आज हल्द्वानी शहर की कोतवाली में यातायात पखवाड़े का आयोजन किया गया, जिसमे शहर के कवियों से यातायात के विषय में जागरूकता का संचार करने के लिए कहा गया । अपनी आदतानुसार हम जागरूकता फिलाने के बजाय व्यंग्य बाण छोड़ आए ।
हल्द्वानी .............यातायात पखवाड़ा मनाने से पहले और यातायात पखवाडा मनाने के बाद .....
इधर एक मेन बाज़ार है
जिधर चलना दुश्वार है
जिसे भी देखो
हवा के घोड़े पर सवार है ।
जीत गए जो घुसने में किसी तरह
निकलने में निश्चित हार है ।
इधर कंधे से कंधे छिलेंगे
पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार मिलेंगे
कान वाले बहरों के साथ
आँख वाले अंधे फ्री मिलेंगे ।
ये जो बाज़ार में
तैरते हुए ठेले हैं
ऊँची दुकानों के फीके पकवानों से
पैदा हुए झमेले हैं ।
इनको गौर से देखो तो
सिर चकरा जाता है
कभी सारे बाज़ार में दिखाई देते हैं ठेले ही ठेले
तो कभी सारा बाज़ार
इन ठेलों में उतर आता है ।
इनके कारण आजकल
यमराज असहाय हैं
ये मौत का दूजा पर्याय हैं
बेधड़क ये सड़क पर
यूँ धड़धड़ाते हैं
इनकी वजह से हम
नींद में भी 'बचाओ बचाओ'
बड़बड़ाते हैं ।
शहर के अन्दर ये
कोढ़ पर खाज के समान हैं ।
जनसँख्या कम करने में साथियों
इन डंपरों का बम्पर योगदान है ।
ना हेलमेट, ना लाइसेंस
न कॉमनसेंस, ना रोड सेंस
बाइक पर सवार ये स्टंटमैन
शिकार इनका कॉमनमैन
जब इनका टूटे कहर
काँप उठे सारा शहर ।
सबसे आगे मैं ही निकलूँ
मची हुई है रेलम पेल
बिगड़े दिल शहजादे
इन पर कौन कसे नकेल ।
इस शहर की एक
लाइलाज बीमारी है
जिसका नाम अतिक्रमणकारी है ।
हो कोई भी सरकार
इनके आगे हारी है ।
दुकानें अन्दर कम
बाहर ज्यादा दिखती हैं
हो जाए अगर कोई त्यौहार
पैदल चलने की जगह नहीं बचती है ।
सड़क - सड़क नहीं
लगती इनकी बपौती है
इन पर काबू पाना
सबसे बड़ी चुनौती है ।
यहाँ ....................
कालू सैयद चौराहे का नज़ारा
अन्दर अमीर बाहर गरीब
भीख मांग करें गुज़ारा ।
मंगल पड़ाव, अमंगलकारी
पीलीकोठी हल्की, वाहन भारी
रोड नैनीताल, निकलना मुहाल
कालाढूंगी सड़क, जिया धड़क -धड़क
रेलवे बाज़ार, निकल जाओ तो चमत्कार
फंस गए मियाँ , रोड तिकोनिया
भोटिया पड़ाव, छात्रों से बच पाओ
छोटे लोग, बड़ी कार
बिन कार, जीवन बेकार
होर्डिंगों के बोझ से
हांफता शहर
लाल पट्टियों के खौफ से
काँपता शहर
निकलो जिधर से भी शहर में
एक चीज़ आम मिलेगी
हर सड़क परेशान
हर गली जाम मिलेगी ।
वाह! बहुत अच्छा यातायात है। जय हो।
जवाब देंहटाएंवाह, सन्नाट दिया है..
जवाब देंहटाएंआपको पढकर आज बहुत ही आनंद आया |एक उत्कृष्ट व्यंग्य कविता जिसमें कहीं भी फूहड़ता नहीं है |वाकई आप शेफाली हैं |
जवाब देंहटाएंwww.sunaharikalamse.blogspot.com
www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
124 करोड़ होने का प्रताप.
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या मज़ेदार चित्रण किया है आपने ! :)
जवाब देंहटाएंहरेक को अपने शहर का कोई न कोई बाज़ार ज़रूर याद आ जाएगा.....क्योंकि हर शहर में एक न एक ऐसा बाज़ार होता ही है.... :)
~सादर!!!
हा हा हा .... हर एक बाजार की यही हालत है ... तंज़ तो बड़ा ही मजेदार हैं शेफाली जी
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
क्या अदभुत दृश्य प्रस्तुत किया है आपने मैडम ... स्वर्गीय राजकपूर जी आज जिन्दा होते और हल्द्वानी आते तो जरूर गाते .... ए भाई जरा देख के चलो ... दायें भी नहीं बायें भी .... ऊपर ही नहीं ... नीचे भी ...
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