मौसम ---------
यह क्या से क्या हो गया?
पलक झपकते ही पारा
इतना ऊपर चढ़ गया ।
संभाल भी ना पाए थे अभी
कम्बल और रज़ाई
कि फुल स्पीड पंखा पकड़ गया ।
पूछ रहे हैं रो - रोकर
दस्ताने और ये मेरे मफलर
कि जाड़े का वह मौसम
कब, कहाँ और कैसे बिछड़ गया ?
निरुत्तर प्रदेश --------
योगी को मिल गया ताज
भोगियों की उड़ रही हवा है ।
हो कैसा भी मर्ज़
अब एक ही दवा है ।
घूम रहे थे जो लड़कियों के पीछे - पीछे
बनके रोमियो, मजनू और फरहाद
उनके लिए अब
सिर्फ और सिर्फ
हवालात की हवा है ।
ई. वी. एम -------
बहुत ऊंची चीज़ है
यह वोटर मोहतरमा !
यह कभी भेड़ हो नहीं सकता ।
और ई.वी.एम.जैसी मशीन
कोई छेड़ दे, हो नहीं सकता ।
करारी हार को पचा पाना
होता नहीं इतना आसान
मखमली गद्दी का नज़रों के सामने से
खिसक जाना,
अरे
ये नज़ारा तो
अच्छे अच्छों को हज़म नहीं होता ।
उत्तराखंड -----------
अनुमान सारे थे जितने
धरे के धरे रह गए ।
उड़ रहे थे कल तलक जो आसमानों में
दिन- रात को एक करके
आज ज़मीन पर खड़े के खड़े रह गए ।
दारू, कम्बल, मुर्गा,
साड़ी, मंगलसूत्र और रुपैय्या
भांप नहीं सकते किसी के मिज़ाज को
ये वोटर हैं साहेबान ! वोटर
इनको पढ़ने में तो
बड़े से बड़े रह गए ।
बाहुबली --------
बिना हथौड़े के
चट्टान तोड़ी नहीं जाती ।
अकेले चने से भाड़
फोड़ी नहीं जाती ।
कौन समझाता उन्हें
बताता कौन उन्हें
कि
टूटे हुए सपने और
टूटी हुई उम्मीदें
महज़ लफ़्फ़ाज़ों के
फेवीकॉल से
जोड़ी नहीं जाती ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया :)
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