जनता महंगाई से त्रस्त हो गयी है वैसे जनता को आदत होती है किसी न किसी प्रकार से त्रस्त रहने की | जीने के लिए त्रस्त रहना बहुत ज़रूरी होता है वरना पता नहीं चल पाता कि ज़िंदगी कट भी रही है या नहीं |
बहुत दिनों बाद मुद्दा मिला है वरना बिजली पानी जैसी निम्न स्तरीय समस्याओं से आखिर कब तक त्रस्त रहा जा सकता है |
जनता राजा के पास फ़रियाद लेकर गयी है, '' सरकार ! महंगाई बहुत बढ़ गयी है | दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है | जीना मुश्किल हो गया है | क़र्ज़ पर क़र्ज़ चढ़ता जा रहा है | बैंक वाले जीना हराम किये दे रहे हैं | आत्महत्या के अलावा कुछ नहीं सूझता ''|
''क्या कहते हो ? कभी कहते हो सब्जी महंगी हो गयी कभी कहते हो दाल महंगी हो गयी | आज कह रहे हो रोटी महंगी हो गयी है | तुम लोग एक बात पर क्यों नहीं टिके रह सकते हो ? हम लोगों की तरह आए दिन बयान बदलते रहते हो | मेरी गद्दी हथियाना चाहते हो क्या ? और ये आत्महत्या की बात क्यों कर रहे हो मेरे सामने ? फैशन बना रखा है आत्महत्या को ? अरे संघर्ष करो संघर्ष | कायर आदमी ही मरने की सोचते हैं | काम से जी चुराते हो और मरने की बात करते हो ''|
भूखी जनता दौड़ रही है | धरना प्रदर्शन कर रही है | जो नहीं कर रहे वे सल्फास खा रहे हैं और इस नश्वर और पापी शरीर से मुक्त हो रहे हैं |
''सरकार भूखे हैं'', कहीं से फिर धीमी सी आवाज़ आती है |
''क्या कहते हो ? भूखे हैं ? सारा देश सातवें वेतनमान की फसल काट रहा है | नए - नए फ़ूड स्टोर खुल रहे हैं | चारों तरफ पैसा ही पैसा बरस रहा है | लोग चाट - पकौड़ी के ठेलों पर टूटे पड़े रहते हैं | हर गली हर मोहल्ले में ढाबे खुले हुए हैं | लोग खाए जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं | शाम होते ही सड़कें चटोरों से भरी दिखती हैं | बिग बाजार और हर मोहल्ले में एक न एक मॉल खुला हुआ है | खाने की सामग्री ठुंसी पडी हुई है | मोटापे से त्रस्त लोगों के लिए दवाइयाँ, जड़ी - बूटियां, और नाना प्रकार के यंत्र रोज़ लॉन्च हो रहे हैं | तुम कह रहे हो भूखे हैं | कौन विशवास करेगा इस बकवास का'' ?
''सरकार ! हम किसान हैं | मजदूर हैं | उस तरफ जाने की सारी गलियां हमारे लिए बंद हैं'' |
''कमाल की बात करते हो ! अरे किसान हो तो अनाज उगाओ | मजदूर हो तो मेहनत करो हमारी तरह | अच्छा अब हमारे जाने का समय हो गया है | सेक्रेटरी ! अब हमें कहाँ जाना है''?
''हुज़ूर ! आज आपको दस बजे कनॉट प्लेस में थाई फ़ूड रेस्टॉरेंट का फीता काटने जाना है | ग्यारह बजे सदर में मेकडॉनल्ड का उद्घाटन करना है | दो बजे गुरुग्राम में राजस्थानी फ़ूड कोर्ट की नींव रखनी है ''|
''जल्दी चलो ड्रायवर ! समय कम है | काम बहुत ज़्यादा है'' |
वाह जबरजस्त
जवाब देंहटाएंबेहद कड़वी सच्चाई लिख डाली आपने। सब राजनीति के मगरमच्छ हैं जो जनता को मछली समझ कर निगल रहे हैं। लाजवाब व्यंग।
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद..
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सटीक।
जवाब देंहटाएंएकदम सही जगह चोट की आपने माट साब |हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सटीक
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
जय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-07-2016) को "मिट गयी सारी तपन" (चर्चा अंक-2654) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कमाल की पोस्ट!! एकदम सटीक!
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