शुक्रवार, 28 मई 2010

जिस दिन तुमसे मिलकर लौटी ....

जिस दिन तुमसे मिलकर लौटी 
 मैं कविता में ढलने लगी थी|
 
विचारों को मिल गए थे पंख
चाय की हर चुस्की के साथ
तुम्हारी कुछ पंक्तियाँ
याद आ गई थीं|
 
आटे में कुछ गीत चुपके से
आकर गुँथ गए थे|
 
नमक मिर्च हल्दी के साथ
चटपटे, रंगीन एहसास
सब्जी की कटोरी में
घुल गए थे|
 
बेशर्म से एहसासों को
झाड़ू से बुहार दिया था|
 
बिस्तर पर बिछाकर  
असंख्य शब्दों की चादर
अनुभूतियों के साथ ही अभिसार
कर लिया था|
 
इस तरह मैंने भी
तुम्हें बिना बताए
तुमसे प्यार कर लिया था|
 

38 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो अजब प्यार की गजब कहानी हुई शेफाली जी। बहुत सुन्दर भाव और शब्द संयोजन। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. दैनिक जीवन और प्रेम अच्छा ताना बाना बुना है आपने ..........

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  3. एक बार कन्फ्यूजिया गया था के हमारी मास्टरनी जी आज किस मूड में है ......पर यकीन मानिए आपका ये मूड बहुत भाया.....सच में ....
    एक बात साबित हुई...के अच्छा लिखने वाला ही अच्छा व्यंग्य रच सकता है ....

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  4. दैनिक जीवन और प्रेम अच्छा ताना बाना बाना बुना है आपने......

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  5. नमक मिर्च हल्दी के साथ
    चटपटे, रंगीन एहसास
    सब्जी की कटोरी में
    घुल गए थे|
    और फिर उस सब्जी का स्वाद ...

    बहुत सुन्दर

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  6. बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ भावों की आकर्षक प्रस्तुति......

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  7. इस तरह मैंने भी
    तुम्हें बिना बताए
    तुमसे प्यार कर लिया था

    -गजब!! वाह!!!

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  8. व्यंग्य जितनी ही सुंदर व प्रभावी रचना.

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  9. कोमल अहसासों की लजीली सजीली और किंचित मुखर अभिव्यक्ति !

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  10. वाह....बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...कोमल से एहसास से सजी हुई....

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  11. मास्टरनी जी ..........क्या बात है ...आजतो चटपटी कविता परोसी है एकदम मजा आ गया

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  12. अगर आप उर्दू सीख लें तो आप के कलम का कोई जवाब नहीं है . वैसे अब भी सुंदर शब्द योजना है . बधाई . http://vedquran.blogspot.com/2010/05/adams-family.html

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  13. वाह! कमाल कि पंक्तियाँ है!

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  14. कोई चुपके से आके,
    सपने सुलाके मुझको जगाके,
    बोले कि मैं आ रहा हूं,
    कौन आए ये मैं कैसे जानूं,
    कोई चुपके से आके...

    जय हिंद...

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  15. क्या बात है ...
    आज बिलकुल अलग अंदाज़ ...
    होता है कभी कभी ऐसा भी होता है ...:)
    अच्छा है ये भी ...

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  16. दैनिक जीवन और प्रेम अच्छा ताना बाना बाना बुना है आपने

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  17. रसोई ..आटा...सब्जी....और प्यार! एकदम मस्त आइडिया..!

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  18. बहुत ही सुन्दर ,रोचक और ...और भी बहुत कुछ ...///पिछली रचनाएं जरूर पढना चाहूँगा

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  19. प्रेम की सहज व्यापकता का सजीव चित्रण ।
    शेफाली जी . बहुत बोधगम्य रचना ।

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  20. बेशर्म से एहसासों को
    झाड़ू से बुहार दिया था|

    bahut bahut behad sundar abhivyakti

    badhai

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  21. आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
    आचार्य जी

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  22. बेहद अनूठी भावाव्यक्ति है आपकी कविता की..........बहुत अच्छी लगी।

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  23. रचना
    बहुत ही उम्दा है
    सचमुच
    एक कविता की तरह ही ....
    वाह !

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  24. आटे में कुछ गीत चुपके से
    आकर गुँथ गए थे|

    नमक मिर्च हल्दी के साथ
    चटपटे, रंगीन एहसास
    सब्जी की कटोरी में
    घुल गए थे|

    मास्टरनी जी कविता पढ़ के सचमुच आनंद आ गया
    आपकी कविता पुदीने और धनिये की तरह महकती रहे रसोई में भी
    रचना के लिए धन्यवाद

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  25. दिनचर्या इतनी रचनात्मक हो सकती है .......बहुत ही सुन्दर उपमाएं, रचना रस से सराबोर.......

    बधाई!

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  26. बिस्तर पर बिछाकर
    असंख्य शब्दों की चादर
    अनुभूतियों के साथ ही अभिसार
    कर लिया था|
    शेफाली जी आपने कितनी सहजता से यह बात कह दी । सचमुच एक चमत्‍कार पैदा करती है आपकी कविता। बाकी पोस्‍ट आपकी नहीं देखी। पहली बार ही आना हुआ। पर अब आपके फालोअर बनकर जा रहे हैं। शुभकामनाएं।

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  27. बिस्तर पर बिछाकर
    असंख्य शब्दों की चादर
    अनुभूतियों के साथ ही अभिसार
    कर लिया था|

    इस तरह मैंने भी
    तुम्हें बिना बताए
    तुमसे प्यार कर लिया था|



    शेफाली
    bahut dinon bad ek ghatak aur marak rachna se roobaroo hua hoon ...
    aapke hi shabdon mein kahoon to..
    आटे में कुछ गीत चुपके से
    आकर गुँथ गए....
    नमक मिर्च हल्दी के साथ
    चटपटे, रंगीन एहसास
    सब्जी की कटोरी में
    घुल गए......

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  28. बहुत ही सुन्दर ,रोचक और बेहद अनूठी भावाव्यक्ति है कविता की

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  29. सुन्दर,सुन्दर,सुन्दर हृदयस्पर्शी.....

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  30. बहुत बढ़िया...अजब प्रेम की गजब कहानी

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  31. वाह...वाह ....वाह...अनूठी अभिव्यक्ति...
    अद्वितीय कविता,जिसका रस सहज ही पाठक ह्रदय तक स्थानांतरित हो जाए...

    बहुत बहुत सुन्दर लगी आपकी यह अप्रतिम रचना...

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