की प्रसिद्द खिचड़ी बना लें | इसमें बंदरों से अदरक मांग कर अवश्य डालें | इससे अपच, अजीर्ण और गैस नहीं होगी, जो कि कभी - कभार पेट भरकर खाना मिलने के पश्चात आम आदमी को हो जाया करती है |
ऊँची दुकानों से फीके पकवान लेकर पसीने से बनाए हुए नमक के साथ खा लें | ये पकवान योजना आयोग के भवन और सात रेसकोर्स रोड के पास इफरात से मिलते हैं |
चाय बनाने के लिए पानी में ज़ुबान से बची खुची शक्कर निकालकर घोलें , जो कि बहुत मुश्किल काम होगा | महंगाई के चलते ज़ुबान से शक्कर गायब हो गई है, और शरीर में घुल गई है | ज़ुबान कडवी हो गई है, शरीर मीठा | हांलाकि दूध में से आप लोगों को मक्खियाँ समझकर फेंक दिया गया है, तो भी यह दूध मक्खी फेंकने वालों के किसी काम का नहीं रहा | इसी दूध को चाय बनाने के काम में लाया जा सकता है |
मांसाहारी लोग निराश ना हों | वे चील के घोंसले से मांस ढूँढने का प्रयास करें | समय की मांग के चलते चीलों ने अपने पुराने ठिकाने बदल लिए हैं | आजकल वे तिहाड़ जेल की खिडकियों में अपने घोंसले बनाने लगी हैं | बकरा खाने वालों के लिए भी खुशखबरी है क्यूंकि वक्त की नजाकत को देखते हुए बकरे की अम्मा ने भी खैर मनाना छोड़ दिया है |
खाने के बाद मीठे के लिए रेवड़ियां भी हैं | ये अक्सर दस जनपथ के पास बंटती है | ध्यान रहे रेवड़ियां ज्यादा खाने से रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे कम करने के लिए पूरे भारत वर्ष में एक ही डॉक्टर है जिसे रालेगन सिद्धी से बुलाना पड़ता है, इनकी टीम बहुत बड़ी और नखरेवाली है | उनकी फीज़ चुकाने में बड़े - बड़ों के पसीने छूट जाया करते हैं | इनकी विशेषज्ञता को देखते हुए आजकल पड़ोसी देशों में भी इनकी बहुत मांग है |
वाह! गजब की रेसिपी है जी!
जवाब देंहटाएंमजे आ गये। जब रेसिपी इतनी आकर्षक है तो भोजन कित्ता स्वादिष्ट होगा कल्पना की जा सकती है। कहावतों-मुहावरों का शानदार प्रयोग! ये लाइनें खासकर जमीं:
छठे वेतनमान के आने से जिन लोगों को लगा था कि अब पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कढाई में है, वे लोग अपनी उँगलियाँ कढाई से निकाल लें और दाल छोंकने के लिए उँगलियों में चिपके घी को आग में डाल लें | जिन्होंने वेतनमान का नाम तक नहीं सुना और जिस कोल्हू में वे दिन रात जुते हुए हैं, ऐसे लोग तेल की धार को देखने में ही व्यस्त ना रहें बल्कि थोडा सा तेल ले कर दाल में छोंक लगा लें | मजेदार आलेख! इसे किसी अखबार/पत्रिका में भेजें छपने के लिये।
जी.
जवाब देंहटाएंआपकी कथनानुसार अमल जरूर करेंगे. और रास्ता भी क्या है.
बार्टर सिस्टम पुनः प्रारम्भ कर दें, 32 रु में हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंअहा!! इतना स्वादिष्ट और मसालेदार व्यंग पढकर मजा आ गया!!
जवाब देंहटाएंकमाल का शानदार व्यंग्य्………………अब तो इन्हे डूब कर मर जाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंwoh kaya sachi bat ka hi ap ne
जवाब देंहटाएंवाह वाह - कमाल की रेसिपि है, हमारे छत्तिसगढ में एक कहावत है - "थूके थूक मा बरा चुरोना" = थूक में बड़ा पकाना। धार दार व्यंग्य के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंशानदार व्यंग्य्…..
जवाब देंहटाएंअभिव्यंजना मे आप का स्वागत है...
यह भी बढ़िया है,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत धारदार व्यंग ... अब तक तो दिल कोयले से राख भी हो गया ..
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफ़ी है...
जवाब देंहटाएं26 या 32 को, 4 या 6 गुणा करके घर का दैनिक ख़र्च निकालना चाहिये (सरकार की दलील है) क्यों कि हर परिवार में 1 नहीं बल्कि 4 से 6 लोग होते हैं...
:)
I loved your sense of humor that you put in between the lines. Keep writing :)
जवाब देंहटाएंजनता की तो उंगलियां ही क्या पूरी कढाई ही जल गई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपने तो 26 और 32 भी पूरे बचा दिए और खर्चा भी चला दिया। अब तो आपको अगला गृहमंत्री या योजना आयोग का अध्यक्षा बनाने के लिए प्रस्ताव भेजा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंwaah waah bahut bahut badhiya .....isko please aage yojna aayog ko bhej de :)
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